pranjal | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/pranjal-10775/ News Related to Human Rights Wed, 18 Jan 2017 06:03:29 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png pranjal | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/pranjal-10775/ 32 32 As Akhilesh Yadav Flies High, Mayawati Plays Low https://sabrangindia.in/akhilesh-yadav-flies-high-mayawati-plays-low/ Wed, 18 Jan 2017 06:03:29 +0000 http://localhost/sabrangv4/2017/01/18/akhilesh-yadav-flies-high-mayawati-plays-low/ Akhilesh Yadav seems to be rising from strength to strength insofar as public opinion is concerned. Interview with Seema Mustafa The Bharatiya Janata Party is suddenly wary of its electoral prospects in Uttar Pradesh. Perhaps the most telling move that seems to justify the strong murmurings in the Samajwadi camp has come from the BJP […]

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Akhilesh Yadav seems to be rising from strength to strength insofar as public opinion is concerned.

Interview with Seema Mustafa

The Bharatiya Janata Party is suddenly wary of its electoral prospects in Uttar Pradesh. Perhaps the most telling move that seems to justify the strong murmurings in the Samajwadi camp has come from the BJP government at the centre. Even as BJP and Congress come together to predict the Samajwadi party’s doom, Akhilesh Yadav seems to be rising from strength to strength insofar as public opinion is concerned. And from a hesitant leader, he has emerged very decisively from his father’s shadows to strike out without the baggage of goons and corruption that the party had come to carry. There might be a coalition emerging, with congress and RLD and Akhilesh Yadav. If all three come together, they will have larger appeal to the younger generation and hence get more votes. The other side of the picture is of Mayawati. She has an intact vote bank and is eyeing the Muslim and Dalit votes. BJP is as always continuing with communal polarizing, sending RSS cadres for mass scale door to door for campaigning. While they project BJP as the only pro development party, their ‘growth’ claims have been proved to be hollow.

Courtesy: Newsclick.in

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दलितों पर संघ के दोमुंहेपन की पोल खोलता बंच ऑफ थॉट्स https://sabrangindia.in/dalaitaon-para-sangha-kae-daomaunhaepana-kai-paola-khaolataa-banca-opha-thaotasa/ Tue, 16 Aug 2016 06:30:31 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/08/16/dalaitaon-para-sangha-kae-daomaunhaepana-kai-paola-khaolataa-banca-opha-thaotasa/ जाति और दलितों पर संघ परिवार और उसके समर्थकों के नजरिये को समझने कि लिए इस हिंदूवादी कट्टरपंथी संगठन के शीर्ष पुरुष गुरु गोलवलकर के बंच ऑफ थॉट्स (हिंदी में विचार गुच्छ) को पढ़ना बेहद जरूरी है। बीजेपी और संघ को राह दिखाने वाली विचारधारा की इतिहास में पड़ताल की जाए तो इस पर ब्राह्मणवादी […]

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जाति और दलितों पर संघ परिवार और उसके समर्थकों के नजरिये को समझने कि लिए इस हिंदूवादी कट्टरपंथी संगठन के शीर्ष पुरुष गुरु गोलवलकर के बंच ऑफ थॉट्स (हिंदी में विचार गुच्छ) को पढ़ना बेहद जरूरी है।

बीजेपी और संघ को राह दिखाने वाली विचारधारा की इतिहास में पड़ताल की जाए तो इस पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व का असर साफ दिख जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में जैसे ही उना की घटना की निंदा की वैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी दलितों की बर्बर पिटाई की इस घटना की आलोचना कर डाली। लगभग एक ही वक्त इस घटना की निंदा किए जाने से उनके नजरिये का खोखलापन खुल कर सामने आ गया है।

गुजरात में दलितों पर हमला 11 जुलाई को हुआ था और प्रधानमंत्री ने 6 अगस्त को इस पर अपना मुंह खोला। संघ और प्रधानमंत्री दोनों की ओर से लगभग एक महीने बाद इस पर बयान जारी किया।  

