मैं यह आलेख रवीश कुमार और उनके अद्भुत प्राइम टाइम शो के लिए लिख रहा था, लेकिन रवीश से माफी मांगते हुए, ये वादा कर रहा हूं कि उनके ऊपर (अच्छा-बुरा-अनुभव-यादें सब) लिखा गया लेख भी जल्दी ही सामने होगा, फिलहाल आज तक-इंडिया टुडे द्वारा किए गए दिल्ली के तीन आतंकियों के स्टिंग ऑपरेशन पर लिखना ज़्यादा ज़रूरी हो चला है। जिन आतंकियों के बारे में यह स्टिंग ऑपरेशन और मेरा लेख बात करेगा, वे दिल्ली की अलग-अलग अदालतों में काम करते हैं। इनके नाम-शक्ल आप पहचानते ही हैं, इनकी आंखों और दिल में जो नफ़रत और वहशत है, उसके बारे में इस स्टिंग को देख कर, आप जान जाएंगे और इनके कपड़े वकीलों की तरह हैं। लेकिन यकीन मानिए, ये वकील नहीं हैं, जो संविधान सम्मत न्याय के लिए लड़ते हों, ये तीनों ठीक उन भाड़े के गुंडो के जैसे ही नकली वकील हैं, जिन को यह नकली वकील बना कर, अदालत के परिसर में हिंसा करने के लिए लाते हैं।
समाचार चैनल आज तक की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने जब तीन स्वघोषित और डिग्री प्राप्त वकीलों, विक्रम सिंह चौहान, ओम शर्मा और यशपाल सिंह से छिपे हुए कैमरे के साथ मुलाक़ात की, तो इनके अंदर का ज़हर, पागलपन और दुस्साहस सामने आ गया। इनकी भाषा और बात सुनते हुए, इनके लिए दिल में आतंकवादी के अलावा कोई शब्द नहीं आया। सवाल भी उभरे…लेकिन सवालों पर बात बाद में, पहले बात इस पर कि इन तीनों ने क्या कहा?
http://aajtak.intoday.in/video/exclusive-sting-operation-patiala-house-over-attack-on-jnusu-president-kanhaiya-in-court-1-855932.html
(For an English transcript of what the rogue lawyers said during the sting operation, click here: http://indiatoday.intoday.in/story/exclusive-kanhaiya-wet-his-pants-while-we-beat-him-up-in-police-custody-say-lawyers-behind-patiala-house-assault/1/602690.html)
विक्रम सिंह चौहान को तो लगभग हम सभी जानते ही हैं, ये वही वकील है, जिसने लगातार दो दिन तक पटियाला हाउस अदालत में पत्रकारों और कन्हैया समेत जेएनयू के अध्यापकों और वाम दलों के नेताओं के साथ मारपीट की। इसने व्हॉट्सएप और फेसबुक के ज़रिए अदालत में वकीलों की हिंसक भीड़ इकट्ठी की। लेकिन इसने जो किया, वह पूरी तरह तो आपको पता ही नहीं है, इसकी बातों को सुनिए और अंदाज़ा लगाइए कि आखिर यह वकील है या फिर अपराधी? विक्रम सिंह चौहान, आज तक के अंडर कवर पत्रकार से कहता है,
“हमने कन्हैया कुमार को उस दिन तीन घंटे पीटा. उसको बोला. बोल भारत माता की जय. और उसने बोला. न बोलता तो मैं जाने नहीं देता. इतना मारा कि उसने पैंट में पेशाब कर दी. इस दौरान पुलिस ने हमें सपोर्ट किया. कोई भी हिंदुस्तानी करता. कुछ सिपाही और सीआरपीफ के लोग खड़े थे. वे भी बोले. सर गुड सर.
पटियाला हाउस कोर्ट में ज्यादा वकील नहीं होते. 100-150 होते हैं. उनमें से आधे तो चालान में ही लगे रहते हैं. हमने तो बम का सोच रखा था. बुला रखे थे द्वारका और रोहिणी से लोग. इसके लिए फेसबुक पर लिखा लगातार.
