nasiruddin | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/nasiruddin-11735/ News Related to Human Rights Mon, 30 Jan 2017 07:51:08 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png nasiruddin | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/nasiruddin-11735/ 32 32 अहिंसा, हिन्‍दू-मुसलमान एका, छूआछूत खात्‍मा और गांधी जी का करामाती चरखा https://sabrangindia.in/ahainsaa-hainadauu-mausalamaana-ekaa-chauuachauuta-khaatamaa-aura-gaandhai-jai-kaa/ Mon, 30 Jan 2017 07:51:08 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/30/ahainsaa-hainadauu-mausalamaana-ekaa-chauuachauuta-khaatamaa-aura-gaandhai-jai-kaa/ गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी गांधी जी की ख्‍वाहिश थी कि हर घर से चरखा का संगीत सुनाई दे. गांधी जी का यही चरखा पिछले दिनों खूब सुर्खियों में रहा. गांधी जी की रूहानी ताकत चरखे में थी. इसीलिए जब वे चरखा की बात करते हैं तो वह […]

The post अहिंसा, हिन्‍दू-मुसलमान एका, छूआछूत खात्‍मा और गांधी जी का करामाती चरखा appeared first on SabrangIndia.

]]>
गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी

Gandhi charkha

गांधी जी की ख्‍वाहिश थी कि हर घर से चरखा का संगीत सुनाई दे. गांधी जी का यही चरखा पिछले दिनों खूब सुर्खियों में रहा. गांधी जी की रूहानी ताकत चरखे में थी. इसीलिए जब वे चरखा की बात करते हैं तो वह सिर्फ सूतकताई या खादी तक नहीं सिमटा है.

गांधी जी के लिए चरखा गरीबों की ओर समाज का ध्‍यान करने का जरिया है. छोटे और घरेलू उद्योगों की वापसी का रास्‍ता है. आर्थिक तकलीफ दूर करने का कुदरती तरीका है. शोषण से मुक्ति का रास्‍ता है. इंसानियत की सेवा है. उत्‍पादन और वितरण का विकेन्‍द्रीकरण करने का विचार है. आर्थिक रूप से मजबूत होने का साधन है. गांवों को बचाने और आत्‍मनिर्भर बनाने का जरिया है.

ले़किन सबसे दिलचस्‍प और अहम बात है कि गांधी जी के लिए चरखा अपनाना अहिंसाहिन्‍दू-मुस्लिम एकता छुआछूत खात्‍मा स्‍त्री सम्‍मान के लिए जरूरी शर्त है. 1921 में मद्रास की एक सभा में वे कहते हैंचरखा इस बात की सबसे खरी कसौटी है कि हमने अहिंसा की भावना को कहां तक आत्‍मसात किया है. चरखा एक ऐसी चीज है जो हिन्‍दू और मुसलमानों को ही नहींबल्कि भारत में रहने वाले अन्‍य धर्माव‍लम्बियों को भी एक सूत्र में बांध देगा. चरखा भारतीय नारी के सतीत्‍व का प्रतीक है… हमने अछूत मानकर अभी तक जिनका तिरस्‍कार करने का पाप किया है चरखा उनके लिए सांत्‍वना का स्रोत है.

गांधी जी पहले बड़े ऐसा नेता हैं जिन्‍होंने स्‍वराज की राह में अंदरूनी रुकावट को सबसे बेहतर तरीके से समझा था. इसलिए उनका मानना था कि स्‍वराज के लिए भारत के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच नफरत की दीवार गिरनी चाहिए. छूआछूत खत्‍म होना चाहिए. इस काम के लिए चरखा और खादी की ताकत पर उनका भरोसा जबरदस्‍त था. वे कहते थे तुम मेरे हाथ में खादी दो और मैं तुम्‍हारे हाथ में स्‍वराज्‍य रख दूंगा. अंत्‍यज्‍यों की तरक्‍की भी खादी के तहत आता है और हिन्‍दू-मुस्लिम एकता भी खादी के बल पर टिकी रहेगी. यह अमन की हिफाजत का भी जबरदस्‍त जरिया है.

गांधी जी हिन्‍दू-मुसलमानों की एका की पुरजोर वकालत करने वाले ऐसे नेता थे जो इस राह से पसंगा भर डिगने को तैयार नहीं थे. यह बात उनकी सियासी जिंदगी से आखिरी वक्‍त तक अटूट थी. यही उनकी हत्‍या की वजह भी बनी. सन 1922 में हकीम अजमल खां को लिखी उनकी चिट्ठी गौर करने लायक है… बिना हिन्‍दू- मुस्लिम एकता के हम अपनी आजादी प्राप्‍त नहीं कर सकते. … हिन्‍दू-मुस्लिम एकता को हमें ऐसी नीति के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए जो किसी भी काल अथवा परिस्थिति में त्‍यागी न जा सके. साथ ही ऐसा भी नहीं होना चाहिए यह एकता पारसी यहूदी अथवा बलशाली सिख जैसी दूसरी अल्‍पसंख्‍यक जातियों के लिए त्रासदायक बन जाए. यदि हम इनमें से किसी एक को भी कुचलने का विचार करेंगे तो किसी दिन हम आपस में ही लड़ मरना चाहेंगे. … मेरी राय में तो हम लोग जब तक अहिंसा को ठोस नीति के रूप में नहीं स्‍वीकारेंगे तब तक हिन्‍दू-मुस्लिम एकता स्‍थापित होना मुमकिन नहीं है.

और ये धार्मिक समुदाय एक कैसे होंगे इसका सूत्र उन्‍होंने चरखा में तलाशा. वे इसी खत में आगे लिखते हैं:

… मेरी नजर में तो सारे हिन्‍दुस्‍तान की ऐसी एकता का जीता जागता नमूना और इसीलिए हमारे राजनीतिक मकसद को पाने के लिए अहिंसा को अनिवार्य जरिया मानने की भी जीती निशानी बिना शक अगर कुछ है तो वह चरखा यानी खादी ही है. केवल वही लोग जो अहिंसावृत्ति के विकास और हिन्‍दू-मुसलमानों में चिरस्‍थायी एकता कायम करने के कायल होंगे नियम और निष्‍ठा के साथ चरखा कातेंगे.

गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन के दौरान हिन्‍दू-मुसलमानों को एक मंच पर लाने की कोशिश चरखा के जरिए ही की. वे चरखा और खादी अपनाने पर न सिर्फ जोर देते हैं बल्कि इसे एकता के लिए जरूरी मानते हुए मजहबी फर्ज तक कह डालते हैं. हकीम अजमल खां के तुरंत बाद वे मौलाना अब्‍दुल बारी को एक खत लिखते हैं. वे उनसे कहते हैं… खुद मैं बहुत गहराई से सोचने पर इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ऐसी एक ही चीज है जिसे हिन्‍दू-मुस्लिम एकता का साफ और असरदार निशानी माना जा सकता है और वह है इन दोनों समुदायों के आम लोगों में चरखे का और हाथ के कते सूत से हाथ करघे पर बुनी शुद्ध खादी को अपनाना. … जब तक स्‍वराज्‍य हासिल नहीं हो जाता है तब तक हर एक मर्द औरत और बच्‍चे को अपना मजहबी फर्ज समझकर रोज चरखा चलाना चाहिए.

