आज से 97 वर्ष पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत में खूंरेजी का जो खेल खेला था, वह इतिहास में जालियावालां बाग नरसंहार के नाम से कुख्यात है। 13 अप्रैल, 1919 को इस सरकार के क्रूर पुलिस अफसर ने अमृतसर के जालियांवाला बाग में योजना बना कर 2000 बेकसूर हिंदू, सिख और मुस्लिमों को गोलियों से भून डाला। आधकारिक आंकड़ों के मुताबिक उस दिन ब्रिटिश सरकार के अफसर जनरल डायर के नेतृत्व में चली गोलियों से 1,526 लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे। वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक था।
जालियांवाला बाग
1919 का पंजाब का जालियांवाला बाग नरसंहार 20वीं सदी के सबसे जघन्य राजनीतिक अपराधों में से एक था। भारतीयों में पहले विश्वयुद्ध को लेकर अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा था। युद्ध के लिए जबरदस्ती और क्रूर तरीके से लोगों की भर्ती और युद्ध कोष के लिए वसूली से भारतीय गुस्से से उबल रहे थे। गांधीजी की ओर से अंग्रेजों के बनाए काले कानूनों के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल की अपील को भारी जनसमर्थन मिल रहा था। पंजाब में 30 मार्च और फिर 6 अप्रैल को इनके समर्थन में प्रदर्शन हो चुके थे।
हिंदू-मुस्लिम एकता की चट्टानी ताकत ने लोगों का हौसला काफी बढ़ा दिया था और ब्रटिश सरकार के खिलाफ आक्रोश चरम पर था। पहले और फिर 9 अप्रैल को रामनवमी के उत्सवों यह एकता दिख चुकी थी। हिंदू -मुसलिम दोनों आक्रोशित थे । यह उनकी हड़ताल में दिख रहा था। 9 अप्रैल को रामनवमी में जिस तरह से दोनों समुदायों के बीच एकता दिखी और दोनों को मिला-जुला गुस्सा नजर आया तो लेफ्टिनेंट ओ, डायर घबरा गया।
पंजाब में गांधी जी का प्रवेश रोक दिया गया। दो लोकप्रिय नेता किचलू और सत्यपाल गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज सरकार की इस भड़काने वाली कार्रवाई की वजह से लाहौर, कसूर, गुजरांवाला और अमृतसर में भारी जन प्रदर्शन हुए।
अमृतसर में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई। इससे लोग भड़क गए और उन्होंने हिंसा की। अगले दिन शहर ब्रिगेडियर जनरल डायर के सुपुर्द कर दिया गया। शहर का शासन संभालते ही डायर ने अंधाधुंध गिरफ्तारियां शुरू करवा दीं और सभाओं और लोगों के जमा होने पर प्रतिबंध लगा दिए।
13 अप्रैल को बैसाखी के दिन सभी तरफ से बंद जालियांवाला बाग में दोपहर को एक सभा बुलाई गई। अमृतसर में बैसाखी के त्योहार पर मेलों में आए हजारों गांव वाले इस सभा में आ गए। उन्होंने पता नहीं था कि जनरल डायर ने सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिए हैं।
अचानक डायर अपनी टुकड़ियों को लेकर जालियांवाला बाग पहुंच गया और बगैर किसी चेतावनी के पूरी तरह शांतिपूर्ण और सुरक्षा विहीन भीड़ पर गोलियां चलवानी शुरू कर दीं। ये गोलियां चलती रहीं जब तक कि ये खत्म नहीं हो गईं। इन गोलियों से ज्यादा नहीं तो कम से कम एक हजार लोगों की मौत हो गई। यह एक जघन्य नरसंहार था। बाद में डायर ने स्वीकार किया था कि वह तो पूरे पंजाब को ही खत्म करना चाहता था। इस नरसंहार से लोग सन्न रह गए और यह घटना बाद में आजादी की लड़ाई में एक नया मोड़ साबित हुई।
