A fresh communal storm is brewing in UP with a Muslim youth claiming that in response to his RTI application, he received a registered letter dated February 4, from the Allahabad-based CRPF DIG, Dinesh Kumar Tripathi, in which he allegedly wrote that the RTI query could not be entertained as “you are from the Muslim community which follows the religion of terrorists.”
In a telephonic conversation with SabrangIndia this afternoon, Tripathi claimed that the letter which the RTI-applicant Shams Tabrez from Usia village in Ghazipur district in UP has circulated in the media has been forged by someone with the intent of stoking communal passion in the state. “I am filing an FIR with the police in Allahabad today as a proper investigation is needed unearth the truth”, he said.
“The CRPF is a politically neutral force. We are specially requisitioned in communally charged situations to impartially enforce rule of law. Leave alone a senior officer like me with 28 years of service, even a junior in my office cannot ever conceive or dream of writing such a letter”, Tripathi told SabrangIndia.
Later this evening, while speaking to SabrangIndia Tabrez insisted that DIG Tripathi’s letter which he had shared with the media was none other than the one that he had received by registered post. "Please note, it was received by registered post, not ordinary post or hand delivered", he added. What's more, "Two days before approaching the media, I have already made written complaints with the National Human Rights Commission, the National Commission for Minorities and the Union home ministry".
“Over several generations, members from my family have served in the Indian army, sacrificed their blood for the nation in the wars against Pakistan and during the formation of Bangladesh. But today my family and all Muslims have become followers of the religion of terrorists”, a deeply hurt and highly agitated Tabrez told Sabrang India. A dynamic RTI activist, in the last four months alone Tabrez has filed over 50 RTI applications for information from the home ministry. "I wonder if it is because of this that there is an attempt to frame me," he said.
A post-graduate in journalism and mass communications, in keeping with his Hashmi family tradition of military service, Tabrez is especially proud of the fact that while a student he did two years weapons training and received a 'C' certificate of merit from the NCC.
The letter from DIG Tripathy which Shams Tabrez insists he received through registered post.
The multi-edition Inquilab daily which has seven editions published from different cities in UP had this morning splashed a report of its front page along with the letter Tabrez claims to have received from DIG Tripathi by registered post. We are reproducing here both the letter allegedly written by Tripathi and also the letter which Tripathi claims he actually wrote to Tabrez. The former letter is three paras long while the latter is only two paras long.
According to Tripathi, the additional para in the forged letter has been inserted by someone “with the obvious intent of inciting communal passion”. The controversial para reads as follows: “You are informed… that as you are from the Muslim community which is the religion of terrorists, for security reasons as stipulated under section 8(1)(k) of the RTI Act, the information/ documents cannot be made available”.
While it is for the police to investigate who is behind the attempt to light one more communal fire in UP, it is difficult to imagine that Tabrez would personally indulge in what, if true, would amount to a serious criminal offence.
What is sure to get buried in the process however is Tabrez original grouse that despite passing all written, physical and medical tests, he was denied a job by the CRPF due to apparent bias.
Office copy of the letter which DIG Tripathi claims is the official letter he wrote to Tabriz
In Tabrez’s Own Words:
