media-vigil | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/media-vigil-11266/ News Related to Human Rights Wed, 01 Feb 2017 02:40:23 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png media-vigil | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/media-vigil-11266/ 32 32 NDA को 360 सीटें यानी पाँचों सूबे जीतेगी बीजेपी ! या ‘आज तक’ है बीजेपी का स्टार प्रचारक ! https://sabrangindia.in/nda-kao-360-saitaen-yaanai-paancaon-sauubae-jaitaegai-baijaepai-yaa-aja-taka-haai-baijaepai/ Wed, 01 Feb 2017 02:40:23 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/02/01/nda-kao-360-saitaen-yaanai-paancaon-sauubae-jaitaegai-baijaepai-yaa-aja-taka-haai-baijaepai/ यह बात दर्ज की जानी चाहिए कि जब पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो इंडिया टुडे ग्रुप देश का मिज़ाज बताने का दावा करने वाला सर्वे लेकर आया । उसने इन पाँच राज्यों के बारे में कोई नतीजा ना देकर ऐलान किया कि देश में एनडीए की लहर है। क्या यह संयोग […]

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यह बात दर्ज की जानी चाहिए कि जब पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो इंडिया टुडे ग्रुप देश का मिज़ाज बताने का दावा करने वाला सर्वे लेकर आया । उसने इन पाँच राज्यों के बारे में कोई नतीजा ना देकर ऐलान किया कि देश में एनडीए की लहर है। क्या यह संयोग है या फिर सोची-समझी प्रचार योजना का हिस्सा। यह कैसे हो सकता है कि आज तक जैसा सबसे तेज़ चैनल विधानसभा चुनाव के समय राज्यों का नहीं देश का मूड बताने में दिलचस्पी रखे।

इंडिया टुडे और कारवी  इनसाइट के इस सर्वे के नतीजे में मोदी ही मोदी हैं। सर्वे के मुताबिक अभी चुनाव हो तो एनडीए को लोकसभा में 360 सीटें मिलेंगी। मोदी जी की लोकप्रियता में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। 65 फ़ीसदी लोग उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वाधिक योग्य मानते हैं। यही नहीं सैकड़ों लोगों की जान लेने वाली और देश की आर्थिक रफ़्तार को धीमी करने वाली नोटबंदी के फ़ैसले के साथ भी 80 फ़ीसदी लोग हैं। सर्वे के मुताबिक अकेले बीजेपी की 305 सीटें आएँगी अगर अभी चुनाव हों। सर्वे में 19 राज्यों के 12,143 लोगों से बात की गई।

अब यह बात छिपी नहीं है कि बार-बार ग़लत साबित होने के बावजूद चैनलों में सर्वे करने को लेकर इतना उत्साह क्यों होता है। दरअसल, ऐसे सर्वे माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और उहापोह में पड़े मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। यह एक तरह प्रचार का ही रूप होता है। पहले हज़ार-दो हज़ार लोगों से बात करके, अपनी  राजनीतिक रुचि के मुताबिक एक नतीजा रखा जाता है और फिर ऐसे नतीजों को आधार बनाकर रात-दिन चैनलों में बहस चलती है। चुनावी रैलियों में भी इनका हवाला दिया जाता है। अख़ाबारों में भी भरपूर प्रचार होता है। यानी अमेरिकी विचारक नॉम चाम्सकी जिस मैन्यूफैक्चरिंग कन्सेंट (सहमति विनिर्माण) की चर्चा करते हैं, यह उसी का एक रूप है। कॉरपोरेट मीडिया अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके मुद्दों और नेताओं की छवियाँ गढ़ता है।

अगर इंडिया टुडे का सर्वे सही है तो फिर पाँचों राज्यों में बीजेपी की सरकार ही बननी चाहिए। राजनीति की ज़रा भी समझ रखने वाला व्यक्ति इसे चुटकुला मानेगा। ऐसा नहीं कि इंडिटा टुडे के सर्वेकार इसे समझते नहीं, इसलिए उन्होंने बड़ी चालाकी से इसे ‘देश का मूड का नाम दिया’ और विधानसभा चुनाव वाले राज्यों पर कुछ कहना गोल कर गए  गोया देश का मूड, यूपी, पंजाब समेत पाँच राज्यों को अलग करके पता किया जा सकता है।

साफ़ है कि ऐसे सर्वे मतदाताओं पर असर डालने के औज़ार हैं। ख़ास बात यह है कि इसमें आप एक पैटर्न देख सकते हैं। आमतौर पर बीजेपी ही आगे रहती है। सर्वेकार ग़लत होने की संभावना ख़ारिज नहीं करते, लेकिन ऐसा ग़लत सर्वे कभी नहीं हुआ जिसमें कभी बीजेपी विरोधी या छोटे दल जीत गए हों। बीते बिहार चुनाव में भी इंडिया टुडे एनडीए की सरकार बनवा रहा था। दिल्ली के चुनाव में आज तक ने आम आदमी पार्टी को महज़ आठ-दस सीट दी थी।

यह केवल इंडिया टुडे का मसला नहीं है। ज़रा 2014 में दिल्ली के चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज़ के सर्वे को याद कीजिए। जिस बीजेपी को 3 सीटें मिलीं, उसे सर्वे में 46 सीटें दी गई थीं। जिस आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें पाईं उसे 18 सीटें दी गई थीं। 2013 का सर्वे भी  ऐसा ही था। ऐसी ग़लतियाँ संयोग नहीं नीयत का पता देती हैं। 3 सीट को 46 बताना सिर्फ़ ग़लती का मामला नहीं है।

ऐसी ग़लती होना और बार-बार होना संयोग नहीं है। यह बताता है कि देश की कॉरपोरेट लॉबी दरअस्ल किन राजनीतिक शक्तियों को शीर्ष पर देखना चाहती है। चैनल मालिकों का हित सीधे उनके सोच से संचालित होता है।

ऐसे में अगर आपको बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट कहीं दिखे तो उसमें एक नाम अपनी ओर से जोड़ लीजिएगा। वह नाम है अरुण पुरी,टीवी टुडे कंपनी के मालिक। इस मसले में संपादकों को दोष देना ग़लत है। वे तो हुक्म के ग़ुलाम हैं।

