सबरंगइंडिया स्टाफ | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/सबरंगइंडिया-स्टाफ-11329/ News Related to Human Rights Mon, 26 Dec 2016 08:56:37 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png सबरंगइंडिया स्टाफ | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/सबरंगइंडिया-स्टाफ-11329/ 32 32 बर्थडे पर शरीफ को मोदी की बधाई ट्वीट करने वालों ने कहा शर्म करो https://sabrangindia.in/barathadae-para-saraipha-kao-maodai-kai-badhaai-tavaita-karanae-vaalaon-nae-kahaa-sarama/ Mon, 26 Dec 2016 08:56:37 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/26/barathadae-para-saraipha-kao-maodai-kai-badhaai-tavaita-karanae-vaalaon-nae-kahaa-sarama/ पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर बधाई देना देशभक्ति के रंग में रंगे ट्वीटर फॉलोअर्स को बिल्कुल रास नहीं आया है। उनके लिए इसे पचाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है। पीएम के इस कदम पर ट्वीटर पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उससे यह बिल्कुल […]

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पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर बधाई देना देशभक्ति के रंग में रंगे ट्वीटर फॉलोअर्स को बिल्कुल रास नहीं आया है। उनके लिए इसे पचाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है। पीएम के इस कदम पर ट्वीटर पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उससे यह बिल्कुल साफ है। शरीफ 25 दिसंबर को 67 साल के हो गए। अटल बिहारी वाजपेयी और कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन भी 25 दिसंबर को पड़ता है। बहरहाल, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे माहौल के बीच नवाज शरीफ को जन्म दिन की बधाई देता मोदी का ट्वीट किसी आश्चर्य से कम नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह का माहौल बनाया गया है और मोदी के मंत्री जैसी भाषा बोल रहे हैं और राज्यों के चुनाव अभियान में बीजेपी नेता जिस तरह के आक्रामक तेवर अपना रहे हैं, उसमें शरीफ को उनके जन्मदिन को बधाई देना अचरज पैदा करने वाला है। हालांकि मोदी के ट्वीटर फॉलोअर ने उनके उनके इस कदम की लानत-मलामत करने में कोई कोताही नहीं बरती।
 
नीचे आप देख सकते हैं कि पीएम के इस कदम की ट्वीटर पर किस कदर आलोचना हुई है।

 

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मोदी सरकार के दो मंत्रालय कटघरे में सीएजी ने अनुदान देने में गड़बड़ी का दोषी पाया https://sabrangindia.in/maodai-sarakaara-kae-dao-mantaraalaya-katagharae-maen-saiejai-nae-anaudaana-daenae-maen/ Sun, 25 Dec 2016 04:23:43 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/25/maodai-sarakaara-kae-dao-mantaraalaya-katagharae-maen-saiejai-nae-anaudaana-daenae-maen/  मोदी सरकार के बिजली और स्वास्थ्य-परिवार कल्याण मंत्रालयों के 26000 करोड़ रुपये के अनुदानों के लाभार्थियों का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं – सीएजी   मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के लिए आफत बना सीएजी (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने एक और धमाका किया है। इस बार निशाने पर मोदी सरकार है। लेकिन क्या […]

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 मोदी सरकार के बिजली और स्वास्थ्य-परिवार कल्याण मंत्रालयों के 26000 करोड़ रुपये के अनुदानों के लाभार्थियों का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं – सीएजी

 
मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के लिए आफत बना सीएजी (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने एक और धमाका किया है। इस बार निशाने पर मोदी सरकार है। लेकिन क्या इस मोदी सरकार के इन मंत्रालयों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनसे जवाब मांगा जाएगा।

सीएजी की जांच में दो केंद्रीय मंत्रालय- बिजली और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय दोषी पाए गए हैं। इन दोनों मंत्रालयों ने पिछले तीन साल में 26000 करोड़ रुपये के अनुदान जारी किए लेकिन जांच से पता चला कि इस अनुदान के लाभार्थियों का कोई रिकार्ड नहीं है।

पीयूष गोयल बिजली मंत्री हैं और डॉ. हर्षवर्धन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री। लिहाजा इस कथित गड़बड़ी के लिए दोनों ही जिम्मेदार ठहराए जाने चाहिए। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद का शीतकालीन सत्र शुरू भी हुआ और खत्म भी हो गया। लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हो सकी।

दो अहम सवाल
इस पूरे मामले से दो सवाल पैदा होते हैं।

​​​​​​​क्या मंत्रालयों के फंड को किसी दूसरे उद्देश्य के लिए डायवर्ट किया जा रहा है।
 
अगर ऐसा है तो सीएजी की ओर से दूसरे मंत्रालयों की समीक्षा करने पर कितनी बड़ी अनियमितताएं सामने आ सकती हैं।

क्या पीएम के साथ यात्रा करने वाले दिग्गजों की ओर से चलाए जा रहे देश के कॉमर्शियल चैनलों में हिम्मत है कि वे इस खबर को प्राइम टाइम के न्यूज आवर शो में चलाएं। कॉमनवेल्थ स्कैम से लेकर 2जी स्कैम जैसे घोटालों को उजागर कर यूपीए-2 सरकार को गिराने में बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाने वाला मीडिया इस स्कैम पर चुप है। सिर्फ न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने मोदी सरकार के मंत्रालय के इस ‘घोटाले की स्टोरी’ छापी है।
 
