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जेएनयू: सामाजिक न्याय के लिए लड़ रहे दलित, पिछड़े, मुसलमान छात्रों को वीसी ने दिया निष्कासन का तोहफा

नई दिल्ली। जेएनयू एक ऐसा विश्वविद्यालय जो न सिर्फ देश में बल्कि विश्व में अपने एकेडमिक प्रदर्शन तथा यहाँ की छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है। दुनियाभर में इस संस्थान के छात्र अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते आये हैं। 


 
यह कैम्पस न सिर्फ पढ़ाई के लिए अपितु समय-समय पर छात्रों द्वारा विभिन्न मुद्दों पर अपना प्रतिरोध शांतिपूर्वक दर्ज करवाने में भी सबसे आगे रहा है फिर चाहे वह कैम्पस का मुद्दा हो या फिर देश की राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक मामलों से जुड़ी कोई अन्य बात।
 

 
लेकिन बीते कुछ दिनों से यहाँ के माहौल में काफी बदलाव आया है और जेएनयू प्रशासन और सरकार का हस्तक्षेप यहाँ के विद्यार्थियों और उनके आंदोलनों के प्रति लगातार प्रतिकूल ही रहा। फिर वह चाहे पूर्व छात्र अध्यक्ष कन्हैया कुमार की पिटाई का मामला हो या फिर नजीब के गायब होने का मामला। 
 
जेएनयू पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि इस संस्थान में भी दलित-पिछड़े और आदिवासी तथा मुस्लिम छात्रों के साथ भेदभाव होता रहा है। जिसे लेकर समय-समय पर यहाँ के छात्र आन्दोलन भी करते रहे हैं। 
 

 
ताज़ा मामला वाइबा के मार्क्स को लेकर आन्दोलन कर रहे छात्रों का है। बापसा के नेतृत्व में यूनाइटेड ओबीसी फोरम और अन्य संगठन तथा छात्र पीछे कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी मांग थी कि वाइबा के मार्क्स को तीस अंको से घटाकर पन्द्रह या उससे कम किया जाए तथा ओबीसी रिजर्वेशन को पूरी तरह से लागू किया जाए।
 
दरअसल जेएनयू में एमफिल और पीएचडी के इंट्रेंस एग्जाम में सत्तर नंबर रिटेन के हैं और तीस वाइबा के। छात्रों का आरोप है कि जो भी दलित- पिछड़े छात्र रितें पास करके वाइबा तक पहुँचते हैं उन्हें वाइबा में इतना कम नंबर दिया जाता है कि वह प्रवेश ही नहीं पा सकते हैं। यही नहीं छात्रों का यह आरोप भी है कि बाद में इन सीटों पर सवर्ण जाति के छात्रों को प्रवेश दे दिया जाता है।
 

 
इन्हीं मुद्दों को लेकर तमाम संगठन और दलित, पिछड़े, आदिवासी, मुस्लिम छात्रों ने आज वीसी ऑफिस का घेराव किया और वीसी से मिलने की मांग कर रहे थे। इतना ही नहीं वो एसी मीटिंग को दुबारा  बुलाने के लिए भी प्रस्ताव रख रहे थे। उनका कहना था कि इन सभी मुद्दों पर दुबारा से विचार किया जाना चाहिए।
 
दलित- पिछड़े छात्रों के इस आरोप को देखने के लिए जेएनयू प्रशासन द्वारा अब्दुल नाफे नामक कमेटी का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में यह साफ़ किया कि छात्रों का आरोप सही है और वाइबा के द्वारा दलित, पिछड़े छात्रों के साथ भेदभाव होता है।
 

 
पिछले तीन दिनों के आन्दोलन को संज्ञान में लेने तथा छात्रों से बात करने की बजाय जेएनयू प्रशासन ने छात्र आन्दोलन में शामिल बारह मुख्य छात्रों को निष्काषित कर दिया है। प्रशासन द्वारा छात्रों को भेजे गए नोटिस में उनके निष्कासन का कारण प्रशासन ने एसी मीटिंग में छात्रों द्वारा फिजिकल वायलेंस और मीटिंग को डिस्टर्ब करना बताया है। इस आधार पर इन बारह छात्रों का एकेडमिक निष्कासन किया गया है तथा जांच कमेटी बिठाने की बात कही गई है।
 

 
बापसा के अध्यक्ष राहुल ने हमसे बात करते हुए बताया कि प्रशासन द्वारा लगाये गए सभी आरोप बेबुनियाद और गलत हैं। इसके अलावा छात्रों को सस्पेंड करने से पहले किसी भी तरह कि जांच कमेटी नहीं गठित की गई जो कि गलत है।
 
राहुल ने आगे कहा कि यह जानबूझ कर उठाया गया कदम है दरअसल इसी तीस तारीख से रजिस्ट्रेशन शुरू हो रहे हैं जो ग्यारह तक चलेंगे। अगर इस बीच जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट नहीं देती है तो जितने भी छात्र निष्काषित किये गए हैं वे रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पायेंगे। जिसके चलते उन सभी का यह सत्र बेकार हो जाएगा। 
 

 
निष्काषित बारह छात्रों में मुलायन सिंह यादव, दिलीप यादव, बिरेन्द्र कुमार, भोपाली कुसुम विट्ठल, दावा, मृत्युंजय, शकील और प्रशांत हैं। बापसा के अध्यक्ष राहुल के भी निष्कासन की ख़बरें हैं। हालांकि अभी तक राहुल को नोटिस नहीं मिला है इसलिए इस खबर की पुष्टि नहीं हो पाई है। इस पूरे मामले पर जेएनयूएसयू और बाकी लेफ्ट विंग पार्टियों की चुप्पी भी बहुत सारे सवाल और संदेह खड़े करती है। क्या इन पार्टियों द्वारा की गई सामाजिक न्याय की बातें सिर्फ हवाई ही हैं? या जमीन पर भी इनका कुछ असर है 
 
निष्कासित हुए सभी छात्र दलित, पिछड़े, मुस्लिम और आदिवासी हैं। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से बहुजन छात्रों पर एकेडमिक हमले हुए हैं उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि देश अभी भी जातिवाद के दंश से बाहर नहीं आ पाया है। और इसका असर उच्च शिक्षण संस्थानों में भी दिखाई दे रहा है।

Courtesy: National Dastak
 

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