Courtesy: Media Vigil
 

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तीन साल पुरानी ख़बर बनी ‘डायरी बम’!…वाह इंडिया टुडे ! मोदी को ऐसे बचाओगे ? https://sabrangindia.in/taina-saala-pauraanai-khabara-banai-daayarai-bamavaaha-indaiyaa-taudae-maodai-kao-aisae/ Tue, 20 Dec 2016 07:09:50 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/20/taina-saala-pauraanai-khabara-banai-daayarai-bamavaaha-indaiyaa-taudae-maodai-kao-aisae/ पिछले कुछ दिनों से टीवी टुडे के चैनल ऐेस खुलासे कर रहे हैं जिससे संसद में हंगामा हो रहा है। ख़ास बात यह है कि दोनों ही धमाकों के निशाने पर सत्तापक्ष नहीं विपक्ष है। पहला है आगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर डील में फ़ैमिली (गाँधी परिवार) को दी गई कथित रिश्वत और दूसरी काले पैसे को सफे़द […]

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पिछले कुछ दिनों से टीवी टुडे के चैनल ऐेस खुलासे कर रहे हैं जिससे संसद में हंगामा हो रहा है। ख़ास बात यह है कि दोनों ही धमाकों के निशाने पर सत्तापक्ष नहीं विपक्ष है। पहला है आगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर डील में फ़ैमिली (गाँधी परिवार) को दी गई कथित रिश्वत और दूसरी काले पैसे को सफे़द करने में जुटी पार्टियों का स्टिंग आपरेशन ( इसमें बीजेपी नहीं है) ।

India Toaday Rahul Kanwal

नोटबंदी को लेकर संसद में फँसी मोदी सरकार के लिए देश के सबसे तेज़ चैनलों यानी आज तक और इंडिया टुडे का यह रुख़ वाक़ई राहत भरा है। 
 

पहले बात हेलीकाप्टर सौदे की। इंडिया टुडे के राहुल कँवल ने बड़े ज़ोर-शोर से जिस ख़बर को एक्सक्लूसिव कहकर दिखाया वह तो पौनो तीन साल पहले ही यूके के डेलीमेल ने छाप दी थी । तो क्या पौने तीन साल पुरानी ख़बर को अचानक एक्सक्लूसिव कहकर दिखाना बेईमानी का संयोग भर है या इसका मक़सद सत्ता पक्ष को हथियार मुहैया कराना है?

ग़ौरतलब है कि इस ख़बर को मेल टुडे ने भी छापा था जो टीवी टुडे का ही अख़़बार है। तारीख़ थी 1 फ़रवरी 2014 . 
 

राहुल कँवल जिन दस्तावेज़ों को दिखा रहे थे वे पौने तीन साल पहले की ख़बर में भी मौजूद थे। 


 

 
वैसे, राहुल कँवल ने 15 दिसंबर को इस सौदे के कथित बिचौलिये क्रिशचियन मिशेल का इंटरव्यू दिखाया। यूएई से लाइव मिशेल ने तमाम दस्तावेज़ों के जाली होने का दावा किया। सवाल यह भी उठाया कि जब उसे लिखना आता है तो वह बजटशीट को डिक्टेट क्यों कराएगा ? 

बहरहाल बिचौलिया झूठ बोल सकता है। यूपीए सरकार ने भी इस डील को संदिग्ध मानते हुए सौदा रद्द किया ही था। 

लेकिन करीब आधे घंटे के इस इंटरव्यू में  राहुल कँवल वह सवाल पूछना क्यों भूल गए जिसकी ख़़बर उन्होंने खु़द की थी। सवाल यह कि इस सौदे में गाँधी परिवार का नाम बताकर तमाम आरोपों से बरी करने का लालच मिशेल को किसने दिया था। इसी साल 4 मई को राहुल ने यह ख़बर दी थी कि गाँधी परिवार को फँसाने के लिए मिशेल पर दबाव डाला जा रहा है। क्या राहुल का यह विस्मरण महज़ संयोग है ?


 
अब आइये स्टिंग अाँपरेशन पर। नोटबंदी के बाद ही देश के हर कोने में बीजेपी के नेता नए नोटों के बंडलों के साथ पकड़े गए, लेकिन आजतक के स्टिंग में सिर्फ विपक्षी दल के लोग हैं। यह अक्षमता का मामला है या सत्ता पक्ष की ओर से आँख मुूँद लेने का। 

ध्यान रहे कि  नोटबंदी के कुछ पहले बिहार में बीजेपी के ज़मीन ख़रीद मिशन की जानकारी आजतक जैसे सबसे तेज़ चैनल ने नहीं दी थी। यह कशिश न्यूज़ जैसे छोटे से चैनल की कोशिश थी। ऐसा क्यों है कि बीजेपी के मामले में यह ग्रुप आजकल आमतौर पर गच्चा ही खाता है।  


 

सवाल यह भी है कि मिशेल की बजटशीट पौने तीन साल बाद भी एक्सक्लूसिव है तो फिर आजतक और इंडिया टुडे सहारा -बिड़ला के उन दस्तावेज़ों पर ऐसा ही फॉलोअप क्यों नहीं कर रहे हैं जिसमें गुजरात सीएम को करोड़ों रुपये देना दर्ज है। मिशेल के बजटशीट को पवित्र मानने वालों के लिए ये काग़ज़ात अश्पृश्य क्यों हैं ? मिशेल का इंटरव्यू विदेश से हो सकता है तो सीएम को पैसा दैने वाले जायसवाल जी को तो देश में ही पकड़ा जा सकता है !


 
वैसे, मोदी के हनुमान बनने की कोशिश में राहुल कँवल पहले भी पकड़े जा चुके हैं। काफ़ी पहले उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली को लिखि पं.नेहरू की एक चिट्ठी की ख़बर फोड़ी थी जिसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस को युद्ध अपराधी कहा गया था। राहुल ने इसे राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी थी। यह अलग बात है कि यह पूरी चिट्ठी पूरी तरह फ़र्ज़ी थी और पहले भी अख़बारों के चंडूख़ाने में जगह पा चुकी थी।

सुनिये, नेहरू की फ़र्ज़ी चिट्ठी को राजनीतिक भूकंप बताने वाले टीवी टुडे संपादक राहुल कँवल का फ़ोनो ! टोटल फ़्रज़ी….!
 

