Born Babasaheb Pandurang Adhav in 1930 in Pune, Baba,(October 18, 2014) as he is known in every side-alley of Pune’s working class areas, is (was) a child of the freedom struggle. After a maternal uncle took him to a Seva Dal meeting while he was still in school, Baba became a committed activist, involved in many of the country’s major political upheavals.
In 1952, he joined a satyagraha (protest) against high prices and food rationing during a drought, and went to jail — for three weeks — for the first time. “I have been (to jail) 52 or 53 times after that,” he says with a toothy chuckle to Setalvad. In May 2008, he served 14 days in judicial custody for protesting against, yet again, rising prices. More on www.sabrang.com
Excerpts of the Conversation of Baba Adhav with Teesta Setalvad, October 18, 2014
The Interview may be viewed here:
Baba Adhav:
Deep Inequality, especially Economic Inequality has increased, as has awareness. Domestic workers, Rag pickers with whom I work just listen to their slogans. “Kachra Hamara Haq Ka:, Na Kisi ke Baap Ka!” However, the Political transformation of these Social Issues/Struggles against Inequality is lacking!
Baba Adhav recalls Jyotiba Phule:
Jyotiba Phule had pointed out in the 1800s how All Religious Books authored by Men and questioned what has religion done for women? He had said that in today’s India, in 2014, it is the mixing of Religion (Dharam) and Politics (Rajniti) is the problem
Baba Adhav On Ek Gaon Ek Panavtha (Kua) Movement of the 1970s:
In 1972 Maharashtra had a Devastating Drought: That was also the year of the launch of the Centenary Year of the Foundation of the Satyashodhak Samaj (set up by Jyotiba Phule) on September 24, 1873. ((Satyashodhak Samaj (Society of Truth Seekers) was founded, to challenge Brahmanical dominance and caste-based exploitation by promoting education, equality, and social justice for marginalized groups (Shudras, Dalits, women). It advocated for direct access to God, simple rituals without Brahmin priests, and empowering the oppressed to achieve self-respect and rights, becoming a significant force in India’s social reform history.
So what I, Baba Adhav did in the three years between 1972- 1974 (before I was arrested in the Emergency)—I recall that even Vijay Tendulkar had come with us to farflung villages of Maharashtra— was to travel far and wide and that is how I saw the deep segregation and caste exclusions at work. That is how and why this movement, One Village, One Water Source/Well (Ek Gaon Ek Panavtha) Kua was launched.
Baba Adhav: Dalit Ostracisation Today (2014): Dalits may not be ostracized because of Water but Dalits are Killed for Inter-Caste Marriages! The Bharatiya Samaj (Indian Society) is based on Caste,
Setalvad: Has not Indian Politics (Bharatiya Politics) adjusted with the Caste System and not confronted it?
Baba Adhav: Yes because there is no political or social programme to root out Caste.
Speaking to Setalvad soon after the Regime Take over in 2014, he had also presciently stated that the crucial question is whether the Indian State adheres to the Constitution or to a Caste Drives/Based Hindu Faith.
Baba Adhav on Flood Relief for Kashmiris in 2014:
Punekars had responded positively to the programme! How the working class response has been generous, rickshawallahs, hamaals, businessmen all have responded generously? Last week alone we collected Rs 1 lakh for the flood affected in Kashmir. Donations are with receipts for those who wanted. This programme is not for Relief alone but to ensure a deeper engagement with Kashmir (including Jammu and Ladhakh). The CPI-M has announced that the Kashmir Flood is a National Calamity but what use is this if there is no Programme to match this?
Setalvad: Pune City has been historically one of deep contradictions. It is home to the opporessive Peshwa Raj and also the seat of a revolutionary social reform politics symbolized by Jyotiba Phule, Savitribai Phule of course also reflected in what Shivaji Maharaj and Sahu Maharasj stood for! How do both these factors reflect today?
