1. चुनाव की मुनादी
जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव महज जीत या हार तय करने तक सीमित नहीं होता | यह एक ग्लोबल प्लेटफार्म प्रदान करता है | अपनी स्थापना और उद्देश्यों के अनुरूप जेएनयू समाज के ऐसे वर्ग की रहनुमाई करता रहा है जो अपनी आवाज उठाने में सक्षम नहीं है | यहाँ का चुनाव कैंपस से लेकर देश-विदेश के ऐसी आवाजों के मुद्दे पर लड़ा जाता है | जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव छात्रों के लोकसभा चुनाव जैसा है जो यह तय करता है कि देश की छात्र राजनीति कैसी होगी | इस साल यानि कि 2016 के चुनाव की घोषणा हो चुकी है | 9 फ़रवरी की घटना के बाद जिस तरह का माहौल बना उससे पूरे देश में जेएनयू की राष्ट्रविरोधी छवि बनी | ऐसी चर्चा चल रही है कि लेफ्ट यूनिटी के तहत वामपंथी पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ेगी | इस घटना ने लेफ्ट पार्टियों को एक साथ आने के लिए मजबूर कर दिया | ऐसी स्थिति में जाहिर तौर पर मुकाबला लेफ्ट और एबीवीपी के बीच होने जा रहा है | लेफ्ट पार्टियों में आईसा का मजबूत जनाधर रहा है | लेकिन अनमोल रतन की घटना से आईसा प्रेशर में है | बापसा के रूप में तीसरा कोण भी देखने को मिलेगा | स्वराज अभियान की छात्र इकाई ने भी पिछले चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था | उन पर भी निगाहें रहेंगी | एनएसयूआई का जेएनयू में कोई बड़ा आधार नहीं रहा है | फिर भी अंतिम रूप से पैनल की घोषणा के बाद ही कुछ कहना ठीक रहेगा | कुछ दिन पहले ओबीसी फोरम के कार्यक्रम में जिस तरह से लेफ्ट के कुछ धड़े ने व्यवधान पैदा किया उससे ओबीसी समुदाय में आक्रोश है | वैसे इसका चुनाव पर असर पड़ने की कम संभावना है|
नामांकन दाखिल करने का अंतिम समय कल शाम 5 बजे तक था | अंतिम समय तक नामांकन होता रहा | नामांकन पत्र में गलती होने की संभावना रहती है इसलिए एक ही उम्मीदार कई पोस्ट पर नामांकन दाखिल करता है | साथ ही साथ सभी पार्टियाँ एक ही पोस्ट पर एक से अधिक उम्मीदवारों को खड़ा करती है ताकि नामांकन रद्द होने पर विकल्प बचा रहे | कल अंतिम रूप से वैध उम्मीदवारों की लिस्ट आ जाएगी तब सभी पार्टियाँ अपना फाइनल पैनल घोषित करेगी | जैसा कि सबको पता है जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव खुद छात्रों द्वारा ही करवाया जाता है | जिसके बहुत सारे सदस्य होते हैं और एक मुख्य चुनाव अधिकारी होता है |
#shutdownjnu के जवाब में जिस तरह से पूरा जेएनयू #standwithjnu के पक्ष में खड़ा हुआ था उससे तो साफ़ लग गया था कि पूरा जेएनयू एकजुट है | इस आन्दोलन की तुलना लोगों ने 80 के दशक के छात्र आन्दोलन से की | इस बार का चुनाव जेएनयू की विचारधारा, जेएनयू कि परंपरा का चुनाव है | चुनाव परिणाम एक नए बहस को जन्म देने वाला है | हालाँकि 9 फरवरी की घटना को कई महीने हो गए हैं और बहुत सारे नए छात्रों का एडमिशन हुआ इसलिए यह कहने में संशय है कि फायदा किसको मिलने जा रहा है |
9 फ़रवरी की घटना का आरोप बहुत से छात्र नेताओं पर है | जिसमें श्वेता राज सबसे चर्चित चेहरा है | आरोप के कारण जेएनयू प्रशासन ने इन सबके चुनाव लड़ने और वोट देने पर रोक लगा दी है |
2. प्रत्याशियों की दावेदारी
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के सेंट्रल पैनल में कुल 79 छात्रों ने नामांकन भरा | लेकिन अंतिम रूप से अध्यक्ष पद पर 5, उपाध्यक्ष पर 4 , सचिव पर 4 और संयुक्त सचिव पद पर 5 प्रत्याशी मैदान में हैं | प्रेसिडेंट के पद पर स्टूडेंट फ्रंट फॉर स्वराज की तरफ से
दिलीप कुमार, एबीवीपी से जान्हवी, आइसा से मोहित कुमार पांडेय, बापसा से राहुल सोनापिम्पले और एनएसयूआई से सन्नी धीमान उम्मीदवार हैं | इस साल के जेएनयू चुनाव में खास बात यह है कि कन्हैया की पार्टी ने अपना कोई भी प्रत्याशी नहीं दिया | जबकि उसकी पार्टी में डी. राजा की बेटी अपराजिता राजा उम्मीदवार के दौर में थी |
मैं बाइक से खबर की तलाश में कैंपस में घूम रहा था, अचानक कन्हैया सतलज हॉस्टल के सामने मिल गया| उसके साथ बहुत सारे लोग खड़े थे | 9 फरवरी की घटना के बाद कन्हैया एक चर्चित चेहरा है | मैंने बाइक रोक दी | कन्हैया बात करने में मशगूल था| मुझे देखा तो हाथ बढाया…और जैनेन्द्र भाई क्या हाल है ? मैंने कहा ठीक है | बात तुरंत चुनाव पर आई | मैंने कहा कि मुझे पता चला है कि आपकी पार्टी AISF चुनाव नहीं लड़ रही,क्यों? एक सधे हुए राजनेता कि तरह उसने कहना शुरू किया कि हम लेफ्ट यूनिटी के साथ हैं,हम नहीं चाहते हैं कि हमारी फूट का फायदा ABVP को मिले…| मैंने कहा लेकिन यह काम तो लेफ्ट यूनिटी के साथ रहकर भी किया जा सकता था ?वहबोलाहाँ…हमने कोशिश की थी लेकिन यह संभव नहीं हो पाया | इसलिए अब हम लेफ्ट यूनिटी कोबाहर से समर्थन दे रहे हैं,प्राथमिक तौर पर जो जानकारी चाहिए थी वो मिल गयी इसलिए मैंने अपनी बाइक अगली खबर की तलाश में आगे बढ़ा दी |
कुछ देर बाद पहले से निर्धारित कार्यक्रम के तहत शाम 5 बजे छात्रसंघ के ऑफिस (टेफ्लाज/विद्रोही भवन) में प्रेस कांफ्रेस होना था | चुनाव आयोग की पूरी टीम के सामने मीडिया हाउस के लोग बैठे थे | बीच में सभी पार्टी के उम्मीदवार और उनकी पार्टी का एक सदस्य भी बैठे हुए थे| अगली पंक्ति में आइसा से मोहित कुमार पांडेय और शेहला राशिदएबीवीपी से सौरभ शर्मा और जान्हवी बैठे थे | दोनों टीमों की बॉडी लेंग्वेज में एक दूसरे के लिए प्रतिस्पर्धा साफ़ झलक रही थी | ठीक पीछे बापसा के राहुल पुनाराम और बंशीधर दीप तथा एनएसयूआई के सन्नी धीमान और मसूद बैठे हुए थे | स्टूडेंट फ्रंट फॉर स्वराज के दिलीप थोड़ी देर से आये और ठीक हमारे आगे वाली कतार में बैठ गए | मुख्य चुनाव अधिकारी इशिता मन्ना और पिछले साल के मुख्य चुनाव अधिकारी दिलीप मौर्या के संचालन में प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुआ | मुख्य चुनाव अधिकारी ने सबका स्वागत करते हुए सबसे पहले SFS के प्रेसीडेंशियल उम्मीदवार दिलीप को अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया | वे अपनी पार्टी से सेंटर पैनल के एकमात्र उम्मीदवार हैं | उन्होंने एक साथ आइसा और एबीवीपी पर हमला बोला | हेल्थ सेंटर को और एक्टिव बनाने, सिक्योरिटी गार्ड को अधिकार दिलाने, OBC प्रोफेसरों की नियुक्ति में NFS का सवाल, लिंगदोह को हटाने जैसे मुद्दे पर उसने बात की | उसने कहा कि माइनोरिटी छात्र सिर्फ उर्दू, अरबी या पर्सियन ही क्यों पढ़ें ? मैं उनके लिए डिप्रावेशन पॉइंट लाऊंगा ताकि वे भी इतिहास, राजनीतिविज्ञान जैसे दूसरे विषय भी पढ़ सकें | दिलीप छोटे संगठन और छोटी टीम के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन तब भी उनके चेहरे परभरपूर आत्मविश्वास था|