Courtesy: Media Vigil

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मीडिया ने नहीं दिखाई 15000 केंद्रीय कर्मचारियों की संसद रैली, 15 फरवरी को ट्रेड यूनियनों की राष्‍ट्रव्‍यापी हड़ताल https://sabrangindia.in/maidaiyaa-nae-nahain-daikhaai-15000-kaendaraiya-karamacaaraiyaon-kai-sansada-raailai-15/ Tue, 20 Dec 2016 06:40:38 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/20/maidaiyaa-nae-nahain-daikhaai-15000-kaendaraiya-karamacaaraiyaon-kai-sansada-raailai-15/ संसद का शीतकालीन सत्र खत्‍म होने से ठीक एक दिन पहले 15 दिसंबर को केवल 500 मीटर की दूरी पर संसद मार्ग थाने से लेकर जंतर-मंतर तक 15000 केंद्रीय कर्मचारी दिन भर विशाल मंच से भाषण देते रहे और अपनी मांगों के हक़ में नारे लगाते रहे, लेकिन राष्‍ट्रीय, अंतरराष्‍ट्रीय और स्‍थानीय मीडिया ने अपनी […]

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संसद का शीतकालीन सत्र खत्‍म होने से ठीक एक दिन पहले 15 दिसंबर को केवल 500 मीटर की दूरी पर संसद मार्ग थाने से लेकर जंतर-मंतर तक 15000 केंद्रीय कर्मचारी दिन भर विशाल मंच से भाषण देते रहे और अपनी मांगों के हक़ में नारे लगाते रहे, लेकिन राष्‍ट्रीय, अंतरराष्‍ट्रीय और स्‍थानीय मीडिया ने अपनी आंखें मूंदे रखीं और कान ढंके रखे। उसे न तो लाल झंडे दिखायी दिए, न ही कर्मचारियों की आवाज़ें सुनाई दीं।

Central Govt Employee

केंद्रीय कर्मचारी परिसंघ ने सातवें वेतन आयोग के संबंध में और अन्‍य मांगों को लेकर 15 दिसंबर को दिल्‍ली के संसद मार्ग पर एक विशाल रैली बुलाई थी। इस रैली की तैयारी से परेशान होकर केंद्र सरकार ने पिछले महीने परिसंघ को कुछ आश्‍वासन दिए थे जिससे वह बाद में मुकर गई। इसीलिए रैली के बैनर पर अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और सुरेश प्रभु- तीनों केंद्रीय मंत्रियों के द्वारा विश्‍वासघात की बात लिखी गई थी।

पिछले महीने के अंत में इंडिया डॉट कॉम नाम की वेबसाइट ने ख़बर दी थी कि सरकार के आश्‍वासन के बाद रैली टाल दी गई है। 15 दिसंबर को दिल्‍ली की सड़कों ने उस ख़बर को तो झूठा साबित कर ही दिया, लेकिन साथ ही बाकी मीडिया के बारे में यह धारणा भी पुष्‍ट कर दी कि वह नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ़ सरकार के भीतर से ही उठने वाले असहमति के स्‍वर को वह नहीं दिखाएगा और पूरी तरह सरकार के आगे घुटने टेक चुका है।

रैली की अध्‍यक्षता परिसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष केकेएन कुट्टी ने की। कई सांसद भी इस रैली का हिस्‍सा रहे। कुहरे के कारण रद्द हुई ट्रेनों और तमिलनाडु में आए वरदा तूफ़ान के बावजूद भारी संख्‍या में दक्षिण भारत से कर्मचारी इस रैली में हिस्‍सा लेने आए थे। रैली में घोषणा की गई कि 15 फरवरी 2017 को सभी ट्रेड यूनियनें एक दिन की राष्‍ट्रव्‍यापी हड़ताल का आयोजन करेंगी और काम बंद रहेगा।

रैली की पूरी ख़बर और मांगपत्र के लिए इस लिंक पर जाएं। 

Courtesy: Media Vigil

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तो ABP का ‘भक्त’ ऐंकर चाहे केजरीवाल की मौत ! https://sabrangindia.in/tao-abp-kaa-bhakata-ainkara-caahae-kaejaraivaala-kai-maauta/ Wed, 07 Dec 2016 07:53:58 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/12/07/tao-abp-kaa-bhakata-ainkara-caahae-kaejaraivaala-kai-maauta/ यह ट्वीट एबीपी नयूज़ के ऐंकर अनुराग मुस्कान का है। 5 दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के लगभग पौन घंटे पहले उन्होंने लिखा कि ऊपरवाले को किसी मुख्यमंत्री की ज़रूरत है तो तमिलनाडु जाने की क्या ज़रूरत है…आशय यह कि आसपास ही है वह जिसे भगवान के पास जाना चाहिए। कौन है..? […]

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यह ट्वीट एबीपी नयूज़ के ऐंकर अनुराग मुस्कान का है। 5 दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के लगभग पौन घंटे पहले उन्होंने लिखा कि ऊपरवाले को किसी मुख्यमंत्री की ज़रूरत है तो तमिलनाडु जाने की क्या ज़रूरत है…आशय यह कि आसपास ही है वह जिसे भगवान के पास जाना चाहिए। कौन है..? क्या अरविंद केजरीवाल ? अनुराग ने नाम तो नहीं लिखा, लेकिन केजरीवाल के ख़िलाफ़ उनकी लगातार टिप्पणियों  को देखते हुए कम से कम आम आदमी पार्टी समर्थकोें को कोई शक नहीं रहा कि निशाने पर कौन हैं। उन्होंने अनुराग की लानत मलामत की जिसके बाद यह ट्वीट हटा लिया गया। लेकिन मसला गंभीर था तो इसका स्क्रीन शॉट मौजूद था और ख़ुद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ऐसे ही एक जवाब को रीट्वीट किया। 

ABP Tweet
 
 
anurag-manish

आम आदमी पार्टी की नाराज़गी स्वाभाविक है। अनुराग पहले भी एक ट्वीट में केजरीवाल और मौत का रिश्ता जोड़ चुके हैं ।

anurag-balaji
 
नोटबंदी के ख़िलाफ़ केजरीवाल के अभियान को अनुराग किस तरह निशाना बनाते रहे, वह भी सामने है।  यही नहीं वह सोशल मीडिया में एक विकट मोदीभक्ति की हैसियत पा  चुके हैं..
 
anurag-anna
anurag-more-tweet

अनुराग के पुराने ट्वीट भी उनकी दिमाग़ी हालत बताने के लिए काफ़ी हैं। उन्हें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दुष्चरित्र होने पर कोई शक़ नहीं है और मोदी विरोधी नेताओं के लिए उनके पास एक से बढ़कर एक तीर हैं-

 anurag-nehru


 
सवाल यह नहीं है कि मोदी का समर्थन या केजरीवाल का विरोध करना गुनाह है। लेकिन एक बड़े चैनल के ऐंकर से इतनी तो उम्मीद की ही जानी चाहिए कि वह विरोध नीतियों का करेगा और उसके तर्क भी देगा। विपक्ष  के तर्क भी समझने की कोशिश करेगा। भाषा की मर्यादा का हमेशा ख़्याल रखेगा और कम से कम किसी की मृत्यु की कामना से ख़ुद को नहीं जोड़ेगा। वैसे, अनुराग मुस्कान ख़ुद को ऐंकर के साथ ऐक्टर भी बताते हैं…ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि वे किस की लिखी स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं..संपादकों की या फिर राजनेताओं की..!