इस घटना से रवींद्रनाथ टैगोर बेहद क्षुब्ध हुए और उन्होंने विरोध में वायसराय को कड़ी चिट्ठी लिखी। ३१ मई, १९१९ को लि खी चिट्ठी में उन्होंने इस घटना के विरोध में नाइटहुड की उपाधि लौटा दी। उन्होंने लिखा – लोगों के खिलाफ जिस बर्बर ताकत का इस्तेमाल किया गया, मेरी नजर में किसी सभ्य सरकार में इसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। पंजाब के भाइयों के अनकहे अपमान और दर्द , जबरदस्ती चुप कराने की कोशिश के बावजूद बाहर छलक आया है और अब यह पूरी दुनिया में पहुंच चुका है। मैं अपनी देश की तरफ से सिर्फ इतना कह सकता हूं कि इस दुख को आवाज देने के लिए सभी परिणामों को अपने ऊपर ले लूं। अपने लाखों देशवासियों के विरोध को आवाज दूं। ये हमारे वैसे देशवासी हैं, जो इस आतंक से सन्न हैं। अब ऐसा समय आ गया है कि ब्रिटिश शासन की ओर से दिया गया हमारा सम्मान हमारे लिए शर्म बन गया है। लिहाजा मैं सरकार की ओर से दिया गया नाइटहुड लौटाता हूं।
हंटर कमेटी
ब्रिटिश सरकार ने हंटर कमेटी की नियुक्ति की। लेकिन आधी सुनवाई के दौरान ही भारतीय राष्ट्रवादियों ने इसका बायकाट शुरू कर दिया। इनमें कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेता आगे थे। दरअसल सरकार ने पंजाब के नेताओं को जमानत पर छोड़ने से इनकार कर दिया था। इसलिए हंटर कमेटी के प्रति नाराजगी और बढ़ गई थी। हंटर कमेटी के आठ सदस्यों में से तीन भारतीय थे। इस संबंध में भारतीय सदस्यों का आचरण सिद्धांत की आजादी और साहस के नजरिये से अध्ययन का विषय हो सकता है।
जनरल ओ डायर से जवाब तलब
ब्रिगेडियर रेजनिल्ड डायर जालियांवाला बाग में जमा लोगों पर गोली चलाने वाली टुकड़ियों का नेतृत्व कर रहा था।
यहां उससे पूछताछ का एक अंश पेश है-
चिमनलाल सीतलवाड़ – आप अपने साथ हथियारों से से लैस दो गाड़ियां ले गए थे?
डायरः हां
चिमनलाल सीतलवाड़ – उन गाड़ियों में मशीनगनें थीं।
डायर – हां
चिमनलाल सीतलवाड़ – जब आप इन गाड़ियों को अपने साथ ले जा रहे थे तब क्या आप यह सोच रहे थे कि आपको भीड़ पर मशीनगनों का इस्तेमाल करना है।
डायर– हां, मैं सोच रहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो इनका इस्तेमाल करूंगा। इस तरह की जरूरत पड़ने या मुझ पर हमला होने या ऐसी अन्य परस्थति में मैं इन मशीनगनों के इस्तेमाल के बारे में सोच रहा था।
चिमनलाल सीतलवाड़ – जब आप जालियावालां बाग इन हथियारबंद गाड़ियों के साथ पहुंचे तो आपने देखा कि आप इन्हें अंदर नहीं ले जा सकते क्योंकि रास्ता काफी संकरा था।
डायर – जी हां
चिमनलाल सीतलवाड़ – फर्ज कीजिये कि रास्ता इतना चौड़ा होता कि आप इन हथियारबंद गाड़ियों को अंदर चले जाते । तो क्या आप लोगों पर मशीनगनों से हमला करते।
डायर – हां, मैं शायद ऐसा करता।
चिमनलाल सीतलवाड़– तब उस स्थिति में हताहतों की संख्या काफी ज्यादा होती ।
डायर – जी हां
चिमनलाल सीतलवाड़ – तो यह सि र्फ संयोग है कि आपने इन मशीनगनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया कि आप उन गाड़ियों को बाग के अंदर नहीं ले जा सक थे, जिनमें ये लदी थीं।
डायर – मैं आपको जवाब दे चुका हूं। अगर मैं इन्हें अंदर ले जाता तो संभव है इन्हीं से गोलियां चलवाता।
चिमनलाल सीतलवाड़ – तो आप सीधे मशीनगन से ही गोली चलवाने लगते।
डायर – जी हां, सीधे मशीनगन से।
चिमनलाल सीतलवाड़ – आपकी बातों से ऐसा लगता है कि आप यह कार्रवाई आतंक फैलाने के लिए करना चाहते थे।
डायर – आप जो चाहे कह सकते हैं। मैं उन्हें सजा देना चाहता था। मैं इसे सैन्य नजररिये से देख रहा था और मैं यह कार्रवाई एक बड़ा असर पैदा करने के लिए करना चाहता था।
