घाटी में प्रेस का गला घोंटने की कार्रवाई

July 16, 2016: जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अखबारों के ब्यूरो में छापे मारे, कर्मचारियों को हिरासत में लिया और प्रतियां जब्त की


 
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के दो बड़े अखबारों ने कहा है कि पिछले शनिवार की रात जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उनके दफ्तरों पर छापे मारे। छपी हुई प्रतियों को जब्त कर लिया और कर्मचारियों को गिरफ्तार कर ले गई।  साफ तौर पर यह घाटी में मीडिया का गला घोंटने की कार्रवाई है।

कश्मीर टाइम्स के मुताबिक शनिवार को आधी रात के वक्त 20 से  ज्यादा पुलिस वालों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके रंगरथ में स्थित इसके प्रिंटिंग प्रेस पर छापा मारा और फोरमैन फयाज अहमद और दस कर्मचारियों को पकड़ पर ले गए। अखबार ने कहा है – पुलिसकर्मियों ने कश्मीर टाइम्स की मेटेलिक प्रिंटिंग प्लेटों और इसकी 70000 प्रतियों को जब्त कर लिया। पुलिस ने केटी प्रेस प्राइवेट लिमिटेड प्रिंटिंग प्रेस को भी बंद करवा दिया। अखबार का कहना है कि पुलिसवालों ने वहां मौजूद कर्मचारियों से बदतमीजी की और उनके मोबाइल फोन छीन लिए। जिन कर्मचारियों ने उनकी इस हरकत का विरोध किया उनकी पिटाई की गई।

एक और बड़े अखबार का कहना है कि पुलिस ने इसके प्रिंटिंग प्रेस पर रात दो बजेे छापे मारकर छपी हुई प्रतियों को जब्त कर लिया और वहां मौजूद कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया।

पुलिस ने अल-सुबह अंग्रेजी अखबार राइजिंग कश्मीर की प्रतियां भी जब्त कर ली और शेखपोरा (बडगाम) स्थित इसके प्रिंटिंग प्रेस पर छापा मारा।

अखबार का कहना है कि बडगाम से एक पुलिस दल ने आकर प्रेस पर छापा मारा और राइजिंग कश्मीर और अन्य प्रकाशनों की प्रतियों को जब्त कर लिया। प्रिटिंग का काम खत्म कर जाते वक्त फोरमैन मोहम्मद युसूफ समेत सभी कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया गया। युसूफ से अखबार के वितरण स्थलों के बारे में बताने के लिए कहा गया। बाद में पुलिस वाले प्रेस इनक्लेव पहुंचे और  ड्राइवर समेत अखबार की गाड़ी जब्त कर ली। ड्राइवर इरशाद खान ने कहा- उन्होंने मुझे प्रेस इनक्लेव में पकड़ लिया और पुलिस स्टेशन चलने को कहा। अखबार का कहना है कि स्टाफ को हमहमा पुलिस चौकी ले जाया गया और वहां इसकी सारी प्रतियां जब्त कर ली गई। इस दौरान सडक़ों पर वाहन नहीं चल रहे थे और सुरक्षा बल कफ्र्यू की वजह से लोगों को निकलने नहीं दे रहे थे। इस वजह से कर्मचारियों को पैदल ही दफ्तर पहुंचना पड़ा। सरकार घाटी में पहले ही इंटरनेट और टेलीफोन कनेक्शन बंद कर चुकी है। 9 जुलाई को टॉप आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से छिड़े संघर्ष में अब तक 41 लोग मारे जा चुके हैं। 

यहां यह याद करना जरूरी है कि 2010 और 2013 में भी सरकार ने अखबारों के वितरण और उनके वाहनों को रोक  कर अखबारों को प्रकाशित होने से रोक दिया था। अखबारों की प्रतियां जब्त कर ली जाती थीं और उनका सर्कुलेशन रोक दिया जाता था। मीडियाकर्मियों को कफ्र्यू पास देना बंद कर दिया गया था।

सरकार और इसकी सुरक्षा एजेंसियां घाटी में प्रेस को रोकने औैर इसका गला घोंटने के लिए पिछले ढाई दशक से इसी तरह के हथकंडे अपना रही है।

केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने 2010 ने डीएवीपी को एक पत्र जदारीर किया था। इसके बाद मनमाने ढंग से कश्मीर टाइम्स और छह अन्य प्रकाशनों के डीएवीपी विज्ञापन रोक दिए गए थे। कश्मीर टाइम्स एक मात्र अखबार है जिसे इसके बाद डीएवीपी का कोई विज्ञापन नहीं मिल रहा है। जबकि डीएवीपी के विज्ञापन अखबारों की आमदनी के प्रमुख  होते हैं। 

(अनुराधा भसीन जामवाल कश्मीर टाइम्स की एक्जीक्यूटिव एडीटर और पीस एक्टिविस्ट हैं। यह जानकारी कश्मीर प्रेस एसोसिएशन की ओर से जारी की गई है।)

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