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Courtesy: Media Vigil
 

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हिंदुत्व मामले में मीडिया का अर्धसत्य और तीस्ता का बयान ! https://sabrangindia.in/haindautava-maamalae-maen-maidaiyaa-kaa-aradhasataya-aura-taisataa-kaa-bayaana/ Fri, 28 Oct 2016 07:21:33 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/28/haindautava-maamalae-maen-maidaiyaa-kaa-aradhasataya-aura-taisataa-kaa-bayaana/ चुनाव में धर्म के इस्तेमाल को लेकर जारी बहस में कल सुप्रीम कोर्ट में हुई मौखिक टिप्पणी के आधार पर जिस तरह से आज अखबारों ने हेडलाइन बनाई है, वह अर्धसत्य का नमूना है। ऐसा लगता है कि उसने हिंदुत्व को जीवनशैली बताने वाले फ़ैसले पर एक बार फिर मुहर लगा दी है जिस पर […]

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चुनाव में धर्म के इस्तेमाल को लेकर जारी बहस में कल सुप्रीम कोर्ट में हुई मौखिक टिप्पणी के आधार पर जिस तरह से आज अखबारों ने हेडलाइन बनाई है, वह अर्धसत्य का नमूना है। ऐसा लगता है कि उसने हिंदुत्व को जीवनशैली बताने वाले फ़ैसले पर एक बार फिर मुहर लगा दी है जिस पर पुनर्विचार की कोई गुंजाइश नहीं है। 

Hindutva

ज्यादातर अख़बारों की हेडलाइन से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को जीवनशैली बताने वाले 1995 को बरक़रार रखा है जबकि अदालत ने एक मौखिक टिप्पणी करते हुए बस इतना कहा था कि वह फिलहाल राजनीति में धर्म के इस्तेमाल को लेकर विचार कर रहा है। अगर मूल याचिका में हिंदुत्व का प्रश्न होगा तो आगे सुनवाई की जाएगी।

Hindutva

यानी मामला खारिज नहीं हुआ है बल्कि पुनर्विचार की पूरी संभावना बनी हुई है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कोर्ट ने हस्तक्षेप याचिका को खारिज न करते हुए स्वीकार कर लिया है। 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए यह याचिका तीस्ता सीतलवाड़, शम्शुल इस्लाम और दिलीप मंडल की ओर से दायर की गई है।

‘’हिंदुत्व की नई व्याख्या करने से सुप्रीम को इंकार’’ या फिर ‘’हिंदुत्व की व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा विचार’’ जैसी हेडलाइन भ्रम पैदा करती हैं। यह हिंदुत्व के राजनीतिक इस्तेमाल के पक्ष में संपादको के उत्साह का भी नतीजा हो सकता है। 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में रमेश यशवंत प्रभु बनाम प्रभाकर काशीनाथ कुंते मामले की सुनवाई के दौरान हिंदुत्व को जीवनशैली बताते हुए चुनावी भाषणों में इसके इस्तेमाल को जनप्रतिनिधित्व कानून सेक्शन 123 (3) या (3A) के तहत कार्रवाई लायक़ नहीं माना था। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। तीस्ता सीतलवाड़ ने हस्तक्षेप याचिका दायर करके माँग की है कि हिंदुत्व को जीवनशैली बताने वाली व्याख्या पर अदालत पुनर्विचार करे। ऐसा नहीं करने पर राममंदिर जैसे मुद्दों को घोषणापत्र का हिस्सा बनाने वाले राजनीतिक फायदा उठाते रहेंगे।

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बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्यीय पीठ ने साफ़ कर दिया है कि इस मोड़ पर वह हिंदुत्व की व्याख्या पर पुनर्विचार नहीं करेगा। लेकिन भविष्य में यह संभावना खुली हुई है। अख़बारों की हेडिंग में इस महीन बात को नज़रअंदाज़ किय गया है जो उनकी मंशा पर सवाल उठाता है।

इस मसले पर तीस्ता सीतलवाड़ का बयान पढ़िये जो मीडिया विजिल को मिला–

"This is a Seven Judge Constitutional Bench looking at the crucial issue of Section 123(3) of the Representation of People’s Act which is-at election time-the section of the law to create a wall of separation between Religion and Politics and enforce and ensure the Constitutional Mandate of Secularism. One of the aspects of the Reference being heard is that of the wrong interpretation in our view that an appeal to Hindutva is not an appeal to religion. Yesterday the CJI/Bench passed an oral observation saying two things. One that Religion in Politics is the ultimate evil in a secular state and that they may not go into the Hindutva not being Religion in this reference. No where was my IA discussed. The media is unfortunately irresponsibly collapsing the issue. Our IA stands and we will be heard as Intervenor’s. Today or Tomorrow. Indira Jaisingh appears for us."- Teesta Setalvad
 

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अरुण पुरी का बच्चा लापता हो तो भी क्या ‘आज तक’ ड्रामा बताएगा ? https://sabrangindia.in/arauna-paurai-kaa-bacacaa-laapataa-hao-tao-bhai-kayaa-aja-taka-daraamaa-bataaegaa/ Wed, 26 Oct 2016 09:45:18 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/26/arauna-paurai-kaa-bacacaa-laapataa-hao-tao-bhai-kayaa-aja-taka-daraamaa-bataaegaa/ मेरे जूते की नोक पर ऐसी पत्रकारिता–रुक्मिणी सेन …फ़र्ज़ कीजिए ‘आज तक’ के मालिक अरुण पुरी या संपादक सुप्रिय प्रसाद का बच्चा लापता हो जाए ! कई दिनों तक पता न चले और उनके दुख में दुखी तमाम पत्रकार थाने का घेराव कर दें और कुछ घंटे बाद जब यह घेराव ख़त्म हो तो किसी […]

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मेरे जूते की नोक पर ऐसी पत्रकारिता–रुक्मिणी सेन

…फ़र्ज़ कीजिए ‘आज तक’ के मालिक अरुण पुरी या संपादक सुप्रिय प्रसाद का बच्चा लापता हो जाए ! कई दिनों तक पता न चले और उनके दुख में दुखी तमाम पत्रकार थाने का घेराव कर दें और कुछ घंटे बाद जब यह घेराव ख़त्म हो तो किसी चैनल में हेडलाइन चले— लापता पर जारी ड्रामा ख़त्म !

