नई दिल्ली। जेएनयू से बगैर जांच कराए निष्काषित किए गए 15 दलित, मुस्लिम और आदिवासी छात्रों ने प्रेस कांफ्रेंस कर विवि प्रसाशन और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। इन्होंने कहा कि जेएनयू प्रसाशन विवि में भेदभाव की जड़ें गहराई से पोषित कराने की फिराक में है। वे वाइवा के नंबरों में कटौती की मांग कर रहे थे इसके उलट प्रशासन ने रिटेन ही खत्म कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि वाइवा में दलित पिछड़े माइनॉरिटी और आदिवासियों के साथ भेदभाव किया जाता है इसीलिए इसमें कटौती कर रिटेन के पूर्णांक में बढ़ोत्तरी की जाए।
निष्काषित किए गए छात्रों ने कहा कि प्रशासन ने उनके साथ दोहरा मापदंड अपनाया है। नजीब को पीटने और गायब करने वालों पर जांच तक नहीं बिठाई गई जबकि उन्हें बगैर किसी कारण के निष्कासित कर दिया गया।
जेएनयू के वीसी को निलंबित किए जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा सस्पेंशन रद्द कर वाइवा वाली मांगें भी मानी जाएं। छात्रों ने वीसी के खिलाफ 'हिटलर शाही नही चलेगी का जैसे नारा भी लगा गए'।
बहुजन छात्रों ने इस जातिवाद पक्षपात के मामले को मोदी सरकार और आरएसएस की साजिश बताई। हालांकि यह मामला मेनस्ट्रीम मीडिया में भी सिरे से गायब है। जातीय तौर पर हर जगह इन छात्रों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। छात्रों का आरोप है कि जेएनयू प्रशासन एक और रोहित वेमुला की बलि लेना चाहता है। उनके लिए सेल्टर देने वालों को भी धमकी दी जा रही है।
Courtesy: National Dastak