मंत्रालयों की ओर से जारी किए गए अनुदानों के मामलों में किसी समझौते पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हुए। मंत्रालयों की ओर से जिन कायदे-कानूनों का पालन किया जाना था उनका उल्लंघन हुआ। कुछ अनुदान पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए दिए गए हैं। केंद्र सरकार के वित्तीय और अकाउंट मामलों पर सीएजी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में सवाल किया है कि क्या इन अनुदानों को मकसद पूरा हुआ भी है? सीएजी ने धांधली और फंड के दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया है।
 
अपनी वार्षिक कवायद के तहत सीएजी ने अनुदान जारी करने और इसकी मॉनिटरिंग मैकेनिज्म की समीक्षा की। इसके अलावा दोनों मंत्रालय, यानी बिजली और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में हुए खर्च के प्रभाव और गुणवत्ता की भी समीक्षा की गई।
 
सीएजी की समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2014 और वित्त वर्ष 2016 में अलग-अलग करोड़ों के अनुदान जारी किए लेकिन इनका कोई केंद्रीकृत रिकार्ड नहीं है। न तो अनुदान पाने वाले का कोई नाम दर्ज है और न ही उनका विवरण। न ही तैयार परिसंपत्ति का कोई ब्योरा दिया गया है। जिस अनुदान का इस्तेमाल हुआ है उसकी राशि का विवरण नहीं है। परिसंपत्ति के मालिकाना हक का ब्योरा नहीं है और इसका कोई रिकार्ड दर्ज नहीं है।
 
अनुदान और सहायता के मद में भुगतान सरकार की ओर से विभिन्न एजेंसियों, निकायों संस्थानों या किसी व्यक्ति को परिचालन खर्चों, पूंजीगत परिसंपत्ति के निर्माण और सेवाओं की डिलीवरी के लिए किया जाता है। सामान्य वित्तीय नियम 2005 के मुताबिक पांच करोड़ से ऊपर के अनुदान के मामले में समझौते पर दस्तख्त होने चाहिए। इसमें परिणाम लक्ष्य, कार्यक्रम के विवरण और संबंधित इनपुट का ब्योरा होना चाहिए।
 
लेकिन न सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन नियमों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया बल्कि बिजली मंत्रालय ने तो सीएजी के जांच के लिए कोई केंद्रीकृत रिकार्ड ही मुहैया नहीं कराया।
 
नियमों को इस खुल्लमखुल्ला उल्लंघन के लिए कौन जिम्मेदार है?

 
 
 

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नोटबंदी के बाद अमित शाह से जुड़े सहकारी बैंक पर ईडी का छापा https://sabrangindia.in/naotabandai-kae-baada-amaita-saaha-sae-jaudae-sahakaarai-baainka-para-idai-kaa-chaapaa/ Fri, 23 Dec 2016 07:11:04 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/23/naotabandai-kae-baada-amaita-saaha-sae-jaudae-sahakaarai-baainka-para-idai-kaa-chaapaa/  नोटबंदी के तीन दिन बाद ही अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ जमा करने की खबर के बाद ईडी ने इस पर छापा मारा था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में शामिल हैं।   नोटबंदी के ऐलान के चंद घंटों के बाद ही आश्रम रोड के अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव […]

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 नोटबंदी के तीन दिन बाद ही अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ जमा करने की खबर के बाद ईडी ने इस पर छापा मारा था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में शामिल हैं।

 
नोटबंदी के ऐलान के चंद घंटों के बाद ही आश्रम रोड के अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ की बड़ी रकम जमा करने की खबर मिली। इस बैंक के डायरेक्टर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह हैं। 19 दिसंबर को ईडी और इनकम टैक्स अफसरों ने इस बैंक में छह घंटे तक छापेमारी की कार्रवाई की। यह इस बैंक पर दूसरी कार्रवाई है।
 

कहा जा रहा है कि नोटबंदी के तीन दिन बाद ही यानी 8 से 12  दिसंबर, 2016  को एक को-ऑपरेटिव बैंक में 500 करोड़ रुपये जमा किए गए। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में एक हैं। अब ईडी और आयकर विभाग के अधिकारी इस मामले की जांच कर रहे हैं। यह बैंक अहमदाबाद आश्रम रोड पर स्थित है। हालांकि इस छापेमारी के बारे में मीडिया में चुप्पी रही। या कहिये कि इस खबर को ब्लैक आउट कर दिया गया। मीडिया में तमिलनाडु के मुख्य सचिव पी रामा मोहन रेड्डी और जे शेखर रेड्डी के यहां छापेमारी की तो खूब चर्चा हुई लेकिन उस को-ऑपरेटिव बैंक में छापे को मीडिया में दबा दिया गया, जिसके निदेशक अमित शाह हैं।  