बतौर कांग्रेस अध्‍यक्ष गांधी जी 1924 में मोहम्‍मद अली को एक खत लिखते हैं. इस खत में भी एकता की बात वे दोहराते हैं और दो टूक लफ्जों में कहते हैं… यह बिल्‍कुल साफ है कि हिन्‍दू मुसलमान पारसी ईसाई तथा दूसरी जातियों की एकता के बिना स्‍वराज्‍य की बात करना ही व्‍यर्थ है…. यदि हमें आजादी हासिल करनी है तो विभिन्‍न समुदायों को मित्रता के अटूट बंधन में बांधना ही होगा… अगर हम देश में बढ़ती मुफलिसी की हालत के बारे में सोच सकते हैं तो सोचें और यह समझें कि चरखा ही इस रोग की अकेली दवा है तो वही एक काम हमें (आपस में) लड़ने के लिए फुरसत नहीं मिलने देगा.

गांधी जी के लिए चरखा आपस में लड़ने से बचने का रास्‍ता है. तो दूसरी ओर यह गांव और गरीब से जुड़ने का जरिया भी है. पटना में खिलाफत सम्‍मेलन में गांधी जी लोगों को खद्दर अपानाने को कहते हैं क्‍योंकि … हिन्‍दू- मुसलमान दोनों के लिए गांव के गरीबों द्वारा काते गए सूत से बने खद्दर को छोड़कर अन्‍य वस्‍त्र धारण करना पाप है. …भारत के गांवों में ऐसे लाखों हिन्‍दू और मुसलमान हैं जिन्‍हें दोनों वक्‍त खाना भी नसीब नहीं होता है. … गांव में भूखे मरने वालों की खातिर खादी और चरखे को अपनाएं… खद्दर को अपनाने से दो उद्देश्‍य सिद्ध होंगे. एक तो आपको अपने लिए कपड़ा मिल जाएगा दूसरे आप गांवों के लाखों भूखे गरीबों की सहायता कर सकेंगे. खुदा के वास्‍ते और गांवों के लाखों गरीबों के वास्‍ते आप सब आज ही बल्कि इसी क्षण से चरखा और कताई को अपना लें.

ऐसा नहीं है कि गांधी जी महज रणनीति के तहत हिन्‍दू-मुसलमान एकता के नाम पर चरखा अपनाने की बात कह रहे हैं. गांधी जी के लिए यह यकीन का सवाल था. उन्‍हें यकीन था कि चरखा ही सभी लोगों को एक साथ जोड़ेगी. एकता की ऐसी शिद्दत भारत के किसी दूसरे नेता में नहीं दिखाई देती है. बकौल गांधी जी… जब तक हम सूत कातने की इस साधना को नहीं अपनाएंगे तब तक प्रेम की गांठ नहीं बंधेंगी। यदि समस्‍त जगत को आप प्रेम की गांठ से बांध लेना चाहते हैं तो दूसरा उपाय ही नहीं है. हिन्‍दू मुसलमान प्रश्‍न के लिए भी दूसरा कोई उपाय नहीं है…

… मेरी इस प्रार्थना को समझकर रोज आधा घंटा चरखा अवश्‍य चलाएं. उससे आपकी कोई हानि नहीं है और उससे देश की दरिद्रता दूर होगी. यदि आप अस्‍पृश्‍यता दूर न कर सकें तो धर्म का नाश हो जाएगा… आज तो वैष्‍ण्‍व धर्म के नाम पर अंत्‍यजों का नाश हो रहा है… असपृश्‍यता निवारण हिन्‍दू-मुस्लिम एक्‍य और खादी यह मेरी त्रिवेणी है.

उत्‍पादन के किसी औजार का ऐसा समाजवादी तसव्‍वुर किसी नेता नहीं किया जैसा गांधी जी ने चरखा का किया है. गांधी जी चरखे के जरिए हर तरह के विभेद को खत्‍म करने की बात करते हैं. उनके लिए चरखा कई तरह की गैर बराबरियों परेशानियों का एकमात्र इलाज है. चरखा वह मंच है जिसका चक्र घुमाते ही सब एक जैसे हो जाते हैं. इसलिए वे एक जगह लिखते हैं… काम ऐसा होना चाहिए जिसे अपढ़ और पढ़े-लिखे, भले और बुरे बालक, और बूढ़े, स्‍त्री और पुरुष, लड़के और लड़कियां , कमजोर और ताकतवर – फिर वे किसी जाति और धर्म के हों- कर सके. चरखा ही एक ऐसी वस्‍तु है जिसमें ये सब गुण हैं. इसलिए जो कोई स्‍त्री या पुरुष रोज आध घंटा चरखा कातता है वह जन समाज की भरसक अच्‍छी से अच्‍छी सेवा करता है…

शायद इसी लिए गांधी जी के लिए जो‍ सिद्धांत जिंदगी में न उतारा जा सके वह बेकार है. वे जो कहते हैं उसे अपना कर दिखाते हैं. इसलिए वह सत्‍याग्रहियों से भी यही चाहते हैं कि चरखा और अहिंसा को जीवन में अपनाएं. यंग इंडिया में छपी एक टिप्‍पणी में वे कहते हैं… मैंने जीवन में सदा यही माना है कि सच्‍चा विकास तो भीतर से ही होता है. यदि भीतर से ही प्रतिक्रिया न हो तो बाहरी साधनों का प्रयोग बिल्‍कुल निरर्थक है.

… अच्‍छा तो अब ऐसे विकास के लिए न्‍यूनतम कार्यक्रम क्‍या हो सकता है मैं बराबर कहता आया हूं कि वह है चरखा और खादी तमाम धर्मों की एकता और हिन्‍दुओं द्वारा छुआछूत का परित्‍याग. … मैं तो राष्‍ट्र के तमाम कार्यकर्ताओं को सलाह दूंगा कि ये चरखा कातने एकता बढ़ाने और जो हिन्‍दू हों वे छुआछूत दूर करने में ही अपनी सारी ताकत लगा दें.