Baba Adhav: Historically the city on the western side of it was dominated by Brahmins and the eastern side Dalits and the Backward/Oppressed. Urbanisation in Maharashtra happening with fast speed. In 25 municipal corporations this is reflected: because we have abandoned de-centralisation in favour of centralization. In education too, large, five to six “deemed Universities”, private universities. Today, this city character is changing. However the unorganized sector is playing a rule-the rickshawallah is semi-lettered yet it is an influential section (The victory of Arvind Kejriwal is reflective of this). Kolkatta is similar. In Pune how is this reflected? This unorganized sector—the rickshawallah, the hamaals, the domestic workers, the women who form self-help groups—in this entire section, there is a deep awareness; which will now not be taken for granted. Though in 2014 general elections they voted right to give the establishment a jolt, the local by-elections saw a turn away from the right. The problem is organising this section—opposition established political parties, left is just not doing this. But Shiv Sena is doing this—dhol, violence. Young people today don’t want to struggle nonviolently, go to jail. I have been to jail 53 times for a nonviolent struggle!
Setalvad: In 1848, the first school for girls was set up in Bhidewada, Pune by Jyotiba-Savitribai Phule in which Fatima Shaikh and Usman Shaikh played a role. Today a Bank runs at the location, few Indian textbooks deal with this aspect of our history, that challenges caste and inequality. Will Baba Adhav give us a text book from his vast expereriences and knowledge?
Baba Adhav: Constitutional Values should form the base of Education.
And then Adhav ends by singing for us a beautiful song from Phule.
The Transcript of the Interview conducted in Hindi can be read below:
https://sabrang.com/cc/ccinterviews/BabaAdhavTranscript.htm
Baba Adhav in conversation with Teesta Setalvad (Transcript Hindi)
तीस्ता सेतलवाड: बाबा आधव जी आपका हार्दिक स्वागत है और हम से बात करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आज हम बहुत ही अहम सवालों पर बात करने की कोशिश करेंगे, कि सामाजिक असमानता, सामाजिक प्रश्न और आज की राजनीति, जो इलेक्शन की राजनीति हैं इसमें इतने मतभेद क्यों हैं?
बाबा आधव: जो आप कह रही हैं, इसकी वजह यह है कि असमानता बढ़ी है तो जागृति भी हुई है यह भी मानना पड़ेगा। समानता की मांग करनेवाले जितने शोषित लोग हैं, जिस जनता में मैं काम करता हूं। समझें कि काम करनेवाली घरेलू औरतें हैं, डोमेस्टिक वर्कर्स, रॅग पिकर्स इनमें ज्यादा से ज्यादा औरतें दलित वर्गों की हैं, तो मैं देख रहा हूँ कि उनकी मांगें बढ़ रही हैं। हिमायत बढ़ रही हैं, वह खुद कहती हैं…आप स्लोगन देखिए न कैसे हैं। कचरा हमारे हक़ का, नहीं किसी के बाप का…रस्ते पे जो कचरा हैं वो मेरे हक़ का है…नहीं किसी का। लेकिन जब म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के ध्यान में अभी ये आया कि इसमें इसकी ज़िन्दगी है तो उससे वह रोकने लगे। कचरा हमारा हैं, तो इस स्लोगन पर जो झगड़ा हुआ तो इसलिए मैंने कहा की मांग करने वालों की जागृति तो बढ़ रही हैं, तब एक नतीजा होगा। लेकिन आम तौर पर ये दिखाया जाता हैं की असमानता बढ़ी हैं, जो कि आर्थिक रूप से बहुत बड़ी है।
तीस्ता सेतलवाड: मगर सर ये जो असमानता है, वो हमारी राजनीति में एक्सप्रेस नहीं होती। कहीं न कहीं राजनीति वही २०-३०-४०% की राजनीति हो जाती हैं। जो इलेक्शन की राजनीति है और इसलिए इस तबके के लोग कभी चुन के नहीं आते, या आगे बढ़ के नहीं आते! आप इतने सालो, ५०-६० सालों से आप आंदोलन चला रहे हैं, तो इसमें पोलिटिकल ट्रांसफॉर्मेशन कब होगा?
बाबा आधव: देखिये पहले तो मैं पोलिटिकल पार्टी में था, अब मैं समाजवादी हूं। इसलिए मैं जिस सोशल आइडॉलोजी को मानता था, उसे सोशलिस्ट आइडॉलोजी ने खुले दिमाग से नहीं स्वीकार किया था। वो राजनीति के ढंग से ही काम करते थे तो मुझे ऐसा लगता है कि कल्चरल लेवल पर कभी तो ये देश ऐसा है कि जिसमें विषमता पर ही बिल्डिंग खड़ी कर दी गयी है। यानी कि भारत में असमानता का ही आधार है। यानी कि सब लोग जन्म से समान नहीं होते हैं।
तीस्ता सेतलवाड: ये तो जातिवाद की वजह वजह से है न?