 
बुधवार यानी 21 दिसंबर को आयकर अधिकारियों ने चेन्नई के पॉश इलाके अन्नानगर में तमिलनाडु ‌ के मुख्य सचिव के घर से 30 लाख की नकदी और पांच किलो सोना बरामद करने का दावा किया। इसके अलावा उनके और सात अन्य ठिकानों पर छापे मारने का दावा किया गया। आयक विभाग के सूत्रों के मुताबिक मुख्य सचिव के बेटे विवेक राव और आंध्रप्रदेश के चित्तूर और चेन्नई में उनके कुछ  रिश्तेदारों के भी यहां छापे मारे गए। इससे पहले आयकर अधिकारियों ने तमिलनाडु के तीन बिजनेसमैन के यहां छापे मार कर 100 किलो सोना, 96 करोड़ रुपये मूल्य के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट और 34 करोड़ रुपये की नई करेंसी बरामद की। जिन व्यापारियों के यहां छापे मारे गए उनमें से एक जे शेखर रेड्डी भी था, जिसके तमिलनाडु के मुख्य सचिव के बेटे विवेक राव से कारोबारी संबंध बताए जा रहे हैं। जे शेखर रेड्डी को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया गया था।
 
लेकिन इन छापों की तुलना में १९ दिसंबर को अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में पड़े ईडी और आयकर विभाग के छापे पर मिडिया में कमोबेश चुप्पी छाई रही। सिर्फ आउटलुक हिंदी ने इस खबर को छापी। इस सहकारी बैंक में जो 500  करोड़ रुपये जमा हुए थे, उसका ज्यादातर हिस्सा नोटबंदी के ऐलान की रात ही जमा किया गया था। इस बैंक की १९० शाखाएं हैं। लेकनि इतनी बड़ी रकम सिर्फ आश्रम रोड स्थित बैंक के मुख्यालय में ही जमा की गई। दरअसल 8 नवंबर की रात से बैंक में पैसा आना शुरू हो गया था। इस सहकारी बैंक के ज्यादातर ग्राहक और डिपोजिटर छोटे वेंडर और किसान हैं। आयकर विभाग अब इस बैंक से हासिल सीसीटीवी के विजुअल खंगाल रहा है। गुजरात के दूसरे सहकारी बैंकों में भी इसी तरह के अवैध नोट काफी बड़ी मात्रा में जमा किए गए हैं। सबरंगइंडिया ने अहमदाबाद  डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक के मैनेजर से बात करने की कोशिश की लेकिन मैनेजर श्री बहेड़िया से बातचीत नहीं हो पाई। बिजली न होने की वजह से बैंक हमारे कॉल ट्रांसफर नहीं कर पाया।
 
इस मामले से जाहिर होता है कि बीजेपी से नजदीकी संबंध रखने वालों ने नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में अपना पैसा इन सहकारी बैंकों में जमा किया है। गुजरात के १८ सहकारी बैंकों में से १७ का प्रबंधन और प्रशासन बीजेपी के हाथ में है।

गुजरात के एक सहकारी बैंक के पास 200 करोड़ रुपये का डिपोजिट आया। इस बैंक के चेयरमैन गुजरात के एक मंत्री शंकर भाई चौधरी हैं।
 
क्या नोटबंदी एक फरेब है। एक तरफ गुजरात के सहकारी बैंकों का इस्तेमाल बीजेपी के लिए अपने काले धन को ठिकाने लगाने में किया जा रहा है। दूसरी ओर, सरकार केरल और दूसरे राज्यों के सहकारी बैंकों को बरबाद करने में तुली है।

आरबीआई के निर्देश के मुताबिक आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने गुजरात के संदिग्ध सहकारी बैंकों की छानबीन शुरू कर दी है।
 
अहमदाबाद मिरर के मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को आश्रम रोड स्थित एक सहकारी बैंक के आश्रम रोड स्थित ब्रांच में सात घंटे तक तलाशी ली और वहां से कुछ दस्तावेज बरामद किए। अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव (एडीसी) बैंक की वेबसाइट में कहा गया है कि इसके निदेशकों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं। प्रवर्तन निदेशालय के जोनल दफ्तर से जुड़े एक अधिकारी ने 19 तारीख की कार्रवाई की पुष्टि करते हुए बताया कि 500 और 1000 के नोटों को बदलने और उन्हें जमा लेने के रिकार्ड में गड़बड़ी के शक के बाद छानबीन करने का फैसला किया गया। मुख्यालय से आदेश मिलने के बाद छापेमारी की गई।

नोटबंदी के ऐलान के बाद अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंक में यह दूसरी छापेमारी थी। बैंक अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया कि वे प्रवर्तन निदेशालय के कर्मचारियों से पूरा सहयोग कर रहे हैं। चेयरमैन अजय पटेल ने कहा – प्रवर्तन निदेशालय के कर्मचारी सोमवार को रूटीन चेकिंग के लिए आए थे। वे शाम छह बजे चले गए। हालांकि सूत्रों का कहना था कि बैंक में तलाशी अभियान सात घंटे तक चला। उन्होंने कई दस्तावेजों की जांच की और सीसीटीवी फुटेज खंगाले। गौरतलब है कि नोटबंदी के फैसले के ऐलान में मोदी सरकार ने जिला सहकारी बैंकों में 500 और 1000 नोटों को बदलने और जमा करने पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद गुजरात के सहकारी बैंक इन नोटों को जमा करने और बदलने में कैसे सफल रहे। जबकि देश की आम जनता को बैंकों की लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है।
 
