मैं बतौर दूरदर्शन समाचार में कार्यरत पत्रकार सत्येन्द्र मुरली जिम्मेदारीपूर्वक दावा कर रहा हूँ कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'राष्ट्र के नाम संदेश' लाइव नहीं था, बल्कि पूर्व रिकॉर्डेड और एडिट किया हुआ था.
- 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'राष्ट्र के नाम संदेश' लाइव नहीं था, बल्कि पूर्व रिकॉर्डेड और एडिट किया हुआ था.
- इस भाषण को लाइव कहकर चलाया जाना न सिर्फ अनैतिक था, बल्कि देश की जनता के साथ धोखा भी था.
- 8 नवंबर 2016 को शाम 6 बजे आरबीआई का प्रस्ताव और शाम 7 बजे कैबिनेट को ब्रीफ किए जाने से कई दिनों पहले ही पीएम का 'राष्ट्र के नाम संदेश' लिखा जा चुका था.
- मुद्रा के मामले में निर्णय लेने के रिजर्व बैंक के अधिकार का इस मामले में स्पष्ट तौर पर उल्लंघन किया गया है.
- इस बारे में RTI के जरिए पूछे जाने पर (PMOIN/R/2016/53416), प्रधानमंत्री कार्यालय ने जवाब देने की जगह टालमटोल कर दिया और आवेदन को आर्थिक मामलों के विभाग और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भेज दिया. RTI ट्रांसफर का नंबर है – DOEAF/R/2016/80904 तथा MOIAB/R/2016/80180.
- यह रिकॉर्डिंग पीएमओ में हुई थी, लिहाजा इस बारे में जवाब देने का दायित्व पीएमओ का है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ देते हुए कहा कि “आज मध्य रात्रि यानि 8 नवंबर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी.”
केंद्र सरकार की तरफ से दावा किया गया कि यह निर्णय पूरी तरह गोपनीय था और इस निर्णय की घोषणा से पूर्व इसके बारे में सिर्फ प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री समेत भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के कुछ ही अधिकारियों को मालूम था.
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने मीडिया को बताया कि 8 नवंबर को शाम 6 बजे आरबीआई का प्रस्ताव आया, शाम 7 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई, जिसमें मोदी ने मंत्रियों को ब्रीफ किया और रात 8 बजे प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए घोषणा कर दी.
पीएम मोदी ने ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ को मीडिया में लाइव बैंड के साथ प्रसारित करने को कहा था, जिसे देश के तमाम चैनलों ने लाइव बैंड के साथ ही प्रसारित किया. पीएम मोदी ने देश की जनता को बरगलाने के लिए ऐसा दिखावा किया कि मानों उन्होंने अचानक ही रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित किया हो. यह अचानक घोषणा वाला नाटक इसलिए किया गया, ताकि देश की जनता को भरोसा हो जाए कि प्रधानमंत्री मोदी ने मामले को बेहद गोपनीय रखा है, लेकिन ऐसा हरगिज नहीं था.
मैं बतौर दूरदर्शन समाचार में कार्यरत पत्रकार सत्येन्द्र मुरली जिम्मेदारीपूर्वक दावा कर रहा हूँ कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'राष्ट्र के नाम संदेश' लाइव नहीं था, बल्कि पूर्व रिकॉर्डेड और एडिट किया हुआ था.
8 नवंबर 2016 को शाम 6 बजे आरबीआई का प्रस्ताव और शाम 7 बजे कैबिनेट को ब्रीफ किए जाने से कई दिनों पहले ही पीएम का 'राष्ट्र के नाम संदेश' लिखा जा चुका था. और इतना ही नहीं मोदी ने इस भाषण को पढ़कर पहले ही रिकॉर्ड करवा लिया था.
8 नवंबर 2016 को शाम 6 बजे आरबीआई से प्रस्ताव मंगवा लेने के बाद, शाम 7 बजे मात्र दिखावे के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाई गई, जिसे मोदी ने ब्रीफ किया. किसी मसले को ब्रीफ करना और उस पर गहन चर्चा करना, दोनों में स्पष्ट अंतर होता है. मोदी ने कैबिनेट बैठक में बिना किसी से चर्चा किए ही अपना एक तरफा निर्णय सुना दिया. यह वही निर्णय था जिसे पीएम मोदी पहले ही ले चुके थे और कैमरे में रिकॉर्ड भी करवा चुके थे. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा THE GOVERNMENT OF INDIA (TRANSACTION OF BUSINESS) RULES, 1961 एवं RBI Act 1934 की अनुपालना किस प्रकार की गई होगी? क्या इस मामले में राष्ट्रपति महोदय को सूचना दी गई?