एबीवीपी की तरफ से वर्तमान जेएनयूएसयू संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा ने बेखौफ आजादी पर सवाल उठाया। चाइना पर मार्क्सवादियों की चुप्पी की कारण पूछा और बलूचिस्तान को समर्थन दिया। उसने प्रण लिया कि जेएनयू से शहरी नक्सली वामपंथियों को बाहर करना है। वामपंथ मुक्त कैंपस के नारे के साथ उसने अपनी बात खत्म की। एबीवीपी की अध्यक्षीय उम्मीदवार जान्हवी ने कम्युनिस्ट पार्टियों के सलेक्टिव अप्रोच की निंदा करते हुए कहा कि निर्भया कांड में तो आपलोग रोड पर उतर गये जबकि अनमोल पर चुप रहे। उसने कैंपस प्लेसमेंट सेल गठन करने की बात कही। लेफ्ट यूनिटी को उसने अवसरवादी करार दिया।
आइसा और एसएफआई के संयुक्त अध्यक्षीय उम्मीदवार मोहित कुमार पाण्डेय ने रोहित बेमुला के मुद्दे पर एबीवीपी और भाजपा दोनों को कठघरे में ला खड़ा किया। कहा कि ये लोग छात्रवृत्ति बढाने का झांसा देते हैं, जबकि इनकी सरकार छात्रवृत्तीमांगने पर लाठी बरसाती है। हम पर देशद्रोह का आरोप लगता है क्योंकि हम जेंडर जस्टिस के लिए लड़ते हैं। लड़कियों को रात के समय भी बाहर निकलने की आजादी है। 283 रूपये की फीस में हम पढ़ते हैं। सौरभ शर्मा की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा कि इस बात से इनको दिक्कत है। 27% ओबीसी रिजर्वेशन और #standwithjnu के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए मोहित ने अनमोल रतन पर कहा कि आइसा ने तुरंत कारवाई की। गठबंधन की तरफ से बोलते हुए वर्तमान जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष शेहला राशिद ने सौरभ शर्मा की तर्ज पर कहा कि हमलोग RSS और ABVP को इस कैंपस से मार भगाएंगे।
बापसा के अध्यक्षीय उम्मीदवार राहुल ने बंगाल में मुसलमानों की खराब स्थिति के लिए लेफ्ट को जिम्मेदार ठहराया। कास्ट और जेंडर पर भेदभाव पर सवाल पूछा। लेफ्ट को संबोधित करते हुए कहा कि आपके भेदभाव के कारण आज दलित, आदिवासी और स्त्री आपसे दूर जा रहे हैं | राहुल ने मोहन भागवत को बड़बोलेपन और कविता कृष्णनको चुप्पी पर धिक्कारा| मीडियाकी तरफ मुखातिब होकर उसने कहा कि मीडिया जातिवादी है| वह दलित और आदिवासी की उपेक्षा करती है | मुझे पता है आपलोग हमारी फोटोऔर खबर नहीं छापेंगे |शिक्षण संस्थानों में भेदभाव पर उसने कहा कि कुछ लोग कौन सी नदी का पानी पी कर आते हैं कि उन्हीं के पास मैरिट होता है ? अपने नाम के विपरीत राहुलआक्रामक अंदाज में मीडिया के सामने बैटिंग करते रहे | उसनेSC, ST, OBC, अल्पसंख्यक और स्त्री एकता की बात करते हुए बड़ा सियासी दाँव खेला |
सन्नी धीमान ने आते ही सामने बैठे हॉस्टल मित्र सौरभ शर्मा पर तंज कसा कहा कि सौरभ शर्मा को पता नहीं है कि उसकी पार्टी क्या कर रही है इसे बाद में पता चलेगा |UGC आन्दोलन में इसकी पार्टी के लोगों ने महिलाओं को वेश्या कहा | शेहला राशिद की तरफसंकेत करते हुए सन्नी ने कहा कि इनमोहतरमा के साथ हमने JSCASH संघर्ष किया है लेकिन आज ये चुप है, ये चुप नहीं हैं इन्हें चुप किया गया है| जेएनयूएसयू छात्रसंघ ऑफिस में नेहरु कीतस्वीर नहीं होने पर भी उसने सवाल उठाया और कहा कि हम नेहरु की विरासत को जिन्दा रखेंगे | लेफ्टसंकट में तिरंगा उठा लेती है और संकट टलते ही लिंगदोह लिंगदोह चिल्लाने लगती है | मसूद अहमदने कश्मीर के प्रति सरकार के रवैये पर बातरखी और पैलेट गन पर रोक की मांग की |
चुनाव अब शबाब पर है | मैस कैंपेन शुरू हो चुका है। चुनाव आयोग ने प्रचार के लिए हॉस्टल मेस भी अलॉट कर दिया है। साथ ही पोस्टर लगाने के लिए हरेक हॉस्टल में हरेक पार्टी को निश्चित जगह दे दी गयी है। । नकली लेफ्ट के नाम पर गठबंधन से दरकिनार DSF अकेले चुनाव लड़ रही है। सेंट्रल पैनल में उसने सिर्फ संयुक्त सचिव पर अपना उम्मीदवार दिया है। झेलम मेस में अपने प्रचार के दौरान DSF के उम्मीदवार प्रतिम घोषाल ने कहा कि हमलोगों की गलती से पिछली बार इस पद पर सौरभ शर्मा आ गया था लेकिन इस बार हमलोग गलती नहीं करेंगे | हमारा उद्देश्य एबीवीपी को हराना है | हम बाकी पदों पर लेफ्ट यूनिटी के साथ हैं |
वैसे तो यूनाईटेड ओबीसी फोरम चुना नहीं लड़ रही है लेकिन चुनाव में फोरम की भूमिका बहुत निर्णायक होने जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक कैंपस में ओबीसी छात्रों की संख्या 3000 के करीब है। वैसे तो जेएनयू में इस आधार पर वोटिंग का ट्रेंड नहीं रहा है लेकिन ओबीसी हितों की लगातार अनदेखी के कारण फोरम के जरिए ओबीसी छात्र एकजुट दिखाई दे रहे हैं। चुनाव में फोरम के स्टैंड पर सक्रिय सदस्य मुलायम सिंह ने कहा – चुनाव लड़ रही पार्टियों की अवधारणा में ओबीसी हित कितना सर्वोपरि है इस आधार पर ओबीसी समाज वोट करेगा।
जैसे जैसे चुनाव का दिन नजदीक आएगा रोमांच बढ़ता जायेगा, नयी बिसात बिछेगी | अन्दर ही अन्दर नए गठजोड़बनेंगे| SFS औरDSF सिर्फ एक पद पर चुनाव लड़ रही है इसलिए देखना ये होगा कि उनके कोर वोटर बाकी पदों पर वाकई किसका समर्थन करते हैं | क्या AISF लेफ्ट यूनिटी को दिल से समर्थन देगी ? आने वाले दिनों में यह जानना और देखना दिलचस्प रहेगा |
3. चुनाव प्रचार
