मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी रिहा कर दिए गए हैं। लेकिन क्राइम ब्रांच की निगाह में वह अब भी अपराधी हैं। मुफ्ती साहब का कहना है कि अब उनके सम्मानजनक पुनर्वास की बारी है। जिस सरकार ने झूठे आरोप में जेल में डाला था उसे ही अब उनके सम्मानजनक पुनर्वास की जिम्मेदारी उठानी होगी।
वह कहते हैं – दाग आपने ही लगाया, आप ही कि जिम्मेदारी की आप दाग धो दें।
मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम मंसूरी ने कम्यूनलिज्म कॉम्बेट की तीस्ता सीतलवाड़ से एक इंटरव्यू में आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेल डाले गए लोगों के रिहा होने के बाद सम्मानजनक पुनर्वास की नीति बनाने की जोरदार वकालत की है।
रिहा होने के बाद दिए गए इस इंटरव्यू में मुफ्ती सवाल करते हैं कि जेल में रहने के दौरान उनके वालिद गुजर गए। वह पूछते हैं – क्या अब मैं अपने वालिद से मिल पाऊंगा। मेरे बच्चों का बचपन कौन लौटाएगा। क्या सरकार मेरी इन बेशकीमती चीजों को लौटा सकेगी।
मुफ्ती कहते हैं कि 16 मई 2014 से पहले भी मैं सामाजिक कार्य करता था इस दिन रिहाई के बाद भी मैं अपने मिशन में लगा हूं। गरीबों और हाशिये पर रह रहे लोगों की सेवा कर रहा हूं। धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठ कर। इस साल 15 अगस्त को अहमदाबाद में मदरसों के बच्चों ने स्वतंत्रता दिवस मनाया। इन बच्चों ने उस ऐतिहासिक प्रदर्शनी में हिस्सा लिया, जिसमें भारत की आजादी की लड़ाई में मुस्लिमों की भागीदारी दिखाई गई थी।
मुफ्ती कहते हैं- अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के पुलिस इंस्पेक्टर यादव और जडेजा अब भी मेरे पीछे पड़े हैं कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से 16 मई 2014 को मेरी रिहाई भले हो गई हो लेकिन मैं अब भी अपराधी हूं।
मेरी रिहाई के दो साल बाद भी जीडीपी पीपी पांडे ने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया। जबकि खुद गंभीर अपराधों में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल है। उन्होंने कहा कि हम बकरीद की कुर्बानी के लिए पुलिस की निगरानी में कुर्बानी की इजाजत के लिए आवेदन देने के गए थे। लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया।
आज भी गुजरात में पूर्व डीजी वंजारा का दबदबा है। जब मेरी किताब ‘ग्यारह साल सलाखों के पीछे’ रिलीज होने वाली थी तो पुलिस में काम करने वाले उनके भतीजे ने कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं दी।