मोदी ने संविधान व नियम-कानूनों को ताक पर रखकर देश की जनता को गुमराह किया है और अपना एक तरफा निर्णय थोपते हुए, देश में आर्थिक आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. इस निर्णय की बदौलत देशभर में बैंक कर्मियों, बच्चों, वृद्धों, महिलाओं समेत सैंकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है और सिलसिला है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा. पूरे देश में बैंकों और एटीएम मशीनों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं. आज देश का आम आदमी, गरीब, मजदूर, किसान एवं मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति इन कतारों में लगा हुआ है. जबकि पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि “भ्रष्टाचार में लिप्त और काला धन रखने वाला व्यक्ति आज लाइनों में लगा हुआ है, जबकि आम आदमी, गरीब, मजदूर, किसान चैन की नींद सो रहा है.” मोदी के इस वक्तव्य की चारों ओर जबरदस्त आलोचना भी हो रही है.
आज देशभर में लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसते हुए उन्हें हिटलर और तुगलक जैसी संज्ञा दे रहे हैं. देश की जनता कह रही है कि मोदी ने इस निर्णय के बारे में अपने चहेते, यार-दोस्तों को पहले ही जानकारी दे दी थी. बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन मायावती एवं अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी राज्यसभा में इस बात को भली-भांति उजागर किया था. यहाँ तक कि कई बीजेपी नेताओं और समर्थकों ने भी पीएम मोदी पर देश के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया है, जिसके वीडियो क्लिप सोशल मीडिया और यूट्यूब पर वायरल हो चुके हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में प्रधानमंत्री मोदी पर घूस लेने और नोटबंदी की सूचना अपने चहेते पूंजीपति यार-दोस्तों को लीक किए जाने के गंभीर आरोप लगाए हैं, जिस पर बीजेपी और आरएसएस ने चुप्पी साध रखी है.
इस सबके बीच विरोधाभासी बात तो यह भी है कि केंद्र सरकार और आरबीआई ने कालेधन और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उच्च मूल्य वाले 500 रूपये और 1,000 रूपये के नोटों को बंद करने का तर्क देते हुए 8 नवंबर को भारत के राजपत्र में कहा है कि "भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक बोर्ड ने सिफारिश की है कि पांच सौ रूपये और एक हजार रूपये के अंकित मूल्य के बैंक नोट वैध मुद्रा नहीं रहेंगे…यह देखा गया है कि उच्च मूल्य के बैंक नोटों का उपयोग गणना में न लिए गए धन के भंडारण के लिए किया जाता है जैसा कि विधि प्रवर्तन अभिकरणों द्वारा नकदी की बड़ी वसूलियों से परिलक्षित है.”
लेकिन, इसके ठीक दो दिन बाद यानी 10 नवंबर को बाजार में 2,000 रूपये का नोट आ गया. और इसी के साथ केंद्र सरकार और आरबीआई द्वारा उच्च मूल्य के नोटों को बंद किए जाने के पीछे दिए गए उपरोक्त तर्क के साथ विरोधाभास पैदा हो गया है, क्योंकि केंद्र सरकार 500 रूपये और 1,000 रूपये से भी अधिक उच्च मूल्य का नोट यानि 2,000 रूपये का नोट लाई है. इतना ही नहीं, बाजार में 2,000 रूपये के जाली नोटों के अलावा जम्मू-कश्मीर में मारे गए आतंकवादियों से नए नोट भी बरामद किए जा चुके हैं. इस घटना ने केंद्र सरकार के दावों को धक्का पहुंचाने का काम किया है और अब मोदी सरकार कटघरे में खड़ी है.
एक तथ्य यह भी है कि आरबीआई के पास 10 हजार रूपये तक के नोट छापने की अनुमति है. पूर्व में इसके अंतर्गत एक हजार रूपये से ऊपर सीधे 5,000 रूपये और 10,000 रूपये का ही नोट छापा जा सकता था, लेकिन वर्तमान में 2,000 रूपये के नोट की नई सीरीज गांधी की फोटो के साथ छापी गई है, तो जाहिर है कि इसकी अनुमति से संबंधित एक्जीक्यूटिव ऑर्डर, नोटिफिकेशन आदि जारी किए गए होंगे, लेकिन आज तक जनता इन संबंधित एक्जीक्यूटिव ऑर्डरों, नोटिफिकेशनों आदि को देखने में नाकाम रही है.
एक तरफ तो भारतीय रिजर्व बैंक का स्पष्ट रूप से कहना है कि भारत की कैश आधारित इकॉनोमी है अर्थात देश के अधिकतर लोग कैश में ही लेन-देन का कार्य करते हैं, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार नकद लेन-देन के खिलाफ है और नोटबंदी के बाद बैंको से नकदी निकासी पर शिकंजा कसते हुए लोगों से चेक, एटीएम, मोबाइल वॉलेट, इंटरनेट बैंकिंग इत्यादि द्वारा लेन-देन करने को कहा जा रहा है.
आज देश की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है. मेरा मानना है कि मोदी द्वारा लिए गए एकतरफा, पक्षपाती, विरोधाभासी और संदेहास्पद मकसद वाले इस तानाशाही निर्णय की वैधानिकता को माननीय न्यायालय के समक्ष कानूनन चुनौती दी जा सकती है.
पीएमओ को चाहिए कि वह RTI के सवालों का सीधा जवाब देकर RTI एक्ट, 2005 की अनुपालना करे.
(सत्येन्द्र मुरली, पत्रकार एवं रिसर्चर )
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