कॉमर्शियल बैंकों के चुनावी बांड के जरिये फंड हासिल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को छूट देकर मोदी सरकार ने पार्टियों की फंडिंग की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के बजाय और संदिग्ध बना दिया है।
मोदी सरकार ने अपने ताजा बजट में राजनीतिक फंडिंग के लिए नए तरह के प्रावधानों का ऐलान करते हुए दावा किया कि इससे यह व्यवस्था ज्यादा पारदर्शी हो जाएगी और राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया लोगों की निगाहों में रहेगी। लेकिन इन प्रावधानों पर थोड़ा सा गौर फरमाते ही पता चलने लगता है कि मोदी सरकार ने उल्टा काम किया है। राजनीतिक फंडिंग और गैर पारदर्शी बना दी गई है। ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिससे राजनीतिक फंडिंग की पूरी व्यवस्था लोगों की नजरों से ओझल रहे।
पहली बात तो यह है कि इन प्रावधानों के तहत आरबीआई एक्ट में संशोधन होना है जो इस बात की इजाजत देगा कि कोई भी व्यक्ति या कंपनी कॉमर्शियल बैंकों से चुनावी बांड खरीद सकता है। ऐसे बांडों के जरिये दिए गए दान या चंदे की जांच नहीं होगी।
दरअसल, इस व्यवस्था के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 में जो संशोधन होना है, उसके तहत राजनीतिक दलों के लिए बांड खरीद कर चंदा देने वाले शख्स या कंपनी की ओर से अपनी पहचान जारी करने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी।
दूसरी बात यह है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में आयकर कानून में संशोधन की बात की गई है ताकि चुनावी बांडों को जरिये राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के बारे में हर साल इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को जानकारी देने की बाध्यता खत्म हो जाए और उन्हें इनकम टैक्स में मिलने वाली छूट जारी रहे।
इन दोनों प्रावधानों का मिलाजुला असर यह होगा राजनीतिक पार्टियां चंदे या दान को जाहिर करने के लिए बिल्कुल बाध्य नहीं होंगी, जब तक यह रकम इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट या चेक से न दी गई हो।
चौथी बात यह है जिस प्रक्रिया के तहत चुनावी चंदे की इस व्यवस्था में परिवर्तन किया जा रहा है, वह काफी पेचीदा और दिक्कत भरी होगी।
संविधान के अनुच्छेद 109 के मुताबिक वित्तीय विधेयक धन विधेयक (मनी बिल) है। धन विधेयक में संशोधन करने के लिए राज्यसभा के पास कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की स्पष्ट परिभाषा दी गई है। इसमें भारत की समेकित निधि से जुड़े और टैक्स लागू करने से जुड़े मामलों के अलावा और कोई मामला न तो शामिल किया जाना चाहिए और न ही किया जा सकता है।
इसका मतलब यह है यह सरकार लगातार अनुचित संवैधानिक कदम उठा रही है। हर बिल को मनी बिल के दायरे में लाकर यह राज्यसभा में बहस की स्वस्थ राजनीतिक व्यवस्था से बचने की कोशिश कर रही है।
कानूनों में संशोधन
चुनावी चंदों से जुड़े मकसदों को हासिल करने के लिए सरकार ने वित्त विधेयक में जिन कानूनों में संशोधनों का प्रस्ताव किया है वे इस तरह हैं। जो संशोधन होंगे, उन्हें स्पष्ट करने के लिए वित्त विधेयक का एक अंश यहां दिया जा रहा है-
3. रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में संशोधन
133- इस प्रवाधान में 1 अप्रैल, 2017 से संशोधन लागू हो जाएगा।
134. भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के धारा 31 की उपधारा 2 के बाद निम्नलिखित उपधारा शामिल की जाएगी-
ये हैं-
(3)- जब तक कि कोई अन्य प्रावधान इसमें शामिल न हो, केंद्र सरकार किसी भी बैंक को चुनावी बांड जारी करने के लिए मान्यता दे सकती है।
स्पष्टीकरण – इस उपधारा के हिसाब से चुनावी बांड का अर्थ केंद्र सरकार की ओर से संभावित अधिसूचना के मुताबिक शेड्यूल बैंक द्वारा जारी बांड से है।
दूसरे शब्दों में कहें तो आरबीआई एक्ट में संशोधन कर ऐसे बांड जारी करने की इजाजत देना है, जिसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी वाणिज्यिक बैंकों से व्यक्ति या कंपनी खरीद सकती है।
2.आयकर अधिनियम 1961 में संबंधित संशोधन
11. 1 अप्रैल, 2018 से आयकर कानून की धारा 13ए में यह प्रावधान शामिल हो जाएगा ( क्लॉज बी) – स्वैच्छिक योगदान शब्द के बाद चुनावी बांड के जरिये योगदान के अलावा शब्द जोड़ा जाएगा।