अहमदाबाद के सहकारी बैंक पर पहली छापेमारी की खबर मीडिया में आई थी। पूर्व बीजेपी विधायक यतीन ओझा ने इसके बारे में लोगों को जानकारियां दी थी। वेब पोर्टल और पीएम को लिखी खुली चिट्ठी के जरिये इस मामले के बारे में लोगों को बताया गया था। 18 नवंबर को सबरंगइंडिया ने इस मामले की रिपोर्ट प्रकाशित की थी। सबरंगइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक – यतीन ओझा ने पीएम नरेंद्र मोदी पर देश को मूर्ख बनाने का आरोप लगाया था।

इसके पहले कोलकाता से निकलने वाले माकपा के मुखपत्र गणशक्ति में 8 नवंबर को यह रिपोर्ट छापी गई थी कि किस तरह बीजेपी के नेता पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले से पहले ही 500 और 1000 के नोटों को गैरकानूनी तौर पर बैंकों में जमा किया था। यह बताया गया था कि बीजेपी के एक खाते में किस तरह रहस्यमय तरीके से एक करोड़ रुपये जमा हो गए।

​​​​​​​असली सवाल है कि पश्चिम बंगाल में जो हुआ क्या वह दूसरे राज्यों में भी हुआ। और इससे भी बढ़ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के दूसरे सहयोगी संगठन का खातों का क्या हुआ।
नोटबंदी का फैसला लागू हुए 43 दिन हो चुके हैं। इस दौरान छोटे और बड़े डिपोजिटरों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मोदी सरकार की ओर से बगैर सोचे-समझे इस फैसले को लागू करने से आम लोगों की दिक्कतों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।
 
 
 
 

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“13,860 करोड़ का खुलासा करने वाले ने कहा रकम गुजरात के ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं की”:बिजनेसमैन महेश शाह https://sabrangindia.in/13860-karaoda-kaa-khaulaasaa-karanae-vaalae-nae-kahaa-rakama-gaujaraata-kae/ Sun, 04 Dec 2016 12:22:13 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/04/13860-karaoda-kaa-khaulaasaa-karanae-vaalae-nae-kahaa-rakama-gaujaraata-kae/ अहमदाबाद के ‘लापता’ बिजनेसमैन महेश शाह अचानक एक टीवी स्टूडियो में पेश हुए। उन्होंने उन लोगों के नाम खुलासा करने की चेतावनी दे डाली जिन्होंने सरकार की आय घोषणा स्कीम (आईडीएस) का फायदा उठा कर अपनी आय का खुलासा करने के लिए उन्हें कवर के तौर पर इस्तेमाल किया था। गुजरात के एक क्षेत्रीय टीवी […]

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अहमदाबाद के ‘लापता’ बिजनेसमैन महेश शाह अचानक एक टीवी स्टूडियो में पेश हुए। उन्होंने उन लोगों के नाम खुलासा करने की चेतावनी दे डाली जिन्होंने सरकार की आय घोषणा स्कीम (आईडीएस) का फायदा उठा कर अपनी आय का खुलासा करने के लिए उन्हें कवर के तौर पर इस्तेमाल किया था।

गुजरात के एक क्षेत्रीय टीवी चैनल पर शनिवार को लोगों को एक दिलचस्प ड्रामा देखने को मिला। आईडीएस के तहत 13,860 करोड़ रुपये का खुलासा कर गायब हो चुके अहमदाबाद के रियल एस्टेट कारोबारी महेश शाह अचानक चैनल के स्टूडियो में अवतरित हो गए और चौंकाने वाला दावा किया कि जिस भारी-भरकम रकम का उन्होंने खुलासा किया था, वह उनकी नहीं है।

उन्होंने कहा कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सामने उन्होंने 13860 करोड़ रुपये का जो खुलासा किया है वह कुछ नौकरशाहों और कारोबारियों का है। यह कैश उन्होंने महेश शाह को इस शर्त पर दिया था कि इस ‘सेवा’ के बदले उन्हें मोटा कमीशन दिया जाएगा। शाह ने कहा कि वह उन लोगों के नामों का खुलासा करेंगे जो इस तरह मेरी आड़ में रकम जमा कर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से बचना चाह रहे थे।
शाह का कहना था कि अपने नाम पर दूसरों की रकम का खुलासा करना गैरकानूनी है लेकिन उन्होंने यह काम कुछ मजबूरियों और मोटे कमीशन के लालच में किया था।

शाह ने कहा कि उन्होंने जिन लोगों के पैसों का खुलासा आईडीएस के तहत किया था वे ऐन वक्त पर पीछे हट गए। लिहाजा 13,860 करोड़ रुपये पर आईडीएस नियम के तहत बनने वाले टैक्स की पहली किस्त जमा करने में वह नाकाम रहे। 