गांधी जी को कुछ चीजें लगातार परेशान करती रहीं. इसलिए वे बार-बार उन चीजों पर बात करना नहीं भूलते थे. वे हर मौके पर वे चीजें दोहराते थे. जैसे, 1924 में वे कहते हैं… थोड़ा ख्‍याल करके ही हम देख सकते हैं कि हमारे अमली कार्य में बाधा डालने वाली सबसे बड़ी वस्‍तु है हिन्‍दू-मुसलमान के बीच में अंतर पड़ जाना. सर्व साधारण को एकत्र करने में बाधा डालने वाली वस्‍तु चरखा और खद्दर के प्रति हमारी उदासीनता और हिन्‍दू जाति को नष्‍ट करने वाली वस्‍तु असपृश्‍यता है. इस त्रिदोष को जब तक हम नहीं मिटाते तब तक मेरी अल्‍पमति मुझको यही कहती है कि हमारे भाग्‍य में अराजकता हमारी परतंत्रता और हमारी कंगाली बदी हुई है….

देश बंट चुका है. आजादी मिल चुकी है. गांधी जी अंदर से काफी टूटे हैं. मगर जिस चीज का यकीन उन्‍हें 40 साल पहले थे वह डिगा नहीं था. वह था चरखे की रूहानी और करामाती ताकत पर यकीन. 13 दिसम्‍बर 1947 यानी हत्‍या से डेढ़ म‍हीना पहले मारकाट के माहौल के बीच प्रार्थना सभा में जो बात वे कहते हैं वह गांधी जी के लिए ही मुमकिन था. वे कहते हैंचरखे में बड़ी ताकत है. वह ताकत अहिंसा की ताकत है… हमने चरखा चलाया पर उसे अपनाया नहीं… आज जो हालत है वह होने वाली नहीं थी. अगर हमें अहिंसक शक्ति बढ़ानी है तो फिर से चरखे को अपनाना होगा और उसका पूरा अर्थ समझना होगा. तब तो हम तिरंगे झंडे का गीत गा सकेंगे. … पहले जब तिरंगा झंडा बना था तब उसका अर्थ यही था कि हिन्‍दुस्‍तान की सब जातियां मिल-जुलकर काम करें और चरखे के द्वारा अहिंसक शक्ति का संगठन करें. आज भी उस चरखे में अपार शक्ति भरी है… अगर सब भाई-बहन दुबारा चरखे की ताकत को समझकर अपनाएं तो बहुत काम बन जाए. … अहिंसा बहादुरी की पराकाष्‍ठा है आखिरी सीमा है. अगर हमें यह बहादुरी बताना हो तो समझ बूझ से बुद्धि से चरखे को अपनाना होगा.

हिंसा समुदायों के बीच नफरत, दलितों के साथ भेदभाव, स्त्रियों के साथ गैरबराबरी आज भी हमारे स्‍वराज्‍य की सबसे बड़ी चुनौती है. इसलिए आज गांधी जी को याद करने का मतलब है उस चरखे की तलाश है जिसके इस्‍तेमाल से अहिंसा एका की ताकत मिलती हो गैरबराबरियां दूर होती हों… क्‍योंकि गांधी जी के लिए चरखा अहिंसा, स्‍वराज्‍य, एकता की रूहानी ताकत थी. आर्थिक बदलाव का मजबूत औजार था. उनके इस करामती चरखे की तलाश के लिए गांधी जी की नजर वाली एनक पहननी पड़ेगी. उनके चरखा-दर्शन को जिंदगी में उतारना पड़ेगा. 

 

The post अहिंसा, हिन्‍दू-मुसलमान एका, छूआछूत खात्‍मा और गांधी जी का करामाती चरखा appeared first on SabrangIndia.

]]>
तीस साल पहले और अब! https://sabrangindia.in/taisa-saala-pahalae-aura-aba/ Fri, 04 Nov 2016 05:18:18 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/11/04/taisa-saala-pahalae-aura-aba/ एक दानिश्वर की मशहूर लाइन है- जो इतिहास भूल जाते हैं, वे इसे दोहराने की गलती करते हैं. इतिहास में तीस साल, लंबा वक्त नहीं होता है. फिर भी लगता है कि हम बहुत जल्दी भूलने के आदी हो गये हैं. नतीजतन, बुरे वक्त को दोहराने की गलती करते रहते हैं. फिर वैसा ही माहौल […]

The post तीस साल पहले और अब! appeared first on SabrangIndia.

]]>
एक दानिश्वर की मशहूर लाइन है- जो इतिहास भूल जाते हैं, वे इसे दोहराने की गलती करते हैं. इतिहास में तीस साल, लंबा वक्त नहीं होता है. फिर भी लगता है कि हम बहुत जल्दी भूलने के आदी हो गये हैं. नतीजतन, बुरे वक्त को दोहराने की गलती करते रहते हैं. फिर वैसा ही माहौल बनाने की कोशिश हो रही है, जैसा तीस साल पहले बनाया गया था. वैसा ही उन्माद पैदा करने की कोशिश हो रही है. समाज को वैसे ही बांटने की कोशिश हो रही है, जैसा तब बांटा गया था. 

 
तीस साल पहले यानी बात 1985-86 की हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने एक मुसलमान तलाकशुदा बुजुर्ग महिला शाहबानो को गुजारा देने के हक में फैसला दिया. इस पर हंगामा बरपा हो गया. 
 
मुसलमानों की दकियानूस और मर्दाना हितों की हिफाजत करनेवाली मजहबी लीडरशिप सड़क पर आ गयी. उस वक्त की कांग्रेस सरकार इस लीडरशिप को खुश करने के लिए झुक गयी. उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बरअक्स तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के लिए एक अलग कानून बना दिया. वैसा ही इस बार भी हुआ. मुसलमानों के कट्टर मजहबी लीडरशिप को खुश करने की इस कवायद को आम मुसलमानों का तुष्टीकरण मान लिया गया. इसका फायदा उठाते हुए एक वैचारिक गिरोह ने यह कह कर हंगामा शुरू किया- मुसलमानों का तुष्टीकरण हो रहा है.
 
(हमें नहीं पता कि मुसलमान स्त्रियों की हकमारी भी तुष्टीकरण के दायरे में आती है.) इस दूसरे मर्दाना, मजहबी दकियानूस और कट्टर समूह के तुष्टीकरण के शोरगुल को खामोश करने के वास्ते सालों से बंद पड़ी बाबरी मसजिद का ताला खुलवा दिया गया. मंदिर आंदोलन शुरू हुआ, तो बाबरी मसजिद को बचाने के नाम पर एक्शन और कोआॅर्डिनेशन कमेटियां बनीं. रथयात्राएं हुईं. फिर 1992 में बाबरी मसजिद ढहा दी गयी. इस दौरान देश में कई जगह भयानक सांप्रदायिक हिंसा हुई.
 
मुसलमानों की नौजवान पीढ़ी अचानक कई सालों पीछे धकेल दी गयी. स्त्री की हकमारी के लिए सड़क पर मुसलमानों के कट्टरपंथी नुमाइंदे उतरे थे, लेकिन फायदा हिंदुत्ववादी ब्रिगेड ने उठाया.
 
