एक्सक्लूसिव : राजस्थान में सवर्णों को 51% आरक्षण, ओबीसी सबसे टैलेंटेड

आरपीएससी ने राजस्थान राज्य एवं अधीनस्थ संयुक्त सेवा भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा (प्रारंभिक) 2016 का परिणाम गुरुवार शाम घोषित कर दिया। 725 प्रशासनिक और अधीनस्थ सेवाओं के पदों पर भर्ती के लिए आयोजित हुई इस परीक्षा का कट ऑफ पिछली परीक्षाओं की तरह इस बार भी चौंकाने वाला रहा। एक बार फिर से ओबीसी का कट ऑफ जनरल से अधिक रहा! वाकई "अच्छे दिन आ गए!" लेकिन किसके "अच्छे  दिन" आये हैं यह हम लोग समझ कट ऑफ मार्क्स देखकर समझ सकते हैं। यह रहे कट ऑफ मार्क्स:

ओबीसी-94.98, सामान्य-78.54, सामान्य (टीएसपी) 69. 41, एसबीसी-80.82, एससी-71.69, एसटी-72.26  ज्ञात रहे कि इससे पूर्व राजस्थान पटवारी परीक्षा, आरएएस मुख्य परीक्षा, कॉलेज व्याख्याता परीक्षा और अब आरएएस प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य वर्ग का कट ऑफ ओबीसी से कम रहा है। पटवारी भर्ती परीक्षा में तो सामान्य वर्ग का कट ऑफ सभी आरक्षित वर्गों से कम रहा है। हैरानी की बात यह है कि साल 2015 में हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आरक्षित वर्ग की कट-ऑफ का अनारक्षित वर्ग से ज्यादा होने को गलत ठहराते हुए फैसला सुनाया था। यह संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है जिसमें समान अवसर उपलब्ध करवाने की बात कही गई है। अगर राज्य सरकार कोई विशेष प्रावधान लाती है तब वह कानून आधारित ही होना चाहिए जबकि हाल ही की सभी भर्तियों में राज्य सरकार इसका भयानक तरीके से उल्लंघन कर रही है।


यहाँ अगर राजस्थान के टीएसपी क्षेत्र की बात करें तब स्थिति और भी विकट नज़र आएगी। संविधान के अनुसार ओबीसी को 27.5, अनुसूचित जाति को 15 और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है जबकि राजस्थान उच्च न्यायालय के जून 2013 के नोटिफिकेशन के बाद सरकारी नौकरियों की सीधी भर्तियों में टीएसपी एरिया में अनुसूचित जनजाति को 45 और अनुसूचित जाति को 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई लेकिन बाकी के 50 फीसदी पदों को स्थानीय लोगों के लिए सुरक्षित रखा गया। यह टीएसपी क्षेत्र के आदिवासियों और दलितों के साथ कितनी बड़ी सरकारी साज़िश है कि उनकी टीएसपी एरिया में जनसंख्या क्रमशः लगभग 70 और 12 फीसदी होने के बावजूद मात्र 45 और 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था जबकि सामान्य वर्ग के लोग 15 फीसदी भी नहीं है और 50 फीसदी आरक्षण का सीधा-सीधा लाभ ले रहे हैं।

यहाँ एक बार राजस्थान पटवारी प्रारंभिक परीक्षा के कट ऑफ पर नज़र डालें तो समझ में आएगा कि जिस आरक्षण की व्यवस्था भारतीय समाज के वंचित तबकों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए की गई थी, उसका वर्तमान में असल लाभ वंचित तबके नहीं बल्कि सामान्य वर्ग उठा रहा है। यहाँ देखिएगा कि सबसे कम कट-ऑफ मार्क्स सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की रही है।

सामान्य वर्ग के पुरुषों का कट-ऑफ 104.5139, ओबीसी के पुरुषों का कट-ऑफ 147.4531, एसबीसी की 123.9037, एससी की 112.788 तथा एसटी की 106.5833 रही है। यह हालात उन लोगों के लिए एक सवाल है जो आरक्षण का रोना रोकर हर बार इस संवैधानिक व्यवस्था को कोसने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं। सोशल मीडिया हो या कोई अन्य जगह, आरक्षण के विरोध में जातिवादी लोग मोर्चे पर खड़े नज़र आते हैं। लेकिन अभी जो 'मेरिटोरियस हादसे' ओबीसी, SC और ST वर्ग के साथ सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे हैं इस पर अगर ये तीनों एकजुट होकर अपना मोर्चा नहीं सँभालते हैं तब वह दिन दूर नहीं जब सरकारें प्रतिनिधित्व की संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था को पूरी तरह से बेअसर कर देगी।

अब समय है कि हम लोग तमिलनाडु की तर्ज़ पर 69 फीसदी आरक्षण के लिए पैरवी करें ताकि वंचित तबकों को उनकी संख्या के अनुपात में सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उचित प्रतिनिधित्व मिल सकें।

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