दलितों पर हमले को लेकर संघ की यह कथित गंभीरता कितनी खरी है यह इसी बात से उजागर हो जाती है कि अपने बयान के साथ उसने यह भी जोड़ा कि प्रधानमंत्री को 80 फीसदी गोरक्षकों को फर्जी नहीं कहना चाहिए था। इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि आरएसएस के सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद ने इस मामले पर चुप रहना ही ठीक समझा, वहीं दूसरे सहयोगी संगठन बजरंग दल ने ट्वीट किया- गर्व से कहो हम गोरक्षक हैं। उनके जाने-माने नारे गर्व से कहो हम हिंदू हैं की पैरोडी।

गर्व से कहो हम हिंदू है का नारा 1990 के दशक में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए हथियारबंद होने की अपील थी।

बहरहाल, यह सवाल पूछना लाजिम है कि क्या संघ और बीजेपी सचमुच दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर गंभीर हैं। इसका जवाब जानने के लिए अगर हम इतिहास में थोड़ा पीछे जाकर संघ और बीजेपी की मार्गदर्शक विचारधारा की पड़ताल करें तो पाएंगे तो इन पर ब्राह्मणवादी विचारधारा का कितना वर्चस्व है। यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि संघ का नेतृत्व सिर्फ ऊंची जातियों के हाथों में क्यों रहा है।

मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ-साथ संघ के सभी सर्वोच्च नेता ब्राह्मण क्यों रहे हैं। हां, इनमें राजेंद्र सिंह जरूर शामिल थे। लेकिन वे भी ऊंची जाति के यानी ठाकुर थे। संघ ने हमेशा वर्णाश्रम व्यवस्था में विश्वास किया है, जो हिंदू जाति को चार वर्गों में बांटने में विश्वास करती है।

संघ के दूसरे प्रमुख रहे गोलवलकर ने वर्णाश्रम व्यवस्था का जोरदार ढंग से समर्थन किया था। उन्होंने विभिन्न जातियों की ओर अपनाए गए पेशों को निःस्वार्थ सेवा कहा था। जाति भेद को उन्होंने ब्रिटिश शासन का नतीजा माना था- बंच ऑफ थॉट्स में वह लिखते हैं-
समाज में यह जो ऊंच और नीच जैसी असमानता का भाव वर्णाश्रम व्यवस्था में घर कर गया है, वह हाल बात है। अंग्रेजों ने इसमें और जहर घोला है। बांटो और राज करो की अपनी नीति के तहत अंग्रेजों ने इस जाति भेद को बढ़ावा दिया है। लेकिन वर्णाश्रम व्यवस्था में मूल रूप से कोई भेदभाव नहीं है। वास्तव में गीता में तो यह कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना निर्धारित काम (जो उसे सुपुर्द किया गया है) निस्वार्थ भावना से करता है, वह ऐसा करके ईश्वर की पूजा करता है ( बंच ऑफ थॉट्स – वन्स द ग्लोरी – पेज-98)।

कथित निचली जातियों पर अत्याचारों पर बोलने के बावजूद आरएसएस इस किताब की हजारों प्रतियां छापता है और इसकी एक-एक लाइन का पालन करता है।

संघ परिवार का यह दोमुंहापन इसी से जाहिर हो जाता है कि एक तरफ तो यह मनुस्मृति को अपना सबसे पवित्र धर्मग्रंथ मानता है तो दूसरी ओर जाति भेद मिटाने की बात करता है।   

मनुस्मृति के प्रति उसके प्रेम को अगर देखना हो तो उस दौर में जाना होगा, जब संविधान को अंतिम रूप दिया जा रहा था।

यहां इन पंक्तियों पर गौर करें-  आज भी उनके कानून (मनुस्मृति में वर्णित) को दुनिया भर में सम्मान की निगाह से देखा जाता है। कई जगह उनके कानून का अनुपालन होता है लेकिन संविधान के हमारे पंडितों के लिए ये कुछ भी नहीं हैं।  (एपांयर एंड नियोलिबरलिज्म इन एशिया, पेज 252 पर ऑर्गेनाइजर के हवाले से दिया गया उद्धरण)।