चैनल पर एक घंटे के इंटरव्यू के दौरान महेश शाह ने कहा कि उन्हें जान का खतरा था इसलिए उन्होंने इस बात का खुलासा चैनल के स्टूडियो में किया। महेश शाह ने कहा कि पिछले दस दिनों से वह मुंबई में थे और वहां से वह सीधे अहमदाबाद आए हैं।

यह ड्रामा उस वक्त क्लाइमेक्स पर पहुंच गया जब न्यूज चैनल के टेलीफोन कॉल पर पुलिस इनकम टैक्स अफसरों के साथ स्टूडियो पहुंच गई और शाह को लाइव ही हिरासत में ले लिया।

आखिर महेश शाह को कमीशन देने का वादा करने वाले ब्यूरोक्रेट्स और राजनीतिक नेता पीछे क्यों हो गए। इसकी वजह पीएम मोदी की ओर से बड़े नोटों को बंद करने का ऐलान हो सकती है। मोदी सरकार की पहली आईडीएस के तहत 30 सितंबर तक अघोषित आय के खुलासे की डेडलाइन थी। इसके बाद 8 नवंबर को पीएम मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया। लेकिन इस ऐलान के बावजूद जितनी उम्मीद थी उतना काला धन सरकार के पास नहीं आया। मजबूर होकर सरकार ने एक और ऐलान किया कि 50 फीसदी कटौती के बाद लोग अपनी अघोषित आय अपने पास रख सकते हैं। शायद यही वजह है कि शाह को कमीशन का वादा करने वालों का मन बदल गया होगा। 
 

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यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विधि आयोग की अपील और प्रश्नावली वापस हो https://sabrangindia.in/yauunaiphaorama-saivaila-kaoda-para-vaidhai-ayaoga-kai-apaila-aura-parasanaavalai-vaapasa/ Sat, 29 Oct 2016 12:25:13 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/29/yauunaiphaorama-saivaila-kaoda-para-vaidhai-ayaoga-kai-apaila-aura-parasanaavalai-vaapasa/ विधि आयोग सरकार के फरवरी, 2014 के दिशा-निर्देशों का पालन करने में बुरी तरह नाकाम रहा है। वह जेंडर जस्टिस (लैंगिक न्याय) के मुद्दे पर भ्रम पैदा करता हुआ दिख रहा है। मौजूदा सांप्रदायिक उत्तेजना के दौर में सुप्रीम कोर्ट में लंबित इस मामले पर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। मुंबई स्थित […]

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विधि आयोग सरकार के फरवरी, 2014 के दिशा-निर्देशों का पालन करने में बुरी तरह नाकाम रहा है। वह जेंडर जस्टिस (लैंगिक न्याय) के मुद्दे पर भ्रम पैदा करता हुआ दिख रहा है। मौजूदा सांप्रदायिक उत्तेजना के दौर में सुप्रीम कोर्ट में लंबित इस मामले पर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है।

मुंबई स्थित फोरम अगेंस्ट ऑप्रेशन ऑफ विमेन (एफएओडब्ल्यू) ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है। फोरम ने विधि आयोग (लॉ कमीशन) से उसकी ‘अपील’ और ‘प्रश्नावली’ को वापस लेने की अपील की है। फोरम ने देश भर के महिला समूहों और नागरिकों से समर्थन मांगा है। फोरम ने वो वजहें गिनाई हैं, जिनके आधार पर विधि आयोग को इस ‘अपील’ और ‘प्रश्नावली’ को वापस ले लेना चाहिए।

‘अपील’ और ‘प्रश्नावली’ को वापस लेने की जो वजहें गिनाईं गई उनमें कहा गया है कि विधि आयोग ने कानून बनाने से पहले सलाह-मशविरे की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। फोरम ने कहा है कि भारत सरकार ने 5 फरवरी 2014 को 12 ऐसे दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनका कानून बनाने से पहले होने वाले सलाह-मशविरे में पालन किया जाना चाहिए। इनमें सबसे अहम वो निर्देश है, जिसमें कहा गया गया है कि कानून का प्रस्ताव करने वाले सरकार के सभी विभाग या मंत्रालयों को कानून के मसौदे को सार्वजनिक या प्रकाशित करना चाहिए।

इन विभागों और मंत्रालयों को कम से कम प्रस्तावित कानून, इसके औचित्य और आवश्यक तत्वों को जरूर प्रस्तावित करना चाहिए। इसके साथ ही कम से कम 30 दिन तक इसके व्यापक वित्तीय प्रभाव के अलावा पर्यावरण, संबंधित लोगों की जीविका, मौलिक अधिकारों और जिंदगी पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करना चाहिए। लेकिन मसौदे के बारे में सार्वजनिक सूचना देने के बजाय इसने एक प्रश्नावली पेश करने का फैसला किया। फोरम के मुताबिक कानून के मसौदे के बगैर इस तरह की प्रश्नावली का जवाब देना नामुमकिन है। इसके अलावा जब जेंडर जस्टिस के सवाल पर कई सारी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हों तो मौजूदा सामाजिक संदर्भ में बगैर कोई मसौदा सार्वजनिक किए प्रश्नावली प्रकाशित करना लैंगिक सवालों पर भ्रम पैदा करना है।