चिमनाल सीतलवाड़ – तो आप सिर्फ अमृतसर ही नहीं पूरे पंजाब में आतंक फैलाना चाहते थे।
डायर – हां पूरे पंजाब में। मैं उनका मनोबल गिराना चाहता था। मैं बागियों का मनोबल तोड़ना चाहता था।
चिमनलाल सीतलवाड़ – इसका मतलब यह कि इस तरह के भय फैलाने वाले तरीके अपना कर आप ब्रिटिश राज के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं। आप ऐसा काम कर रहे हैं जिससे लोगों में ब्रिटिश राज के प्रति गहरा असंतोष फैले।
डायर – मुझे ऐसा करना पसंद नहीं। लेकिन मुझे लगा कि जिंदगियां बचाने का यही एक तरीका बचा था। इंसाफ को ध्यान में रखने वाले कोई भी आदमी यही कहेगा कि मैंने ठीक किया था। हालांकि यह भयानक काम था। फिर भी मैंने दया दिखाई और इसके लिए उन्हें मेरा आभारी होना चाहिए था।
इस जघन्य हत्याकांड पर आंखें खोल देने वाली यह पूछताछ हंटर कमेटी की सुनवाई के दौरान हुई थी। यह सुनवाई १९ नवंबर १९१९ को हुई। ये सवाल डायर से कड़ी और श्रमसाध्य पूछताछ के हिस्से थे। यह पूछताछ भरूच, गुजरात के वकील सर चमिनलाल सीतलवाड़ ने की थी। बांबे में रहने वाले सीतलवाड़ ने ही डायर से यह खास पूछताछ की थी।
अभी भी दिखते हैं गोलियों के निशान
सीतलवाड़ ने यह पूछताछ लार्ड हंटर और इस कमीशन के एक ब्रिटिश सदस्य के बाद की थी। डायर लार्ड हंटर के सामने यह स्वीकार कर चुका था हालांकि बहुत सारे लोगों को जन सभाओं पर प्रतिबंध के बारे में पता नहीं था। फिर भी उसने लोगों को चेतावनी दिए बगैर गोलियां चलवाईं। वह यहीं नहीं रुका। उसने कमेटी के सामने कहा कि वह लोगों को बगैर फायरिंग को तितर-बितर कर सकता था। लेकिन यह उसकी ड्यूटी बनती थी कि वह लोगों के तितर- बितर होने तक गोलियां चलाते रहे।
जालियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलीसीटर सीटर जनरल लॉर्ड विलियम हंटर की अगुआई में आठ सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी में उस वक्त बांबे यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर थे। उनके अलावा दो अन्य भारतीय भी इस कमेटी के सदस्य थे। सर चिमनलाल के अलावा यूपी के लेफ्टिनेंट गवर्नर के लेजिसलेटिव काउंसिल के सदस्य पंडित जगत नारायण और ग्वालियर स्टेट के मेंबर ऑफ अपील्स के सदस्य सुल्तान अहमद भी इस कमेटी के भारतीय सदस्य थे।
लार्ड हंटर के अलावा अन्य सदस्य थे जस्टिस रेनकिन, डब्ल्यूएफ राइस (भारत सरकार, गृह विभाग के अतिरिक्त सचिव) पेशावर डिवीजन के कमांडर मेजर जनरल सर जॉर्ज बेरो, यूपी के लेफ्टिनेंट गवर्नर के लेजिसलेटिव काउंसिल के स्मिथ । इन लोगों ने बारी-बारे से डायर से सवाल पूछे थे।
डायर ने दो ब्रिटिश सदस्यों के सामने अपनी करतूत कबूली। इसके बाद चिमनलाल ने उससे बाग के अंदर हथियारबंद गाड़ियों को ले जाने के बारे में सवाल किए। सवाल उन हालातों के बारे में थे, जिनमें वह इन गाड़ियों को बाहर ही छोड़ आने का लिए बाध्य हुआ। लेकिन डायर का अपनी करतूत कबूलने के बाद भी अशिष्टता से बाज नहीं आया। जब चिमनलाल सीतलवाड़ ने उनसे पूछा कि 400 लोगों को मारे जाने और कइयों को घायल होने के बाद भी उसने क्या घायलों के उपचार के लिए कोई कदम उठाए। इस पर डायर ने कहा – नहीं। यह काम मेरा नहीं था। शहर के अस्पताल खुले और उऩमें डॉक्टर मौजूद थे।