इस संदर्भ में मनुस्मृति का जिक्र जरूरी है क्योंकि यही वह ग्रंथ है, जिसने अन्यायपूर्ण जाति व्यवस्था की नींव रखी है। इसी ग्रंथ ने हरेक जाति के लिए काम निर्धारित किए हैं- ब्राह्मणों के लिए मनु ने पढ़ाने और वेद पढ़ने का काम निर्धारित किया। अपने लिए और दूसरों के लिए बलि देने और दान लेने-देने का काम सौंपा। क्षत्रियों को मनु ने लोगों की रक्षा करने, दान देने, वेद पढ़ने, बलि देने और सांसारिक आनंद से दूर रहने को कहा है। वैश्यों को पशुपालन, दान देने, वेद पढ़ने, व्यापार करने और पैसों का लेनदेन और खेती करने को कहा गया। शूद्रों को सिर्फ एक काम दिया और वह यह कि वह चुपचाप बगैर कष्ट जाहिर किए इन तीनों वर्णों के लोगों की सेवा करे। ( द लॉज ऑफ मनु, अनु. -जी.व्हलर पृष्ठ संख्या -3)।

आरएसएस के गुरुजी (गोलवलकर) ने अपने ग्रंथों में मनु को बड़े ही श्रद्धा भाव से भगवान कहा है और उसे महान कानून निर्माता कहा है। उन्होंने मनु को सबसे बड़ा विधि निर्माता कहा और ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए कई जगहों पर उसका जिक्र किया है-
यह वास्तविकता है कि मनु ने अपने कानूनो को तैयार करने के समय सभी लोगों का आह्वान किया और कहा कि वे आएं और इस संसार में सबसे पहले ब्राह्मणों के चरणों में बैठ कर अपने कर्तव्यों की जानकारी ली। (वी अवर नेशनहुड डिफाइंड, पेज 117) ।

मनुस्मृति ही वह ग्रंथ है, जिसने निचली जातियों के लिए शारीरिक दंड निर्धारित किए हैं। वीएचपी की ओर से समर्थित गोरक्षक दल इसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं। उना, लातेहार, दादरी और हाल में आंध्रप्रदेश की घटनाएं इसका उदाहरण हैं।

मनुस्मृति में कहा गया है-
 ब्राह्मण की गाय चुराने, बांझ गाय के नथुनों में नकेल डालने और ब्राह्मणों की मवेशियों को चुराने वालों का पैर घुटने से काट दिया जाए। (  द लॉज ऑफ मनु, अनु. -जी.व्हलर पृष्ठ संख्या -53)

संघ परिवार दलितों पर होने वाले अत्याचारों में हमेशा विदेशी हाथ देखता आया है। आजादी के बाद ज्यादातर अत्याचार की इन घटनाओं को इसने मीडिया की करतूत करार दिया है। प्लेइंग द ओल्ड गेम शीर्षक से लिखे अपने अध्याय में गोलवलकर कहते हैं-

 अपने कड़वे अनुभव से हमें यह अहसास है कि अंग्रेजों ने किस तरह एक जाति को दूसरी जाति और एक पंथ को दूसरे पंथ के साथ लड़ाया। उदाहरण के लिए उन्होंने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों में लड़ाई करवाई और फूट डालो और राज करो की नीति सफलतापूर्वक लागू की। जबकि हमारे लोग यहां तक तक कि तथाकथित नेता तक इसका शिकार बनते गए। हमें अंग्रेजों की इस साजिश से सबक सीखना चाहिए और अपनी धरती पर विदेशी ताकत या उनके एजेंटों की ऐसी किसी भी साजिश से सावधान रहना चाहिए ( बंच ऑफ थॉट्स)