सबसे ज्यादा चोट देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को पहुंची. समाजी स्तर पर सबसे ज्यादा खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ा और वे आज तक भुगत रहे हैं. खासतौर पर मुसलमानों की नौजवान पीढ़ी ने इसी बोझ के साथ जवानी की दहलीज पर कदम रखा है. देश की मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक तसवीर में इस 1985-86 की बहुत बड़ी भूमिका है. इन सबके अहम किरदार थे- सुप्रीम कोर्ट, ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेतृत्व में मुसलिम संगठनों का समूह, कांग्रेस, कमजोर सी भारतीय जनता पार्टी और उसके हमख्याल संगठन.
 
तीस साल बाद, एक मजलिस में इकतरफा जुबानी तीन तलाक और इसके बाद अचानक यूनिफाॅर्म सिविल कोड (यूसीसी) की बहस ने इन सभी किरदारों को दोबारा हमारे सामने ला खड़ा किया है. जाहिर है, तीस साल में चेहरे बदले हैं. तरीके भी बदले हैं. हां, कुछ की भूमिकाएं बदल गयी हैं. उस वक्त की कमजोर भाजपा की राजनीतिक ताकत अब मजबूत है और वह सत्ता में है. कांग्रेस, भाजपा सरीखी कमजोर है. लेकिन, वह किसी भी तरह का माहौल बना पाने की हालत में नहीं है.  
 
हालांकि, 1986 का सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी को हुआ, तो वह भाजपा और उसके हिमायती संगठन हैं. उसके विचार के फैलने की जमीन को खाद-पानी इस दौरान सबसे बेहतर तरीके से मिला. उसकी सियासी ताकत और इज्जत कई गुना बढ़ गयी. अर्द्धसत्य की बिना पर नफरत की दीवार इसी दौरान सबसे ज्यादा बुलंद हुई. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा मुल्क की सेक्युलर बुनियाद को उठाना पड़ा और उस खामियाजा का असर मुसलमानों पर सबसे ज्यादा दिखा.   
 
मगर, किसी के लिए 1986 सबसे बड़े सबक के रूप में होना चाहिए था, तो वह ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उसके हमख्याल संगठनों के लिए होना चाहिए था. अगर वे जिंदा मुसलमानों की जिंदगियों के हिमायती हैं, तो वे 1986 के बाद जो हुआ उस पर गौर-ओ-फिक्र करते.
 
इस मुल्क के मुसलमानों की जिंदगी अगर बार-बार दोराहे पर खड़ी कर दी जाती है, तो बोर्ड जैसे संगठन भी इसकी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते हैं. एक सेंकेंड के तलाक पर बोर्ड का रुख कहीं से भी और किसी भी पैमाने पर इंसानी नहीं कहा जा सकता है.
 
इसलिए इसकी हिमायत करके उसने खुद को ठीक उसी मुकाम पर खड़ा कर दिया, जिस पर वह बूढ़ी शाहबानो के चंद रुपये के गुजारे की मुखालफत कर खड़ा हो गया था. जहां तक यूसीसी का मामला है, यह सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं है. इसलिए बेहतर होता, वे अपनी बात कहने और अपने संघर्ष की रणनीति जिंदा जिंदगियों को ध्यान में रख कर बनाते.  
 
मुमकिन है, बोर्ड के नुमाइंदे मजहबी जानकार हों, लेकिन वे समाजी और सियासी जानकार नहीं लगते हैं. अगर वे होते, तो आसानी से समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पहले ये सरगर्मी क्यों बढ़ रही है. वे समझ सकते थे कि मुसलमानों को ‘देश के खिलाफ’ एक गिरोह की शक्ल देकर किस तरह एक समाजी मुद्दे को महज मजहबी मुद्दे में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है. आज के वक्त में जब कोई भी मुद्दा मजहबी चोला ओढ़ लेता है, तो उसका सियासी फायदा उठाना ज्यादा आसान होता है. यही इस वक्त हो रहा है.
 
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उसके हिमायती तंजीम, इस सियासत में एक धुरी बनने का काम कर रहे हैं. यह मुसलमानों की सेहत के लिए तो निहायत ही खराब है. 
 
इससे मुल्क की सेक्युलर सेहत भी खराब होगी. वे इस सियासत के मोहरे बन रहे हैं या मुसलमानों को मोहरा बना रहे हैं, यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा. हालांकि, इतना तो साफ दिख रहा है कि उनके कदम अच्छे दिनों का इशारा नहीं कर रहे हैं.
 
हालांकि, इस तीस साल में दो नयी पीढ़ियां तैयार हो गयी हैं. अब मुसलमानों की इस नयी पीढ़ी को तय करना है कि वह अपने भविष्य की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहती है या किन्हीं और को तय करने की इजाजत देती है.

(प्रभात खबर के सौजन्य से)

The post तीस साल पहले और अब! appeared first on SabrangIndia.

]]>
कौन भड़का रहा है दंगे की आग यूपी बिहार में? https://sabrangindia.in/kaauna-bhadakaa-rahaa-haai-dangae-kai-aga-yauupai-baihaara-maen/ Sun, 16 Oct 2016 07:14:16 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/16/kaauna-bhadakaa-rahaa-haai-dangae-kai-aga-yauupai-baihaara-maen/ पिछले तीन दिनों में उत्‍तर प्रदेश और बिहार में साम्‍प्रदायिक तनाव की खबरें बड़े पैमाने पर मिल रही हैं.  Communal tension in Bahraich, UP. Photo credit: Hindustan Times क्‍या हमें पता है कि पिछले तीन दिनों में कई जगहों पर हिन्‍दू और मुसलमान आमने-सामने आए हैं? दोनों समुदायों के टकराव की ये बातें हमें अलग-अलग […]

The post कौन भड़का रहा है दंगे की आग यूपी बिहार में? appeared first on SabrangIndia.

]]>
पिछले तीन दिनों में उत्‍तर प्रदेश और बिहार में साम्‍प्रदायिक तनाव की खबरें बड़े पैमाने पर मिल रही हैं. 


Communal tension in Bahraich, UP. Photo credit: Hindustan Times

क्‍या हमें पता है कि पिछले तीन दिनों में कई जगहों पर हिन्‍दू और मुसलमान आमने-सामने आए हैं? दोनों समुदायों के टकराव की ये बातें हमें अलग-अलग माध्‍यमों से आ रही खबरों से पता चल रही हैं. खास तौर पर उत्‍तर प्रदेश और बिहार में साम्‍प्रदायिक तनाव की खबरें बड़े पैमाने पर मिल रही हैं. यूपी के पूर्वी इलाके में तनाव ज्‍यादा फैला है. वहीं बिहार में अरसे बाद इतनी सारी जगहों से तनाव की खबरें सामने आ रही हैं. यूपी में चुनाव होने हैं, इसलिए साम्‍प्रदायिक तनाव काफी अहम मायने रखते हैं. बिहार में चुनाव हो चुके हैं लेकिन सरकार का निजाम अब तक मजबूती से खड़ा नजर नहीं आ रहा है. या यों कहें, डिगा सा नजर आ रहा है. ध्‍यान रहे पिछले तीन दिन दशहरा, दुर्गा प्रतिमा विसर्जनऔर मुहर्रम की दसवीं का मौका था.