अब हम कुछ और बड़ा करेंगे. प्लानिंग करके करेंगे. खुदीराम बोस 17 साल का था. भगत सिंह 23 के भी नहीं थे. हम भी करेंगे.”
सबसे पहले, ज़रा बीच के हिस्से पर ग़ौर कीजिए…ये कह रहा है कि इसने द्वारका और रोहिणी (दिल्ली के उपनगर) से बम फेंकने के लिए लड़के बुला रखे थे। आपको अंदाज़ा है कि यह वकील कितनी आपराधिक स्वीकारोक्ति कर रहा है? ज़रा सोचिए कि आखिर किस तरह की आतंकी तैयारी है, इन आत्मघोषित राष्ट्रभक्तों की? यह व्यक्ति अपने आपराधिक कृत्य के लिए भगत सिंह की दुहाई देता है, जबकि इसकी बात और हरक़तों ही नहीं, इसके राजनैतिक झुकाव और सोच से भी ज़ाहिर है कि इसने भगत सिंह का लिखा एक शब्द भी कभी नहीं पढ़ा होगा।
अब ज़रा शुरुआती हिस्सा पढ़िए, यह कन्हैया कुमार को पटियाला हाउस अदालत के अंदर कई घंटे और कई बार पीटने की बात कुबूल करता है। यह कोई सड़क पर हुई मारपीट नहीं है, बल्कि अदालत के अंदर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद की गई हिंसा का मामला है, जो बेहद संगीन धाराओं के अंतर्गत आता है। और तो और, यह साफ कर रहा है कि पुलिस का इनको पूरा सहयोग था। यानी कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी एस बस्सी के दावों की भी ये धज्जियां उड़ा रहा है।
लेकिन सबसे ख़तरनाक़ बात है, इसके बयान का तीसरा हिस्सा, जिसमें यह कुछ बड़ा और योजनाबद्ध करने की बात कर रहा है। बिना योजना के जो, सैकड़ों गुंडों की हिंसक भीड़ खड़ी कर दे, जो अदालत के परिसर में देश के कानून और संविधान की धज्जियां उड़ा दे, और तो और जो व्यक्ति बम मारने वालों को अदालत परिसर में बुला ले, वह जब कुछ योजनाबद्ध तरीके से करने की साज़िश कर रहा हो, तो यह कितना भयंकर आतंकवादी कृत्य होगा, ज़रा सोच कर देखिए…
इस बारे में कुछ और भी अहम बातें लिखने-समझने से पहले एक बार, हमको दूसरे हिंसा के कथित आरोपी, ओम शर्मा की बातें भी सुन लेनी चाहिए। इस वीडियो में ओम शर्मा, जो कि पिछले डेढ़ दशक से पटियाला हाउस अदालत में वकालत कर रहा है, जो बातें कह रहा है, उनके बाद, यह फर्क करना मुश्किल है कि आतंकवादी है कौन? जिनके खिलाफ ये आरोप लगा रहे हैं या फिर ये वकील ख़ुद? ओम शर्मा आज तक के संवाददाता से कहता है,
“उस दिन कोर्ट में 1000 पुलिस पर्सनल थे. सबने हमसे यही कहा. सर हम यूनिफॉर्म में न होते, तो हम भी मारते. पर रोजी का सवाल है. बोले, हमें कन्हैया को सुरक्षित ले जाना है. मगर हमने उसे खूब पीटा. तीन बार गिर गया. पैंट में ही टट्टी पेशाब कर दी.”