बाबा आधव: जातिवाद की नहीं धर्म की बात है! हिन्दू धर्म की बात सुनिए, इस्लाम की बात सुनिए…किसी भी धर्म की सुनिए! महात्मा फुले जी ने कहा था कि मजहब की सभी किताबे मर्दों ने लिखी हैं, एक भी किताब औरत ने नहीं लिखी नहीं! और मर्दो ने औरतों का क्या हाल किया हैं वो तो बताने की जरुरत ही नहीं हैं। हमारे भारत में धर्म और राजनीति एक दूसरे में जितने जुड़े हुए हैं, ये भी एक बात है। तो हम जब सेक्युलर और धर्मनिरपेक्ष समाज की बात करते हैं तो बीजेपी वाले कहते हैं ये छद्म सेकुलरिज़म है। वो खुद ऐसा नहीं कहते हैं कि हम धर्मनिरपेक्षता वाली बात कर रहे हैं। तो बात ऐसी है भारत में, और समाज कभी आगे जाता हैं, कभी पीछे हट जाता हैं। मुझे ऐसा लग रहा हैं की ७७ में जो हुआ…७४ में इमरजेंसी थी भारत में और हम लोग जेल में भी थे। उसके बाद में इंदिरा गांधी की हार हुई और हम लोगो ने कहा कि ये डेमोक्रेसी की जीत हुई है।
तीस्ता सेतलवाड: गांव और कुंआ का जो आपका स्लोगन था सत्तर-अस्सी के दशक में, आज अगर उस नारे के बारे में आप सोचेंगे, तो आपको लगता हैं वो रिलेवेंट हैं? आज भी उस तरह की जातिप्रथा है या कुछ बदला है?
बाबा आधव: बिलकुल, मैं यही कह रहा हूँ कि इसलिए हमने जो किया…मैं चर्चा-गोष्ठी करने में रुचि नहीं लेता हूँ। सही में…मैं थोड़ा तंग हो जाता हूँ! अगर आप बोलेंगे कि सेमिनार में आ जाओ, तो मुझे थोड़ा ऐसा लगता हैं कि क्या लाभ हैं सेमिनार में?
तीस्ता सेतलवाड: काम करो, ऑर्गनाइज़ करो
बाबा आधव: काम करो, काम करो, चलिए अब और देखिये कि 1972 में महाराष्ट्र में बहुत भीषण अकाल था. उसमे मैंने देखा कि कि महात्मा ज्योतिराव फुले ने जिस सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी, उसकी वर्षगांठ थी। हमने सोचा कि एनीवर्सरी में कोई चर्चा-गोष्ठी करने के बजाय हम गांव में क्यों न चले जाएं और देखें गांव में पानी की क्या व्यवस्था हैं? तो इसलिए दो-तीन साल ७२ से लेकर ७४ तक मुझे जेल में डाल दिया। फिर बाद में हमने बाहर शुरू कर दिया। तेंदुलकर जी की बात आप जो कह रही थी, वो हमारे साथ में आये थे देखने के लिए, और हिंसा के पैटर्न्स की कोई खोज कर रहे थे। तो उनकी सोच थी कि उसमे से कोई नतीजा निकलता हैं क्या? तो अस्पृश्यता का जो मामला हैं आज पानी का नहीं है लेकिन आज वो कास्ट मैरिजस में इंटर कास्ट मैरिज का बन गया है। तो दलित लोगो की हत्या कैसे होती है? अभी भी खरड़ा में जो हुआ…जवान लड़का दलित है और ये मराठा लोगो की लड़की थी…
तीस्ता सेतलवाड: तो मतलब आज पानी के मामले में न हो मगर फिर भी जातिव्यवहार में वैसी ही बात हैं?
बाबा आधव: बात होती हैं, बात चलती हैं, तो यह हैं वजह, लेकिन उसमे मैंने देखा की ये टोटल मामला कास्ट सिस्टम का ही हैं. और भारतीय समाज की कास्ट पर ही…
तीस्ता सेतलवाड: और वो आज भारतीय जो लोकशाही हैं वो कास्ट से पूरा एडजस्ट कर चुकी हैं, अभी तक वो मुकाबला नहीं कर सकती है?