नीचे वे घटनाएं हैं जो हमें अलग-अलग जगहों से अलग-अलग माध्‍यमों से पता चल रही हैं. इनमें से कई घटनाएं आप कल इस साइट पर देख चुके हैं. मुमकिन है, ऐसी अनेक घटनाएं होंगी जो खबर के रूप में नहीं आ सकी हैं. जिन्‍हें सामान्‍य मान कर छोड़ दिया गया होगा.

उत्‍तर प्रदेश – 12 अक्‍टूबर

गोंडा के कोतवाली इलाके में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान गुड्डूमल चौराहे के पास दोपरहर दो बजे के करीब पथराव का आरोप. जुलूस रोक औरलोग धरने पर बैठ गए. थोड़ी दूर पर एक मस्जिद है. देर शाम में पुलिस के हस्‍तक्षेप करने पर हंगामा बढ़ गया. जिले के बाकि हिस्‍सों में साम्‍प्रदायिक हिंसा की अफवाह तेजी से फैली. हिन्‍दूवादी संगठनों ने कई जगह प्रदर्शन किया. दुकानें बंद हो गईं. बुधवार को कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह और गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह कोतवाली में धरने पर बैठे. प्रशासन के साथ बातचीत के बाद गिरफ्तार 17 में से तीन लोगों को छोड़ा गया.

ताजियादारान कमेटी गोंडा ने सुरक्षा का पुख्‍ता इंतजाम न होने का हवाला देकर दसवींमुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला. शहरी इलाके में चौकियों पर ताजिए नहीं रखे गए. जुलूस भी नहीं निकाला. गुरुवार 13 अक्‍टूबर को गोंडा के एक भाजपा नेता को धार्मिक उन्‍माद भड़काने और दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

मऊ में पहले प्रतिमा और फिर ताजिया तोड़े जाने के आरोप प्रत्‍यारोप के बीच तनाव रहा.

अलीगढ़ के जलाली इलाक़े में क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर रावण जलाने से पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया. लोगों का आरोप है कि पुलिस की मौजूदगी में क़ब्रिस्तान के गेट का ताला तोड़ा गया और रावण दहन किया गया.

मुरादाबाद में बिलारी इलाके में मुहर्रम के दौरान एक खास जुलूस को निकालने के मुद्दे पर तनाव हो गया. मंगल की रात से शुरू हुआ तनाव बुधवार और गुरुवार को बढ़ गया. गुरुवार को दोनों पक्षों में मारपीट हुई. कई लोग घायल हैं.

मुरादाबाद के गोविन्द नगर इलाक़े में बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने शस्‍त्र पूजन किया. इसके बाद हथियार लहराते हुए जमकर फायरिंग की. बजरंग दल के दो कार्यकर्ता गिरफ़्तार किए गए और बाद में इन्‍हें छोड़ दिया गया।

उत्‍तर प्रदेश-13/14/15 अक्‍टूबर

गोंडा के मोतीगंज में गुरुवार को ताजिया का जुलूस जा रहा था. ताजिया गिर गया. उसके बाद टकराव. हालात जल्‍दी काबू में पाया गया.

बहराइच के फखरपुर थाना इलाके में गुरुवार को बहेलिया इलाके की मूर्ति का जुलूस जा रहा था. एक इलाके गुम्‍मा खां पुरवा के पास एक मस्जिद है. वहां गाना बजाने के मुद्दे पर कुछ विवाद हुआ. आरोप है कि पत्‍थर चले. मूर्ति खंडित हुई. कुछ घायल हो गए. मकानों और झों‍पडि़यों में आग लगा दी गई. जलने से एक बच्‍ची की मौत हो गई. दो बच्‍चों के लापता होने की खबर है. प्रशासन के मुताबिक, 34 घर जले. गांव में दोनों समुदाय के लोग रहते हैं. गांव के लोगों का कहना है बाहरी लोग आए थे. उन्‍होंने ही आगजनी की. 34 लोग पुलिस हिरासत में. हर परिवार को 7900 का मुआवजा दिया गया. मरने वाली बच्‍ची के परिवारीजनों को सरकार की ओर से चार लाख दिया गया है.

बहराइच में नानापारा में गुरुवार को मूर्ति विसर्जन का जुलूस जा रहा था. किसी ने मांस का टुकड़ा फेंक दिया. जुलूस में जा रहे लोग मूर्ति के साथ धरने पर बैठ गए. दोनों समुदाय के कुछ लोग आगे आए तब जाकर मामला शांत हुआ. फिर मूर्ति विसर्जन के लिए निकली. मांस फेंकने के आरोप में एक शख्‍स गिरफ्तार भी हुआ है.

बहराइच के नवाबगंज इलाके में बुधवार को मोहर्रम के जुलूस के रास्‍ते को लेकर विवाद हुआ था. पथराव भी हुआ. इसके बाद शुक्रवार को इसी इलाके में एक दीवार तोड़ने के मुद्दे पर दोनों समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए. पथराव और मारपीट में कई लोगों के जख्‍मी होने की खबर है. कुछ लोग इसे मोहर्रम के दिन हुए तनाव से जोड़ कर देख रहे हैं तो कुछ इसे आपसी विवाद मान रहे हैं.

महाराजगंज के नाथनगर इलाके में शाम में प्रतिमा विसर्जन के दौरान मारपीट, पथराव होने की खबर. विवाद की वजह-जुलूस को खास रास्‍ते से ले जाने की जिद. मारपीट की सूचना के बाद कई इलाकों के लोगों ने प्रतिमाओं को रखकर जाम लगा दिया. डीएम-एसपी के पहुंचने के बाद देर रात विसर्जन हो पाया. चार लोग गिरफ्तार किए गए.

देवरिया के लार कस्‍बे में जयकारा लगाने के मुद्दे पर विवाद हो गया. पुलिस ने भीड़ को खदेड़ा तो पुलिस पर पथराव हुआ. पूजा समितियां मूर्ति विसर्जन न करने पर अड़ीं.

कुशीनगर के कुबेरस्‍थान थाना के इलाके में प्रतिमा विसर्जन के जुलूस में शामिल हाथी और रास्‍ते के मुद्दे पर विवाद, पथराव, फायरिंग, मारपीट. कई लोग घायल. दो की हालत गंभीर. कई दुकान, गोदाम और एक स्‍कूल जलाया गया. तीन घंटे तक उपद्रवियों ने जमकर हंगामा किया. कुछ लोग हिरासत में लिए गए. डीएम-एसपी की मौजूदगी में जुमे की नमाज हुई. शुक्रवार को गांव जा रहे हिन्‍दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया.