हंटर कमेटी के तीनों भारतीय सदस्य ने जबरदस्त स्वतंत्र विचारों का प्रदर्शन किया। इस मामले में ब्रिटिश सदस्य से तीखे मतभेदों के बावजूद वे अपनी राय पर कायम रहे। कमेटी के निष्कर्षों को दर्ज करने को लेकर उनके बीच मतभेद उभरे थे। आखिरकार हटंर कमेटी को दो रिपोर्ट पेश करनी पड़ी। एक पांच ब्रिटिश सदस्यों की बहुसंख्यक रिपोर्ट और एक तीन भारतीय सदस्यों वाली अल्पसंख्यक यानी माइनॉरिटी रिपोर्ट।
दोनों रिपोर्ट में डायर को दोषी ठहराया गया था। जालियांवाला नरसंहार को लेकर आलोचना के स्तर मे ही सिर्फ अंतर था।
ब्रिटिश सदस्यों वाली रिपोर्ट में डायर की दो मामलों पर आलोचना की गई थी। एक- उसने बगैर चेतावनी की गोली चलाई। और दूसरा यह कि भीड़ हटना शुरू होने के बावजूद वह गोलियां चलवाता रहा। हालांकि पूरे पंजाब में लोगों का मनोबल गिराने के उसके इरादे को अपनी ड्यूटी को न समझने की उसकी गलती समझी गई। ब्रिटिश सदस्यों के ब्रिटिश सदस्यों ने भी डायर की करतूत पर उस आधिकारिक रुख को खारिज कर दिया था कि पंजाब में इस कदम से बड़े पैमाने पर विद्रोह को रोक दिया गया। नहीं तो 1857 के विद्रोह की स्थिति पैदा हो सकती थी।
माइनॉरिटी रिपोर्ट को सर चिमनलाल सीतलवाड़ ने लिखा था। तीनों भारतीय सदस्यों की तरफ से लिखी इस रिपोर्ट में इस घटना की कड़ी आलोचना थी। डायर की तो इस बात के लिए खासी खिंचाई की गई थी कि अगर वह बाग के अंदर मशीनगन ले जाता तो इसी से गोलियां चलवाता। सदस्यों ने डायर के इस बयान पर काफी दुख जताया था कि भीड़ के तितर-बितर होना शुरू होने के बावजूद भी डायर की गोलियां नहीं रुकीं। उसने तब तक गोलियां चलवाईं जब तक ये खत्म नहीं हो गईं। डायर से पूछताछ के बाद भारतीय सदस्य ब्रिटिश सदस्यों की इस बात से बिल्कुल असहमत थे कि बगैर गोलियां चलवाए भीड़ हटने वाली नहीं थी। हंटर कमेटी की रिपोर्ट में भारतीय सदस्यों ने डायर की इस हरकत के बेहद अमानवीय और गैर ब्रिटिश करार दिया। साथ ही यह भी कहा कि इसने भारत में ब्रिटिश शासन को काफी नुकसान पहुंचाया है।
इन दोनों रिपोर्टों को पढ़ने के बाद तत्कालीन वायसराय चेम्सफोर्ड ने कहा कि इस मामले में डायर को ऐसे कदम उठाने की जरूरत ही नहीं थी। कोई भी तार्किक व्यक्ति भीड़ हटाने के लिए गोली चलाने की जरूरत को जायज नहीं ठहरा सकता था। इस मामले में डायर से जिस मानवीयता की अपेक्षा थी उसने नहीं दिखाई। इसके बाद डायर के पास त्यागपत्र देकर इंग्लैंड लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था। डायर बदनाम होकर इंग्लैंड लौटा।
हालांकि इस करतूत की लीपापोती और माफी के पक्ष में तर्क देने वालों का दावा था कि इस फायरिंग से डायर ने भारत में ब्रिटिश राज को बचा लिया। इस तर्क की वजह से डायर न सिर्फ अपेक्षित दंड से बच गया बल्कि इंग्लैंड लौटने पर उसका नायक की तरह स्वागत हुआ। यहां तक डायर के खिलाफ जांच भी उसकी सुरक्षा में कानून बन जाने के बाद ही शुरू हो सकी।
सीतलवाड़ को जालियांवाला बाग कांड की जांच से ठीक पहले ब्रिटिश राज की ओर से नाइट की उपाधि दी गई थी। इसके बाद वह बांबे यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर बनाए गए। सीतलवाड़ ने 1946 में प्रकाशित अपने संस्मरण रीकलेक्शन एंड रिफ्लेक्शन्स में इस बात का खुलासा किया कि जालियांवाला बाग में गोलीकांड की जांच के संबंध में हंटर कमेटी के भारतीय और ब्रिटिश सदस्यों के बीच गंभीर मतभेद उभर आए थे।
( इस लेख का ज्यादातर हिस्सा सर चिमनलाल सीतलवाड़ की आत्मकथा- रीकलेक्शन एंड रिफलेक्शन के अंशों पर आधारित है। सर चिमनलाल सीतलवाड़ तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा थे। )