बाबा आधव: नहीं, प्रोग्राम ही नहीं हैं. असमानता के खिलाफ, जातिव्यवस्था के खिलाफ, जेंडर के भेदभाव के खिलाफ, हमारी पढाई में ही कुछ नहीं हैं। हम लोग, राजनीतिक लोग ये चाहते हैं कि संघर्ष नहीं होना चाहिए। ऐसे संभावित बोलते हैं मराठी में… अरे हां ठीक हैं वगैरह।
तीस्ता सेतलवाड: संघर्ष नहीं होना चाहिए
बाबा आधव: ऐसी बात होती है कि नहीं होना चाहिए…
तीस्ता सेतलवाड: तो पढाई में ये असमानता की बात हम बच्चों को नहीं समझाते, जिससे समाज में ये समझ नहीं बनती, संघर्ष नहीं बनते और राजनीति में इसका फेर बदल नहीं होता…तो फिर जवाब कहां से मिलेगा ?
बाबा आधव: जवाब ऐसे मिलते हैं कि हम मांग कर रहे हैं न। आज देखिये, आज राजनीति में एक अहम सवाल आया हैं, राजनीति दिल्ली में बदल गयी हैं. लेकिन एक सवाल उभर कर आया है कि आप कॉन्स्टिटूशन मानते हैं या नहीं?
तीस्ता सेतलवाड: आपको लगता हैं की ये सबसे अहम सवाल हैं?
बाबा आधव: जी बिलकुल।
तीस्ता सेतलवाड: क्यों ?
बाबा आधव: बात ऐसी हैं की जो लोग आज सत्ता में आए, वो लोग हिन्दू धर्म की बात कर रहे थे। और आज लोग बोलते हैं की भाई संविधान में क्या लिखा हैं? बाबा साहेब ने अगर कहा हैं कि स्वतंत्रता, समता, लोकशाही, फ्रैटर्निटी, बंधुता, धर्मनिरपेक्षता वही बात कर रहा हैं। गाइडिंग प्रिंसिपल में साइंटिफिक टेम्पोराइज की बातें कही हैं। बढ़ाने की बात की है।
तीस्ता सेतलवाड: वो हमारे समाज में नहीं बढ़ी।
बाबा आधव: कहां? मूल्यों के प्रति पढाई कुछ नहीं हैं, वो उधर ही रहा है। हम को मूल्यों को शामिल करना चाहिए।
तीस्ता सेतलवाड: स्कूल से लेकर।
बाबा आधव: कहां हुआ हैं? उल्टा रास्ता हुआ हैं। धर्मनिरपेक्षता की चेष्टा-मसखरी करते थे।
तीस्ता सेतलवाड: अभी राष्ट्रीय एकता समिति का जो आपका काम चल रहा हैं वो किस मुद्दे पर चल रहा है सबसे ज्यादा?
बाबा आधव: अभी नया कार्यक्रम जो चला है जो हमारे कश्मीरी लोगों को पीड़ा हुई हैं, उन लोगो की सहायता के लिए।
तीस्ता सेतलवाड: तो पुणे मैं शहरी लोगो का क्या रेस्पॉन्स हैं?
