नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्रकारिता के लिए दिये जाने वाले रामनाथ गोयनका अवॉर्ड समारोह में उपस्थित रहे। यहां सब कुछ सामान्य चल रहा था। प्रधानमंत्री ने पत्रकारों को अवॉर्ड दिए और अपनी बात भी रखी। इस बीच इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर, राजकमल झा सबसे अंत में मंच पर आए और उन्होंने अपनी छोटी सी स्पीच में पीएम सहित बहुत सारे लोगों को हैरत में डाल दिया। इतना ही नहीं एक बार को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी असहज की स्थिति में नजर आए। दरअसल मंच पर आते ही उन्होंने कहा….
''आपकी 'स्पीच' के बाद हम 'स्पीचलेस' हैं। लेकिन मुझे आभार के साथ कुछ बातें कहनी हैं…
बहुत बहुत शुक्रिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी…
आपके शब्दों के लिए बहुत आभार। आपका यहां होना एक मज़बूत संदेश है। हम उम्मीद करते हैं कि अच्छी पत्रकारिता उस काम से तय की जाएगी जिसे आज शाम सम्मानित किया जा रहा है, जिसे रिपोर्टर्स ने किया है, जिसे एडिटर्स ने किया है।
अच्छी पत्रकारिता ‘सेल्फी पत्रकार’ नहीं तय करेंगे जो आजकल कुछ ज़्यादा ही दिखते हैं और जो अपने विचारों और चेहरे से खुद अभिभूत रहते हैं और कैमरे का मुंह हमेशा अपनी तरफ रखते हैं। उनके लिए सिर्फ एक ही चीज़ मायने रखती है, उनकी आवाज़ और उनका चेहरा। इसके अलावा सब कुछ पृष्ठभूमि में है, जैसे कोई बेमतलब का शोर। इस सेल्फी पत्रकारिता में अगर आपके पास तथ्य नहीं हैं तो कोई बात नहीं, फ्रेम में बस झंडा रखिये और उसके पीछे छुप जाइये।
शुक्रिया सर कि आपने विश्वसनीयता की बात कही। ये बहुत ज़रूरी बात है जो हम पत्रकार आपके भाषण से सीख सकते हैं। आपने पत्रकारों के बारे में कुछ अच्छी-अच्छी बातें कहीं जिससे हम थोड़े नर्वस भी हैं। आपको ये विकिपीडिया पर नहीं मिलेगा, लेकिन मैं इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर की हैसियत से कह सकता हूं कि रामनाथ गोयनका ने एक रिपोर्टर को नौकरी से निकाल दिया था, जब उनसे एक राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा था कि आपका रिपोर्टर बड़ा अच्छा काम कर रहा है।
इस साल मैं 50 का हो रहा हूं और मैं कह सकता हूं कि इस वक़्त जब हमारे पास ऐसे पत्रकार हैं जो रिट्वीट और लाइक के ज़माने में जवान हो रहे हैं, जिन्हें पता नहीं है कि सरकार की तरफ से की गई आलोचना हमारे लिए इज़्ज़त की बात है। हम जब भी किसी पत्रकार की तारीफ सुनें तो हमें फिल्मों में स्मोकिंग सीन्स की तर्ज पर एक पट्टी चला देनी चाहिए कि सरकार की तरफ आई आलोचना पत्रकारिता के लिए शानदार खबर है। मुझे लगता है कि ये पत्रकारिता के लिए बहुत बहुत जरूरी है।
इस साल हमारे पास इस अवॉर्ड के लिए 562 एप्लीकेशन आईं। ये बीते 11 सालों के इतिहास में सबसे ज़्यादा एप्लीकेशन हैं। ये उन लोगों को जवाब है जिन्हें लगता है कि अच्छी पत्रकारिता मर रही है और पत्रकारों को सरकार ने खरीद लिया है। अच्छी पत्रकारिता मर नहीं रही, ये बेहतर और बड़ी हो रही है। हां, बस इतना है कि बुरी पत्रकारिता ज़्यादा शोर मचा रही है जो 5 साल पहले नहीं मचाती थी।आखिर में आप सबको इस शाम यहां आने के लिए शुक्रिया कहता हूं। यहां सरकार की तरफ से लोग हैं, यहां विपक्ष की तरफ से लोग हैं। हम जानते हैं कि कौन कौन है। लेकिन जब वे पत्रकारिता की तारीफ करते हैं तो इससे फर्क नहीं पड़ता। आप ये पता नहीं लगा सकते कि कौन सरकार में है और कौन विपक्ष में। ये इसी तरह होना चाहिए। और इसी तरह उन्होंने अपना संबोधन समाप्त किया।
राजकमल झा की ये बातें छोटी नहीं थीं, बल्कि चरणवंदना और सेल्फी पत्रकारों के लिए एक बड़ा संदेश थीं। इस प्रोग्राम में हजारों की भीड़ में पीएम मोदी के सामने उन्होंने जता दिया कि पत्रकारिता अभी जिंदा है और जब तक पत्रकार सत्ता के विपक्ष में रहेगा पत्रकारिता जीवित रहेगी। पिछले साल एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी के साथ सेल्फी के लिए पत्रकारों में होड़ मची थी।
गौरतलब है कि इससे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार अक्षय मुकुल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्रधानमंत्री के हाथों लेने से इनकार कर दिया था। दो नवंबर को राजधानी दिल्ली में इन पुरस्कारों का वितरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों हुआ। लेकिन पत्रकार अक्षय मुकुल ने मोदी के हाथों पुरस्कार लेने में असमर्थता जताते हुए किसी अन्य व्यक्ति को अपनी तरफ से पुरस्कार ग्रहण करने के लिए भेजा। उन्होंने पुरस्कार समारोह में हिस्सा नहीं लिया। उनका कहना था कि 'मोदी और मैं एक साथ एक फ्रेम में मौजूद होने के विचार के साथ मैं जीवन नहीं बिता सकता।'