नशरीन-जाफरी | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/नशरीन-जाफरी-9758/ News Related to Human Rights Fri, 10 Jun 2016 10:31:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png नशरीन-जाफरी | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/नशरीन-जाफरी-9758/ 32 32 अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 3 https://sabrangindia.in/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-3/ Fri, 10 Jun 2016 10:31:28 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/10/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-3/   Courtesy of Zuber JafriAhsan Jafri, center, addressing a gathering in Ahmedabad, Gujarat, 1977. अब्बा, एक वक्त मैं अपना बहुत कुछ गंवाने के बाद पूरी तरह परेशान हो गई थी जब मैं लगातार खुद से पूछ रही थी कि मेरे ही पिता क्यों…! उन्हें ही क्यों…! लेकिन यह आपके बताए रास्ते का हासिल है कि […]

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Courtesy of Zuber JafriAhsan Jafri, center, addressing a gathering in Ahmedabad, Gujarat, 1977.


अब्बा, एक वक्त मैं अपना बहुत कुछ गंवाने के बाद पूरी तरह परेशान हो गई थी जब मैं लगातार खुद से पूछ रही थी कि मेरे ही पिता क्यों…! उन्हें ही क्यों…! लेकिन यह आपके बताए रास्ते का हासिल है कि वाकयों को उसके बड़े दायरे में देखो और अपनी जिंदगी को भी बड़े फलक पर देखो। मैंने महसूस किया कि मेरी तरह तो हजारों हैं, मर्द, औरतें और बच्चे, जिन्होंने अपने सबसे करीबी और अजीज लोगों को खो दिया और वे भी यही पूछ रहे हैं कि क्यों उन्हें ही..!

बड़ी तादाद में बच्चे अनाथ हो गए और बड़ी तादाद में मां-बाप अपने बच्चों से महरूम हो गए। मैंने यह भी महसूस किया कि मेरी तरह के कुछ लोग गोधरा और कश्मीर में भी हैं। उनकी तकलीफ हमसे जरा भी कम नहीं है। उनका नुकसान हमसे कम नहीं हैं। उनकी मासूमियत भी हमसे कम नहीं है। इसलिए मैं उनसे पूछती हूं जो सत्ता में हैं। उन्होंने उस कत्लेआम को होने दिया था। और फिर समय-समय पर इंसानियत के खिलाफ अपराध होते रहे। और तमाम विनम्रता और संजीदगी के साथ मैं खुदा से पूछती हूं कि क्यों वे नहीं जो नफरत का पाठ पढ़ाते हैं? क्यों वे नहीं, जो सांप्रदायिक असहनशीलता फैलाते हैं? क्यों वे नहीं, जो उसकी बनाई दुनिया के खिलाफ हिंसा का प्रचार करते हैं?

मेरे प्यारे अब्बा, मुझे आपकी बात याद है कि दुनिया में बहुत दुश्मनी है, लेकिन बहुत सुकून, मेलजोल और प्यार भी है। दुनिया में दुख है, तकलीफ है, लेकिन सुख समृद्धि और आगे बढ़ने के रास्ते भी हैं। दुनिया में जंग और बर्बरता है, लेकिन भाईचारा, सुकून और शांति भी है। यह इस बात से तय होता है कि आप कहां से और कैसे इस दुनिया को देखते हैं।

यह आपकी उम्मीदों और सकारात्मक सोच के साथ तैयार मेरी शख्सियत है कि मैंने देश में प्यार, भाईचारा, सुकून और सांप्रदायिक सौहार्द के हालात को देखना पसंद किया है, चुना है। मैंने यह भरोसा चुना कि गुजरात में हमने जो हिंसा और सांप्रदायिक असहनशीलता देखी, वह महज एक तात्कालिक विचलन थी और उसके गम जल्दी ही गुजर जाएंगे। आपस में बांटने के एजेंडे के साथ नफरत का कारोबार करने वाले हारेंगे और भारत में लोग अपने मजहब और नस्ल, रंग और जाति, सियासी बुनियाद या आदर्श की परवाह किए बिना एक दूसरे के साथ आएंगे, आपके और आपकी तरह के लाखों लोगों के उन सपनों के लिए जो एक, प्रगतिशील, समृद्ध, धर्मनिरपेक्ष और गर्व करने लायक भारत में बसता है।