बाबा आधव: अच्छा, बिलकुल अच्छा, वर्किंग क्लास का रेस्पॉन्स इतना अच्छा हैं कि क्या कहूं आपको। हम झोली लेके जब जाते हैं वहा और पुकारते हैं, कश्मीर के बाढ़ ग्रस्तो के लिए मदद दीजिये, मदद दी जाये। दे दिया चलो आइये हमाल, आ जाईये रिक्शावाला, आ जाईये व्यापारियों, आजाईये…हम गली में ऐसे पुकारते हैं। तो लोग झोली में आकर डालते हैं। पहले तो हम डिब्बे लेके जाते थे। लेकिन डिब्बे हमने तोड़ दिए क्यू उसमे वो ना-ना बोलते हैं…यानी अट्ठनी डालते हैं। लेकिन झोली देखो तो दस रुपये की नोट डालते हैं, तो थोड़ी ये बात होती हैं। तो देखो भाई हफ्ते में, एक पूरे गए हफ्ते में लाख रुपये से ज्यादा हम लोग इकठ्ठा करते हैं।
तीस्ता सेतलवाड: वर्किगं क्लास, पूरा कामगार वर्क्स
बाबा आधव: कामगार हो या व्यापारी, रास्ते में से जब भी जाते-जाते ये बात होती रही है। वैसे तो डोनेशन उसकी रिसीप्ट भी रखते हैं, हिसाब भी रखते हैं हम लोग। लोगो को हिसाब भी दे देते हैं। कोई बोला मुझे रिसीप्ट चाहिए तो रिसीप्ट भी देते हैं। लेकिन इसमें एक बात है कि पैसा जमा करना बात नहीं है…कश्मीर के लिए भारत को जरा ज्यादा प्रयास करना चाहिए। क्योंकि कश्मीर और भारत में अलगाव की बात चलती हैं हमेशा। दो बात हैं उसमे। और उस में भी देखो जम्मू के लिए अलग से बात होती है, लद्दाख के लिए अलग से बात होती हैं, कश्मीर के ऊपर अलग से होती है। ठीक है ऐसा है लेकिन अगर कश्मीर, भारत में आता है तो हमारा ये काम है कि हम अभी इसी वक़्त पूरा भारत उनके लिए खड़ा रहे। पी.एम. ने तो ऐलान कर दिया के ये नेशनल कॅलामिटी हैं। लेकिन नेशनल कॅलामिटी होते हुए प्रोग्राम देना चाहिए था पब्लिक को। एक भी पार्टी ऐसा नहीं करती है।
तीस्ता सेतलवाड: बाबा आधव जी पुणे नगरी जो हैं वो ऐतिहासिक स्तर पे एक कंट्राडिक्शन की शहरी रही हैं। जहाँ पे एक तरफ से पेशवाओं की पूरी पेशवाई थी यहाँ पे वो एक तरफ से जुल्म की राजनीति थी। उसके साथ साथ सुधारवादी राजनीति का भी एक पूरा यहाँ से एक जत्था निकलता है। ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, शाहू जी महाराज, शिवाजी महाराज…तो पुणे नगरी में आज का जो कल्चर हैं…एक परिस्थिति हैं वो किस तरह से इन सब प्रभावों को उभर कर लाता हैं ?
बाबा आधव: अभी पहले तो था के पूना के दो भाग थे, पूर्वी भाग और पश्चिमी भाग…यानी पश्चिम में ब्राह्मणों की अधिक आबादी थी और पूर्व भाग में दलितों की, पिछड़ों की…आज भी थोड़ा बोला जाता हैं लेकिन इतना नहीं… महाराष्ट्र में नागरिकीकरण, अरबईनाइजेशन बहुत जोरो से चालू हैं। यहाँ महाराष्ट्र में अभी २५ कॉर्पोरेशन्स महानगरपालिका बन चुकी हैं। ये बहुत गंभीर समस्या पैदा हुई है। यानी वो डिसेंट्रलाइजेशन हमने छोड़ दिया हैं और केंद्रीकरण से झोपड़ीवाले का सवाल और बिगड़ जाता है…उसमे भी फिर बाद में करप्शन वगैरह सब बातें आ जाती हैं । दूसरी बात ये है कि एजुकेशन में ऐसा हुआ है कि पूना में इतने बड़े संस्थान बना दिए गए हैं…यानी कि ५-६ डीम्ड यूनिवर्सिटीज हैं, अभिमत विद्यापीठ जैसी, जिसे कहा जाये भारत विद्यापीठ, एस.एन.डी.टी. पहले से है, कर्वे यूनिवर्सिटी हैं वगैरह-वगैरह। डी.वाय. पाटिल की भी एक यूनिवर्सिटी बन चुकी है। तो इस शहर का जो एकीकरण हुआ है… मैं रिक्शा यूनियन चलाता हूँ…रिक्शावाला कम्युनिकेशन में इतना बड़ा भारी आदमी है…
तीस्ता सेतलवाड: घूमता रहता हैं, एक जगह से दूसरी जगह।
बाबा आधव: घूमता रहता हैं और..
