मशहूर पत्रकार और आउटलुक पत्रिका के डिप्टी एडिटर उत्तम सेनगुप्ता ने इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय के इस दावे को सरासर झूठ बताया है कि पत्रिका ने उनका फ़र्ज़ी इंटरव्यू छापा । उन्होंने कहा कि आउटलुक के पास इस इंटरव्यू की पूरी रिकार्डिंग है, फिर भी अगर रामबहादुर राय को लगता है कि आउटलुक गलत दावा कर रही है तो वे अदालती कार्रवाई कर सकते हैं। उत्तम सेनगुप्त ने यह भी जानकारी दी कि रामबहादुर राय ने इंटरव्यू के लिए आउटलुक के फोटोग्राफ़र ने उनके पास जाकर बाक़ायदा फोटोशूट किया था ( मतलब राय साहब ने विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाई थीं ) । क्या वे नहीं जानते थे कि फोटोशूट इंटरव्यू में छापने के लिए ही हो रहा है ?
उत्तम सेनगुप्ता यह चुनौती देते हुए ख़ासे उत्तेजित थे। वाक़या 10 अगस्त का है। प्रेस क्लब में आउटलुक पत्रिका में 'आरएसएस के बेटी उठाओ अभियान' की रपट को लेकर पत्रिका और खोजी पत्रकार नेहा दीक्षित के ख़िलाफ़ दर्ज हुई एफ़आईआर और पत्रकारिता पर पड़ रहे सत्ता के दबाव के विरोध में सभा चल रही थी। सभा में संघ संप्रदाय के पत्रकार भी पहुँचे थे। उन्होंने दो सवाल उठाये। एक तो यह कि एफ़आईआर सामान्य कानूनी प्रक्रिया है। इसका विरोध बेमानी है। दूसरा यह कि प्रेस क्लब ने तब सवाल नहीं उठाया जब आउटलुक ने रामबहादुर राय का फ़र्ज़ी इंटरव्यू छापा था।
यह आरोप सुनकर वहाँ मौजूद उत्तम सेनगुप्ता उत्तेजित हो गये। उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप करना चाहा, लेकिन संचालक की भूमिका में बैठे प्रेस क्लब के अध्यक्ष राहुल जलालाी ने उन्हें बाद में पूरा वक्त देने का आश्वासन देकर शांत किया। बहरहाल, बाद में मौक़ा मिला तो उत्तम सेनगुप्ता ने वही चुनौती दोहराई जिसका ज़िक्र ऊपर किया जा चुका है।
आख़िर मामला है क्या ?
दरअसल, आउटलुक ने इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय का एक इंटरव्यू छापा जिसमें उन्होंने कहा कि यह एक मिथ है कि डॉ अंबे़डकर ने संविधान लिखा था। डा.अंबेडकर ने बस भाषा दुरुस्त की थी जैसे कि तमाम एजेंसियों के सिपाही टूटी-फूटे अंग्रेज़ी में सूचनाएँ लिख लाते हैं और बड़े अफ़सर उन्हें दुरुस्त करके रिपोर्ट बना देते हैं। आउटलुक की संवाददाता प्रज्ञा सिंह ने इस इंटरव्यू के सिलसिले में रामबहादुर राय से 27 और 28 मई को दो बार मुलाकात की। आप इस इंटरव्यू को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
राय साहब ने इस इंटरव्यू में ऐसी तमाम बातें कहीं जो अंबेडकर के योगदान को कमतर बताती हैं तो बवाल तो होना ही था। रामबहादुर राय संघ संप्रदाय के बड़े पत्रकार माने जाते हैं। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। उनकी गिनती 'समर्पित' पत्रकारों में होती है। राजनीतिक उतार-चढ़ाव और सत्ता बनने-बिगड़ने के खेल पर वे रुचिपूर्वक कलम चलाते रहे हैं। पिछले दिनों मोदी सरकार ने उन्हें इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र का अध्यक्ष बनाया, हाँलाकि कला के क्षेत्र में योगदान तो छोड़िये, उसकी रिपोर्टिंग से भी उनका लेना-देना नहीं रहा। शायद यह उन्हें पद्मश्री भर देने की भरपाई थी, क्योंकि विद्यार्थी परिषद से ही जुड़े रहे एक अन्य पत्रकार रजत शर्मा को मोदी सरकार ने एक झटके में पद्मभूषण दे दिया था। इसे 'महज़ पद्मश्री' राम बहादुर राय जैसे समर्पित पत्रकार का अपमान बताया गया था। ऐसे भी रजत शर्मा के इंडिया टीवी की ख़्याति का आधार, 'धरती पर गाय चुराने आये एलियन' या चुड़ैल का चमत्कार जैसी ख़बरें रही हैं। संविधान कहता है कि अंधविश्वास फैलाना जुर्म है। लेकिन सरकार ऐसी पत्रकारिता करने वालों को सम्मानित करती है !
बहरहाल, आउटलुक में रामबहादुर राय का इंटरव्यू संघ के इशारे पर डा.अंबेडकर का क़द छोटा करने की कोशिश है। बीजेपी को चुनावी हाट में अपनी दुकान फ़ीकी पड़ने का ख़तरा नज़र आया और फिर ऐसा हुआ जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। रामबहादुर राय ने साफ़ कह दिया कि उन्होंने आउटलुक को कोई इंटरव्यू दिया था। उन्होंने इसे राजनीतिक साज़िश बता दिया। आप उनका यह खंडन यहाँ पढ़ सकते हैं।
लेकिन आउटलुक भी प्रतिष्ठित पत्रिका है। उसके पास इस इटरव्यू की रिकार्डिंग है जिसका एक हिस्सा विवाद भड़कने पर यूट्यूब में डाला जा चुका है। फिर भी शाखामृग पत्रकार, इसे आउटलुक की बदनीयती का सबूत बताते घूम रहे हैं। आप रामबहादुर राय का इटरव्यू नीचे देख सकते हैं।
अब थोड़ा पत्रकारों के दमन के ख़िलाफ हुई सभा का नतीजा भी जान लीजिए। पत्रकारों के खिलाफ़ एफ़आईआर को सामान्य कानूनी प्रक्रिया बताने वाले शाखामृग पत्रकारों की कई वरिष्ठ पत्रकारों ने कड़ी आलोचना की। कहा गया कि किसी रिपोर्टर के खिलाफ देश भर में रिपोर्ट दर्ज करा देना, उत्पीड़न का पुराना तरीक़ा है। इससे खोजी रिपोर्टिंग को लेकर पत्रकार और संस्थान का उत्साह कम हो जाता है। ख़बर का तथ्यात्मक ढंग से खंडन किया जाना चाहिए। लोगों ने नेहा दीक्षित की मेहनत को सराहते हुए उसकी रिपोर्ट को खोजी पत्रिकारिता का नमूना बताया।
इस मौके पर ट्रेड यूनियनों के कमज़ोर होने पर भी गहरी चिंता जताई गई जिसकी वजह से पत्रकारों की सेवा सुरक्षा का मुद्दा बहुत पीछे चला गया है। माना गया कि मोदी राज में पत्रकारिता करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा हाल इमरजेंसी में भी नहीं हुआ था। सभा में वरिष्ठ पत्रकार ज्योति मल्होत्रा, विजय क्रांति, सबीना, एस.के.पांडेय, सी.पी.झा,हरतोष सिंह बल, राजीव रंजन, प्रशांट टंडन, राजेश वर्मा आदि मौजूद थे।
Courtesy: mediavigil.com