Aaj tak najeeb Ahmad

यक़ीनन ऐसी कल्पना नहीं की जानी चाहिए। अरुण पुरी या सुप्रिय प्रसाद के बच्चे ख़ुश रहें, आबाद रहें, फूले-फलें। लेकिन ऐसा क्यों है कि इन लोगों को अपने बच्चों के लिए तड़पते लोगों का दुख ‘ड्रामा’ लगता है। आख़िर पत्रकारिता में इस्तेमाल हो रही भाषा और संवेदना का यह स्तर हमें परेशान क्यों नहीं करता ?

मामला जेएनयू के लापता छात्र नजीब का है जिसे लेकर हुआ वीसी दफ़्तर का घेराव जब ख़त्म हुआ तो ‘आज तक’ में हेड लाइन थी— जेएनयू का बंधक ड्रामा ख़त्म।

इसे ‘ड्रामा’ कैसे कह सकता है आज तक ? और फिर क्या ख़त्म हुआ…क्या नजीब का पता चल गया ? थोड़ा ग़ुस्से में पूछती हैं रुक्मिणी सेन जो ‘आज तक’ सहित कई चैनलों में लंबे समय तक काम कर चुकी हैं। रुक्मिणी ने अपने फ़ेसबुक पर जो टिप्पणी पोस्ट की है वह चैनलों को लेकर लोगों के रुख का बयान है। रुक्मिणी लिखती हैं—

rukmini-new

“ नजीब पर आजतक का संवेदनहीन रवैया। उसकी हेडलाइन है -जेएनयू का बंधक ड्रामा ख़त्म।

देश की राजधानी के विश्वविद्यालय का छात्र नजीब लापता है। आजतक एफआईआर लिखने में हुई देरी पर सवाल नहीं करता। उसका आमतौर पर चीखने वाला हृदय नहीं पूछता कि उस नौजवान का क्या हुआ?

आज तक इसे ‘ड्रामा’ बताता है। फिर  वामपिंथियों की ‘चाल’ बताता है। एबीवीपी का नेता छात्रसंघ पर आरोप लगा रहा है कि जब तक नजीब की माँ नहीं आईं, तब तक एफआईआर नहीं लिखी गई ,यह भी कि वामपंथी उसकी ‘मामूली’ खरोचों की जाँच के लिए मेडिकल कराते हैं।
नजीब की माँ और बहन ने बताया है कि पुलिस ने एफ़आईआर लिखने में देरी की।    

‘आज तक’ के अरुण पुरी और सुप्रिय प्रसाद जैसे लोग केवल स्त्रीविरोधी मर्दवादी झुंड के हिस्से नहीं हैं, उनके मन में ख़ुद के अलावा किसी के परिवार के प्रति सम्मान भी नहीं है। एक नौजवान, सत्ताधारी दल के छात्रसंगठन के लोगों से पिटने के बाद लापता है और ‘आज तक’ सत्ताधारी दल के उस बग़लबच्चे एबीवीपी के साथ खड़ा है !    

मेरे जूते की नोक पर ऐसी पत्रकारिता…! सत्ताधारी दल के चमचे ! एबीवीपी के चमचे !

‘ड्रामा ख़त्म’ — क्या नजीब घर वापस आ गया ?  नहीं ! पर किसे परवाह है? बच्चों का युनिवर्सिटी से उठा लिया जाना आम बात है जब तक कि वह हमारा बच्चा नहीं है !”

रुक्मिणी का ग़ुस्सा सिर्फ़ रुक्मिणी का नहीं है। ज़्यादातर लोग ऐसा ही सोच रहे हैं और चैनलों की साख रसातल में है। ‘आज तक’ चाहे तो इस पोस्ट को आईना समझ सकता है। इसमें उसे अपना गंदा होता चेहरा नज़र आ जाएगा। वरना नंबर वन तो वह है ही जैसे नंबर वन हो चुके हैं हैं दुनिया के तमाम नटवरलाल।

नीचे वह वीडियो देखिये जिसके बारे में रुक्मिणी की प्रतिक्रिया है–

 
Courtesy: Media Vigil

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Essar का विज्ञापन: कर्ज चुकाने के लिए घर बेचने पर गर्व कैसा? https://sabrangindia.in/essar-kaa-vaijanaapana-karaja-caukaanae-kae-laie-ghara-baecanae-para-garava-kaaisaa/ Wed, 19 Oct 2016 10:36:43 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/19/essar-kaa-vaijanaapana-karaja-caukaanae-kae-laie-ghara-baecanae-para-garava-kaaisaa/ क्‍या अपना घर बिक जाने पर किसी को गर्व करना चाहिए? वो भी तब, जब कर्ज चुकाने के दबाव में घर बेचना पड़ा हो? चलिए गर्व न सही, क्‍या अपना घर खरीदने वाले को आप निवेशक कह सकते हैं? कारोबार की ऐसी उलटबांसी आज देश के बड़े अख़बारों में पूरे पन्‍ने के विज्ञापन के रूप […]

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क्‍या अपना घर बिक जाने पर किसी को गर्व करना चाहिए? वो भी तब, जब कर्ज चुकाने के दबाव में घर बेचना पड़ा हो? चलिए गर्व न सही, क्‍या अपना घर खरीदने वाले को आप निवेशक कह सकते हैं? कारोबार की ऐसी उलटबांसी आज देश के बड़े अख़बारों में पूरे पन्‍ने के विज्ञापन के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी और व्‍लादीमिर पुतिन की तस्‍वीरों के साथ प्रकाशित हुई है जिसमें बताया गया है कि एस्‍सार कंपनी ने अपना कारोबार रूस की एक कंपनी को बेच दिया है और उससे आने वाला पैसा देश का सबसे बड़ा प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश है।