तीस्ता सेतलवाड: सुनता रहता हैं
बाबा आधव: ही इज अ सेमी एज्युकेटेड मैन नॉट सेमीइलिटेरेट यानी वो अनपढ़ भी नहीं होता है। यानी मिसाल के तौर पर बोल देता हूँ कि दिल्ली में जो केजरीवाल की बात चली थी। केजरीवाल को रिक्शावालों ने चुन के भेजा था।
तीस्ता सेतलवाड: सही बात हैं।
बाबा आधव: सही बात हैं। और मैं दिल्ली में, मैंने देखा कि प्रचार तो सब बीजेपी का हैं। मैंने वो रिक्शावाले को पूछा, बैठा था…रिक्शावालों के साथ मेरा थोड़ा ताल्लुख होता हैं क्यूंकि मैं लीडर हूँ, तो वो बिहारी था बोला…”क्या समझत हैं बाबू हमें… ” ”मैं समझता हूँ बोलो।” ”केजरीवाल आएगा” बोला, ”आप आप आएगा।” कलकत्ता में यही मैंने देखा। तो आज कैसा हुआ हैं पूना में, पूना के हाल आप पूछ रही हैं तो रिक्शावालों को या रॅग पिकर्स को, या हमाल हो, या घरेलू औरते हो, ये बचत गुट की महिलाये हो ये पूरी तबके में एक ऐसा माहोल बना हुआ हैं। तो अभी एक चीज़ तो मैं बोल दूंगा कि कोई पोलिटिकल आदमी हमको फसा नहीं सकता।
तीस्ता सेतलवाड: इतनी आसानी से।
बाबा आधव: इतनी आसानी से।
तीस्ता सेतलवाड: मगर २०१४ में तो हम सब फस चुके हैं, मई के इलेक्शंस में।
बाबा आधव: नहीं थोड़ा होता हैं न, लोगो को धक्का देना चाहते थे, जैसे १४ में हुआ, १४ में दूसरे १०० डेज के बाद क्या हुआ आपने बाय-इलेक्शंस में देखा। इसमें एक बुनियादी बात मैं कह देता हूं कि, भारत की जनता बहुत होशियार हैं। आपको शायद आश्चर्य लगेगा जब आपातकाल में जेल में थे तो ऐसा था की हमारा क्या होगा बाहर? पूरे जनसंघ वाले हम लोगों को कहते थे इंदिरा गांधी जिन्दा हैं, तब तक हम नहीं छूटेंगे। मैं कहता था की नहीं अगर इलेक्शन हो जाये तो हम जीत जायेंगे। लोगो ने हमको जिताया आज जो हुआ है ठीक है। ये एक साधारण अवस्था हैं। लेकिन इसमें भी बदलाव आ सकता हैं। इसके लिए हमे थोड़ी हिम्मत चाहिए। मैं जिनके साथ काम कर रहा हूं…उन लोगो में है। भले उनके पास पोलिटिकल फ्रंट नहीं हो, लेकिन जो लोग पोलिटिकल फ्रंट बनाने का प्रयास कर रहे हैं वो आर्गेनाईजेशन के बारे में जानकारी रखते ही नहीं हैं। वही बात हैं। अभी जवान लोगो के साथ की बात हैं, आपने नहीं पूछा इसलिए कह रहा हूं। क्या होता हैं जो १८ से २०-२२ तक की जो उमर वाली, उनके साथ हमारी पोलिटिकल पार्टी का कोई यानी जैसे लेफ्ट हो.
