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जिनके भाई-बेटे फ़ौज में हैं, वे कभी जंग नहीं चाहते

मशहूर पंजाबी कहानीकार वरयाम सिंह संधू के विचार :

"जब टीवी पर प्रोग्राम पेश करने वाले लड़के-लड़कियाँ पाकिस्तान को उसके घर में जाकर ठोकने की बातेंबहुत चबा-चबा कर कर रहे हैं, और देश के दूसरे हिस्सों में अंधी देशभक्ति के मारे मूर्ख लोग भांगड़ा नाच रहे हैं, वहीं पंजाब गहरी चिंता में डूबा गया है। सीमाओं पर रहने वालों को घर ख़ाली करने को कहा जा रहा है । लोग समान उठा कर पीछे को सुरक्षित ठिकानों की और जा रहे हैं। कई बेचारे यह कह रहे हैं कि पीछे कहाँ जाएँ? कोई रिश्तेदार संभालने वाला हो तो ही जाएँ । वे कहते हैं कि अब यहीं मरेंगे। मुझे 1965 और 1971 के दिन याद आ रहे हैं । हम और हमारे सारे रिश्तेदार सरहदी क्षेत्र में बसते थे, और हमारे सामने भी यह सवाल मुँह उठा कर खड़ा हो गया था कि कहाँ जाएँ ? हमने गाँव में टिके रहना ही बेहतर समझा जबकि बम गाँव के सिर के ऊपर से गुज़र कर पास में ही गिरे और गाँव में भी एक बम गिरा था ।

"अब भी हमारे रिश्तेदारों ने घर छोड़ दिए हैं। मैं और मेरे जैसे लोग ही इस दर्द को समझ सकते हैं।

"सरकारों को चाहिए था कि सरहदी लोगों को घरों से निकालने के पहले उनके रहने-ठहरने का भी कोई प्रबंध करतीं। कुछ भी हो जंग की हिमायत करने वाले और 'पकड़ लो, मार दो' करने वाले जनता के दुश्मन हैं।

जिनके भाई-बेटे फ़ौज में हैं वे कभी जंग नहीं चाहते । जंग वे लोग चाहते हैं जिनका अपना कुछ नहीं जाना। उनको सरहदों पर चलती तोपें दीवाली पर चलते अनार-पटाख़ों जैसी लगती हैं। ये सब लोग तमाशबीन हैं – बेक़सूर लोगों की जलती लाशों पर आग सेकने वाले।"

वरयाम सिंह संधु, साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त

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