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एस्‍सार कंपनी ने अख़बारों को आज पूरे पन्‍ने का एक विज्ञापन दिया है। विज्ञापन कहता है कि एस्‍सार ने अपनी कंपनियों एस्‍सार ऑयल और वादिनार बंदरगाह की बिक्री कर है जिससे 85,000 करोड़ रुपये प्राप्‍त हुए हैं। कंपनी का दावा है कि यह भारत में हुआ सबसे बड़ा एफडीआइ यानी प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश है। इस सूचना के नीचे नरेंद्र मोदी-पुतिन की मुस्‍कराती तस्‍वीरें छपी हैं।

उसके नीचे की पंक्ति कहती है कि यह एक ऐतिहासिक दिन है जो दोनों देशों के बीच ज्‍यादा साझीदारी के लिए दोनों नेताओं के साझा नजरिये को साथ लाने का काम करता है। सवाल उठता है कि क्‍या एक निजी कंपनी के बिकने को एफडीआइ का नाम दिया जा सकता है? क्‍या देश की एक कंपनी अपने विदेशी कारोबार को बेच दे तो उस पर राष्‍ट्राध्‍यक्ष को गर्व होना चाहिए?

सवाल इससे भी ज्‍यादा बड़ा है क्‍योंकि अख़बारों की इस सौदे से जुड़ी ख़बरों में भी इस बिक्री को एफडीआइ बताया गया है। बिज़नेस स्‍टैंडर्ड की ख़बर में एस्‍सार समूह के निदेशक प्रशांत रुइया के हवाले से कहा गया है कि इस बिक्री से आने वाला आधा पैसा समूह की कर्जदारी को निप्‍आने में खर्च होगा। रुइया के मुताबिक इस बिक्री से आने वाला पैसा विदेशी और स्‍थानीय देनदारों का कर्ज चुकाने में खर्च होगा, जिसकी राशि 88000 करोड़ रुपये है।

अगर कोई कंपनी अपना कारोबार बेचकर कर्ज चुका रही है, तो यह पैसा एफडीआइ कैसे हुआ? अख़बार इस सौदे को ''विन-विन डील'' बता रहा है। अख़बार प्‍वाइंटर में कहता है कि यह देश का सबसे बड़ा एफडीआइ है जिससे एस्‍सार का आधा कर्ज समाप्‍त हो जाएगा।

देश के सबसे बड़े कारोबारी अख़बार दि इकनॉमिक टाइम्‍स की ख़बर के मुताबिक क्रेडिट सुइस का अनुमान है कि एस्‍सार समूह एक लाख करोड़ की कर्जदारी में है जो उसे देश की तीन सबसे बड़ी कर्जदार कंपनियों में शामिल करता है। इस ख़बर में असल बात इस पंक्ति से ज़ाहिर होती है: ''एस्‍सार के साथ यह सौदा क्रेमलिन की कूटनीतिक विजय के रूप में देखा जा रहा है जो पड़ोसी देशों के प्रति रूस के विस्‍तारवादी रवैये के खिलाफ़ मॉस्‍को पर पश्चिम के प्रतिबंधों का असर हलका करने में मदद कर सकता है।'' ख़बर कहती है कि एस्‍सार ऑयल के खरीदार रोसनेफ्ट कंपनी के चेयरमैन इगोर सेचिन पुतिन के करीबी सलाहकारों में से एक हैं।
   
Courtesy: Media Vigil
 

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मीता वशिष्ठ से ‘शट-अप’ सुनकर अर्णव ने चली ‘ख़तरनाक चाल !’ https://sabrangindia.in/maitaa-vasaisatha-sae-sata-apa-saunakara-aranava-nae-calai-khataranaaka-caala/ Mon, 10 Oct 2016 07:19:14 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/10/maitaa-vasaisatha-sae-sata-apa-saunakara-aranava-nae-calai-khataranaaka-caala/ देश की ओर से तीन युद्ध लड़ चुके भारतीय सेना के एक अफ़सर की बेटी और सिद्ध अभिनेत्री मीता वशिष्ठ ने टाइम्स नाउ के प्रचंड किस्म के ऐंकर अर्णब गोस्वामी को शट-अप कहकर जिस तरह से कार्यक्रम बीच में छोड़ा, उसकी आजकल काफ़ी चर्चा है। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से निकलकर सीरियल और फ़िल्मी दुनिया […]

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देश की ओर से तीन युद्ध लड़ चुके भारतीय सेना के एक अफ़सर की बेटी और सिद्ध अभिनेत्री मीता वशिष्ठ ने टाइम्स नाउ के प्रचंड किस्म के ऐंकर अर्णब गोस्वामी को शट-अप कहकर जिस तरह से कार्यक्रम बीच में छोड़ा, उसकी आजकल काफ़ी चर्चा है। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से निकलकर सीरियल और फ़िल्मी दुनिया में मुक़ाम बना चुकीं अभिनेत्री मीता को उम्मीद रही होगी कि अर्णव उन्हें बुलाया है तो सम्मान से पेश आयेंगे, लेकिन अर्णव को, हाँ में हाँ न मिलाने वालों को अपमानित करके टीआरपी बटोरने की लत है, इसका शायद उन्हें इल्म में नहीं था ।

meeta vashistha arnab

दरअसल, 30 सितंबर को ‘टाइम्‍स नाउ’ पर देश में पाकिस्‍तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर बहस चल रही थी। पैनल में अभिनेत्री मीता वशिष्‍ठ और कारगिल शहीद कर्नल विजयन्‍त थापर के पिता मौजूद थे। इसी बहस के दौरान अर्णव गोस्‍वामी मीता पर भड़क गए। उन्होंने मीता को शो से बाहर जाने के लिए कह दिया। मीता ने कुछ कहने की कोशिश की मगर अर्णव चुप नहीं हुए तो वह उन्हें ‘शट अप’ बोलकर उठ गईं।