चुनाव प्रचार ज़ोरों पर है। पार्टियां लगातार रूम टू रूम और मेस टू मेस कैंपेन कर रही हैं। दो दिन पहले DSF का एकमात्र उम्मीदवार प्रतिम घोषाल चुनाव प्रचार के लिए झेलम मेस में आया। हमलोग सर नीचे करके खाना खा रहे थे। आवाज़ सुनकर हम चौंके, क्योंकि प्रतिम की आवाज़ कन्हैया से मिलती जुलती है। शैली भी वही। भाषण भी प्रभावी। वह ज्वॉइंट सेक्रटरी पद का उम्मीदवार है जबकि बाकी पद पर उसकी पार्टी लेफ्ट यूनिटी को सपोर्ट कर रही है। प्रतिम ने जैसे ही अपना भाषण खत्म किया एक कोने में बैठे एबीवीपी के कुछ लोगों ने जोर-जोर से भारत माता की जय का नारा लगाना शुरू कर दिया। जाते-जाते DSF के लोगों ने 'रोहित के हत्यारों को एक धक्का और दो'…जैसे मारक नारे लगाये । एनएसयूआई भी चुनाव प्रचार के लिए मेस के बाहर वेटिंग में थी। जब उसका मौका आया तो उसने भी एबीवीपी पर अटैक किया। एबीवीपी के लोग शांत बने रहे। इस प्रक्रिया में कोई भी अप्रिय गतिविधि नहीं हुई। बौद्धिक स्तर पर पूरे मेस में गहमागहमी बनी रही।
4 सितम्बर को एनएसयूआई और बापसा ने मशाल जुलूस निकाला। दोनों जुलूस गंगा ढाबा से चन्द्रभागा हॉस्टल तक निकले । ग़ौरतलब हो कि जेएनयू का मशाल जुलूस गंगा से चंद्रभागा हॉस्टल के बीच ही होता है। हरेक पार्टी के लिए जुलूस ट्रैक यही है। यह आम चुनाव के मोटरसाइकिल जुलूस की ही तरह जनसमर्थन दिखाने का एक चलता फिरता प्लेटफार्म होता है। इससे चुनाव में जनता के रूख और पार्टी के जनाधार का पता लगता है।
एनएसयूआई ने थोड़ा बदलाव करते हुए KC पार्किंग से अपना जुलूस रवाना किया। एनएसयूआई के अध्यक्षीय उम्मीदवार सन्नी धीमान थोड़े निराश दिखे क्योंकि उनके मशाल जुलूस में तुलनात्मक रूप से लोगों की संख्या कम थी। सन्नी कैंपस के परिचित चेहरे रहे हैं। मेस सेक्रेटरी से लेकर जेएनयूएसयू के प्रेसिडेंट तक की चुनावी यात्रा उन्होंने की है। 9 फरवरी की घटना के बाद जेएनयू और जेएनयू के बाहर जो आंदोलन चला उसमें सबसे बड़े तिरंगे के साथ सन्नी की मौजूदगी रही।
बापसा ने इस मशाल जुलूस के जरिए यह जता दिया कि आगे आने वाले सालों में वह कैंपस की तीसरी ताकत बनने जा रही है। उनका नारा था – वोट हमारा राज तुम्हारा /नही चलेगा…नहीं चलेगा..। लेफ्ट पार्टियों से नाराज लोगों ने भी खुलकर बापसा के मशाल जुलूस में हिस्सा लिया। बापसा के अध्यक्षीय उम्मीदवार राहुल को सुनने के बाद लगता है कि प्रेजिडेंसियल डिबेट में उनकी जोरदार उपस्थिति रहेगी।
रात में स्टूडेंट्स फ्रंट फोर स्वराज ने मशाल जुलूस के बजाय जीबीएम रखा। उसने दिलीप के रूप में एकमात्र उम्मीदवार उतारा है अध्यक्ष पद के लिए। जीबीएम में लोगों की बड़ी उपस्थिति ने मुकाबले को रोचक बना दिया है। दिलीप हॉस्टल प्रेसिडेंट और एसएल कॉनवेनर के तौर पर अपने काम के लिए जाने जाते हैं। उसने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि सबलोग जुमलेबाज हैं लेकिन मैं काम करता हूँ और करके दिखाउंगा।
5 तारीख की सुबह से ही झेलम लॉन में प्रेजिडेंसियल डिबेट और UGBM की तैयारी शुरू हो गयी थी । झेलम लॉन के गड्ढों को भरा जा रहा था, जिसकी मिट्टी बारिश के कारण सालों से बह कर मौर्या जी बुक शॉप की तरफ चली गयी थी । दिन भर मजदूर इसमें लगे रहे । मंच और उसके सामने टेंट लगाने का काम चलता रहा। झेलम लॉन पहली बार लॉन जैसी फिलिंग दे रहा है, ये अलग बात है कि घास बहुत कम है। लॉन पहले से समतल दिख रहा है अब।
5 सितंबर की रात दो बड़ी पार्टियों एबीवीपी और लेफ्ट यूनिटी का मशाल जुलूस भी था। एबीवीपी ने गंगा से चंद्रभागा तक मार्च निकाला जबकि लेफ्ट यूनिटी ने चंद्रभागा हॉस्टल से गंगा ढाबा का रुख किया। गंगा से जब एबीवीपी की मशाल यात्रा निकली तो नारा लगा – एैरों का ना गैरों का / संस्कृत सेंटर शेरों का। जिस तरह स्कूल ऑफ लैंग्वेज लेफ्ट का गढ़ माना जाता है उसी तरह संस्कृत सेंटर एबीवीपी का गढ़ माना जाता रहा है। एबीवीपी के मशाल जुलूस में नर्मदा हॉस्टल के सामने एक कैडर जोश में आ गया। उसके हाथ में मशाल थी। दूसरे हाथ की मुट्ठी भींचते हुए उसने कहा अगर इस मशाल से लड़ने को मिल जाता लेफ्ट को इस कैंपस से खदेड़ देता। कुछ दिन पहले एबीवीपी के सांस्कृतिक कार्यक्रम में गायक अभिजीत भट्टाचार्या ने भी इसी तरह गिटार को बंदूक की तरह लहराकर 'देशद्रोहियों' को कैंपस से खदेड़ने की बात कही थी।
टेफ्लाज मोड़ पर लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी दोनों के मशाल जुलूस आमने-सामने आ गये। दोनों पक्ष अपनी अधिकतम संख्या के साथ मार्च कर रहे थे। कुछ युवा शारीरिक तौर पर उत्तेजित हुए लेकिन उनका उनका स्तर दिल्ली विश्वविद्यालय या किसी दूसरे विश्वविद्यालय के चुनाव जैसा नहीं था। चुनाव आयोग की टीम और जेएनयू के सुरक्षा गार्ड साथ चल रहे थे। मामले को कुछ सैकण्ड में निपटा लिया गया। लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी के जुलूस में लोगों की संख्या में लगभग 300-400 से ज्यादा लोगों का अंतर था। लेफ्ट यूनिटी गंगा ढाबा की तरफ बढ़ने लगी जबकि एबीवीपी गोदावरी हॉस्टल की तरफ। एबीवीपी सवालनुमा नारा लगाती रही – चाउ माउ जो करते हो, भारत में क्यों रहते हो? लेफ्ट यूनिटी की लंबी कतार में जगह जगह से नारे लगते रहे। आगे से किसी ने नारा दिया – संघ गिरोह का खोल दे पोल / हल्ला बोल… हल्ला बोल। हम पीछे की तरफ बढ़े। हम नारे नोट करते रहे, एक और नारा लग रहा था – जेएनयू की लाल माटी में भगवा रंग जला है..जलेगा…। मशाल जुलूस जब लड़कियों के कोयना हॉस्टल पहुंची तो एक लड़के ने बालकनी में खड़ी लड़कियों की तरफ देखकर जोर-जोर से अति उत्साह में नारा लगाना शुरू किया लेकिन रिटर्न में कोई प्रतिकिया मिली ही नहीं। लड़का चुप होकर भीड़ में घुस गया। लड़का उत्साही और नया कैडर लग रहा था जेएनयू में। चंद्रभागा हॉस्टल के अहाते में मशाल जुलूस एक सभा में बदल गया। भीड़ कम हो गयी थी। सभी प्रत्याशियों ने अपनी बात रखी। अध्यक्ष पद की उम्मीदवार जान्हवी ने प्रभावशाली भाषण देकर अपने कार्यकर्ताओं को उत्साह बढाया।