मेरे प्यारे अब्बा, आपकी दी हुई सबक मुझे यह ताकत देती है कि मैं गुजरात कत्लेआम के दौरान हजारों बेघर हो चुके लोगों, औरतों और बच्चों की मदद के लिए आगे बढ़ूं, जो जिंदगी के बेहद असह्य और तकलीफदेह हालात में जी रहे हैं। मेरे दिल में किसी खास व्यक्ति या समुदाय के लिए कोई कड़वाहट नहीं है। मैं आपके दामाद नाज़िद हुसेन के साथ हूं और अपनी काबिलियत के मुताबिक बेसहारा लोगों की मदद के लिए बहुत बेहतर काम कर रही हूं। हमारे साथ कई लोगों, संस्थाओं और संगठनों की भी मदद है। हम लोगों के पुनर्वास, उनकी सुरक्षा की गारंटी और गुजरात में इंसान सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं।

हमें हिम्मत दीजिए अब्बा! और इस देश को भी हौसला दीजिए, जिसके सम्मान के लिए आपने बिना किसी भेदभाव और बिना किसी स्वार्थ के जिंदगी भर काम किया। हमें आशीर्वाद दीजिए और राह दिखाइए, ताकि हम हम आपके दिखाए रास्ते को साफ-साफ देख सकें, उस पर चल सकें। दया और संवेदना का रास्ता, एकता और अखंडता का रास्ता, शांति और सौहार्द का रास्ता, ताकि हम गुजरात की उस त्रासदी को दोहराए जाते नहीं देखें।

शुक्रिया… हम आपसे प्यार करते हैं… हम हमेशा आपसे प्यार करेंगे… हम हमेशा आपको याद करेंगे…!

(समाप्त)

अनुवाद- अरविंद शेष

अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 2

अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 1
 
 

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अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 2 https://sabrangindia.in/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-2/ Thu, 09 Jun 2016 05:18:05 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/09/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-2/ Ahsan Jafri with Yashwant Rao Chauhan​ आपकी लाइब्रेरी में कानून, साहित्य, दर्शनशास्त्र, इंसानियत, धर्म, राष्ट्रीय एकता और आपकी अपनी कविताओं की हजारों किताबें जो आपने अपनी अगली पीढ़ियों के लिए संभाल के रखी थीं, वे आपको समझने के लिए काफी थीं। वे सब खाक में तब्दील कर दी गईं। आपके दफ्तर में अब गौरैया नहीं हैं, […]

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Ahsan Jafri with Yashwant Rao Chauhan


आपकी लाइब्रेरी में कानून, साहित्य, दर्शनशास्त्र, इंसानियत, धर्म, राष्ट्रीय एकता और आपकी अपनी कविताओं की हजारों किताबें जो आपने अपनी अगली पीढ़ियों के लिए संभाल के रखी थीं, वे आपको समझने के लिए काफी थीं। वे सब खाक में तब्दील कर दी गईं। आपके दफ्तर में अब गौरैया नहीं हैं, उनके घोंसले जला दिए गए। मुझे याद है कि आपने अपने दफ्तर में गौरैयों को घोंसला बनाने, अंडे देने, उनके चूजों को उड़ान भरना सिखाने के लिए कितनी मेहनत की थी। आप अपने दफ्तर की एक खिड़की हमेशा ही खुला छोड़ देते थे, तब भी, जब हम सब समूचे घर को बंद कर कहीं बाहर गए होते। सिर्फ इसलिए कि गौरैया हमारे घरों में आजादी से आवाजाही कर सकें। जब वे गौरैया घोंसला बनाने के दौरान कुछ गंदगी फैलाती थीं, तो दिन में कई-कई बार आप अपने दफ्तर की सफाई खुशी-खुशी करते थे। जब उन गौरैयों को नन्हे चूजे होते थे, तो आप घर के पंखे चलाने वाले बिजली के स्विच पर टेप लगा देते थे, ताकि गलती से वे चल न जाएं। पंखों से चूजों के घायल होने की बनिस्बत आप गरमी को बर्दाश्त करके काम करना पसंद करते थे। हम आज भी उन गौरैयों को याद करते हैं।

मुझे याद है कि एक युवक कालिया जब अपने पांवों के जख्मों की तकलीफ से तड़प रहा था, तो आप उसे डॉक्टर के पास ले गए और खुद उसके घावों की मरहम-पट्टी की थी। उसने बताया था कि जिस वक्त कोई उसे छूने तक के लिए तैयार नहीं था, तब आपने उसे कुर्सी पर बिठा कर खुद नीचे बैठ उसके पांवों को देख रहे थे और तब वह खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उन सालों के दौरान आपने जिनकी मदद की, उनमें से दर्जनों लोग आपकी रहमदिली और उदारता की याद दिलाते हैं। उनमें से कई यह भी जानते हैं कि कैसे आप उन्हें घरों का रंग-रोगन करने, दरवाजों को पेंट करने, किचेन या टॉयलेट या घर में गैराज को नई शक्ल देने के बारे में बताते थे। यह सब इसलिए नहीं कि वह जरूरी था, बल्कि इसलिए कि आप चाहते थे कि वे अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए खुद कुछ काम करें। वे सभी आपको याद करते हैं।