दरअसल, बहस के दौरान मीता ने करगिल की याद दिलाई तो अर्णव बोले- ”सबसे पहली बात, मैं सरपरस्ती वाली आवाज़ें बर्दाश्‍त नहीं करता, जो कि आप कर रही हैं। आप कह रही हैं कि का‍रगिल में जो हुआ, हम सब उसे भूल गए हैं। कोई कुछ नहीं भूला। हम इसीलिए ये मुद्दा उठा रहे हैं। मुझे नहीं पता कि बॉलीवुड इसे (करगिल) भूल गया है या नहीं। बॉलीवुड फिल्‍म बनाते वक्‍त यह भूल जाता है। बालीवुड सेनाओं की तस्‍वीरों का इस्‍तेमाल करता हैं। बॉलीवुड फ़वाद खान से यह पूछना भूल जाता है कि आप एक भारतीय वीज़ा पर आए हैं, क्‍या वीज़ा पर आना आपको आपके देश पाकिस्‍तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के प्रति आंखें मूँदने को जायज़ ठहराता है। क्‍या भारतीय वीज़ा पर आने वालों कलाकारों को उड़ी हमलों की निंदा नहीं करनी चाहिए ताकि लोग यह मानें कि भारत-पाकिस्तान दोस्त हैं। और मीता वशिष्ठ, मैं बोल ही क्यों रहा हूँ, जब मेरे साथ विजयन्‍त थापर के पिता हैं। जिस तरह आप देश के शहीदों के बारे में बोल रही हैं, वह मुझे पसंद नहीं आ रहा।”

इस पर मीता कहती हैं, ‘मैं समझ नहीं पा रही। क्या आप चिल्लाने की बजाय बोल सकते हैं ? माफ कीजिए आप मेरी ओपिनियन जानना चाहते हैं या आप चाहते हैं कि मैं आपकी बात मान लूं?” अर्णव नाराज होते हुए कहते हैं, ”एक सेकेंड, मीता आखिरी बार मैं आपको बता रहा हूं, ठीक से समझ लीजिए। आप कर्नल थापर के बारे में बात कर रही हैं। मैं तुरंत आपको शो से बाहर कर रहा हूं जब तक आप सेना के अधिकारी, जो कि एक शहीद का पिता है, से तमीज से बात करना नहीं सीख लेतीं।.. क्‍या मैं उसे शो से बाहर कर सकता हूं?” …मीता अर्नब को ‘शट अप’ बोलकर उठ जाती हैं। 

अर्णब ने मीता को बोलने का अवसर भले ही अपने चैनल पर नहीं दिया हो, लेकिन एक वेबसाइट पर उन्होंने लिखा है कि जैसे ही उन्होंने यह शो छोड़ा, थोड़ी देर बाद उनके सेलफोन पर संदेशों की बाढ़ आ गई। सभी ने 'वेल डन' लिखा और कहा कि अर्णब के अक्खड़पन के लिए यही सही जवाब था। 

मीता लिखती हैं- मुझे पता चला कि मेरे शो से हटने के बाद अर्णब ने कहा कि 'शट अप' कह कर मैंने कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता का अपमान किया है। यह अर्णब की बहुत ही ख़तरनाक चाल है। मैं यहाँ बताना चाहूंगी कि मैंने शो में क्या कहा था।“

वे लिखती हैं- मेरी फ़वाद ख़ान या अन्य पाकिस्तानी कलाकारों में कोई रूचि नहीं है। बॉलीवुड में उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। बॉलीवुड निर्माता उन्हें अपनी फिल्मों में अवसर देते हैं क्योंकि वे ऐसा चाहते हैं, लेकिन अब निर्माताओं की संस्था चीख रही है कि वे हमारे देश के नहीं हैं और उन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए तो वे ऐसा उड़ी में हुई घटना के प्रति रोष जताने के लिए कर रहे हैं। क्या ये बेहतर नहीं होता कि ये निर्माता अपनी ऊर्जा उड़ी आतंकी हमले में शहीदों के परिवार के कोष जुटाने में लगाते। इससे उन विधवाओं, बच्चों और माता-पिता की मदद हो जाती। उनसे पूछते कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं?  

अर्णब लगातार चीख रहे थे। फिर मैंने कहा कि भारत और पाकिस्तान कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम हमेशा दुश्मन रहे हैं तो इसमें इतनी हायतौबा क्यों? 1965 और 1971 के दो युद्ध तथा 1999 का कारगिल युद्ध क्या हम भूल सकते हैं। 1999 के बाद ही पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी यदि उनकी उपस्थिति हमारे लिए मुद्दा है तो। 

मेरे यह कहने पर अर्णब चीखने लगे। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि मैं केवल अर्णब को ही सुन पा रही थी। इसके अलावा बहुत शोर भी था। मुझे नहीं पता था कि उस शो में और कौन हैं तथा वे क्या कह रहे हैं। मुझे कोई जानकारी नहीं थी कि कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता भी वहां मौजूद थे, इससे उनका अपमान करने का सवाल ही खत्म हो जाता है। 

मीता ने बताया कि उनके पिता सेना में थे और उन्होंने तीनों युद्ध लड़े थे। वे लिखती हैं कि मेरी बहादुर माँ ने 1971 में कहा था कि यदि डैडी वापस नहीं आते हैं तो इसका ये मतलब होगा कि वे भगवान के पास चले गए हैं। मैं 1965 नहीं भूली, 1971 नहीं भूली और न ही 1999 । क्या इसके बाद भी पाकिस्तानी कलाकारों को भारत आने और प्रदर्शन करने की अनुमति देनी चाहिए। इसी लॉजिक से मैं कहती हूं कि पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम करते हैं या नहीं, ये मुद्दा ही नहीं है। फ़वाद खान से पाकिस्तान सरकार के विरोध की उम्मीद सही नहीं है। उनका परिवार पाकिस्तान में हैं जिसकी सुरक्षा की चिंता उन्हें है। इससे क्या वे भारत विरोधी सिद्ध हो जाते हैं। 

मीता आगे लिखती हैं- जब कम्युनिस्ट रंगकर्मी सफदर हाशमी को सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा द्वारा दिन-दहाड़े मार दिया जाता है और एक राष्ट्र के रूप में हमने उसे भुला दिया तो फ़वाद खान कौन है? अगर बिनायक सेन को जेल भेज दिया जाता है तो पाकिस्तान में फ़वाद खान का क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 1984 के दौरान हजारों सिखों को दिल्ली में ज़िंदा जला दिया गया, मार डाला गया और हम अपने घरों में छिप गए तो क्या हम देशद्रोही हो गए? 

