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दिल्ली उच्च न्यायालयः महिलाओं को मंदिर में आने से नहीं रोका जा सकता

नई दिल्ली। दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने मंगलवार को महिलाओं के हित में फैसला सुनाया। बता दें कि उच्च न्यायालय ने एक पुजारी से पूछा कि मंदिरों में महिलाएं पूजा और ‘सेवा’ क्‍यों नहीं कर सकतीं। जस्टिस बीडी अहमद और आशुतोष कुमार की बेंच ने कहा, ”वक्‍त बदल चुका है, अब महिलाओं को भारतीय मंदिरों में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।” 

Women entry in temple
 
बेंच ने कहा, ”यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि महिलाओं को पूजा के स्‍थान में प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता।” इसके बाद बेंच ने पुजारी से पूछा, ”हम ऐसा क्‍यों करना चाहिए?” अदालत ने यह टिप्‍पणी तब की जब पुजारी के वकील ने मामले की तत्‍काल सुनवाई की दरख्‍वास्‍त की क्‍योंकि ट्रायल कोर्ट ने पहले ही उसकी बहनों को कालकाजी मंदिर में ‘पूजा और सेवा’ करने तथा प्रसाद लेने की भी अनुमति दी है। पुजारी के वकील ने कहा कि चूंकि दोनों विवाहित बहनें विभिन्‍न परिवारों और गोत्र से ताल्‍लुक रखती हैं, उनका मंगलवार से शुरू हुई ‘पूजा सेवा’ करने का अधिकार नहीं बनता। पुजारी ने दिल्‍ली के मशहूर कालकाजी मंदिर में अपनी दो बहनों को ऐसा करने से रोकने के लिए न्‍यायिक आदेश मांगा था।
 
इस मामले पर पुजारी के वकील ने कहा कि 4 फरवरी को दिए गए ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए और उसकी बहनों को पूजा करने से रोका जाए। बेंच ने मंगलवार को उपयुक्‍त बेंच के सामने मामला सूचीबद्ध करने की इजाजत दे दी। जब जस्टिस जेआर मीधा के सामने मामला आया तो उन्‍होंने कहा कि प्रतिवादी को नोटिस दिए जाएंगे क्‍योंकि ट्रायल कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा, ‘इसे कल के लिए लिस्‍ट कीजिए।’ हाई कोर्ट ने कहा कि वह ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगा सकते।
 
दूसरी तरफ, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि प्राचीन समय से परिवार के पुरुष सदस्‍य ही पूजा करने के अधिकारी हैं क्‍योंकि वही मंदिर में पूजा और अन्‍य रस्‍में निभाते आए हैं। पुजारी ने अपनी बहनों को ‘सेवा बारी’ के जरिए मिलने वाले प्रसाद के हिस्‍से पर दावा करने से रोकने की भी अपील की है। याचिकाकर्ता ने कहा कि कालकाजी मंदिर के इतिहास में कभी किसी महिला ने पूजा नहीं की है।

Courtesy: National Dastak
 

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