दूसरी तरफ लेफ्ट यूनिटी गंगा ढाबा पर पहुंची जहां मोहित कुमार पांडेय के साथ लेफ्ट यूनिटी के सभी उम्मीदवारों ने संबोधित किया। जुलूस से मिले अपार जनसमर्थन ने वक्ताओं के जोश को बढ़ा दिया। लोग जीत को लेकर आश्वस्त दिखे ।वैसे पिछली बार जुलूस और कैंपेन में भरपूर समर्थन नहीं मिलने के बावजूद भी कन्हैया ने प्रेजिडेंसियल डिबेट के दम पर जीत दर्ज की थी।
इसलिए अब सबकी निगाहें 6 सितम्बर को UGBM और 7 सितम्बर को प्रेजिडेंसियल डिबेट पर रहेंगी।
4.प्रेसिडेंसियल डिबेट
भारतीय छात्र राजनीति में जेएनयू का चुनाव एक ओलंपिकनुमा आयोजन है। UGBM और प्रेजिडेंसियल डिबेट के बाद चुनाव प्रचार थम गया। अब 9 सितंबर को मतदान होना बाकी रह गया है। प्रेजिडेंसियल डिबेट से एक दिन पहले 6 सितम्बर को इसी झेलम लॉन में UGBM का आयोजन किया गया। जिसमें उपाध्यक्ष,सचिव और संयुक्त सचिव पद के प्रत्याशियों ने अपना एजेंडा रखा। बापसा के सचिव प्रत्याशी मणिकांता ने #standwithjnu को #standwithjaneu मूवमेंट कहा। LGBT को अपने एजेंडे में शामिल किया। लेफ्ट यूनिटी की संयुक्त सचिव प्रत्याशी सतरूपा ने हरेक जगह जेएनयू खोलने की बात कही। एबीवीपी के संयुक्त सचिव प्रत्याशी विजय ने कहा हम संघर्ष में नहीं समन्वय में विश्वास रखते हैं। हम काम करना चाहते हैं लेकिन लेफ्ट हमें डिस्टर्ब करती है। लेफ्ट यूनिटी के उपाध्यक्ष उम्मीदवार अमल पीपी ने कम कीमत में रहने, खाने और पढने की सुविधा को लेफ्ट के संघर्षों का परिणाम बताया। बापसा के उपाध्यक्ष वंशीधर दीप ने स्वाभिमान की राजनीति की बात की। कहा हम गांधी और सावरकर के आइडिया अॉफ इंडिया को नहीं बल्कि अम्बेडकर और फूले के आइडिया ऑफ इंडिया को मानते हैं। एनएसयूआई की उपाध्यक्ष उम्मीदवार मोहिनी ने कहा कि आइसा के पास ऐसे अनमोल रतन हैं कि इन्हें भारत रत्न दे देना चाहिए। वह कागज देखकर पढती रही तो दर्शकों ने खूब हल्ला मचाया। फिर उसने बोलने में समय लिया। चुप्पी रही कुछ क्षण। अचानक बापसा ने नारा लगाया -एबीवीपी दुनिया छोड़ो। लोग चौंके और ठहाका लगाया। जवाब में एबीवीपी ने भारत माता का जयघोष किया।
जब एबीवीपी के उपाध्यक्ष उम्मीदवार रविरंजन चौधरी की बारी आयी तो उसने विकास की बात करते हुए नारा दिया –
हॉस्टल,प्लेसमेंट,वाई-फाई
परिषद् की यही लड़ाई।
इस UGBM के अगले दिन बहुप्रतीक्षित प्रेजिडेंसियल था। प्रेजिडेंसियल डिबेट के दिन यानि 7 सितम्बर को दोपहर बाद की पार्टी के कार्यकर्ता झेलम लॉन पहुंचने लगे थे लेकिन डिबेट रात 10 बजे के करीब शुरू हो पाया। हरेक हॉस्टल के मेस में खाने के टाइम में बदलाव किया गया था। मेस में लम्बी लाइन लगी थी। बाहर से आने वाले गेस्टों से मेस अटा पड़ा था। लेकिन तब भी 8.30 तक मेस खाली हो चुका था और छात्र झेलम लॉन की तरह बढ़ने लगे थे। 9 बजे तक बैठने की सारी जगह भर चुकी थी। मंच के पीछे को छोड़ लोग तीन तरफ खड़े थे। खड़े लोगों की भी 5-6 परत बन चुकी थी। कुछ विकलांग छात्र देर से पहुंचे थे और बैठने की सारी जगह भर चुकी थी। उनको चुनाव आयोग ने अपने लिए आरक्षित स्पेस में जगह दी।
अब चुनाव आयोग की टीम ग्रुप फोर सिक्योरिटी के गाड़ी से झेलम लॉन में बारी-बारी से प्रवेश करती है। सबने नीले रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी। मुख्य चुनाव अधिकारी इशिता मन्ना नेतृत्व कर रही थी। एबीवीपी ने शंख बजाकर सबका ध्यान आकर्षित किया। मंच के बायीं ओर लेफ्ट यूनिटी और दायीं ओर बापसा के लोग जुनून की हद में जाकर नारे लगा रहे थे। मंच के नीचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोग खचाखच भरे पड़े थे। भीड़ और कवरेज दोनों की दृष्टि से यह चुनाव भारी पड़ रहा था।
बाहर से भी लोगों का आना जारी था। कुछ लोग गेस्ट को लाने के लिए मेन गेट पर जा रहे थे तो कुछ लोग फोन पर ही गार्ड को गेस्ट को आने देने का अनुरोध कर रहे थे।
चुनाव आयोग की तरफ से जैसे ही लाउडस्पीकर पर पहली बार आवाज गूंजी जनता जोश में आ गयी। चुनाव आयोग के लगातार कठोर अनुरोध के बाद छात्र शांत हुए। मुख्य चुनाव आयुक्त ने नियमों की जानकारी दी। प्रेजिडेंसियल डिबेट तीन चरणों में होता है। पहले चरण में प्रत्याशी 12 मिनट अपना भाषण देते हैं। दूसरे चरण में सभी प्रत्याशी एक दूसरे से सीमित समय में दो-दो प्रश्न करते हैं। तीसरे चरण में प्रत्याशी आम छात्रों के सवालों का जवाब देते हैं। जनता से प्रश्न के लिए चुनाव आयोग की टीम डब्बा लेकर जनता के बीच जाती है।
सारे प्रत्याशियों ने दस्तखत करके अपनी उपस्थिति दी। लॉटरी से निकले क्रम के अनुसार बापसा के प्रत्याशी राहुल पुनाराम को सबसे पहले बोलने का मौका मिला।
आते ही उसने जय भीम कहकर सबका अभिवादन किया। उसने रोहित बेमुला को याद करते हुए एबीवीपी पर अटैक किया। आइसा और लेफ्ट यूनिटी ने ताली बजायी जबकि एबीवीपी ने हूटिंग करने की कोशिश की। राहुल ने तामसी मलिक के बलात्कारियों से हाथ मिलाने पर आइसा को घेरा। अबकी एबीवीपी ने ताली बजायी। उसने कहा कि आइसा कहती है हमको वोट दो नहीं तो गब्बर आ जाएगा। हम कहते हैं बापसा को वोट दो कबाली आएगा। गौरतलब हो कि प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय फिल्म का चमत्कारी नायक भी अम्बेडकराइट था। उसने कहा कि जबकि मुसलमानों की संख्या कुछ सेंटरों को छोड़ के सारे सेंटरों में बहुत कम है तो कैसे प्रोगेसिव हैं आपलोग? लेफ्ट के इतने दिन शासन के बाद भी बंगाल में मुसलमानों का हालत खराब क्यों है? हम जब युनियन में आएंगे तो मुसलमानों के लिए अलग प्वाइंट लाएंगे। एक वंचित ही दूसरे वंचित हैं की पीड़ा समझ सकता है।
लेफ्ट यूनिटी के उम्मीदवार मोहित कुमार पांडेय भी आते ही आक्रामक हो लिए। एबीवीपी को घेरते हुए कहा कि आज हालत ये हो गयी है कि जब नाइन बी के मुद्दे पर वीसी से मिलते हैं तो वे गेट आउट बोलकर बाहर कर देते हैं। अपने पूरे संबोधन में मोहित ने कई बार OBC रिजर्वेशन का जिक्र किया और उसको लागू करवाने में अपनी पार्टी के संघर्षों को याद किया। मोदी का रिलायंस ऐड के लिए मजाक उड़ाया तो जी न्यूज को छी न्यूज कहा। अर्णव गोस्वामी भी मोहित के निशाने पर रहे।