अब्बा, मैं जानती हूं कि अगर आप चाहते तो अपनी वकालत की प्रैक्टिस और अपने सियासी कॅरियर के जरिए काफी पैसे कमा सकते थे। लेकिन इसके बजाय आपने हमारे हिंदुस्तानी स्वभाव के मुताबिक बिल्कुल सादा रहन-सहन और ऊंचे खयालातों की जिंदगी चुनी। अगर आप चाहते तो एक बहुत ताकतवर और रसूखदार सियासतदां हो सकते थे। लेकिन इसके बजाय आप अपने गुरु और आदर्श महात्मा गांधी के मूल्यों के साथ बने रहे और आपने देश के लोगों के लिए काम करने का रास्ता चुना। सांप्रदायिक एकता और सौहार्द, राष्ट्रीय एकता और इंसानी गरिमा पर आपकी लिखी कविताएं आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखलाती रहेंगी।

यह आपकी उम्मीदों और सकारात्मक सोच के साथ तैयार मेरी शख्सियत है कि मैंने देश में प्यार, भाईचारा, सुकून और सांप्रदायिक सौहार्द के हालात को देखना पसंद किया है। मैंने यह भरोसा चुना कि गुजरात में हमने जो हिंसा और सांप्रदायिक असहनशीलता देखी, वह महज एक तात्कालिक विचलन थी और उसके गम जल्दी ही गुजर जाएंगे।

आपने न जाने कितने दिलों को छुआ। ज्यादातर हिंदुओं और मुसलमानों ने साथ आकर आपके लिए दुख जताया। आप शांति के एक दूत थे, इंसानियत और इंसानी गरिमा के पैरोकार थे। खुद को हिंदू मानने वाले चंद भटकाए गए लोगों ने गुजरात और गुलबर्ग सोसाइटी में आपके और हजारों मासूम निर्दोष लोगों के साथ जो किया, उस पर हमारे ज्यादातर हिंदू दोस्तों ने अफसोस और शर्मिंदगी जताई। गुनाह का एहसास और उसका बोझ अपने दिल पर लिए ये दोस्त अक्सर हमारे पास आकर गुजरात कत्लेआम के लिए हमसे माफी मांगते। मगर जैसा आप भी करते, उसी तरह हमने उन्हें कहा कि आप वे नहीं हैं जिन्हें इसके लिए बोझ महसूस करना चाहिए।

यह हिंदुत्व नहीं है। उस कत्लेआम के लिए यह हिंदुत्व जिम्मेदार नहीं और इस पर आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए। भटकाए गए कुछ अतिवादी दरअसल चरमपंथी हैं और चरमपंथ के पीछे चलने वालों का अपना ही मजहब होता है। हिंदू दरअसल मासूम, रहमदिल, भगवान से डरने वाले और कानूनों के मुताबिक चलने वाले नागरिक होते हैं, ठीक उन मुसलमानों की तरह जिन्हें उन चरमपंथियों ने गुजरात में निशाना बनाया और मार डाला। हमने यहां और सभी जगहों पर अपने सभी दोस्तों को यही बताया है। हम उन्हें प्यार करते हैं, उनकी और हमारी तहजीब के लिए उनकी नेकनीयती की इज्जत करते हैं। यही तो आपने भी किया था। हम उनके सराकारों को साझा करेंगे और इस समाज और देश में फासीवाद और नफरत का जहर फैलाने वालों के खात्मे के लिए काम करेंगे।

(जारी)……

अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 1

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अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 1 https://sabrangindia.in/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-1/ Tue, 07 Jun 2016 07:26:12 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/06/07/ababaa-hamaen-haausalaa-aura-haimamata-daenaa-1/ मैं पूर्व सांसद एहसान जाफरी की बेटी हूं, जिन्हें गोधरा घटना के बाद शुरू हुए गुजरात कत्लेआम के दौरान 28 फरवरी, 2002 को उनके ही घर में बर्बर तरीके से जला कर मारा डाला गया। मेरे लिए आज भी यह यकीन करना मुश्किल है कि अब वे नहीं हैं, उन्हें इस तरह बेवक्त हमसे दूर […]