तीस्ता सेतलवाड: रिश्ता ही नहीं हैं।
बाबा आधव: याने कोई संवाद होता है तो शिवसेना का होता है, क्यों? तो उनको वो ऐज ऐसा रहता है कि थोड़ी हिंसा के प्रति उसके, और ढोल बजाने की बात हैं। अभी इतने ढोल देते हैं, क्या कहूं आपको ढोल तो समझती हो। लेकिन हम बोलते हैं लड़ो। लेकिन लड़ाई में भी एक बात होती है, मैं कहता हूँ चल जेल में जायेंगे। जवान लोग जेल में आने के लिए तैयार नहीं। आई हैड बीन इन जेल फॉर ५३ टाइम्स अॅट द ऐज ऑफ़ ८० अल्सो आई हैड बीन इन द जेल। इसका मुझे गर्व नहीं है। लेकिन मैं चाहता हूँ के नॉन-वायलेंट मीन्स से आंदोलन की इज़्ज़त भी बढ़ जाती हैं। आप मुझसे जो बात करे, आपने मुझे बुलाया इसलिए कि आप मेरी इज़्ज़त कर रहे हो। मेरी इज़्ज़त नहीं हैं।
तीस्ता सेतलवाड: काम की इज़्ज़त हैं
बाबा आधव: जो काम की इज़्ज़त है, वो हो जाती हैं। तो मुझे ऐसा लग रहा है की मैं तो निराश नहीं हुआ। आई ऍम नॉट डिसहर्टनेड।
तीस्ता सेतलवाड: पुणे में, हिंदुस्तान में भारत की सबसे पहले बच्चियों का स्कूल १८४८ में शुरू किया गया, ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने, वहां पे उस्मान शेख और फातिमा शेख का साथ था, वहीं भीलेवाङा में आज बैंक चल रहा है। ये जो एक ऐतिहासिक एक ठिकाना पूना में जो बना है, उसका आज हमारी पाठ्यपुस्तकों में ज़िक्र नहीं है…तो हम किस तरह का इतिहास हमारे बच्चो को पढ़ा रहे हैं?
बाबा आधव: बात ये हैं कि आज कल की पढाई में मैं कह रहा हूँ की सेकुलरिज्म की किताब आप पढ़ाती हो। सर्व धर्म समभाव, और उसका नतीजा एक है अगर तुकाराम को लिया तो ज्ञानेश्वर को लेना पड़ता है…क्योंकि वो ब्राह्मण है…ये कुणबी हैं। फिर संत नामदेव को लिया जाता हैं की वो टेलर हैं और ये दूसरा रोहिदास हैं वो चर्मकार…ये हमारा हाल हुआ हैं। आप जितने सवाल पूछेंगी उतनी वजह हैं, लेकिन अनुभव हम पाते हैं, कि कही तो एक जगह भी आना पड़ेगा और कहना पड़ेगा, नहीं कॉन्स्टिटूशन में जो लिखा हैं, जो मेमोरेंडम दिया हैं, उसको खुद को अर्पित किया हमने।
तीस्ता सेतलवाड: सो नीड्स फॉर कोंस्टीटूशनल वैल्यूज एंड एजुकेशन। तो क्या बाबा आधव जी एक टेक्स्ट बुक हमे लिख के देंगे?
बाबा आधव: नहीं, मैं तो इनकार भी नहीं कर सकता हूँ।
तीस्ता सेतलवाड: नहीं आप जरूर काम शुरू कीजिये।
बाबा आधव: बात इसकी हैं की थोड़ी फुरसत वाली बात होती हैं, और मेरा दिमाग ऐसे हैं.…
तीस्ता सेतलवाड: नहीं आपको फुरसत निकालना हैं, इतने अनुभव हैं आपके।
बाबा आधव: मैं क्या कह रहा हूं कि एक आदत स्वीकारो…कुछ भी समझो, लेकिन कर सकता हूँ, नहीं ऐसा नहीं…मैं नहीं मेरे साथी हैं और, मैं अकेला काम नहीं करता हूं, वो जो मेरे साथी हैं वो करते है। इसलिए तो मैंने कहा कि जो प्रार्थना आपको मैंने कही थी…
तीस्ता सेतलवाड: थोड़ा सा गा दीजिये हम टेप कर लेंगे।
बाबा आधव: वही बात हैं, देखो फुले जी ने इतनी अच्छी प्रार्थना कही हैं।
सत्य सर्वांचे आधी घर,
सर्व धर्मांचे माहेर,
जगामाजी सुख असा रे,
खास सत्याची ती पोरे,
सत्य सुखाला आधार,
बाकी सर्व अंधकार,
आहे सत्याचा बाजोर,
काढ़ी भंडाचा तो नीर,
सत्य आहे ज्याचे मूळ,
करी धुरतांशी बाराल,
बल सत्याचे पाहुनी,
बहुरूपी झले मनी,
खरे सुख नटा नोहे,
सत्य ईर्ष्या वर्जो पाहे,
ज्योति पार्थी सर्व लोका,
व्यर्थ दंभा पेटू नका,
सत्य सर्वांचे आधी घर,
सर्व धर्मांचे माहेर।
सर्व धर्मांचे माहेर।
तीस्ता सेतलवाड: बहुत बहुत शुक्रिया बाबा आधव जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

