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दैनिक जागरण जी, बिजनौर का सच क्या है?

 
सांप्रदायिकता का खबर बन जाना 
बुरा तो है,
लेकिन उससे भी बुरा है 

खबरों का सांप्रदायिक बन जाना!


Image: Gajendra Yadav


दैनिक जागरण यूपी ही नहीं, देश का सबसे बड़ा अखबार है. इस नाते इसका असर भी बहुत ज्यादा है. ऐसे अखबार से उम्मीद की जा सकती है कि वह जो कुछ लिखेगा, उसमें संजीदगी होगी. हालांकि दैनिक जागरण सांप्रदायिक खबरों के लिए बाबरी मस्जिद विध्वंस वाले दिनों से ही बदनाम है. लेकिन अगर किसी को उम्मीद रही होगी कि अखबार सुधर गया है, तो उसकी यह उम्मीद लगातार गलत साबित हो रही है,

 
आइए इस अखबार की एक खबर के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि हिंदी के अखबारों को हिंदू अखबार क्यों कहा जाता है.
 
खबर का शीर्षक है – बिजनौर सांप्रदायिक हिंसा में तीन की हत्या के दूसरे दिन फिलहाल तनावपूर्ण शांति. http://www.jagran.com/uttar-pradesh/bijnor-communal-tension-in-bijnor-four-died-in-firing-si-and-constable-suspended-14707262.html
 
इस खबर की शुरुआत इस अंदाज में होती है कि अल्पसंख्यक लड़के कॉलेज जाने वाली लड़कियों को छेड़ते हैं और ऐसी ही एक घटना के बाद हिंसा भड़क उठी. 
 
पढ़िए ये लाइनें- "बिजनौर शहर से कुछ दूर स्थित कच्छपुरा और नया गांव की छात्राएं गांव पेदा के तिराहे से स्कूल जाने के लिए बसें पकड़ती हैं। ग्रामीणों को कहना है कि पेदा के अल्पसंख्यक यहां छात्राओं से काफी दिन से छेड़छाड़ कर रहे थे। शुक्रवार सुबह फिर छेड़छाड़ को लेकर कहासुनी हुई और नौ बजे इसी मसले ने तूल पकड़ लिया। विवाद बढ़ा तो अचानक पथराव और फायरिंग शुरू हो गई। गोली लगने से अहसान (32) की मौके पर ही मौत हो गई जबकि अनीसुद्दीन (50) और सरफराज (22) ने अस्पताल लाते समय दम तोड़ दिया."
 
जागरण जब ग्रामीणों के हवाले से बात कर रहा है तो जाहिर है कि उसने समाज के सिर्फ एक हिस्से से बात की है. और मुसलमानों से, जो इस हिंसा में पीड़ित पक्ष हैं, उनसे कोई बात नहीं की गई है.
 
लेकिन इसी खबर में आगे पुलिस के हवाले से यह लिखा गया है- "पुलिस का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय की 10वीं की छात्रा को स्कूल जाते समय गांव के ही संसार सिंह के परिवार के लड़के द्वारा छेडख़ानी करने पर दोनों पक्षों में विवाद हुआ। जिनमें तीन की मौत हो गई और 12 घायल हो गए।"
 
पुलिस की बात के ऊपर जागरण ने न सिर्फ ग्रामीणों के एक हिस्से की बात को रखा, बल्कि दूसरे पक्ष से बात करने की जरूरत भी नहीं महसूस की. 
 
अब जबकि स्पष्ट है कि छेड़खानी के शिकार और मारे गए लोग सभी एक ही समुदाय के हैं, फिर भी जागरण ने इस खबर पर कोई स्पष्टीकरण नहीं छापा.
 
इस विश्लेषण को लिखते समय तक जागरण की साइट पर यह खबर मौजूद है.
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