वामपंथ के पारंपरिक स्वरूप को चुनौती देने वाले राहुल सोनपिंपले ने कहा है कि देश के शोषित समाज के लिए रेडिकल राजनीति का वक्त आ गया है। सोनपिंपले ने शोषित समाज के इस उभार के बारे में कम्यूनिल्ज्म कांबेट और न्यूजक्लिक से बातचीत के दौरान यह राय जाहिर की। सोनपिंपले जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव में नवगठित बिरसा, अंबेडकर, फुले स्टूडेंट्स यूनियन यानी बप्सा ( बीएपीएसए) की ओर अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे।
तीस्ता सीतलवाड़ ने बप्सा के विचारों और नव उदारवाद के इस दौर में जमीन और सार्वजनिक संसाधन के नए सिरे से बंटवारे पर अंबेडकरवादी राजनीति पर उनके रुख के बारे में जानने के लिए उनसे बात की। यह इंटरव्यू कम्यूनिलिज्म कांबेट और न्यूजक्लिक की साझा पेशकश है।
राहुल सोनपिंपले ने कहा कि बप्सा ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद से लड़ने के खिलाफ लड़ाई में सामाजिक और आर्थिक तौर पर दबाए गए छात्र-छात्राओं को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध है। सोनपिंपले के मुताबिक भारत में ब्राह्मणवाद के वर्चस्व की वजह से सदियों से क्रूर दमन का सिलसिला चला आया है। ब्राह्मणवाद की वजह से जाति व्यवस्था को खुद में समाए हुए स्थानीय पूंजीवाद ने शक्ल ली है। पूंजीवाद के साथ इसके संपर्क ने एक ऐसी स्थिति पैदा कि जिससे हाशिये के समुदाय अंतहीन शोषण के शिकार बने रहे। देश में सार्वजनिक उद्योगों का जिस तेजी से निजीकरण हुआ उसने इन समुदायों के लिए उठाए जा रहे अफरमेटिव एक्शन के कदमों को प्रभावित किया। इसलिए ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद दोनों से पूरी ताकत से लड़ना जरूरी है। सोनपिंपले ने आरएसएस और बीजेपी की ओर से अंबेडकर को अपनाने की कोशिश के बारे में भी बात की। साथ ही अंबेडकर की विचारधारा को दक्षिणपंथी एजेंडे से खतरे पर भी रोशनी डाली।
बप्सा के पास उना संघर्ष के बाद उभरे दलित-मुस्लिम एकता की योजना को और आगे ले जाने की ठोस योजना है।