झारखंड में मुश्किल में फँसती भाजपा

झारखंड में सत्तारूढ़ भाजपा अब एकदम अलग-थलग पड़ती जा रही है और विपक्षी दलों में एकजुटता आती जा रही है। भाजपा का सहयोगी दल ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) भी अब भाजपा से अलग होने की फिराक में लग रहा है।
4 विधायकों वाले आजसू के साथ में रहने से 43 विधायकों वाली भाजपा को काफी सुविधा रहती है और 82 सदस्यों की विधानसभा में विधेयक पारित कराने में उसे दिक्कत नहीं होती है। हालाँकि अब सीएनटी-एसपीटी (छोटा नागपुर-संथाल परगना काश्तकारी कानून)एक्ट संशोधन अध्यादेश के कारण न केवल आजसू भाजपा से नाराज है, बल्कि खुद भाजपा के 13 आदिवासी विधायक भी नाराज हैं। ताला मरांडी को तो इस चक्कर में प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी तक गँवानी पड़ी है, जिनकी जगह पर सिंहभूम के सांसद लक्ष्मण गिलवा को कमान सौंपी गई है।

सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के बारे में आम धारणा है कि यह आदिवासियों और मूल निवासियों के लिए नुकसानदायक है। 32 आदिवासी संगठनों ने आदिवासी संघर्ष मोर्चा बनाकर इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। मोर्चे का कहना है कि इस संशोधन के जरिए सरकार उद्योगपतियों को जमीन देना चाहती है और स्थानीय लोगों की जमीन छीनना चाहती है।

आजसू को भी हर हाल में अपना मूल जनाधार सुरक्षित रखना है और आदिवासियों की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने वैसे भी सरकार की तरफ से दिया गया राज्य विकास परिषद के उपाध्यक्ष के पद का कार्यभार अब तक नहीं सँभाला है।

दूसरा मामला ओबीसी आरक्षण कोटे को बढ़ाने की माँग का है। आजसू ने मौजूदा ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 करने की माँग की है। आजसू के सहयोगी संगठन अखिल झारखंड पिछड़ा वर्ग महासभा के महासम्मेलन में सारे वक्ताओं ने इसी बात पर जोर दिया कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 73 फीसदी तक की जाए। ओबीसी मुख्यमंत्री रघुवरदास इससे इन्कार कर चुके हैं।

ऐसे में भाजपा सरकार के सामने खतरा हो गया है कि उसके कुछ ओबीसी और कुछ आदिवासी विधायक भी अलग हो गए, तो उसकी सरकार गिर जाएगी। आजसू को लगता है कि ऐसी किसी भी स्थिति में उसके आदिवासियों और पिछड़े वर्गों का भारी समर्थन मिल सकता है और उसकी राजनीतिक हैसियत बढ़ सकती है।

आरक्षण बढ़ाने के मसले पर ही भाजपा से निकाले गए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा और जनता दल यू के बीच तालमेल की संभावनाएँ बढ़ा रहे हैं। आजसू के भी नीतीश कुमार से अच्छे संबंध हैं। इनके साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को भी साथ आने में कोई दिक्कत नहीं होगी। ऐसे में भाजपा ने अगर अपने नाराज़ आदिवासी और ओबीसी विधायकों को न सँभाला तो उसकी सरकार ही खतरे में पड़ सकती है।
 

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