मेरा नाम शम्स तबरेज़ है और मेरा सम्बन्ध आतंकियो के मजहब अर्थात मुस्लिम समुदाय से है। ऐसा मैं नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी अर्धसैन्य बल सी.आर.पी.एफ. कह रही है।
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने अपने एक पत्र में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ''आप मुस्लिम समुदाय से सम्बन्धित हैं जो आतंकियों का धर्म है।''
मैं वर्ष 2010 में सी.आर.पी.एफ. का कैन्डीडेट था उस वक्त मैंने इलाहाबाद केन्द्र में पांच किलो मीटर की दौड़ पूरी की, पूरा फिजिकल टेस्ट पास किया और लिखित परीक्षा दिया जिसके बाद मुंझे मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाया गया।
चूंकि मैं उस समय यू.पी. पुलिस से मेडिकल फिट था इसलिए मुंझे इस बात से बेफिक्र था कि मेरा मेडिकल नेगेटिव नहीं हो सकता।
लेकिन मेडिकल टेस्ट भी हुआ और मेडिकल फिट भी बताया गया तथा नियुक्ति पत्र 45 दिन के भीतर भेजने का आश्वाषन भी दिया गया लेकिन जब ज्वाईनिंग लेटर
नहीं आया तो मैनें अपने साथी कैन्डीडेट, जिनकी नियुक्ति पत्र आ चुका था, से संपर्क किया तो पता चला कि मेरा नाम नियुक्ति सूची में नहीं है।
खैर मैं तब तक ग्रेजुएट हो गया चुका था इसलिए एम.ए. में दाखिला ले लिया। लेकिन इस बात की टीस मेरे दिल में हमेशा रहती थी कि मैं सी.आर.पी.एफ. का
एक असफल कैंडिडट हूं। मैने 2013 में सी.आर.पी.एफ. के महानिदेशक कार्यालय नई दिल्ली से अपना पूरा डिटेल मांगा, जिसमें बताया गया कि मैं मेडिकल अनफिट था इसलिए
ज्वाईनिंग नहीं मिली। लेकिन मेडिकल टेस्ट की रिपोर्ट देने से इन्कार कर दिया।
पुनः नवम्बर 2015 में आॅनलाईन माध्यम से मैने गृह मंत्रालय में एक आर.टी.आई. फाईल किया जिसे शुरूआत में निरस्त कर दिया गया लेकिन प्रथम
अपील के बाद 30 नवम्बर को सी.आर.पी.एफ. के डी.जी. हेड क्वार्टर नई दिल्ली को मेडिकल रिपोर्ट देने की निर्देश दिया गया।
मामला उत्तर प्रदेश का होने के कारण डी.जी हेडक्वार्टर ने 28 दिसम्बर को आर.टी.आई. एक्ट की धारा 6(3) के तहत लखनऊ स्थित मध्य कमान स्थानान्तरित
कर दिया गया। उसके बाद 10 फरवरी को डी.के. त्रिपाठी पुलिस उप महानिरीक्षक इलाहाबाद ने अपने पत्र रजिस्टर्ड डाक से भेजा जिसे 4 फरवरी को जारी किया
गया था। इस पत्र में बताया गया कि "आप मुस्लिम धर्म से सम्बन्धित हैं जो आतंकियों का धर्म है अतः सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8(1)(क)
के तहत सुरक्षा कारणों से सूचना/दस्तावेज नहीं दिया जा सकता। साथ ही सी.आर.पी.एफ. को आर.टी.आई. एक्ट की धारा 24(1) के तहत आर.टी.आई. एक्ट के
दायरे से बाहर भी बताया गया।"
अब सवाल यह है कि अगर मुस्लिम धर्म आतंकियों का मजहब है और सी.आर.पी.एफ. को आर.टी.आई एक्ट की धारा 24(1) के तहत सूचना देने से छूट प्राप्त है तो
गृह मंत्रालय ने मेरे आवेदन को सी.आर.पी.एफ. के डी.जी. हेडक्वार्टर क्यों भेजा, और डी.जी. ने लखनऊ को मेडिकल रिपोर्ट देने के लिए क्यों आदेशित
किया?
आज मेरा मजहब आतंकियों का मजहब हो गया?
मेरे वंशज स्वतंत्रता सेनानी थे। मेरे दादा 6 भाई हैं जिनमें से 3 दादा ने सेना में थे मेरे चाचा भी सैनिक है और मेरे पिता भी एक राज्यकर्मी हैं
खुद भारतीय थल सेना ने मुंझे 2 साल की सैन्य प्रशिक्षण दिया। मेरा हाशमी घराना सेना में अपने दमखम के लिए जाना जाता है। जिन्होने चीन, बांग्लादेश
और कारगिल की जंगे लड़ी, राष्ट्र की सेवा में अपने खून बहाया और आज भी ये सिलसिला जारी है। ये सब किसके लिए किया? आतंकियों के लिए!
मामला सामने आने के बाद सी.आर.पी.एफ. भले ही इसे तकनीकि या प्रिंटिग मिस्टेक कह दे लेकिन जिन शब्दों का चयन मेरे मजहब के लिए किया गया है वह
एक गाली है। जिसने मेरे हाशमी खानदान और उन तमाम शहीदों को गाली दिया है जिन्होने अपने खून इस देश के इतिहास लिखा।
वीरों की धरती कही जाने वाली ग़ाजीपुर के हर उस सैनिक का अपमान किया है जिसके लिए यह क्षेत्र जाना जाता है।
लेकिन सी.आर.पी.एफ. ने गलत जगह हाथ डाल दिया है। मैं केन्द्रीय सूचना आयोग जाने की तैयारी में कर रहा हूं जहां मैं सी.आर.पी.एफ. को आर.टी.आई.
की परिभाषा बताऊंगा, मैने भारत समेत 5 देशों के आर.टी.आई. एक्ट पर शोध किया है और वेब न्यूज चैनल का पत्रकार हू।
मैं देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उत्तर प्रदेश की लखनऊ स्थित अखिलेश फ्रेंचाईज़ी सरकार को एक खुला पत्र भी लिखने वाला हूं।
कल तक हम लोगों को पाकिस्तानी, आतंकवादी, लव जेहादी और देशद्रोही कहा जाता था लेकिन अब सरकारी पत्र में लिखित रूप से आतंकवादी कहा जा रहा है
लेकिन सबको अपनी पड़ी है देश के साम्प्रदायिक बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर काम रही है।
(Tabrez in an email to Inquilab daily)