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दलितों-आदिवासियों के उत्पीड़न के खिलाफ हुंकार रैली 20 सितंबर को भोपाल में


 Image Courtesy: Navbharat Times

दलित और आदिवासी उत्पीड़न के मामलों को दबाने की तमाम कोशिशें भाजपाशासित राज्यों में नाकाम होती जा रही हैं। झारखंड के बाद अब मध्य प्रदेश में भी दलित और आदिवासी संगठनों ने राज्य सरकार के खिलाफ 20 सितंबर को विशाल रैली करने का ऐलान किया है। झारखंड में भी अक्टूबर में ऐसी ही रैली का आयोजन किया जा रहा है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 और उसके पहले के कई वर्षों की रिपोर्टों में बलात्कार, हत्या, लूटपाट, महिलाओं-बच्चों की तस्करी के सर्वाधिक मामले मध्य प्रदेश में ही बताए जा रहे हैं। इनमें भी सर्वाधिक पीड़ित दलित और आदवासी वर्ग है।

लगातार दमन और उत्पीड़न के खिलाफ अब मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी संगठन राजधानी भोपाल में 20 सितंबर को एक विशाल रैली करने जा रहे हैं, जिसे हुंकार रैली नाम दिया गया है। यह रैली इस मायने में भी खास है कि इसमें दलित और आदिवासी मिलकर एक मंच पर शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाएँगे। दलित शोषण मुक्ति मंच और आदिवासी एकता महासभा समेत कई जनसंगठन इस रैली को सफल बनाने में जुट गए हैं।

दलित और आदिवासी संगठनों की चिंता इस बात से भी बढ़ गई है कि अब मध्य प्रदेश में जातीय उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं से होने वाली बदनामी को देखते हुए पुलिस ने अब ऐसे मामलों की एफआईआर दर्ज करने से मना करना शुरू कर दिया है। वैसे तो पहले भी पुलिस अपराध दर्ज करने में हीला-हवाली करती थी, लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़े जारी होने के बाद सरकार ने खास तौर पर पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जातीय उत्पीड़न के मामले कम से कम दर्ज किए जाएँ।

रैली का आह्वान करने वाले संगठनों का यह भी कहना है कि एससी और एसटी के जाति प्रमाण पत्र बनाने में भी बाधा खड़ी की जाती है। इसके साथ ही तमाम भूमि कानूनों को धता बताते हुए जनजाति और दलित लोगों की आबादी विकास के नाम पर छीनी जा रही है और ऐसे सारे विवादों में सरकार हमेशा पूँजीपतियों का ही साथ देती है।

मजबूर होकर दलित और आदिवासी पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं, लेकिन वो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में जाते हैं, तो वहाँ उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति का नहीं माना जाता क्योंकि कई ऐसी जातियाँ उन राज्यों में एससी और एसटी की लिस्ट में शामिल नहीं हैं।
 

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