अगर हम दलितों के खिलाफ हिंसा की इन घटनाओं को छोड़ दें तो भी संघ परिवार ने हमेशा से हिंसा के अपने सिद्धांत पर विश्वास किया है। मनुस्मृति में साफ कहा गया है कि राष्ट्र की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए हिंसा ही एक मात्र औजार है। संघ ने अपनी इस समझ को बार-बार देश के अंदर लागू किया है। जब भी इस्लामी आतंकवाद पर कोई चर्चा होती है तो इस दक्षिपंथी संगठन को इसे खत्म करने के लिए हिंसा ही एक मात्र रास्ता नजर आता है। कर्नल पुरोहित, असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा जैसे कई संघ कार्यकर्ता आतंकी वारदातों को अंजाम देने के आरोपी रहे हैं। हां, यह अलग बात है कि संघ इन वारदातों में इनके शामिल होने के आरोपों को सिरे से नकारता रहा है। लेकिन हिंसा एक आदर्श के तौर पर संघ की विचारधारा में गहरे समाया हुआ है।

गोलवलकर ने बंच ऑफ थॉट्स में कथित तौर पर शांति स्थापना के लिए हिंसा अपनाने पर भी चर्चा की है। इसमें कहा गया है-
हमारा अतीत शौर्य और नायकत्व के मानक स्थापित करने का रहा है। हमारे देश में एक से एक सेनापति और विजेता हुए हैं, जिन्हें पूरी दुनिया जानती है। इन सेनापतियों और विजेताओं ने धर्म की स्थापना के लिए एक से एक भयंकर युद्ध लड़े।

संविधान से आरएसएस की असहमति जगजाहिर है। देश में आरक्षण की नीति की समीक्षा की मांग में इसकी छाप देखी जा सकती है। आरएसएस और बीजेपी दोनों ने ओबीसी को प्रतिनिधित्व देने के लिए की गई मंडल आयोग की सिफारिशों का विरोध किया था।
 
लिहाजा अब यह सवाल उठता है कि अचानक आरएसएस या बीजेपी में यह दलित प्रेम कहां से उमड़ आया। इसका एक मात्र जवाब है- उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव। अगर भाजपा यूपी में चुनाव हारती है तो यह राज्य सभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। ऐसा हुआ तो  मोदी के अच्छे दिनों के नारे का गुब्बारा फट जाएगा।

यूपी में दलितों की आबादी  20.5 फीसदी है। यह आबादी पारंपरिक तौर पर बहुजन समाज पार्टी को वोट देती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 66 आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 40 सीटें जीती थी। उत्तर प्रदेश की सभी 17 आरक्षित सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी।

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़े हैं लेकिन सरकार की ओर से इसे रोकने की पहल ढुलमुल ही रही है। लिहाजा दलितों के बीच मोदी और उनकी सरकार की छवि धक्का लगा है।

हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या, ऊना कांड और मायावती पर व्यक्तिगत हमला और संघ की ओर से आरक्षण की समीक्षा की मांग ने यूपी में बीजेपी की स्थिति कमजोर कर दी है। बीजेपी और संघ, दोनों अब दलितों का गुस्सा शांत करने की जीतोड़ कोशिश में लगे हैं। लेकिन इस तथ्य को भूलना नहीं चाहिए कि संघ और बीजेपी की विचारधारा में दलित विरोध गहरे समाया हुआ है।

साभार  – न्यूजक्लिक

(इस लेख में हल्का संपादन किया गया है ताकि संक्षिप्त शब्दों को पूरा लिखा जा सके या इसका मतलब समझाया जा सके )
 

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The Sangh’s Hypocrisy on Dalits, It’s Time to Read ‘Bunch of Thoughts’, Again! https://sabrangindia.in/sanghs-hypocrisy-dalits-its-time-read-bunch-thoughts-again/ Sun, 14 Aug 2016 05:47:15 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/08/14/sanghs-hypocrisy-dalits-its-time-read-bunch-thoughts-again/ Image Courtesy: Ganesh Dhamodkar Wikimedia Commons 'Bunch of Thoughts' by 'Guru' M.S. Golwalkar needs to be re-visited to understand where the Sangh and Its Votaries Stand on Caste, and Dalits If one historically traces the ideology guiding the BJP and the Sangh, one can notice the deep impact of Brahmanical hegemony on them. Soon after the […]

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Image Courtesy: Ganesh Dhamodkar Wikimedia Commons

'Bunch of Thoughts' by 'Guru' M.S. Golwalkar needs to be re-visited to understand where the Sangh and Its Votaries Stand on Caste, and Dalits

If one historically traces the ideology guiding the BJP and the Sangh, one can notice the deep impact of Brahmanical hegemony on them.