मीता ने अर्णब और टाइम्स नाउ चैनल को जोड़ते हुए शाब्दिक बाण चलाया और लिखा, तथ्य यह है कि यह पूरा शो मिस्टर अर्णब गोस्वामी जैसे व्यक्ति को दिया गया है, जो उस टाइम्स (समय) की बात करते हैं, जिसमें हम अब (नाउ) रह रहे हैं।

देखिये यह ''शट अप'' वीडियो—
 

Courtesy: Media Vigil

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हाँ, जंगे आज़ादी में था RSS ! अंग्रेज़ों के साथ, गाँधी, सुभाष और भगत सिंह के ख़िलाफ़ ! https://sabrangindia.in/haan-jangae-ajaadai-maen-thaa-rss-angaraejaon-kae-saatha-gaandhai-saubhaasa-aura-bhagata/ Tue, 27 Sep 2016 07:20:32 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/09/27/haan-jangae-ajaadai-maen-thaa-rss-angaraejaon-kae-saatha-gaandhai-saubhaasa-aura-bhagata/ RSS सबसे ज़्यादा राष्ट्रवाद की बात करता है, वह आज़ादी की लड़ाई में कहाँ था ? उसने गाँधी जी का ही नहीं, भगत सिंह और सुभाष बोस का भी विरोध किया।   RSS का गठन 1925 में हुआ था यानी असहयोग आंदोलन की पृष्ठभमि में। संगठन का उद्देश्य ख़ासतौर पर हिंदुओं को गाँधी के 'चक्कर' […]

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RSS सबसे ज़्यादा राष्ट्रवाद की बात करता है, वह आज़ादी की लड़ाई में कहाँ था ? उसने गाँधी जी का ही नहीं, भगत सिंह और सुभाष बोस का भी विरोध किया।  

RSS का गठन 1925 में हुआ था यानी असहयोग आंदोलन की पृष्ठभमि में। संगठन का उद्देश्य ख़ासतौर पर हिंदुओं को गाँधी के 'चक्कर' से बचाना था। उसे न अंग्रज़ों से कोई दिक़्क़्त थी और न वह ऐसी आज़ादी चाहता था जो सबके भले के लिए हो, यानी हिंदुत्व नहीं भारतीयता की बात करता हो। यह वजह है कि भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी के विचारों अपने स्वयंसेवक को प्रभावित होने से बचाने के लिए, संस्थापक डॉ. हेडगवार ने एक महीने तक ' क्लास' ली। यही नहीं, जब सुभाष चंद्र बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के ज़रिये अंग्रेज़ों से मोर्चा ले रहे थे तो सावरकर को आगे करके RSS ने अंग्रेज़ी सेना में 'हिंदुओं' की भर्ती के कैंप लगवाये !

यह सारी महत्वपूर्ण जानकारियाँ इस बातचीत में है जो वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक शम्सुल इस्लाम से पत्रकार पंकज श्रीवास्तव ने की। यह मीडिया विजिल का दूसरा वीडियो प्रयास है। देखिये यह महत्वपूर्ण वीडियो बातचीत–   

Courtesy: Media Vigil

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तीन कश्मीर-पलट पत्रकारों से जानिए वह सच जो भक्त-मीडिया छिपा रहा है ! https://sabrangindia.in/taina-kasamaira-palata-patarakaaraon-sae-jaanaie-vaha-saca-jao-bhakata-maidaiyaa-chaipaa/ Mon, 26 Sep 2016 07:18:56 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/09/26/taina-kasamaira-palata-patarakaaraon-sae-jaanaie-vaha-saca-jao-bhakata-maidaiyaa-chaipaa/ यह देखना दिलचस्प है कि मोदीप्रिय अंबानी जी के सूचना साम्राज्य का हिस्सा 'ईटीवी उर्दू' वह अकेला चैनल है जिसकी कश्मीर घाटी में थोड़ी साख है। बाक़ी हिंदी और अंग्रेज़ी चैनलों को वहाँ के लोग झूठ की मशीन समझते हैं। इसका प्रमाण यह है कि देश के तीन वरिष्ठ पत्रकारों, अभय कुमार दुबे, संतोष भारतीय […]

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यह देखना दिलचस्प है कि मोदीप्रिय अंबानी जी के सूचना साम्राज्य का हिस्सा 'ईटीवी उर्दू' वह अकेला चैनल है जिसकी कश्मीर घाटी में थोड़ी साख है। बाक़ी हिंदी और अंग्रेज़ी चैनलों को वहाँ के लोग झूठ की मशीन समझते हैं। इसका प्रमाण यह है कि देश के तीन वरिष्ठ पत्रकारों, अभय कुमार दुबे, संतोष भारतीय और अशोक वानखेड़े ने घाटी का दौरा करने के पहले इस चैनल को इंटरव्यू देकर अपनी मंशा स्पष्ट की। वे यह समझाने में क़ामयाब रहे कि वे सरकार या किसी एजेंसी के नुमाइंदे बतौर नहीं, बल्कि स्वतंत्र ढंग से हालात का जायज़ा लेना चाहते हैं। नतीजा यह हुआ कि इस टीम के लिए वे तमाम दरवाज़े खुल गये जो पिछले दिनों सरकारी प्रतिनिधिमंडल के लिए बंद नज़र आये थे।

तीन पत्रकारो का यह दल 11 से 14 सितंबर के बीच घाटी में रहा और तमाम लोगों से उसने बात की। हक़ीक़त देखकर उनकी आँखें खुल गईं। अभय कुमार दुबे ने लौटकर मीडिया विजिल से साफ़ कहा कि कथित मुख्यधारा मीडिया कश्मीर के बारे में रात-दिन झूठ प्रसारित कर रहा है। उन्होंने बताया कि लौटकर उन्होंने तमाम चैनलों से संपर्क करके सच्चाई बताने की कोशिश की, लेकिन किसी ने रुचि नहीं दिखाई। उन्हें यूपी में समाजवादी पार्टी में जारी उठा-पटक पर चर्चा के लिए तो बुलाया गया लेकिन कश्मीर को लेकर किसी ने भी उनकी या वहाँ गये साथी पत्रकारों की बात प्रचारित-प्रसारित करने में रुचि नहीं दिखाई।

बहरहाल, एक बार फिर ईटीवी उर्दू ने उनसे चर्चा की। लगभग आधे घंटे के इस कार्यक्रम में तमाम ऐसी बातें हैं जो कश्मीर को देश नहीं उपनिवेश मानने वालों को बेचैन कर सकती हैं, लेकिन उपचार की पहली शर्त निदान है। और निदान तभी हो सकता है जब बीमारी की हक़ीक़त को स्वीकार किया जाए। ख़ैर मीडिया विजिल आपके लिए यह बेहद ज़रूरी वीडियो लाया है, देखिये, सुनिये और गुनिये—

 

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