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दलित, मुस्लिम और औरत से भारत में गाय होना बेहतर है।

एक चौकानेवाली घटना जिसमें मनुष्य को अपमानित किया गया है और उनके जो न्यूनतम मूल्य है उसका भी इनकार किया गया है।कानून के नियमों के अनुसार हर एक व्यक्ति को जो न्यूनतम मूल्य है मिलने चाहिए जो उनका मौलिक अधिकार है। एक आत्म घोषित राज्य गुजरात के सोमनाथ जिले में गाय सतर्कता समूह वैन को छीन लिया गया और मृत गाय स्किन्निंग(skinning) के कथित अपराध में साथ दलित समुदाय से संबंधित लोगों को कार को बांधकर पीटा गया है।

सोशल मीडिया पर जो वीडियो हलचल मचा रहा है, उसमें ये दिखाया गया है कि उच्चजाति के लोगों के एक समूह ने चार दलित लोगों को एक वैन को बांधकर उन्हें लाठी औरलोहे के स्ट्रिप्स (strips) से उनकी पिटाई की गयी है और पूछा गया है कि कैसे वे गाय त्वचा की खरीदी कर सकता है।उन दलित लोगों को बेरहमी से मारने के बाद, आत्म घोषित गाय सजग समूह में से एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर एक विडियो डाला है।

उसमें चेतावनी दी गयी है कि यदि गाय की हत्या और गाय का चमड़ा (skin) पाया गया तो इसी प्रकार का उपचार उनको दिया जाएगा। यह भी चेतावनी दी गयी है कि गाय (गौ-माता) को किसी भी तरह से स्पर्श नहीं करना चाहिए जिन्दा या मुर्दा नहीं तो हश्र यही होगा। इसी प्रकार सदियों से दलित महिलाओं के साथ बलत्कार किया जा रहा है, जला दिया जा रहा है, मार दिया जा रहा है और अनेक इस प्रकार के जुल्म दलित समुदाय झेलता आ रहा है।इस असहिष्णु देश में ऐसी घटनाएं क्षत-विक्षत रोज होती जा रही है लेकिन आज दलित समुदाय इस प्रकार के राष्ट्रवाद को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या उनके पवित्र गाय को नुकसान पहुँचाया जाता है।

भले ही मरी हुई गाय (गौ माता) हो, जो उनके बचों द्वारा ही खुले में फेक दिया जाता है। सामान्य रूप में दलितों ने गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र से भारत भर में अपनी आवाज उठाने के लिए एक अनूठा रास्ता मिल गया है। विशिष्ट अपनी आजीविका के लिए (dehumaninized) कब्जे संलग्न करने के लिए उन्हें सम्मोहक से पहले उन पर लगाये गए हिंसा के खिलाफ आपनी आवाज उठाई।

शारीरिक रूप से उनके मानव गरिमा का उलंघन करने के कारण उन्होंने एक संक्षिप्त सन्देश को सारे देश में पहुंचाया है कि-आत्म घोषित उनके गौ माताओं (matas) को निपटाने के लिए उन्होंने मरें हुए गाय के शवों को सरकारी कार्यालयों के सामने डाल दिया है और यहाँ फैसल किया है कि वे मरें हुए गायों (माताओं) को ढोने काम नहीं करेंगे जो सदियों से करते आ रहे थे। जो उनका यहाँ हिन्दू–धर्म में पेशा था। आज ओ काम उन्होंने गौ-माताओं को ढोने का उनके प्यारे बचों के लिए छोड़ दिया है ऐसी घोषणा उन्होंने की है।भारत में दलित ही ऐसा समुदाय है जो ऐसे हिंदुत्व बयानबाजी के खिलाफ अपनी आवाज नैतिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया के तौर पर करता है जो उनका मौलिक अधिकार है।


 
 

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