नई दिल्ली। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने 5 नवंबर रात लगभग 11.30 बजे चेन्नई के अस्पताल में अंतिम सांस ली। 68 वर्षीय जयललिता के जीवन के कई रूप थे। जहां राज्य के ज्यादातर लोग उन्हें गरीब-कमजोर वर्ग की हितैषी के रूप में जानते थे तो कुछ सख्त और एक हद तक निरंकुश प्रशासक के तौर पर। निरंकुश प्रशासक के तौर पर उन्हें इसलिए जाना जाता है क्योंकि उन्होंने कई फैसले एक खास वर्ग को चुभने वाले लिए।
जयललिता ने नवंबर 2004 को वो कर दिखाया जो शायद कोई और सोच भी नहीं सकता था। कांचीपुरम मठ के मैनेजर की हत्या कर दी गई थी। इसकी जांच में पता चला कि कांची की शंकराचार्य हत्या में शामिल थे। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक काँची के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और 23 संतों को जयललिता की पुलिस ने पकड़कर वेल्लौर सेंट्रल जेल भेज दिया।
किसी शंकराचार्य की गिरफ़्तारी का यह पहला और अकेला मामला है। हिंदू धर्म में शंकराचार्य की अपनी एक महत्वता है और ऐसे में एक शंकराचार्य को गिरफ्तार करना न केवल पुलिस बल्कि सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती थी। जहां बड़े-बड़े राजनेता शंकराचार्यों के सामने घुटने टेकते हों वहां जयललिता ने उन्हें गिरफ्तार कराने का अदम्य साहस दिखाया।
कराचार्य की गिरफ्तारी के बाद न केवल प्रदेश में बल्कि समूचे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। मगर सरकार ने कोई समझौता न करते हुए जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार कर कानून के कठघरे में खडा किया और इसके बाद जयललिता न केवल सेक्युलर बल्कि लोकतात्रिक नेता के रुप में सामने आयीं।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिख रहे हैं…
वह नारी थी। तुलसीदास के हिसाब से पशु और शूद्रों की ही तरह "ताड़न की अधिकारी" थी। लेकिन जब क़ानून का राज लागू करने की बारी आई तो जयललिता ने मनुस्मृति के नियम तोड़ दिए।
भारत के इतिहास में पहली बार एक शंकराचार्य गिरफ़्तार हुआ। पुलिस पकड़कर ले गई। 23 चेलों के साथ जेल में ठूँस दिया।
भारतीय जातिवादी मीडिया जयललिता के प्रति, अपने अंतिम निष्कर्ष में, निर्मम साबित होगा।
देखते रहिए।
Courtesy: National Dastak