बरेली के नवाबगंज में गुरुवार को मुहर्रम के मौके पर ताजिया का जुलूस कर्बला की तरफ जा रहा था. नवाबगंज के पास रास्‍ते के मुद्दे पर विवाद हो गया. स्‍थानीय लोगों ने रास्‍ता बदलने का दबाव बनाया. खबरों के मुताबिक, जब हजारों लोगों को नवाबगंज के पास कर्बला की ओर जाने से रोक दिया गया तो टकराव हो गया.

सीतापुर के हरगांव के पास मुहर्रम के जुलूस में ताजिया पर पथराव की खबर. लोग आमने-सामने आ गए. पथराव. कई घायल.यहां 14 अक्‍टूबर को भी मारपीट होने की खबर मिली है.

रायबरेली के डीह क्षेत्र में दुर्गा के प्रतिमा विसर्जन के रास्‍ते का विवाद में टकराव.

बलरामपुर में मूर्ति विसर्जन के दौरान भड़काने वाले नारे लगाने का आरोप. कुछ दुकानों और मस्जिद पर रंग डालने की खबर के बाद तनाव. अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से नफरत फैलाने की कोशिश. भरत मिलाप के दौरान भी आपत्तिजनक नारे के बाद तनाव हुआ.

बलरामपुर में मुहर्रम के जुलूस में एक झांकी पर एतराज करते हुए तनाव पैदा करने की कोशिश की गई. उस झांकी को राष्‍ट्रद्रोह की श्रेणी में रखा गया. बलरामपुर में शुक्रवार को भी सोशल मीडिया के जरिए नफरत फैलाने की कोशिश की खबरें आ रही हैं.

श्रावस्‍ती में गुरुवार, 13 अक्‍टूबर को मूर्ति विसर्जन के जुलूस के रास्‍ते के लिए तनाव हो गया. इसके बाद पथराव शुरू हो गया. पुलिस ने सख्‍ती की और 62 लोगों को गिरफ्तार किया. दूसरे दिन शुक्रवार को भाजपा सांसद दद्दन मिश्र भिनगा-बहराइच फोरलेन पर धरने पर बैठ गए. उनका इलजाम था कि पुलिस इकतरफा कार्रवाई कर रही है.

बलिया में मुहर्रम के जुलूस जिस रास्‍ते से निकलना था, उस रास्‍ते में दुर्गा पूजा की सजावट के झालर लगे थे. ताजिया निकालने वालों ने झालर हटाने को कहा. दुर्गा पूजा समिति नहींमानी. इसके बाद मुहर्रम का जुलूस नहीं निकला. दूसरे दिन प्रशासन के समझाने-बुझाने के बाद दोनों पक्ष माने तब ताजिया उठाया गया. इससे पहले बलिया के ही रेवती इलाके में मूर्ति विसर्जन के दौरान हंगामा और मारपीट की खबर है.

प्रतापगढ़ के कुंडा में ताजिया ले जाने के रास्‍ते का विवाद के बाद तनाव हुआ. इसी तरह पीलीभीत, चित्रकूट, बाराबंकी-फैजाबाद, इटावा, सहारनपुर के देवबंदसे भी तनाव की खबरें मिली हैं.

बिहार के कई जिलों से तनाव की खबर

पूर्वी चम्‍पारण के मोतिहारी के तिरकोलिया में पूजा पंडाल में 11 अक्‍टूबर की रात को तोड़फोड़ की खबर के बाद तनाव पैदा हो गया. लोगों ने मुख्‍य सड़क जाम कर दिया. जब लोग नहीं हटे तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया. थाना इंचार्ज को निलम्बित कर दिया गया है. कई दुकानें जला दी गयीं. अफ़वाहों को रोकने के लिए पुलिस को इंटरनेट सेवा बंद करनी पड़ी. तुरकौलिया के साथ-साथ आस-पास के कई गांवों में तनाव है.

पूर्वी चम्‍पारण के सुगौली में शुक्रवार को विसर्जन के दौरान हिंसा हुई. खबरों के मुताबिक, डीजे पर नारे लग रहे थे. पटाखे फोड़े जा रहे थे. एक पटाखा किसी के मकान पर गिरा और इसके बाद हंगामा शुरू हो गया. एक और खबर के मुताबिक विसर्जन जुलूस पर पथराव के बाद हंगामा शुरू हुआ. दोनों समुदायों के बीच जमकर पथराव हुआ. फायरिंग की भी सूचना है. दुकान और घर जलाए जाने की खबर है. फोर्स तैनात कर दी गई है.

पश्चिमी चम्‍पारण के बेतिया के जमादार टोला के मुहर्रम के अखाड़े के दौरान टकराव हुआ. तनाव और मारपीट की खबर. कई घायल. एक शख्‍स की हार्ट अटैक से मौत हो गई. एक घायल के मौत की भी खबर है. इससे तनाव के और बढ़ने की आशंका बढ़ गई है. (चम्‍पारण में हिंसा पर विस्‍तृत रिपोर्ट यहां देखी जा सकती है.)

भोजपुर के पीरो में 12 अक्‍टूबर को मुहर्रम के जुलूस के दौरान तनाव और पथराव. 13 और 14 को भी हिंसा हुई. ट्रेन पर हमला और यात्रियों की पिटाई की खबर है. इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे तो 15 को इंटरनेट बंद किया गया.

सीतामढ़ी के रीगा में मंगल 11 अक्‍टूबर को ताजिया चौकी के जुलूस के रास्‍ते के मुद्दे पर दो समुदायों में झड़प और मारपीट की खबर है. पुलिस के साथ भी बदसुलूकी हुई. सीतामढ़ी में शुक्रवार को हालात में सुधार की खबर है.

मधेपुरा के बिहारी गंज में मूर्ति विसर्जन के दौरान कुछ लड़कों में मारपीट हो गई है. खबरों के मुताबिक लड़के अलग-अलग सम्‍प्रदाय के थे. लोगों ने मूर्ति सड़क पर रख दी और प्रदर्शन शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने दो सरकारी अफसरों की गाडि़यां जला दीं. इस मारपीट की शुरुआत एक दिन पहले सोमवार को हुई थी. यहां शुक्रवार तक तनाव बरकरार रहने की खबर है. शुक्रवार को पांचवें दिन डीएम ने खुद घूम घूमकर लोगों से दुकानें खोलने की अपील की. हालात सामान्‍य होने की तरफ.