ओम शर्मा, वे ही हैं, जिनकी हंस-हंस कर मारपीट करते हुए तस्वीर सब ने अख़बारों में देखी थी। इनकी पहली स्वीकारोक्ति तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को इन्होंने काला कोट पहन कर ही तार-तार किया। हालांकि इस मामले में इनसे सुप्रीम कोर्ट ख़ुद ही निपट लेगा, लेकिन अहम खुलासा दूसरा है। ओम शर्मा किसी पेशेवर आतंकवादी या हिंसक माफिया की तरह, अदालत परिसर में बमबाज़ी करने और कन्हैया की हत्या करने की योजना को सामने रखता है,
“अगली बार आएंगे तो छोड़ूंगा नहीं. पेट्रोल बम मारूंगा. चाहे जो भी केस फाइल हो जाएं मेरे खिलाफ. मर्डर की धारा भी लग जाए तो भी छोड़ूंगा नहीं.”
इसकी शक्ल को ध्यान से देखिए, क्योंकि हो सकता है कि इतने के बाद भी राष्ट्रवादी सरकार के आपातकाल में इस पर कोई कार्रवाई न हो और किसी दिन अदालत परिसर में यह आपसे टकरा जाए। हो सकता है कि आपके घर का कोई बच्चा इसके प्रभाव में आ कर ऐसा ही पागल हिंदू तालिबान बन जाए। अपने परिवार को ऐसे लोगों के असर से बचाइए।
लेकिन तीसरा वकील यशपाल सिंह, लगातार हवा में उड़ रही, एक बात की तो पुष्टि सीधे ही कर देता है। वह यह है कि अदालत के परिसर में वकीलों के भेष में संघ और भाजपा के समर्थक गुंडे मौजूद थे।इन्होंने एक तरह से स्पष्ट शब्दों में स्वीकार लिया कि असल वकीलों की भीड़ में इन्होंने अपने साथ लाए गुंडों को भी वकीलों की वेशभूषा में शामिल करवा दिया था। ये कहते हैं,
“ओम शर्मा जमानत पर आ गए हैं. मगर मैं बॉन्ड नहीं भरूंगा. फिर से जेल जाऊंगा. मैंने पहले भी कहा है. जाकर कन्हैया को उसकी सेल में घुसकर मारूंगा.”
ये वही महान देशभक्त हैं, जिन्होंने एक पत्रकार से ज़िद पकड़ ली थी, कि भारत माता की जय बोलने पर ही ये सवाल का जवाब देंगे। लेकिन असल खुलासा तो यशपाल सिंह तब करते हैं, जब ये पुष्टि कर देते हैं कि अदालत परिसर में ये बाहर से दो दर्जन से अधिक गुंडों को मारपीट करने के लिए, वकीलों की तरह काला कोट, सफेद शर्ट और काली पैंट पहना कर ले गए थे। पढ़िए…
“अगली पेशी में आप भी काला कोर्ट और सफेद शर्ट पहन आएं. मेरे 20 लोग वहां रहेंगे. मिलकर मारेंगे सब. हमने उस दिन भी पत्रकारों को पीटा. जेएनयू के प्रोफेसरों को मारा. देश में रहना होगा तो देश की बात करनी होगी. हम इतना ही जानते हैं. यही मुद्दा है.”
यानी कि दिल्ली पुलिस की एक और बात झूठी निकली है कि वकीलों की भीड़ में बाहर के लोग नहीं शामिल थे। वकीलों जैसे कपड़े पहना कर, यह आपराधिक प्रवृत्ति के वकील, बाहरी आपराधिक तत्वों को अदालत में हिंसा के लिए ला रहे हैं। क्या यह फौजी या पुलिस की वर्दी में आर्मी बेस या पुलिस के अड्डों पर हमला करने जैसा नहीं है?
अब आते हैं, इस अहम स्टिंग ऑपरेशन से उठ रहे सवालों पर;
क्या दिल्ली पुलिस अब तक न केवल झूठ बोल रही थी, बल्कि हिंसक आपराधिक उन्मादियों की मदद कर रही थी?
दिल्ली पुलिस के इस आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने की स्थिति में आखिर जेएनयू छात्रों, कथित आरोपियों, अध्यापकों, पत्रकारों के साथ-साथ आम लोगों की अदालत परिसर से दिल्ली की सड़क तक पर सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?
