rajendra-prasad-singh | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/rajendra-prasad-singh-11603/ News Related to Human Rights Mon, 03 Oct 2016 05:09:55 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.2.2 https://sabrangindia.in/wp-content/uploads/2023/06/Favicon_0.png rajendra-prasad-singh | SabrangIndia https://sabrangindia.in/content-author/rajendra-prasad-singh-11603/ 32 32 भारतीय इतिहास में मिसफ़िट वैदिक युग https://sabrangindia.in/bhaarataiya-itaihaasa-maen-maisaphaita-vaaidaika-yauga/ Mon, 03 Oct 2016 05:09:55 +0000 http://localhost/sabrangv4/2016/10/03/bhaarataiya-itaihaasa-maen-maisaphaita-vaaidaika-yauga/ कैसा इतिहास-बोध है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद वैदिक युग आया? कहाँ सिंधु घाटी की सभ्यता का नगरीय जीवन और कहाँ वैदिक युग का ग्रामीण जीवन! भला कोई सभ्यता नगरीय जीवन से ग्रामीण जीवन की ओर चलती है क्या? सिंधु घाटी के बड़े-बड़े नगरों के आलीशान मकान की जगह कैसे पूरे उत्तरी भारत […]

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Indus civilisation

कैसा इतिहास-बोध है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद वैदिक युग आया? कहाँ सिंधु घाटी की सभ्यता का नगरीय जीवन और कहाँ वैदिक युग का ग्रामीण जीवन! भला कोई सभ्यता नगरीय जीवन से ग्रामीण जीवन की ओर चलती है क्या? सिंधु घाटी के बड़े-बड़े नगरों के आलीशान मकान की जगह कैसे पूरे उत्तरी भारत के वैदिक युग में अचानक नरकूलों की झोंपड़ी उग आई, जिसकी व्याख्या आप सिंधु घाटी में हुए जल-प्लावन, नर-संहार या महामारी को आरोपित करके किया करते हैं। आपको ऐसा इतिहास-बोध उलटा नहीं लगता है?
 
यदि सिंधु घाटी की सभ्यता में भारत का प्रथम नगरीकरण हुआ तो इतिहास गवाह है कि भारत का द्वितीय नगरीकरण बुद्ध के युग में हुआ था, जब पूर्वोत्तर भारत में भी अनेक नगरों की स्थापना हुई; मिसाल के तौर पर कौशांबी, कुशीनगर, वाराणसी, वैशाली, चिराँद और राजगीर। इसलिए आप कह सकते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता का नगरीय जीवन पूरे उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में बुद्ध के युग में उतरा। इसलिए बुद्ध का समय परवर्ती सिंधु घाटी की सभ्यता के समानांतर और उससे जुड़कर था। यह है इतिहास की सही व्याख्या।
 
आप पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में लेखन – कला विकसित थी और फिर उसके बाद की वैदिक संस्कृति में पढ़ाने लगते हैं कि वैदिक युग में लेखन – कला का विकास नहीं हुआ था। वैदिक युग में लोग मौखिक याद करते थे और लिखते नहीं थे। ऐसा भी होता है क्या? पढ़ी-लिखी सभ्यता अचानक अनपढ़ हो जाती है क्या?
 
जी नहीं, सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद भी लेखन-कला जारी थी। इसके लिए आपको उन इतिहासकारों की स्थापना को मान्यता देनी होगी जो यह मानते हैं कि शिशुनाग वंश की स्थापना 1999 ई.पू. में हुई थी और अजातशत्रु इस वंश का छठा राजा था और वह 1825 ई.पू. में सत्तारूढ हुआ जिसके आठवें वर्ष अर्थात 1818 ई.पू. में बुद्ध का निर्वाण हुआ था।
 
आप यह भी पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में मूर्ति-कला थी; मिसाल के तौर पर मातृदेवी की मूर्ति, पुजारी की मूर्ति आदि। फिर उसके बाद पढ़ाते हैं कि वैदिक युग में मूर्ति-कला नहीं थी। मूर्ति-कला तो बुद्ध के युग की देन है। यह सब उलटा नहीं है? मूर्ति-कला अचानक विलुप्त कैसे हो गई? दरअसल बुद्ध का युग परवर्ती सिंधु घाटी की सभ्यता के समानांतर और उससे जुड़कर था। इसलिए सिंधु घाटी की सभ्यता की मूर्ति-कला बुद्ध के युग के बाद और भी विकसित हुई है।
 
भारत में नगरीकरण, लेखन-कला , मूर्ति-कला, व्यापार और सिक्कों का विकास निरंतर हुआ है। कोई गैप नहीं है। यदि इतिहास में ऐसा गैप आपको दिखाई पड़ रहा है तो वह वैदिक संस्कृति को भारतीय इतिहास में ऐडजस्ट करने के कारण दिखाई पड़ रहा है। आपको इतिहास का पुनर्लेखन करना होगा। बुद्ध का समय, शिशुनाग वंश, मौर्य वंश आदि को और पीछे ले जाना होगा।
 

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