फोरम की ओर से भेजी गई चिट्ठी में कहा गया है कि मौजूदा सांप्रदायिक उत्तेजना के माहौल में इस मुद्दे पर बेहद संवेदनशीलता अपनाए जाने की जरूरत है। कुछ आदिवासी संगठनों ने तो समान नागरिक संहिता की धारणा को सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे भी डाली है।

फोरम ने विधि आयोग को भेजी अपनी चिट्ठी के लिए व्यापक समर्थन की अपील की है। जो लोग समर्थन करना चाहते हैं
वो faowindia@yahoo.co.in(link sends e-mail) sandhyagokhale@yahoo.com(link sends e-mail). पर मेल कर सकते हैं।

विधि आयोग को फोरम की ओर से भेजी गई चिट्ठी का पूरा पाठ  

  इस चिट्ठी के नीचे उल्लिखित संगठन 21वें विधि आयोग की ओर से जारी 7 अक्टूबर 2016 को जारी अपील का जवाब दे रहे हैं। ताकि समान नागरिक संहिता की संभावना पर एक स्वस्थ बहस शुरू हो सके। –
 
हम सब जानते हैं कि भारतीय संविधान के आधार पर कोई कानूनी प्रस्ताव तैयार करना श्रमसाध्य काम है। संविधान के सेक्यूलर, लोकतांत्रिक समाजवादी ढांचे को बनाए रखने के लिए काफी प्रयास और प्रतिबद्धता की जरूरत पड़ती है।  

संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 29 अगस्त, 1947 को डॉ. बी आर अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन किया गया। सभा ने 166 दिनों तक कई सत्रों में इसके लिए विचार –विमर्श किया। यह काम दो साल,

11 महीने और 18 दिनों तक चला। इसके बाद संविधान सभा के 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान के मसौदे पर हस्ताक्षर किए।

वर्ष, 1930 से ही महिला संगठनों ने एक व्यापक नागरिक संहिता की मांग की है। इस अपील को मानते हुए कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जिसने 1941 में बने हिंदू कोड बिल को संशोधित किया। लेकिन संविधान सभा में मौजूद कई हिंदू कट्टरवादियों ने इस बिल को पास नहीं होने दिया और विरोध में डॉ. अंबेडकर ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1952 से 1956 के बीच जवाहरलाल नेहरू ने चार अलग-अलग हिस्सों में हिंदू कोड बिल को पारित कराने में कामयाबी हासिल की। इतना कहने का हमारा मतलब है कि इतनी कोशिश के बाद ही कोई दूरगामी प्रभाव वाला कानून बनाया जा सकता है। हमें पता है कि कोई भी कानूनी सुधार तीन चरणों से गुजरता है- कानून बनाने से पहले की प्रक्रिया, कानून बनाने की प्रक्रिया और कानून बनने के बाद की प्रक्रिया।

​​​​​​​विधि आयोग का जो प्रयास है वह कानून बनने से पहले की प्रक्रिया के दायरे में आएगा। भारत सरकार के कानून और न्याय मंत्रालय ने 5 फरवरी 2014  को कानून बनाने से पहले सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के तहत समान नागरिक संहिता पर अपने निर्देश प्रकाशित किए। इसमें कुल 12 निर्देशक सिद्धांत थे।
पहले दो अहम बिंदु इस तरह हैं-

  • हर विभाग या मंत्रालय इंटरनेट और अन्य माध्यमों पर प्रस्तावित कानूनों को प्रकाशित करेगा। इन प्रकाशनों को प्रकाशित करने का विस्तृत तरीका संबंधित मंत्रालय या विभाग ही तय करेगा।
  • संबंधित विभाग या मंत्रालय को कानून के मसौदे को सार्वजनिक या प्रकाशित करना चाहिए। इन विभागों और मंत्रालयों को कम से कम प्रस्तावित कानून, इसके औचित्य और आवश्यक तत्वों को जरूर प्रस्तावित करना चाहिए। इसके साथ ही कम से कम 30 दिन तक इसके व्यापक वित्तीय प्रभाव के अलावा पर्यावरण, संबंधित लोगों की जीविका, मौलिक अधिकारों और जिंदगी पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करना चाहिए। कम से कम 30 दिनों तक यह सूचना लोगों तक प्रसारित होना चाहिए।

लेकिन 21वें विधि आयोग की ओर से प्रकाशित ‘अपील’ को देखें तो पता चलता है कि यह ऊपर के दो निर्धारित मानदंडों पर पूरी तरह नाकाम साबित हुआ है।

​​​​​​​लिहाजा समान नागरिक संहिता के संदर्भ में हम अपनी चिंताओं से आपको अवगत करा रहे हैं-