Soon after the PM’s condemnation of the Una incident in his post “Mann Ki Baat” address, the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) also criticised the attack on Dalits. The timing of the two statements, expose the hollowness of the condemnations expressed. The attack on Dalit youth in Una (Gujarat) took place on July 11 and the Prime Minister spoke against it only on August 6.

Both the statements were made almost a month after the Una incident. The “seriousness” of the RSS is also evident from the fact that, along with condemnation, it added that the “Prime Minister should have not called 80 percent Gau Rakshaks fake”. It must also be noted that while the Vishwa Hindu Parishad (VHP), an offshoot of the RSS, chose to remain officially silent, functionaries of both the VHP and Bajrang Dal (BD), another sister outfit, tweeted “Garv se kaho hum gorakshaks hai” (We are proud to be Cow Protectors), a play on their trademark slogan “Garv se kaho hum Hindu hai” (We are proud to be Hindus). The latter slogan was a call to arms, virtually in the 1990s as the campaign for the demolition of the Babri masjid built up.

Timing apart, the question that needs to be asked is, are the Sangh and BJP actually concerned about the atrocities on Dalits? Are they serious about the question of caste? One needs to look back a bit to find the answers.

If one historically traces the ideology guiding the BJP and the Sangh, one can notice the deep impact of Brahmanical hegemony on them. One must ask why the leadership of the Sangh has always been in the hands of the upper castes. Five of its six sarsanghchalaks (chiefs/supremos), including the present incumbent Mohan Bhagwat, are Brahmins. The only exception was Rajendra Singh, but he too was an upper-caste (Thakur). The Sangh has always believed in the idea of Varna system i.e. the four fold division of the society.

Golwalkar, their second head, had staunchly defended it and had called the tasks performed by these Varnas as “selfless service”. Terming caste discrimination as phenomenon attributed to the British rule, he wrote:

The feeling of inequality, of high and low, which has crept into the Varna system, is comparatively of recent origin. The perversion was given a further fillip by the scheming Britisher in line with his 'divide and rule' policy. But in its original form, the distinctions in that social order did not imply any discrimination such as big and small, high and low, among its constituents. On the other hand, the Gita tells us that the individual who does his assigned duties in life in a spirit of selfless service only worships God through such performance.” (Bunch of Thoughts; Once the Glory, PP 98)

Despite speaking against caste atrocities, RSS has published thousands of copies of this book and follows it line by line.The doublespeak of Sangh is evident from the fact that on one hand, they treat Manusmriti as their holy book and on the other, talk about discontinuation of caste atrocities. RSS’s love for Manusmriti is evident from the fact that, when the constitution of India was being finalised, the RSS complained:

To this day his laws as enunciated in the Manusmriti excite the admiration of the world and elicit spontaneous obedience and conformity. But to our constitutional pundits that means nothing" (Organiser quoted in Empire and Neoliberalism in Asia, pp 252).

The Manusmriti is important in this context because it is the book which lays down the foundation of the oppressive caste system. This ancient text goes on to define the duties assigned to each caste:

To Brahmanas he assigned teaching and studying (the Veda), sacrificing for their own benefit and for others, giving and accepting (of alms). The Kshatriya he commanded to protect the people, to bestow gifts, to offer sacrifices, to study (the Veda), and to abstain from attaching himself to sensual pleasures; The Vaisya to tend cattle, to bestow gifts, to offer sacrifices, to study (the Veda), to trade, to lend money, and to cultivate land. One occupation only the lord prescribed to the Sudra, to serve meekly even these (other) three castes”. (The Laws of Manu, Translated by G.Buhler, PP 3)

The “Guru Ji” of RSS (Golwalkar) had fondly quoted Manu as ‘ Bhagwan’ and the ‘ greatest law giver’ in many of his texts. He not only called Manu the supreme law giver but has also referred to him at various places to cite the supremacy of Brahmins.