क्या सुप्रीम कोर्ट को अब इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए, न केवल दिल्ली के पुलिस कमिश्नर पर कार्रवाई करते हुए, पुलिस को भी आदेश नहीं देने चाहिए?
दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है, ऐसे में उसके इस रवैये के लिए कौन ज़िम्मेदार है? आखिर ये अपराधी खुलेआम क्यों घूम रहे हैं?
क्या कन्हैया को जिस तरह मारने-पीटने की बातें, यह वकील कर रहे हैं, उसकी जान को ख़तरा देखते हुए, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होनी चाहिए?
इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद आज तक समेत अन्य मीडिया के पत्रकारों पर भी ख़तरा बढ़ जाता है, ऐसे में सरकारों को उनकी सुरक्षा के लिए क्या कड़े कदम नहीं उठाने चाहिए?
क्या लगातार सरकार पर वैचारिक विरोधियों के दमन के आरोप सही नहीं हैं?
क्या ऐसे में यह भी शक़ नहीं गहराता कि कुछ टीवी चैनल्स की साज़िश में दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों की मिली भगत से छात्रों को बेवजह फंसाया गया हो?
क्या पेट्रोल बम, बम हमले और जेल में जा कर हत्या की योजना बना रहे, इन वकीलों के भेष में घूम रहे आतंकवादियों को तत्काल गिरफ्तार कर के, कड़ी धाराओं में मुकदमा नहीं चलना चाहिए?
क्या दिल्ली बार एसोसिएशन को इन वकीलों के आजीवन प्रैक्टिस करने पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए?और अंत में एक अंतिम सवाल के साथ मैं आपको छोड़ जाना चाहता हूं, वह यह कि आप ख़ुद ही सारे तथ्य देखिए। मानवता और स्वतंत्रता के साथ क़ानून के तक़ाज़े और राजधर्म के तराजू पर इस पूरे परिदृश्य को तौलिए और बताइए कि क्या देश धार्मिक कट्टरपंथ के रास्ते पर नहीं बढ़ रहा है? क्या राष्ट्रवाद के चोले में उग्रवाद को पनाह दे कर, एक तानाशाही शासन प्रभावी करने की कोशिशें नहीं हो रही हैं? क्या कहीं हम फासीवाद के ऐसे रास्ते पर तो नहीं बढ़ रहे हैं, जिसका नतीजा हिंदू तालिबान खड़ा करने के रूप में चरितार्थ हो? क्या इसके समाधान के लिए हम अपने देश की बुनियाद धर्मनिरपेक्षता, मानवता और शांति की ओर नहीं लौटना होगा? आप किसी भी धर्म के मानने वाले हों….तय कीजिए कि आप अपनी अगली पीढ़ी को कैसा भारत देना चाहते हैं…क्या ऐसा, जहां कभी भी, कोई भी सड़क पर सिर्फ देशभक्ति के कट्टर नारे लगा कर, अपनी आपराधिक कुंठा का किसी को भी शिकार बना ले? इन से कोई सुरक्षित नहीं रहेगा, इनकी गालियां, इनकी मानसिकता की परिचायक हैं…पूरी दुनिया वैचारिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत आज़ादी के रास्ते पर है…तरक्की कर रही है…हमको तय करना होगा, हम तरक्कीपसंद दुनिया के साथ हैं, क्या हम वैसा मुल्क बनना चाहते हैं, जहां हमारे बच्चे और हम जा कर, तरक्की की ख्वाहिश में बस जाते हैं, या फिर वैसा मुल्क, जैसा आईएसआईएस और तालिबान बनाते हैं? समय बहुत कम है, आपको अभी ही तय करना है…कि आपका भविष्य कैसा होगा…
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(लेखक, पूर्व टीवी पत्रकार हैं। टेलीविजन, रेडियो और प्रिंट समाचार मीडिया में एक दशक से अधिक का अनुभव, फिलहाल स्वतंत्र लेखन करते हैं।)