  1. सवाल, समान नागरिक संहिता के संदर्भ में पूछे जाने हैं। लेकिन अपील में इस संदर्भ में समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा नहीं रखा गया है।
  2. अपील के साथ सिर्फ एक प्रश्नावली है। कथित तौर पर इसका उद्देश्य परिवार कानून में संशोधन और सुधार पर व्यापक-विमर्श के लिए व्यापक सुझाव और सलाह आमंत्रित करना है। लेकिन बगैर किसी मसौदे के इनमें से कुछ सवालों का जवाब देना मुश्किल है।
  3. ज्यादातर सवाल के बहुविकल्प या हां या नाम में जवाब सुझाए गए हैं। इस तरह की प्रश्नावली ज्यादातर आंकड़े संग्रह की संतुष्टि के लिए की जाती है। हमें लगता कि जिस तरह से सवाल किए गए हैं वे भ्रमित करते हैं। या फिर ये सवाल ऐसे जवाब की मांग करते हैं, जिनमें आंकड़े सहित विश्लेषण की जरूरत होती है। इससे ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया में आंकड़ों के आधार पर समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्ग पर बहुसंख्यकों का मत थोप दिया जाएगा। इन सवालों में जो मुद्दे उठाए गए हैं वे हां और ना के दायरे में नहीं आ सकते या फिर एक लाइन में इनका जवाब नहीं दिया जा सकता। ये सवाल लंबी बहस की मांग करते हैं। इन पर विमर्श की जरूरत है।
  4. इस तरह की अपील कानून बनाने की पूर्व की प्रक्रिया का मजाक है।  ऐसा लगता है कि देश को आंकड़ो के आधार वाला चुनावी लोकतंत्र बनाने की कोशिश हो रही है।
  5. इस वक्त मुस्लिम समुदायों, प्रगतिशील महिलाओं और अन्य संगठनों और सक्रिय पुरुष संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के सामने लैंगिक समानता के मुद्दे उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनों के संदर्भ में अपीलों की सुनवाई कर रहा है। लिहाजा ऐसे समय में समान नागरिक संहिता पर कानून पूर्व मसौदे से संबंधित अपील कई शक और सवाल पैदा करता है। बगैर मसौदे के इस तरह की अपील और प्रश्नावली पेश करना लैंगिक न्याय पर भ्रम पैदा करता है।
  6. मौजूदा सांप्रदायिक उत्तेजना के माहौल में इस मुद्दे पर बेहद संवेदनशीलता अपनाए जाने की जरूरत है। कुछ आदिवासी संगठनों ने तो समान नागरिक संहिता की धारणा को सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे भी डाली है।
  7. कानून के मसौदे को सामने रखे बगैर इस तरह की अपील जारी करना निश्चित तौर पर देश के समुदायों के बीच ध्रुवीकरण और इसे जहरीला बनाने की कोशिश है। आने वाले कई राज्यों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर इस तरह की अपील पर निश्चित तौर पर शक पैदा होता है।
  8. इन बिंदुओं पर विचार करते हुए विधि आयोग को अपनी अपील और प्रश्नावली को तुरंत प्रभाव से वापस ले लेना चाहिए। 
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भवदीय
फोरम अगेंस्ट ऑप्रेशन ऑफ विमेन, मुंबई   
 

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गुजरात में गोरक्षकों ने मुस्लिम युवक को मार डाला https://sabrangindia.in/gaujaraata-maen-gaorakasakaon-nae-mausalaima-yauvaka-kao-maara-daalaa/ Sat, 17 Sep 2016 13:02:20 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/09/17/gaujaraata-maen-gaorakasakaon-nae-mausalaima-yauvaka-kao-maara-daalaa/   दो महीने पहले उना में गोरक्षकों ने दलित युवकों की बर्बर पिटाई की थी। लेकिन 13 तारीख को उन्होंने सरेशाम मुस्लिम युवक को पीट-पीट कर मार डाला। पीएम नरेंद्र मोदी के पास है कोई जवाब।   जन्मदिन मनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के गुजरात आगमन के ठीक पहले गोरक्षकों ने फिर हमला किया […]

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दो महीने पहले उना में गोरक्षकों ने दलित युवकों की बर्बर पिटाई की थी। लेकिन 13 तारीख को उन्होंने सरेशाम मुस्लिम युवक को पीट-पीट कर मार डाला। पीएम नरेंद्र मोदी के पास है कोई जवाब।

 

जन्मदिन मनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के गुजरात आगमन के ठीक पहले गोरक्षकों ने फिर हमला किया है। इस बार गोरक्षकों ने अहमदाबाद में 29 वर्षीय मुस्लिम युवक मोहम्मद अयूब को पीट-पीट कर मार डाला। 13 सितंबर की इस जघन्य वारदात के बाद माहौल बेहद गर्म है। अयूब के मां-बाप ने कहा है कि जब तक हमलावरों के खिलाफ दफा 302 के तहत कत्ल का मामला दर्ज नहीं हो जाता तब तक वह अपने बेटे की लाश नहीं ले जाएंगे। हालांकि दो दिन पहले इस जघन्य वारदात को अंजाम देने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। लेकिन इसमें कत्ल का मामला नहीं जोड़ा गया है।

अयूब की मौत के बाद गुस्साए लेकिन पूरी तरह संगठित मुसलमानों और दलितों ने इस मांग को लेकर नगरनिगम के वीएस अस्पताल को घेर लिया था। वैसे, यह अस्पताल मरीजों से भेदभाव के लिए बदनाम रहा है। कत्ल का मामला दर्ज कराने की मांग लेकर मुसलिम और दलित देर रात तक अस्पताल को घेरे रहे।