जीएसकैश पर बोलना शुरू किया तो पीछे से एक आवाज आयी – अपने अनमोल रतन पर भी कुछ बोलो। एबीवीपी ढोल मजीरा, ढपली और शंख के साथ भजन कीर्तन का माहौल बनाए हुए थी। बीच-बीच बजाने भी लगती। मोहित ने कहा अगली बार जब हम यूनियन में आएंग तो….पीछे से एक लड़की जोर से चिल्लायी हर बार तो तुम ही आते हो। मोहित की आवाज इस चिल्लाहट में दब गयी। भीड़ बढ़ती जा रही थी। कुछ चैनल लाइव कर रही थी।
एनएसयूआई के उम्मीदवार सन्नी धीमान ने अपने भाषण से पहले रोहित वेमुला की माँ को भारतमाता के तौर पर याद किया। एनएसयूआई खेमे से इस बात पर ताली बजी। सन्नी ने एक नंगे राजा की कहानी भाषण की शैली में सुनाई और नरेंद्र मोदी को उसमें लपेटा। सिमकार्ड बेचने, डाटा की नहीं आटा की जरूरत पर भी उसने मोदी को घेरा। 9 फरवरी की घटना को साजिश बताते हुए उसने राहुल गाँधी के जेएनयू आने को गर्व से याद किया। सन्नी ने लेफ्ट के लिए कही कि ये लोग संविधान और संसद पर भरोसा नहीं करने वाले लोग हैं। फिर से सन्नी ने एबीवीपी पर फोकस किया और पूछा जब जेएनयू की लड़कियों को वेश्या कहा जा रहा था तो आपलोग कहां थे? इस बात पर चौतरफा तालियाँ बजी। अंत में खुद को ओबीसी बताते हुए उसने जय जवान जय किसान जय विज्ञान और जय संविधान कहकर अपनी बात खत्म की।
जान्हवी के माइक पर आते ही एबीवीपी खेमा आंदोलित हो उठा। शंख और तालियों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया। बापसा ने जोरदार विरोध किया – रोहित के हत्यारों को – एक धक्का और दो। चुनाव आयोग ने मुश्किल से दोनों पक्षों को चुप करवाया। जान्हवी ने एबीवीपी के उपलब्धियों और संघर्षों को गिनवाना शुरू किया कि ये दिया…वो दिया… तो पीछे से एक आवाज आयी #shutdownjnu भी तो दिया। बीच में एक बार अंबेडकर का नाम लिया तो चारों तरफ से हाथ उठा कर लोगों ने हूट किया। उसने बांये हाथ को हवा में लहराते हुए ललकारा और कहा कि डर कर रहो शेरनी आ चुकी है। लेफ्ट पार्टियों को बार-बार नक्सली कहती रही। उसने वामपंथियों पर तंज कसा।
कैंपस के बाहर रेप हुआ तो निर्भया
कैंपस में रेप हुआ तो कुछ न हुआ।
बापसा लगातार विरोध करती रही और जान्हवी बार-बार खुद को शेरनी बताती रही। पीछे से कुछ लोग आसाराम-आसाराम चिल्लाते रहे।
अंतिम वक्ता स्टूडेंट्स फ्रंट फोर स्वराज के उम्मीदवार दिलीप कुमार थे। उसने सिंगुर और नन्दीग्राम के जमीन वापसी संघर्ष को सलाम किया। #shutdownrss का नारा लगाया तो एबीवीपी आक्रमक हो गयी। उसने एक साथ लेफ्ट और राइट एक कठघरे में खड़ा किया और कहा कि इन लोगों ने सोशल जस्टिस का मजाक बना कर रख दिया है। लिंगदोह को लेकर कठोर दिखे कहा अगर मैं प्रेसिडेंट बना तो तीन महीने में जेएनयू संविधान से चुनाव करवाउंगा। पीछे से एक गंभीर आवाज आयी – कन्हैया ने भी यही कहा था। आगे उसने Obc के हॉस्टल में रिजर्वेशन, नॉन नेट फेलोशिप और हेल्थ सेंटर का मुद्दा उठाया। कॉनवेनर और हॉस्टल प्रेसिडेंट के तौर पर अपनी काम करने की छवि सामने रखी। आत्मविश्वास से भरे दिलीप ने अमृता सिंह के बयान की निंदा की। एबीवीपी खेमे के पास खड़ी एक लड़की ने एबीवीपी की तरफ देखते हुए कहा -जवाब दो। अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स को जगह देने की अपील करते हुए दिलीप ने अपनी बात खत्म की।
दूसरे चरण में प्रत्याशियों द्वारा एक दूसरे से प्रश्न पूछने का दौर शुरू हुआ।
बापसा के राहुल शुरू से आक्रामक रहे। मोहित के सवाल पर कहा मजदूरी से जीवन की शुरुआत करने वाले से मजदूरी पर सवाल मत कीजिए। जाइए आपका हो गया। सन्नी को भी लगभग डपटते हुए कहा बैठ जाओ।
मोहित का भी रूख आक्रामक रहा। लेकिन ज्यादा जोर से बोलने के कारण उसकी आवाज कई बार अस्पष्ट रह गयी। जान्हवी के सवाल पर उसने कहा कि हर कश्मीरी को गुस्सा जाहिर करने का हक है। एक सवाल पर उसने जान्हवी को झंडेवालान साहित्य से बाहर निकलकर चीजों को देखने की सलाह दी।
सन्नी धीमान से राहुल ने पूछा फासीवाद में आपका नम्बर पहला है या दूसरा? जान्हवी के सवाल पर सन्नी ने भी उसे चंपक और चंदा मामा कम पढने की सलाह दी। साथ ही कहा कि अगर आप शेरनी हैं तो ऊना के दलितों को क्यों नहीं बचाया? इस बात पर जनता ने जोरदार ताली बजायी। मोहित ने जान्हवी से गिरिराज सिंह और ब्रह्मेश्वर मुखिया से संबंधित सवाल पूछा तो दिलीप ने ज्ञानदेव आहूजा से संबंधित। वह बीजेपी से एबीवीपी के संबंध पर मुकर गयी। कहा कि एबीवीपी बीजेपी से पहले बनी है। एबीवीपी प्रत्याशी ने खुद को Rss से जोड़ा और कहा बीजेपी से हमारा कोई संबंध नहीं। मैं ज्ञानदेव आहूजा जैसे मूर्खों का जवाब नहीं दूँगी।
अंत में दिलीप से राहुल ने प्रश्न भी पूछा और साथ लड़ाई लड़ने का आह्वान भी किया। सन्नी ने दिलीप को प्रश्नन की शक्ल में एक प्रस्ताव दिया। कहा हम चाहते हैं ना आइसा ना एबीवीपी।जीतें जीतें तो हम, आप या बापसा। क्या आप मुझसे सहमत हैं? दिलीप ने हाँ कहके समर्थन किया।
इसके बाद तीसरा चरण शुरू हुआ जिसमें जनता के लिखित प्रश्नों का प्रत्याशियों ने जवाब दिया। प्रत्याशी इस दौरान अपने अब तक कहे छूटे बातों को ही दुहराते रहे । अपने पैनल का नाम लोगों को बताते रहे।
प्रेजिडेंसियल डिबेट के तीनों चरण समाप्त हो चुके थे। लोग हॉस्टल, घर और ढाबों का रूख कर रहे थे। आइसा और बापसा अब भी नारेबाजी कर रही थी। बाकी पार्टियाँ डिबेट स्थल से जा चुकी थी।
आइसा ने अंत में नारा लगाया। सारा कैंपस लाल है। लाल है। लाल रहेगा।
बापसा ने आइसा की तर्ज पर नारा लगाया
आ गया है बापसा…छा गया है बापसा
भीड़ छटने लगी। गंगा ढाबा बंद हो गया। लोग जाने लगे। सुबह की लाली पूरब में आने को थी। हमें भी नींद आने लगी थी। हम हॉस्टल की तरफ आ गये। कॉरिडोर में दूर से देखा कोई हमारे रूम के नीचे से पर्ची डाल रहा था। चुनाव आयोग के अनुसार यह नो कैंपेन डे था। सुबह होने वाली थी। लड़का तेजी से पर्ची रूम के अंदर डाल रहा था।
5. मतदान
