हजारीबाग में एनटीपीसी परियोजना का विरोध कर रहे किसानों को गोलियों से भूना

झारखंड के बड़कागांव में एनटीपीसी की ओर से अवैध जमीन अधिग्रहण ने बीजेपी शासित झारखंड की पुलिस और मोदी सरकार की नापाक गठजोड़ की पोल खोल दी है। सरकार ने एनटीपीसी की परियोजना के लिए जमीन जबरदस्ती हथिया ली है। जबकि कानून के मुताबिक यह जमीन ग्राम सभा की अनुमति के बगैर नहीं ली जा सकती।

Police firing on Jharkhand Tribals

बड़कागांव में एनटीपीसी की परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों और उनके प्रतिनिधियों ने सबरंगइंडिया से कहा कि जान दे देंगे लेकिन अपनी खेती की जमीन नहीं देंगे। उनका कहना है कि ग्राम सभा, परियोजना के जमीन अधिग्रहण के बिल्कुल खिलाफ है।

इस जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने 1 अक्टूबर को सुबह चार बजे और साढ़े छह बजे के बीच फायरिंग की। फायरिंग में पांच आदिवासी किसानों की मौत हो गई। सरकार ने चार लाशों को पेश किया है लेकिन अभी भी तीन किसानों की लाशों का पता नहीं चल पा रहा है। पूरे इलाके को सशस्त्र पुलिस की सात बटालियनों, रैपिड एक्शन फोर्स और अदर्धसैनिक बलों ने घेर रखा है। धारा 144 लागू है और इलाके में क्या हो रहा है उसका बाहर से कुछ पता नहीं चल रहा है। झारखंड के हजारीबाग जिले के इस इलाके में इमरजेंसी की स्थिति है।

झारखंड नागरिक प्रयास और झारखंड अल्टरनेटिव डेवलपमेंट फोरम रांची के संयोजक पी पी वर्मा ने सबरंगइंडिया से एक बातचीत में इस क्रूर पुलिस फायरिंग की कड़ी निंदा की है और बड़कागांव के किसानों के संघर्ष में साथ देने का वादा किया है।  वर्मा कहते हैं कि झारखंडी इस दमनकारी शासन के खिलाफ संघर्ष में किसानों का साथ देने में पीछे नहीं हटेंगे। पुलिस फायरिंग की जितनी भी निंदा की जाए, कम है। जो सरकार अपने ही निहत्थे किसानों पर गोलियां चलवाएं उसे सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है।

सरकार को अब यह समझ लेना चाहिए कि किसानों से जोर-जबरदस्ती कर उनकी जमीन नहीं ली जा सकती। किसानों की उपजाऊ जमीन पर बिजली प्लांट के लिए कोई जगह नहीं है। इस तरह की जमीनों पर बिजली संयंत्र स्थापित करना टिकाऊ विकास की नजीर भी नहीं है।

जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वालों का कहना है कि इस लड़ाई में जीत आखिरकार ग्राम सभा की ही होगी और एनटीपीसी को बोरिया-बिस्तर समेट कर भागने को मजबूर होना पड़ेगा। एनटीपीसी ने बिजली उत्पादन के लिए जरूरी कोयला खदानों के लिए जिन जमीनों का अधिग्रहण किया है, किसान उसका विरोध कर रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी का इरादा झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले की कर्णपुरा घाटी में कोयला खनन शुरू करने का है। यह पूरा इलाका 47 वर्ग किलोमीटर में है।

परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण 2004 में हुआ था और लेकिन एशिया के सबसे बड़े कोल ब्लॉकों में से एक माने जाने वाले इस खदान में कोयला खनन का काम धीमा रहा  है। यहां के आम नागरिक और किसान कोयला खनन के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हैं। दरअसल कोयला उनकी उपजाऊ जमीन से निकाला जाना है। साल में यहां तीन फसलें होती हैं और खेती से कम से कम 300 करोड़ रुपये की कमाई होती। है।

एनटीपीसी ने वन विभाग से 2500 एकड़ जमीन लेने के बाद इस साल काम शुरू किया। परियोजना के लिए कुल 17000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना है। वन अधिकार कानून, 2006 के मुताबिक जब तक ग्राम सभा के 70 फीसदी सदस्यों की मंजूरी नहीं मिल जाती तब तक कोई परियोजना शुरू नहीं हो सकती। प्रशासन को अभी इसमें सफलता नहीं मिली है।
 
बैकग्राउंड
भारत सरकार ने 1 अक्टूबर 2004 में एनटीपीसी को हजारीबाग को पाकड़ी बरवाडीह कोल ब्लॉक आवंटित किया था। यहां की खदानों में 1600 मिलियन टन कोयला होने का अनुमान है। पूरा इलाका 12000 एकड़ में है। इसमें 40 गांव और 2500 एकड़ वन भूमि पड़ती है। आज से 12 साल पहले जिन किसानों की जमीन इस परियोजना के तहत आई थी, उन्होंने इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन शुरू किया था। जमीन बहुफसली और उपजाऊ थी और किसानों की जीविका की एक मात्र साधन। किसान किसी भी कीमत पर जमीन देने के लिए तैयार नहीं थे।

छह जनवरी, 2007 को सरकार ने ऐलान किया कि उस दिन सुबह 11 बजे इस मामले पर जन सुनवाई होगी। लेकिन घोषणा के उलट प्रशासन ने चोरी-छिपे इसके एक दिन पहले ही रात 11 बजे जन सुनवाई की रस्म-अदायगी कर डाली। जब किसानों को पता चला तो कुछ इस गैरकानूनी जनवाई में आ पहुंचे और उन्होंने प्रस्तावित जमीन अधिग्रहण का जोरदार विरोध किया। और जैसा कि होना था, किसानों के खिलाफ इस विरोध के आरोप में झूठे मुकदमे लाद दिए गए। इसके बाद प्रशासन ने यह दिखा दिया कि किसानों ने जमीन अधिग्रहण की सहमति  दे दी है। इसके बाद विरोध कर रहे किसानों को प्रताड़ित किया जाता रहा।

इसके बाद एक दिलचस्प घटना घटी। 23 जून, 2011 को चट्टी बरियातू कोल ब्लॉक का आवंटन सरकार ने रद्द कर दिया। लेकिन नवंबर, 2011 को हजारीबाग जिला प्रशासन ने इस कथित कोल ब्लॉक को एनटीपीसी को लौटा दिया। 

2013 के जमीन अधिग्रहण के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा के 70 फीसदी लोगों की मंजूरी जरूरी है। इस नियम का पालन नहीं हुआ। वन अधिकार कानून 2006 के तहत की शर्तों का भी पालन एनटीपीसी ने नहीं किया।

इस बीच, 2016 में अचानक एनटीपीसी ने दावा किया कि उसने 3000 एकड़ वन भूमि और किसानों की 435 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया है और अब वह वन भूमि के दायरे में आने वाली जमीन पर कोयला खनन शुरू करेगी। एनटीपीसी का दावा सामने आते ही कुछ किसानों और स्थानीय नेताओं ने खनन कार्य का विरोध शुरू कर दिया। प्रशासन ने तुरंत कुछ किसानों और नेताओं को जेल में डाल दिया और उन्हें दो महीने तक बंद रखा। इन लोगों के खिलाफ अब भी अदालत में फौजदारी के मुकदमे चल रहे हैं।

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