गुजरात टुडे अखबार ने मोहम्मद अयूब की जघन्य हत्या पर विस्तृत रिपोर्ट छापी है। गोरक्षकों के हमले से बुरी तरह घायल अयूब की 14 सितंबर शाम पांच बजे मौत हो गई थी।

अयूब पर गोरक्षकों ने 13 सितंबर को हमला किया था। उस दिन अयूब और समीर शेख इनोवा से दो बछड़े लेकर अहमदाबाद की ओर जा रहे थे। गोरक्षकों को इसकी भनक लग गई और वे उनका पीछा करने लगे। गोरक्षकों के गिरोह ने अहमदाबाद में कर्णावती क्लब के पास ऑनेस्ट टी-जंक्शन पर उनकी कार को टक्कर मार दी। और दोनों को कार से बाहर घसीट लिया। इसके बाद इस गिरोह ने दोनों को बुरी तरह पीटा। यह घटना 13 सितंबर को तड़के तीन बजे के आसपास हुई।

समीर शेख की तहरीर के मुताबिक, मोहम्मद अयूब गोरक्षकों की पकड़ से भाग निकले। लेकिन उनके गिरोह ने दोनो का पीछा कर उन्हें दबोच लिया। इसके बाद गोरक्षक लाठी और और रॉड लेकर उन पर पिल पड़े। अयूब बुरी तरह घायल हो गए। समीर शेख की भी पिटाई की गई और वह भी घायल हो गए। उनके माथे पर खासी चोट आई। पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। पुलिस का कहना है कि जब तक वह अयूब तक पहुंचती तब तक गोरक्षकों ने उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया था। अयूब को एंबुलेस से सिविल अस्पताल ले जाया गया जबकि समीर शेख को आनंदनगर पुलिस थाने। लेकिन न जाने क्यों मोहम्मद अयूब को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल वीएस अस्पताल भेज दिया गया, जहां शाम पांच बजे उनकी मौत हो गई।

पुलिस ने इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की है। गोरक्षा कानून के तहत पहली समीर शेख और मोहम्मद अयूब के खिलाफ जबकि दूसरी एफआईआर गोरक्षकों के खिलाफ धारा 307 के तहत। आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या की कोशिश का मामला दर्ज होता है। हालांकि समीर शेख और मोहम्मद अयूब के खिलाफ दर्ज पहली एफआईआर में पुलिस ने हमलावर गोरक्षकों का नाम और उनका वाहन नंबर लिखा है। लेकिन धारा 307 के तहत गोरक्षकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर में हमलावरों को अज्ञात करार दिया गया है। गाड़ियों के नंबर जीजे27 सी9077  और जीजे01सीजेड 1180 के तौर पर दर्ज है। गोरक्षकों हमलावरों के नाम जनक रमेश मिस्त्री, अजय सागर रबारी और भरत नागी रबारी के तौर पर दर्ज हैं। जबकि दूसरी एफआईआर में इन नामों को हटा दिया है। साफ है कि इसके जरिये हत्या की कोशिश के तौर पर दर्ज इस मामले को कमजोर कर दिया गया है।

गुजरात टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही मोहम्मद अयूब गुजरात के मौजूदा कानून के मुताबिक गैरकानूनी काम कर रहा था लेकिन गोरक्षकों को उस पर हमले का कोई अधिकार नहीं था। इसके बजाय वह उसे पकड़ कर पुलिस को सौंप सकते थे। हालांकि मौजूदा गुजरात सरकार के शासन में गोरक्षक इतने ताकतवर हो गए हैं कि वह कानून अपने हाथ में लिये घूम रहे हैं और पीट-पीट कर लोगों को मौत के घाट उतारने में लगे हैं। दो महीने पहले उन्होंने उना में गाय की खाल उतारने के झूठे आरोप में दलित युवाओं की बर्बर पिटाई की थी। इस बहुचर्चित मामले पर पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई थी। और अब उन्होंने अहमदाबाद में सरेशाम एक शख्स की जान ले ली।

आज पीएम मोदी का जन्मदिन है। वह गुजरात में अपने जन्मदिन का उत्सव मना रहे हैं। लेकिन उनके ही राज्य में एक तीन महीने का शिशु, एक तीन साल का बच्चा, एक पत्नी और मां एक पिता, पति और बेटे मोहम्मद अयूब का शोक मना रही है।

पीएम ने अपने चुनावी भाषणों में जिन गोरक्षकों को बढ़ावा दिया था वही अब उनके गुजराती भाइयों का कत्ल रहे हैं। उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। क्या पीएम इस पर कुछ कहेंगे।
बहरहाल गम और गुस्से की इस घड़ी में गुजरात का दलित और बाल्मिकी समाज मोहम्मद अयूब के परिवार के साथ मजबूती से खड़ा है। दोनों समाज अयूब के परिवार को अपना दुख समझ रहे हैं। यही वजह है कि इन समाजों के लोग देर रात वीएस अस्पताल को घेरे खड़े थे।


Late night, Friday September 16

Late night, Friday September 16


Evening, September 17

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