झारखंड में आरएसएस आदिवासियों और किसानों की जमीन जबरन छीने जाने के प्रावधान वाले एसपीटी-सीएनटी अध्यादेश के विरोध में एकजुट हो रहे आदिवासियों को गुमराह करके, अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काने में लगा हुआ है। संघ की नीति गुजरात की तरह यहाँ भी आदिवासियों को अल्पसंख्यकों से लड़वाकर अपनी राजनीति सेंकने की दिख रही है।
आदिवासियों और पिछड़ों की एकजुटता से परेशान संघ ने आदिवासियों में बेहद सम्मानित सिदो कान्हू की प्रतिमा के अपमान का मामला उछाला है और इस बहाने उन्हें अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काया जा रहा है। सिदो कान्हू की प्रतिमा के बारे में अफवाह उड़ाई गई कि किसी ने प्रतिमा को अपमानित किया है। अफवाह पर तुरंत कार्रवाई करते हुए पुलिस ने बहेट थाने में महबूल अन्सारी और उनके भाइयों पर मामला दर्ज कर पूरे मुद्दे को आदिवासी बनाम अल्पसंख्यक बना दिया।
इसके बाद 16 अक्टूबर को संथाल परगना के भोगनाडीह में करीब 25 हजार आदिवासियों की सभा हुई। धारा 144 लागू होने के बावजूद विशाल सभा हुई और प्रतिमा का शुद्धिकरण किया गया। सभा की तैयारियों को देखते हुए आयोजकों को पहले नजरबंद किया गया लेकिन बाद में सरकारी अधिकारी उन्हें खुद मंच पर लेकर आए।
आदिवासियों की सभा में सिदो कान्हू की प्रतिमा का मुद्दा तो प्रमुख रहा, लेकिन आदिवासियों ने एसपीटी-सीएनटी अध्यादेश में संशोधन की मांग भी उठाई। मामला पूरी तरह से अल्पसंख्यक विरोधी बनाने में तो संघ को अब तक कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन प्रशासन ने ही अल्पसंख्यक इलाकों में डर की भावना फैलाकर अपने मन्सूबे पूरे करने की कोशिश ज़रूर की।
साहेबगंज में इतिहास के प्राध्यापक प्रोफेसर रंजीत बताते हैं कि सिदो कान्हू की प्रतिमा के अपमान को लेकर एक माह तक खबरें फैलाई जाती रहीं, लेकिन प्रशासन इस मामले को बढ़ने देता रहा और तूल देता रहा। ये सब रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई। पत्रकार पल्लव मानते हैं कि यहाँ जान-बूझकर टकराव बढ़ाने की कोशिश हो रही है।
संथाल परगना में भाजपा का जनाधार बेहद कमजोर है, और 18 विधानसभा सीटों में से उसके पास केवल 5 हैं। तीन लोकसभा सीटों में से एक भाजपा जीत पाई है। मुख्यमंत्री और संघ के नेता इस इलाके में घुसपैठ बढ़ाने में लगे हुए हैं। मुख्यमंत्री भी भोगनाडीह आकर तमाम घोषणाएँ कर चुके हैं। यही के ताला मरांडी को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष भी बनाया गया है।
भोगनाडीह में आदिवासियों की भीड़ को भड़काने की कोशिश की गई लेकिन आयोजनकर्ताओं की समझदारी से मामला केवल सिदो कान्हू की प्रतिमा के सम्मान और आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा तक ही सीमित रहा।
मामले को तूल देने के लिए 17 अक्तूबर को गुमला के परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम में हिंदू जागरण मंच ने सरना सनातन महासम्मेलन कराया जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार ने सनातन और सरना धर्म को एक बताया। साथ ही उन्होंने आदिवासियों को धर्मांतरण के खिलाफ भी भड़काने की कोशिश की। आदिवासियों के साथ दिखने की कोशिश में मुख्यमंत्री रघुवरदास ने दुमका में सिदो कान्हू पार्क का भी उद्घाटन किया है।
Source: http://hindi.catchnews.com/india/communal-politics-taking-root-in-jharkhand-these-incidents-prove-it-1477021629.html/fullview