गोपालगंज में 14 अक्‍टूबर को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के जुलूस पर पथराव और फायरिंग की खबर के बाद तनाव. आगजनी. इंटरनेट सेवा बंद की गई. 15 अक्‍टूबर को दुकानों में लूटपाट की खबर भी मिल रही है.
गया के मानपुर में गुरुवार को मुहर्रम के जुलूस के दौरान छेड़खानी के इलजाम के बाद तनाव पैदा हो गया. औरंगाबाद में भी तनाव की खबर है.

गया में शुक्रवार की देर मुफस्सिल इलाके में एक धर्मस्‍थल में पथराव और थोड़फोड़ की खबर के बाद शनिवार के दिन तनाव पैदा हो गया।

बंगाल भी पीछे नहीं

बंगाल के कई जिलों में भी साम्‍प्रदायिक तनाव की खबरें हैं. खासतौर पर खड़गपुर, हुगली, उत्‍तरी 24 परगनाजिलों में दुर्गा पूजा और मुहर्रम के दौरान 11 और 12 अक्‍टूबर को कई जगहों पर झड़प, आगजनी की खबरें हैं. खबरों के मुताबिक, खड़गपुर में 12 तारीख को अफवाह फैल गई कि किसी ने मुहर्रम के जुलूस पर बम फेंक दिया है. इसके बाद हालात बेकाबू हो गए. कुछ दुकानों में तोड़फोड़ की गई. कई घायल हुए हैं.

महाराष्‍ट्र
महाराष्‍ट्र के ठाणे के भिवंडी में मुहर्रम के जुलूस के दौरान साम्‍प्रदायिक टकराव. नवरात्र के दौरान कुछ गेट बने थे. खबर के मुताबिक, मुहर्रम के जुलूस के दौरान कुछ नुकसान हो गया. इसके बाद दोनों समुदायों के लोग आमने-सामने आ गए. पथराव हुआ. बाद में गेट के नुकसान का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा हुआ तो तनाव और बढ़ गया. कुछ लोग घायल भी हुए हैं.

कर्नाटक

कर्नाटक के बेलगावी के शेट्टी गली में मंगलवार की रात एक जगह हरा झंडा फहराने के बाद विवाद हो गया. विवाद बढ़ते बढ़ते टकराव में बदल गया. दोनों समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे पर पथराव किया.कई लोग घायल हुए.कई गाडि़यों को नुकसान पहुंचा.

ये घटनाएं शुभ संकेत नहीं दे रही हैं.

(ये खबरें इंकलाब, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्‍स, दैनिक भास्‍कर, हिन्‍दुस्‍तान, हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स, टाइम्‍स ऑफ इंडिया, टू सर्किल्‍स डॉट नेट, द न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस, द हिन्‍दू, द इंडियन एक्‍सप्रेस, अमर उजाला, पत्रिका और इन इलाकों में काम करने वाले कई पत्रकारों से इकट्ठा की गई हैं.) 
 

The post कौन भड़का रहा है दंगे की आग यूपी बिहार में? appeared first on SabrangIndia.

]]>
न रोक पायेंगी पुलिस की गोलियां झारखंड में जारी किसानों की ‘कफन’ और ‘चिता’ सत्‍याग्रह https://sabrangindia.in/na-raoka-paayaengai-paulaisa-kai-gaolaiyaan-jhaarakhanda-maen-jaarai-kaisaanaon-kai-kaphana/ Sat, 08 Oct 2016 06:06:02 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/08/na-raoka-paayaengai-paulaisa-kai-gaolaiyaan-jhaarakhanda-maen-jaarai-kaisaanaon-kai-kaphana/ रिचर्ड एटनबरॉ की फिल्‍म ‘गांधी’ में रोंगटे खड़े कर देने वाले दो-तीन सीन हैं.पहला, दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी की अपील पर सत्‍याग्रह का पहला प्रयोग हो रहा है. अंग्रेज फौजी उन्‍हें बेदर्दी से मारतेहैं. घोड़े दौड़ाते हैं. फिर भी वे सत्‍याग्रह से डिगते नहीं हैं. दूसरा, जालियांवाला बाग में सभा हो रही है. हजारों […]

The post न रोक पायेंगी पुलिस की गोलियां झारखंड में जारी किसानों की ‘कफन’ और ‘चिता’ सत्‍याग्रह appeared first on SabrangIndia.

]]>
रिचर्ड एटनबरॉ की फिल्‍म ‘गांधी’ में रोंगटे खड़े कर देने वाले दो-तीन सीन हैं.पहला, दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी की अपील पर सत्‍याग्रह का पहला प्रयोग हो रहा है. अंग्रेज फौजी उन्‍हें बेदर्दी से मारतेहैं. घोड़े दौड़ाते हैं. फिर भी वे सत्‍याग्रह से डिगते नहीं हैं. दूसरा, जालियांवाला बाग में सभा हो रही है. हजारों लोग जमा हैं. अंग्रेज फौज आती है. गोलियां चलाई जाती हैं. लोग बचने को भाग रहे हैं लेकिन उनके लिए बचाव के सारे रास्‍ते बंद हैं. सैकड़ों मारे जाते हैं. तीसरा, एक और आंदोलन है जिसे हम नमक सत्‍याग्रह के नाम से भी जानते हैं. सत्‍याग्रहियों पर ब्रितानी सिपाही डंडे बरसा रहे हैं. उनके सर फट रहे हैं. एक दस्‍ता जाता है, फिर सत्‍याग्रहियों का दूसरा दस्‍ता हाजिर हो जाता है. ये सब इतिहास में दर्ज हैं. लेकिन क्‍या हमने ‘चिता सत्‍याग्रह’, ‘कफन सत्‍याग्रह’का नाम सुना है? जी, ये आज के दौर का सत्‍याग्रह है. मुमकिन हैं, हम जानते हों लेकिन इसे दोहरा लेने में हर्ज नहीं है.

Hazaribagh Police firing

झारखंड के चतरा इलाके में एनटीपीसी का एक बिजली घर बन रहा है. जाहिर है, इसके लिए कोयला चाहिए. एक कम्‍पनी को कोयला देने का ठेका मिला है. जिस इलाके की जमीन खोदकर कम्‍पनी कोयला निकालना चाहती है, वह हजारीबाग के बड़कागांव में पड़ता है. पूरा क्षेत्र काफी उपजाऊ है. लोगों की जिंदगी की डोर खेती की इसी जमीन पर टिकी है. किसान एक साल में कई फसल उगा लेते हैं. कहा जाता है, बड़कागांव के गुड़ की खुश्‍बू और स्‍वाद की शोहरत दूर-दूर तक है. इलाके के लोग अपनी उपजाऊ जमीन नहीं देना चाहते हैं. वे कई सालों से इसके खिलाफ सत्‍याग्रह कर रहे हैं. अधिकतर गांव वालों का आरोप है कि उनकी जमीन बिना उनकी रजामंदी के अधिग्रहण की जा रही है.