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ढपली की थाप, शंख की ध्वनि, लयबद्ध तालियों और इसके धुन पर नाचते थके कार्यकर्ताओं के साथ जेएनयू छात्रसंघ चुनाव का मतदान समाप्त हो गया। स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में देर से मतदान शुरू हुआ इसलिए वहाँ 7 बजे शाम तक मतदान होता रहा। बाकी जगह शाम 5 बजे सिक्योरिटी गार्ड ने गेट बंद कर दिया।
जेएनयू में लगभग 8700 (8670) छात्र हैं। मुख्य रूप से स्कूल लैंग्वेज में लगभग 2800, सोशल साइंस में लगभग 2400 और इंटरनेशनल स्टडीज में लगभग 1500 छात्र हैं। पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी दिलीप मौर्या के अनुसार अंतिम रूप से लगभग 60 मतदान हुआ है।
सुबह 9 बजे से ही स्कूल ऑफ लैंग्वेज के सामने का लॉन गुलजार हो चुका था। सारे मतदान केन्द्र इसके आसपास ही हैं। वोटर से तो पहले हरेक पार्टी के कार्यकर्ता वहां पहुंचे हुए थे। जैसे ही वोटरों का आना शुरू हुआ प्रत्याशी और उनके समर्थक जोश में आ गए। दूर से ही नारों की आवाज सुनाई दे रही थी। चुनाव की खुशबू चारों तरफ बिखरी पड़ी थी।
एबीवीपी के एक कार्यकर्ता ने असली शंख के अभाव में हाथ से शंखध्वनि निकाली । इस चक्कर में उसका चेहरा लाल हो गया। स्कूल ऑफ लैंग्वेज जेएनयू का सबसे बड़ा स्कूल है। इसलिए यहां हरेक पार्टी के सबसे ज्यादा कैडर जमे हुए हैं। लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी के बीच नारों में मुकाबला चल रहा है। जेएनयू का राजनीतिक वातावरण लोगों को पब्लिक डीलिंग में सिद्धहस्त बना देता है। इसका साक्षात उदाहरण सामने दिखाई दे रहा है। एक छात्र नेता एक मिनट में 5 लोगों से मिल ले रहा है और उसे पर्चा देते देते वोट देने के लिए कनविन्स भी कर रहा है। हरेक पार्टी के समर्पित कैडरों के गले में प्रत्याशी के नामों की लिस्ट टंगी है। हाथों में पर्चा है। कई दिनों से थके गले में रुंधी हुई आवाज है।
जिस रास्ते वोटर को वोट देने जाना है उस रास्ते में दोनों तरफ पार्टी के लोग खड़े हैं। लगभग एक संकरी गली बन जाती है जिससे होकर वोटर गुजरता है। हरेक वोटर को मुफ्त का गार्ड ऑनर मिल जाता है । अलग बात है क्रिकेट में बैट सिर के उपर होता है यहाँ पर्चा-पोस्टर है। एक बंद कैंपस होने के कारण सबको पता है कि कौन किसका वोटर है तब भी लोग अंत अंत तक अपनी पार्टी को वोट देने का अनुरोध करते रहते हैं। उस गली से गुजरने भर तक हर वोटर राजा है शहंशाह है। वोट देकर निकलने का अलग रास्ता है। वहाँ से निकलने के बाद वेल्यू कम हो जाती है। सबलोग मुँह फेर लेते हैं।
प्रत्याशी भाग-भाग कर प्रचार कर रहे थे । चार मतदान केंद्र हैं। सब पर तुरंत-तुरंत पहुंचने की चाहत है। प्रत्याशी के नामों को गीत की शक्ल में गाया जा रहा था । प्रत्याशी के पास आते ही कार्यकर्ता जोश में आ जाते हैं और विपक्षियों पर भारी पड़ने लगते हैं।
संयोग से लेफ्ट यूनिटी के ठीक पीछे एबीवीपी का उम्मीदवार भीड़ में तैरकर स्कूल ऑफ लैंग्वेज पहुंचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन भीड़ की वजह से आगे निकल नहीं पाये रहा था। मैंने मजाक में पूछा – सब दिन पीछे ही रहोगे? उसने कहा – इतने दिन से निकलने की ही तो कोशिश कर रहे हैं।
कोई छात्र अकेला नहीं खड़ा है। सब एक दूसरे से उलझे पड़े हैं। सबके हाथ में पर्चा है। कोई बांट रहा है कोई ले रहा है। जो ना पर्चा बांट सका ना ले सका उसके पैर के नीचे पर्चा है।
बापसा के चारों प्रत्याशी के पीछे एक बड़ी टीम हर वक्त साथ है। वो लोग जहां जा रहे हैं उनकी टीम भी साथ दौड़ रही है जबकि दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता हरेक स्कूल पर खड़े होकर प्रचार को तरजीह दे रहे हैं। वैसे उनके भी चारों प्रत्याशी एक मतदान केन्द्र से दूसरे तक भागदौड़ कर रहे हैं। लंच का समय हो चुका था। पार्टी की तरफ से कैडरों को खाना दिया जा रहा। लंच के बाद वोटरों का हुजूम उमड़ा। आमतौर पर जेएनयू में लंच के बाद ही वोटिंग का ट्रेंड रहा है। लाइन एसएल लॉन के अंतिम छोर तक पहुंच गयी थी।
एबीवीपी ने इस बार चुनाव प्रचार में डमरू, करताल, चिमटा, ढोलक, ढपली सबकुछ का प्रयोग किया। जबकि दूसरी पार्टियां ढपली तक ही सीमित रही। बापसा ने ड्र्म का प्रयोग किया।
एक दलित छात्र एबीवीपी का पर्चा बांट रहा था तो उसके दोस्त ने टोका – कहां फंसे हो? वहां कभी न्याय नहीं मिलेगा। उसने कहा – क्या चाहते हो सब दिन मजदूरी ही करें? नौकरी तो भाजपा ही देगी।
स्कूल ऑफ लैंग्वेज के सामने लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी में ठन गयी। युनिटी के आइसा कार्यकर्ताओं ने नारा दिया – 56 इंच का छोटा बंदर — बाल नरेंद्रर बाल नरेंद्रर। एबीवीपी ने रेप युनिटी मुर्दाबाद से जवाब दिया। इससे पहले कि आइसा संभल पाती एबीवीपी ने अप्रत्याशित तरीके से जय भीम, जय बिरसा, फूले अम्बेडकर का नारा बहुत जोर से लगाना शुरू कर दिया। आइसा के नये कार्यकर्ता असहज हो गये क्योंकि इसकी आशा नहीं थी। एबीवीपी ने लगातार नारा लगाकर लेफ्ट यूनिटी को लगभग चुप करा दिया। तब आइसा की तरफ से पीयूष राज और संदीप सौरभ जैसे पुराने चावलों ने मोर्चा संभाला। संदीप ने अपनी उंची आवाज में बाल नरेंद्रर सीरिज का नारा दिया – गाय की पूंछ पर लटका बंदर। बच्चों ने जंग जीत लेने जैसे उत्साह में पीछे से आवाज दी – बाल नरेंद्रर – बाल नरेंद्रर। फिर व्यापम -व्यापम फिर फेंकू- फेंकू। जवाब में रेपिस्ट रेपिस्ट मिला। आइसा का नैतिक पतन – अनमोल रतन – अनमोल रतन। अब नारे शोर में बदलने लगे थे।
सामने शिकागो अमेरिका की छात्रा ऐलसा मिली। मैंने उससे दोनों जगहों के छात्रसंघ चुनाव पर प्रश्न पूछा। उसने जवाब में कहा कि वहां इतना जोश नही होता।भीड़भाड़ कम होती है। यहां वोट देने में बहुत कुछ का ध्यान रखते हैं लेकिन हमारे यहां उम्मीदवार की योग्यता का ध्यान रखा जाता है। मतदान अंतिम दौर में पहुंच चुकी थी। मुख्य चुनाव अधिकारी इशिता मन्ना माइक से घोषणा कर रही थी।