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मैं पूर्व सांसद एहसान जाफरी की बेटी हूं, जिन्हें गोधरा घटना के बाद शुरू हुए गुजरात कत्लेआम के दौरान 28 फरवरी, 2002 को उनके ही घर में बर्बर तरीके से जला कर मारा डाला गया। मेरे लिए आज भी यह यकीन करना मुश्किल है कि अब वे नहीं हैं, उन्हें इस तरह बेवक्त हमसे दूर कर दिया गया, बेहद क्रूरता और बर्बरता के साथ। चूंकि उन्हें जिंदा जला दिया गया और हमें उनका शरीर भी नहीं मिला, तो मैं अब भी उनकी मौत के बारे में नहीं सोचती। गुजरे तमाम दिनों के दौरान मैं भरोसे और नाउम्मीदियों, भाईचारे और इंसानियत में अविश्वास, हमारी विरासत के मूल्यों और ज्ञान के साथ-साथ गुजरात में अधर्म या अनैतिकता और कत्लेआम के सरेआम नाच के बीच बेतहाशा झूलती रही। इस बीच मैंने अपनी जड़ों और मजहब का सामना किया। मगर मेरे पिता से मिले सबक और मेरे परिवार को मिली ताकत का शुक्रिया कि मैंने फिर से अपना भरोसा और संतुलन हासिल किया है। बहुत थोड़ा ही सही, मैं अपने दुख से उबर सकी हूं।

बहुत थोड़ा, क्योंकि आज भी मैं अपने जज्बातों पर काबू रखने में नाकाम हो जाती हूं, जब मैं यह सब सोचने लगती हूं कि तलवार से कैसे उन्हें चीर डाला गया, वह आग जिसमें उन्हें जिंदा जला दिया गया, वे लोग जिन्होंने उन्हें मार डाला। लेकिन अब मैं आपके साथ अपने पिता की उन यादों को साझा कर सकती हूं कि वे मेरे लिए क्या थे, अपने परिवार, देश के लिए उन्होंने क्या-क्या सहा और कैसे हम सबको उन्होंने फख्र करने लायक बनाया।

वे मेरे हीरो थे। जिस पल भी मैं आंखें बंद करती हूं, मेरे बचपन के दिनों से लेकर मेरी शादी और विदेश जाने तक की मेरी जिंदगी के तमाम दौर किसी रील की तरह बार-बार दौड़ने लगते हैं। उस जिंदगी में वे हर पल मेरे साथ थे, और अब जब मैं यह चिट्ठी लिख रही हूं, वे मेरी हिम्मत और हौसले की शक्ल में मेरे साथ हैं।

मेरे प्यारे अब्बा, मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं। हम सब आपसे प्यार करते हैं। हम सब आपको बहुत याद करते हैं। हम सब आपकी प्रतिबद्धता, आपके भरोसे, आपकी हिम्मत, आपके मूल्यों और त्याग के लिए आपका शुक्रिया अदा करते हैं। आपने हमें निस्वार्थी बनना और केवल खुद के बारे में नहीं सोचना सिखाया। अम्मी उस वाकये को याद करते हुए कभी नहीं थकतीं जब आप अपने पुराने घर के एक कमरे में सो रहे थे, तो एक लालटेन बिस्तर पर गिर गया था और बिस्तर में आग लग गई थी। उसी बिस्तर पर आप और अम्मी एक ओर सो रहे थे। अचानक महसूस होने पर आप जैसे ही जगे और आपने आग देखा, तो तुरंत बिस्तर पर से भागने के बजाय आपने अम्मी को जगा कर बचने के लिए कहा। लेकिन जब वे जगीं और आग देखा, तो तुरंत ही दरवाजे की ओर भागीं। उन्हें यह ध्यान नहीं रहा कि आप कहां थे और उन्हें क्या कहने की कोशिश कर रहे थे। अब इसके चालीस साल से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन अब भी वे उस वाकये को याद करती हैं और अफसोस से भर जाती हैं कि आग देख कर दरवाजे की ओर भागते हुए उन्होंने आपका हाथ क्यों नहीं पकड़ा।

लेकिन अट्ठाईस फरवरी को उस वक्त वे घर में ऊपर थीं, जब आप पर बर्बरता ढायी गई और जिंदा जला दिया गया। आप तब उन सैकड़ों मर्दों, औरतों और बच्चों को बचाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्होंने हिंसक और कातिल भीड़ से जान बचाने के लिए आपके घर में पनाह ली हुई थी। वह अफसोस अब उनके लिए बर्दाश्त करने के काबिल नहीं है। उन्होंने देखा कि कैसे एक अलग हालात में चालीस साल पहले का वह वाकया फिर से सामने आ गया।          (जारी)…..

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