इस बीच कोयला खनन करने की प्रक्रिया भी तेज हो गई. तब पिछले 15 सितम्‍बर को कांग्रेसी विधायक निर्मला देवी के नेतृत्‍व में बड़कागांव के डाढ़ीकलां इलाके में गांव वालों ने ‘कफन सत्‍याग्रह’शुरू कर दिया. 15 दिन बाद 30 सितम्‍बर की देर रात अचानक पुलिस आती है और विधायक को जबरन उठा कर ले जाती है. गांव वाले विरोध करते हैं. पुलिस लाठी चलाती है. इस अखबार की रिपोर्ट देखें और घटना के दौरान का वीडियो, तो पता चलता है कि किस तरह गांव वालों पर कहर बरपा. खौफजदा गांव वालों ने खेतों में पनाह लिया. पथराव भी हुआ. पुलिस गोली चलाती है. कई लोग मारे जाते हैं. कई गायब हैं. कई पुलिस वाले भी जख्‍मी हैं. इतने के बाद भी पुलिस का आतंक रुक नहीं रहा है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो मारे गए उन्‍हें गोलियां कमर से ऊपर लगी हैं. गौरतलब है, यह सब ‘सत्‍याग्रही’महात्‍मा गांधी की जयंती के 24 घंटे पहले हो रहा था. इससे पहले भी यहां के बाशिंदें पर दो बार पुलिस की गोलियां चल चुकी हैं. वे अपनी बात पर ध्‍यान दिलाने के लिए एक बार चिता सजाकर ‘चिता सत्‍याग्रह’ भी कर चुके हैं.(प्रभात खबर की फाइलों में ब्‍योरा देखा जा सकता है.)

सत्‍याग्रह किस बात के लिए? बात सिर्फ इतनी है कि 2013 में काफी जद्दोजेहद के बाद किसी परियोजना या काम के लिए भूमि अधिग्रहण करने का एक कानून बना है. इस कानून के मुताबिक, जमीन लेने के लिए उस इलाके में रहने वालों की रजामंदी जरूरी है. उनका सही और पर्याप्‍त पुनर्वास जरूरी है. मुआवजा उचित मिले, इसकी गारंटी हो. गांव वाले इन्‍हीं को तो लागू करने की मांग कर रहे हैं. मगर किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही. क्‍यों?
हम में से कितने लोग झारखंड में विस्‍थापन और पुनर्वास के लम्‍बे संघर्ष के बारे में जानते हैं? हम में से कितने ऐसे सत्‍याग्रहों के बारे में जानते हैं? उनके कुचले जाने के बारे में जानते हैं? झारखंड के बाहर मीडिया की सुर्खियों में कितनी बार और कितने दिन यह घटना रही? अब थोड़ा जाट आंदोलन याद कर लेते हैं. उसकी तबाही याद करते हैं. और यह याद करने की कोशिश करते हैं कि उन पर कितनी लाठियां और गोलियां चलीं. और अगर चल जातीं तो क्‍या होता? ऐसा क्‍या है कि झारखंड में ऐसे आंदोलन कारियों पर बार- बार गोली चलाने में जरा सी हिचक नहीं होती है. 

एक ओर,सभ्‍य समाज में बाहरी जंग का जुनून उफान पर है लेकिन मुल्‍क के अंदर आदिवासी इलाकों में चल रही अपने ही लोगों के जंग के बारे में हमारा नजरिया क्‍या है? झारखंड, ओडि़शा, छत्‍तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल इलाके इस वक्‍त विकास के खास विचार की प्रयोगभूमि बने हुए हैं. ये प्रयोग, वे कर रहे हैं जिन्‍हें आदिवासियत से कोई लेना-देना नहीं है. इस विकास में यहां के लोगों की कोई भूमिका नहीं है. जिनके नाम पर और जिनके विकास के वास्‍ते झारखंड बना, वे कहां हैं? विकास तो उनका हो रहा है या हुआ जो जिनके लिए जल-जंगल-जमीन महज दोहन और मुनाफा का जरिया हैं. सत्‍याग्रही जल-जंगल-जमीन वाले हैं.

Hazaribagh Police firing

इसीलिए जब कोयलकारो या बड़कागांव में सत्‍याग्रह होता है, तो इसमें शामिल लोग माटी की खुश्‍बू से गुंथे लोग होते हैं. जाति-धर्म-पंथ-सम्‍प्रदाय से परे. बड़कागांव के आंदोलनकारी सत्‍याग्रही इस मायने में भी बहुत खास हैं. वे किसी मंदिर या मस्जिद के लिए नहीं लड़ रहे हैं. इसी लिए अब तक धर्म या जाति के नाम पर बंटे भी नहीं हैं. वे अपनी जिंदगी की जद्दोजेहद कर रहे हैं. वे साथ-साथ सत्‍याग्रह कर रहे हैं. इसलिए जब खून बहा तो साझा बहा. लड़े साथ-साथ. जब पुलिस की लाठी और गोली खाने की बारी आई तो वह भी साथ-साथ झेला. ऐसा ही तो गांधी जी का भी सत्‍याग्रह था. सब जन साथ-साथ. गांधी जी के साथियों के सर पर पड़ी लाठियों से निकला खून भी एक-दूसरे के खून से मिलकर मिट्टी में वैसे ही जज्‍ब हो गया होगा जैसा बड़कागांव के सत्‍याग्रहियों का हुआ है. है न! बड़कागांव के सत्‍याग्रही यह भी बता रहे हैं कि जिंदगी की परेशानियों को मिलकर ही दूर किया जा सकता है.

ऐसे संघर्षशील लोगों के साथ एक बड़ी दिक्‍क्‍त भी है. उनकी राजनीतिक ताकत सिमटी, कमजोर और बिखरी हुई है. वे देश की चुनावी राजनीति‍ के केन्‍द्र में नहीं है. लेकिन याद रखिए, ये सर झुकाने वाले लोग नहीं हैं. झारखंड के लोगों का संघर्ष का लम्‍बा इतिहास है. यही उनकी ताकत है. इसी के बलबूते वे गोलियां तो खा रहे हैं, पर झुकने को राजी नहीं हैं. यह सत्‍य का आग्रह भी है. ताकत भी.
 
(प्रभात खबर से साभार)

(नासिरूद्दीन वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। सामाजिक मुद्दों खासतौर पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लिखते रहे हैं। लम्‍बे वक्‍त तक हिन्‍दुस्‍तान अखबार से जुड़े रहे। पिछले दिनों नौकरी से इस्‍तीफा देकर अब पूरावक्‍ती तौर पर लेखन और सामाजिक काम में जुटे हैं।)

The post न रोक पायेंगी पुलिस की गोलियां झारखंड में जारी किसानों की ‘कफन’ और ‘चिता’ सत्‍याग्रह appeared first on SabrangIndia.

]]>