एबीवीपी के कार्यकर्ता बचे हुए पर्चे हवा में उड़ा रहे थे । देखा देखी में दूसरी पार्टी भी साथ दे रही थी। गहमागहमी का माहौल बन गया था। भीड़ अब स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की तरफ बढ़ने लगी क्योंकि बाकी जगह चुनाव खतम हो चुके थे। बापसा घेरा बना कर आदिवासी डांस करने लगी बाकी लोग भी साथ दे रहे थे। एबीवीपी शंख बजाकर और भारत माता की जय बोल बोल कर टक्कर देने की कोशिश करने लगी। रात हो चुकी थी। यहां भी मतदान खतम हो गया। अब देर रात वोटों की गिनती शुरू होगी। सबकी किस्मत कैद हो चुकी थी।
6. परिणाम
जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव लेफ्ट यूनिटी ने 4-0 से जीत लिया है। मोहित कुमार पाण्डेय अध्यक्ष, अमल पीपी उपाध्यक्ष, शतरूपा चक्रवर्ती सचिव और तबरेज हसन संयुक्त सचिव चुने गये। मोहित और तबरेज आइसा से हैं जबकि अमल और शतरूपा एसएफआई से हैं। चुनाव में एबीवीपी के खिलाफ आइसा और एसएफआई ने चुनावी गठबंधन किया था। कन्हैया की पार्टी एआईएसएफ ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया लेकिन लेफ्ट युनिटी को बाहर से समर्थन दिया। लेफ्ट की एक और पार्टी डीएसएफ जो एसएफआई से कुछ साल पहले टूटकर बनी थी, ने सिर्फ संयुक्त सचिव पद पर प्रत्याशी खड़ा किया और बाकी पदों पर लेफ्ट यूनिटी को ही समर्थन दिया। लेफ्ट युनिटी के क्लीन स्वीप के साथ ही एबीवीपी का कैंपस से पूरी तरह से सफाया हो गया। काउंसलर की लगभग आधी सीट लेफ्ट खेमे में गयी जबकि एबीवीपी को दो सीट से संतोष करना पड़ा।
मतदान की तारीख से पहले और मतदान के दिन तक रणनीति बनती रही। प्रत्याशियों के खिलाफ जातिगत अफवाहें, व्यक्तिगत आक्षेप का दौर भी चला । सोशल मीडिया से लेकर माउथ कैंपेनिंग तक का सहारा लिया गया। उम्मीदवार की जाति का अप्रत्यक्ष प्रचार करके वोट बटोरने की कोशिश की गयी। कमोबेश सभी पार्टियां इसमें शामिल रही।
लेकिन जैसे ही मतदान खत्म हुआ दिमाग की सक्रियता के बजाय शरीर सक्रिय हो गया। सभी पार्टियों ने जम कर नारेबाजी की। जो जितनी जोर से नारा लगा रहा था उसकी मतलब आप समझिए उसका दावा उतना मजबूत था।
शाम होने को आयी थी। हर साल की तरह एसएल और एसआईएस के सामने दुकानें लगनी शुरू हो गयी। अधिकतर दुकानदारों की दुकानें जेएनयू के अंदर ही हैं यहाँ उन्होंने अस्थायी सेटअप के साथ दुकान लगायी है। चुनाव खत्म दुकान खत्म। अधिकतर खाने-पीने की दुकानें थी। दो दुकानें किताबों की भी लगीं जिसमें एक पर इत्र भी बेचा जा रहा था। गंगा ढाबा का आइसक्रीम वाला भी अपनी गाड़ी लेकर वहां पहुंचा हुआ था। वह गंगा ढाबा पर रहे या चुनावी ढाबा पर लेकिन उसके पास आपके द्वारा मांगी गयी आइसक्रीम नहीं होती खासकर कप वाली।
अंकुरित चने, उबाले हुए चने भी मिल रहे हैं जो आमतौर से बाकी दिन नहीं मिलते ।
दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू का चुनाव बहुत सारे मामलों में अलग है। डीयू की तरह यहां इवीएम से चुनाव नहीं होता। यहां आज भी बैलेट पेपर पर ही मुहर लगती है। इसलिए उसकी गिनती में समय लगता है और रिजल्ट बहुत देर से आता है। लेकिन आयोग ने इस बार गज़ब की तेज़ी दिखाई। पिछले साल लगभग 54 प्रतिशत मतदान का रिजल्ट 30-32 घंटे में आया था जबकि इस बार उसने 60 प्रतिशत मतदान होने के बावजूद रिजल्ट 20 घंटे के अंदर दे दिया। इस साल और पिछले साल के मुख्य चुनाव आयुक्त इशिता मन्ना तथा दिलीप मौर्या के कुशल नेतृत्व ने यह कर दिखाया। उनकी पूरी टीम ने दो- तीन दिन बिना सोये लगातार काम किया।
मतदान के बाद मध्य रात्रि से ही काउंसलर पद के रूझान आने शुरू हो गये। जैसे ही पहला रूझान आया और पहली घोषणा हुई चारों तरफ पिन ड्राप साइलेंस छा गया। हरेक पार्टी ने मतों की गिनती के लिए पहले से ही फाइल बना रखी थी। जेएनयू में सबसे नाउम्मीद पार्टी एनएसयूआई का एक काउंसलर प्रत्याशी आगे चल रहा था। एनएसयूआई को आगे की हकीकत का पता था इसलिए उसने जश्न मनाने का यह मौका अपने हाथ से जाने नहीं दिया। प्रत्याशी को कंधे पर उठाकर सबलोग नाचने लगे। इसपर एबीवीपी ने तुरंत नारा लगाया – पप्पूवाद हो बर्बाद – हो बर्बाद – हो बर्बाद। जवाब में एनएसयूआई ने एक सुर में बुलेट ट्रेन की तेजी से व्यापम-व्यापम चिल्लाना शुरू कर दिया। एबीवीपी की स्पीड कम हो गयी। लेकिन उसने पलटते हुए आक्रमण किया – सोनिया जिसकी अम्मी है/ वो सरकार निकम्मी है। एनएसयूआई ने जोरदार जवाब दिया – मोदी जिसका ताउ है /वो सरकार बिकाऊ है।
रात गहरी होने लगी। पूरा जेएनयू उमड़ पड़ा था। डिनर के बाद सबलोग हॉस्टलों से निकल कर मतगणना स्थल पर पहुंच चुके थे। लाइब्रेरी के अंदर नेट की स्पीड बढ गयी थी क्योंकि लोग बुक और नेट बांचने के बजाए बैलेट में ज्यादा रुचि ले रहे थे। वर्तमान जेएनयू के अलावा भूतपूर्व जेएनयू से भी लोग भारी संख्या में पहुंचे थे। सबके पास अपने जमाने के जेएनयू और उसके चुनाव के किस्से थे। चारों तरफ लोगों के हाथों में चाय के कप थे और किस्से थे। हम दोनों के हाथों में एक डायरी थी और हम निगाहों के सहारे भीड़ में सरक रहे थे। पारंपरिक ढाबों पर मायूसी थी। मौसमी ढाबे गुलज़ार थे। चाय की खपत बढ़ गयी थी। रात भर काउंसलर-काउंसलर का खेल चलता रहा। माइक से आवाज आती रही, नारे लगते रहे। कोई जोर से लगाता तो कोई शोर मचाता। पार्टी के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों के रिजल्ट भी अच्छे आ रहे थे लेकिन उनके लिए नारा लगाने वाला कोई नहीं था। निर्दलीय भी किसी पार्टी के पास खड़ा होकर अपने लिए नारे को फील कर ले रहे थे। बात रात भर चली। माइक शांत होता तो नारे बज उठते। बात सुबह तक पहुंच गयी। वीसी साहब साइकिल से मार्निंग वाक पर आ पहुंचे।
सुबह के नाश्ते के बाद भीड़ फिर से बढने लगी। सबलोग अपने-अपने घोंसले से निकलकर फिर से पहुंच चुके थे।
कुछ पार्टी के जुनूनी कार्यकर्ता जो वहीं सो गये थे वे भी जाग गये थे। काउंसलर की गिनती अंतिम दौर में थी।
एक लड़की काउंसलर का चुनाव जीत गयी थी। सबसे गले मिली। खुशी से घर फोन मिलाया – बाबा जीते लू.. सैकेंड हाइयेस्ट….। हमें बस इतनी ही आवाज़ आई क्योंकि उसके पापा की आवाज़ सुनाई कैसे देती?