आखिर में आए शब्द ‘और’ को हटा दिया जाएगा।
क्लॉज सी में मौजूद शब्द ‘और’ को हटा दिया जाएगा।
क्लॉज सी के बाद ये क्लॉज शामिल किए जाएंगे-राजनीतिक दलों की ओर से 2000 रुपये से अधिक का कोई भी योगदान बैंक अकाउंट पेई चेक या अकाउंट पेई बैंक ड्राफ्ट के तौर पर ही स्वीकार किया जाएगा। या फिर बैंक अकाउंट के जरिये इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा। या फिर चुनावी बांड के जरिये ही चंदा स्वीकार किया जाएगा।
स्पष्टीकरण- बांड का आशय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में मौजूद धारा 31 की उपधारा (3) में वर्णित बांड की परिभाषा है।
आईटी एक्ट 1961 की धारा 13ए भारतीय चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड पार्टियों की आय से संबंधित विशेष प्रावधानों से संबंधित है। आयकर की धारा 139 (4बी) में राजनीतिक पार्टियों को मिले योगदान की रिपोर्टिंग (सूचना ) का प्रावधान है।
साधारण शब्दों में कहा जाए तो आईटी एक्ट में इस तरह के संशोधन किए जाने हैं, जिससे चुनावी बांड के जरिये मिलने वाला चंदा इसके दायरे से बाहर रहे। हर साल इसके बारे में आयकर दफ्तर को बताना न पड़े और राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स से छूट मिलती रहे।
जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन
135. इस हिस्से के प्रावधान 1 अप्रैल, 2017 से लागू हो जाएंगे।
136. जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29सी की उप धारा (1) में निम्नलिखित चीजें शामिल की जाएंगी –
इस उपधारा के मुताबिक चुनावी बांड को राजनीतिक चंदे के तौर पर स्वीकार किया जाएगा।
स्पष्टीकरण– चुनावी बांड का अर्थ भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 31 की उपधारा 3 में वर्णित बांड की परिभाषा से है।
जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29 सी (वाजपेयी युग में किया गया संशोधन ) का श्रेय एनडीए सरकार लेती है उसके तहत सभी मान्यता प्राप्त और राज्य स्तर राजनीति पार्टियों को 20000 रुपये से ऊपर के हर चंदे का खुलासा करना होगा। भारतीय चुनाव आयोग हर साल राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को मिले चंदे की रिपोर्ट जारी करता है। राज्य की मान्यता प्राप्त पार्टियों को मिले चंदे की रिपोर्ट भी जारी की जाती है। यह जानकारी आयोग की वेबसाइट पर जारी होती है यह भी बताया जाता है कि यह चंदा पार्टी को कब मिला।
द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स Association for Democratic Reforms ने हाल में 2015-16 के दौरानर राजनीतिक दलों को मिले चंदे पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रसारित की है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस रिपोर्ट से जुड़ी कई खबरें आई हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में होने वाले बदलावों के बाद कॉमर्शियल बैंकों से चुनावी बांड खरीदने वाले लोगों और कंपनियों के नामों के खुलासे की बाध्यता नहीं रह जाएगी।
इस तरह देखा जाए तो चुनावी बांडों के जरिये राजनीतिक दलों के चंदे की व्यवस्था गैर पारदर्शी बना दी गई है। अगर इसे संसद से मंजूरी मिल जाती है तो आयकर कानून, आरबीआई कानून और जन-प्रतिनिधित्व कानून तीनों में सम्मिलित बदलाव से इस तरह की स्थितियां पैदा होंगी-
- ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां नकद में 2000 रुपये से कम का चंदा हासिल करने की कोशिश करेंगी। क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 सी के तहत 20,000 या उससे ऊपर के चंदे के बारे में आयकर विभाग बताना होता है। अब 2000 से नीचे के चंदे के बारे में जानकारी देने की बाध्यता नहीं रहेगी।
- चूंकि चुनावी बांड के जरिये हासिल चंदा आयकर विभाग या चुनाव आयोग के चुनावी चंदे की रिपोर्ट में शामिल नहीं होगा, इसलिए इसकी रिपोर्टिंग भी नहीं होगी।
- सिर्फ चेक या डिजिटल मोड के जरिये 20,000 रुपये के चंदे की रिपोर्टिंग ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट या चुनाव आयोग को होगी।
- कुल मिलाकर इन तमाम संशोधनों का असर यह होगा कि राजनीतिक दल अब चुनावी चंदे या आर्थिक योगदान के खुलासे के लिए बिल्कुल बाध्य नहीं होंगे, जब तक कि यह योगदान इलेक्ट्रॉनिक मोड या चेक से नहीं किया जाए।