It is this fact which made the first and greatest law giver of the world – Manu, to lay down in his code, directing all the peoples of the world to come to learn their duties at the holy feet of the "Eldestborn" Brahmans of this land.” (We, Our Nationhood Defined, PP 117)

It is the Manusmriti that designates corporal punishments for the lower castes. The Cow vigilante groups supported by the VHP seek to implement these very Brahmanical laws. The incidents at Una, Latehar, Dadri and most recently in Andhra Pradesh are all are examples of this.

The Manusmriti quotes:
For (stealing) cows belonging to Brahmanas, piercing (the nostrils of) a barren cow, and for stealing (other) cattle (belonging to Brahmanas, the offender) shall forthwith lose half his feet.” (The Laws of Manu, Translated by G.Buhler, PP 53)

The Sangh Parivar has always cited the role of a “foreign hand” in the incidents of caste oppression. Various cases of atrocities on Dalits post-independence have been sighted as ‘misdeeds’ of the media. Golwalkar in a section titled as “Playing the Old Game” writes:

To our bitter experience, we know how the British used to set up one caste or sect against the other, as for example the ‘non-Brahmin’ against the ‘Brahmin’, and play the game of ‘divide and rule’, and how our own people – even the so-called leaders – fell a willing prey to it. We should take a lesson from that, and beware of similar designs even now of foreign powers and their agents inside our borders.” (Bunch of Thoughts)

Even if we leave apart all these specific incidents, the Sangh has always maintained its faith in the principle of violence. It goes back to Manusmriti to quote how violence is the only tool to establish the ‘supremacy’ of the ‘rashtra’. They have continuously implemented the same understanding within the country itself. Every time there has been a discussion around Islamic terrorism, the Right-wing in the country has found violence as the only counter to it. Many Sangh workers like Colonel Purohit, Aseemanand and Sadhvi Pragya have been accused of carrying out terror activities. The Sangh has vehemently denied proximity with these individuals. But the ideals of violence remain deeply rooted within the Sangh Parivar. Golwalkar's ‘Bunch of Thought’ has discussed ways to use violence in order to “establish peace”. It quotes:

We had in the past set up standards of valour and heroism and produced some of the greatest generals and conquerors the world has ever known, who fought and killed and carried on fierce battles relentlessly to establish peace wherein dharma reigned, supreme.”

The disagreement of RSS with the Indian constitution is in the public domain. The anti-Dalit agenda of the RSS can be traced in its demand for the review of the reservation system. Both the RSS and the BJP opposed the Mandal Commission's recommendations that gave representation to the Other Backward Castes (OBCs).

So the question is why has RSS/BJP suddenly developed love for Dalits? The only answer is the upcoming elections in Uttar Pradesh. If BJP loses UP, it will not be able to have majority figures in the Rajya Sabha or the upper house. The loss will also deflate, considerably,  much of the hot air from Modi's ‘Achhe Din’ (Happy Times are here), claim.

Uttar Pradesh has 20.5 percent of Scheduled Castes (SC) population, which has traditionally voted for the Bahujan Samaj Party (BSP). During the 2014 Lok Sabha Polls, however, of the 66 reserved Dalit Lok Sabha constituencies, the BJP won in 40 seats. Not only this – it won all 17 reserved constituencies in Uttar Pradesh.

Since the Modi regime's stint in Delhi however, there have been a spate of incidents and the government's response, that have dented this hold. The suicide of Rohith Vemula (Hyderabad Central University, January 17, 2016), the Una atrocity (July 11, 2016), the personal attack on BSP leader, Mayawati and demands for the review of reservations by the RSS, have made the ruling party in India, vulnerable in UP. Both the Bharatiya Janata Party (BJP) and the RSS are now desperately trying to contain the surging Dalit ire. But one must not forget that at the core of their ideology, lies a deep-seated anti-Dalit agenda.

Courtesy: Newsclick

(The original article has been slightly edited mainly  to add and explain abbreviated terms-Editors)
 

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