SFI के कामरेड जबी भी चुनाव जीत गये थे। उनको दूर से कंधे पर उठा कर लाया गया। बिना अबीर गुलाल के प्राकृतिक तरीके से सेलिब्रेशन चलता रहा।
सेन्ट्रल पैनल की भी गिनती भी शुरू हो चुकी थी। लेफ्ट यूनिटी मजबूत स्थिति में थी। 9 फरवरी के बाद की घटना का आक्रोश उभरने लगा। छी- छी-छी-छी न्यूज — छी न्यूज – छी न्यूज। नारे लगने शुरू हो गये।
एबीवीपी भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी-
लाल सलाम का काम तमाम
रोज नहाओ लगाओ हमाम।
जैसे जैसे लेफ्ट युनिटी को बढत मिलती गयी। एबीवीपी का नारे आक्रमक होते चले गये।
अफजल को दी थी आजादी
तुमको भी देंगे आजादी।
इस बीच बापसा के मतों की गिनती बढती गयी। उनके कैडरों में जोश आता गया। एनएसयूआई ने बापसा का उत्साह बढ़ाया – कोई नहीं है आप सा – बापसा बापसा। बापसा की एक कैडर ने शर्माते हुए धन्यावाद दिया।
लेफ्ट युनिटी जीत की तरफ बढ़ने लगी थी। मोहित पाण्डेय नये अध्यक्ष होने वाले थे। एबीवीपी ने श्वेता राज को लेकर एक नारा लगाया। विविध कारणों से श्वेता सेंट्रल पैनल का चुनाव नहीं लड़ पा रही है। सीनियर लीडर हैं आइसा की। नारा था – मोहित ने छीना किसका ताज / श्वेता राज – श्वेता राज।
अब हम चाय की दुकान पर थे। अचानक माइक से आवाज आयी – अटेंशन प्लीज। एक हार्डकोर लेफ्टिस्ट ने कहा अरे यार ये अटेंशन प्लीज ना टेंशन प्लीज जैसा लगता है। दो पार्टियों के लिए यह समय वाकई टेंशन वाला था। बापसा के राहुल और आइसा के मोहित में कड़ा मुकाबला चल रहा था।
बापसा के खेमे में आदिवासी नृत्य चल रहा है। एलजीबीटी के कुछ साथी कमरतोड़ नाच रहे हैं। लोग वीडियो बना रहे हैं। भीड़ बापसा खेमे की तरफ शिफ्ट हो गयी है। डीएसएफ भी इस डांस में शामिल हो गयी है। कुछ लोग गुजराती गरबा कर रहे हैं। एक सरदार जी भी मदमस्त नाच रहे हैं। लोग सीटी पर सीटी बजा रहे हैं। मणिकांता ढपली पर पिल पड़ा है लगता है उसे फोड़ देगा। दिलीप मंडल ने कुछ दिन पहले लिखा था कि मणिकांता जेएनयू में सबसे अच्छा ढपली बजाता है वह इस बात को साबित कर रहा है।
एबीवीपी बार-बार हिम्मत हारती है लेकिन फिर से उठ खड़ी होती है। खूब नारेबाजी चल रही है। एक नारा दिया – तुम जातिवाद से तोड़ोगे / हम राष्ट्रवाद से जोड़ेंगे।
मतगणना अंतिम चरण में थी। लेफ्ट युनिटी लगभग जीत चुकी थी। एबीवीपी का पुतला बनाया जा चुका था। लोग उसपर माल्यार्पण कर रहे थे। कोई पैसा चढ़ा रहा था तो कोई फूल।
9 फरवरी की घटना के बाद जिस तरह से मीडिया ने जेएनयू को पूरे देश के सामने पेश किया उससे जेएनयू की एक नकारात्मक छवि बनी। इसलिए यहां के छात्रों ने इस चुनाव में खुद कैमरा संभाला, खुद रिपोर्ट लिखी, खुद चुनाव के रूझान आनलाइन दिये।चुनाव की प्रारंभिक प्रक्रिया से लेकर जीत के जुलूस तक ऐसे कैमरे वाले छात्र-छात्राओं को लगातार देखा गया। बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहे।
अंतिम रूप से अब चुनाव आयोग द्वारा जीत की घोषणा की जा रही थी। जो लोग जहां थे वहीं रूक कर अंतिम रूप से रिजल्ट सुन रहे थे। जैसे ही किसी के लिए इलेक्टेड कहा जाता उसकी पार्टी के लोग जोर से हुंकारा भरते और तुरंत चुप हो जाते ताकि अगली घोषणा सुन सके।
जीत की घोषणा के बाद लेफ्ट युनिटी जोरदार नारेबाजी करते हुए एड ब्लाक की तरफ बढ़ चली। साथ-साथ एबीवीपी की शवयात्रा भी चली। जुलूस पूरा जेएनयू घूमते हुए गंगा ढाबा पर एकत्र हुआ। दो दिन बाद लेफ्ट युनिटी की तरफ से शपथ ग्रहण के बाद फिर से विक्ट्री जुलूस निकाला गया।
बापसा भी अपने शानदार प्रदर्शन से खुश दिखी। राहुल को कंधे पर बिठा कर घुमाया गया। उनका जुलूस जेएनयू के पारंपरिक ट्रैक से गुजरता हुआ केसी के पार्किंग में एक सभा में बदल गया। सभा के अंत में अध्यक्ष पद पर हारे उम्मीदवार राहुल ने यह कहा कि सभा यहीं खत्म होती है लेकिन आंदोलन यहीं से शुरू होता है।
एनएसयूआई के अध्यक्षीय प्रत्याशी सन्नी धीमान और नोटा के बीच पूरी मतगणना के दौरान मुकाबला चलता रहा। अंत में सन्नी धीमान ने नोटा को 8 मतों से पराजित कर दिया। एसएफएस के दिलीप कुमार की अच्छी और मेहनती छवि का फायदा नहीं मिला। जनता आर या पार की स्थिति में थी। मुकाबला बापसा,एबीवीपी और लेफ्ट युनिटी के बीच ही चला।
बापसा के उभार के बाद लेफ्ट पार्टियों को आत्मचिंतन करना चाहिए। जब लेफ्ट पार्टियाँ दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक हितों की बात करने का लगातार दावा करती रही है तब उसके गढ़ में ही बापसा उसके लिए चुनौती बनकर क्यों खड़ा हो गया? जबकि बापसा दो साल पहले बनी पार्टी है। बापसा का एक धड़ा ऐसा भी है जिसकी ट्रेनिंग लेफ्ट में ही हुई है लेकिन अब वो बापसा के साथ हैं। लेफ्ट से मोहभंग की वजह क्या है? जेएनयू ने भले ही एबीवीपी के खिलाफ बहुमत दिया और #standwithjnu के साथ खड़ा हुआ लेकिन यह लेफ्ट के पक्ष में पूरी तरह से नहीं है। आगे वाले दिनों में अगर बापसा में सांगठनिक मजबूती रही तो जेएनयू में लड़ाई लेफ्ट बनाम बापसा होगा। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अस्मिता आधारित संगठन अतीत में भी बनते रहे हैं और संभवना जगा कर खत्म भी हो गये हैं। तमाम आशंकाओं के बावजूद अब आने वालेसालों में जेएनयू की राजनीति को नजदीक से देखना दिलचस्प होगा।
श्रीमंत जैनेन्द्र
आशिमा
भारतीय भाषा केंद्र, जेएनयू