काले धन के खात्मे के लिए नहीं हुई है नोटबंदी

प्रधानमंत्री अगर वास्तव में ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार से लड़ने के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें इसकी जड़, चुनावी भ्रष्टाचार को निशाना बनाना चाहिए था।


Photo credit: Business Standard

आज ही सिटीजन पीटिशन को पढ़ कर इसमें हस्ताक्षर करें। आज आखिरी तारीख।
Read and sign the citizen's petition; today, closing day.
 
पिछले साल 8 नवंबर को जब पहली बार नोटबंदी का ऐलान किया गया तो इक्विटी मास्टर की हमारी टीम ने सोचा कि यह बड़ा फैसला है। इसमें भारत की अर्थव्यवस्था में एक बड़े बदलाव का माद्दा दिख रहा था।
 
लेकिन हम इक्विटी मास्टर में सीधे कोई राय पेश कर फुरसत नहीं पा लेते। हम लगातार तथ्यों,  आंकड़ों और जमीनी हालात पर नजर रखते हैं। और अगर सचाई हमें अपनी राय बदलने को कहती है तो हम ऐसा ही करते हैं।
 
20वीं सदी के दिग्गज अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा था-
 
जब मेरी जानकारी में बदलाव होता है तो मैं अपना निष्कर्ष भी बदल देता हूं। आप क्या करते हैं जनाब।
 
शेयरों पर नजर रखने, उनके विश्लेषण और मूल्यांकन से जानकारियों को प्रोसेस करने के दो दशकों से ज्यादा समय के हमारे काम में कीन्स की यही सोच अपनाई जाती है।
 
नोटबंदी की यह गाथा शुरू होते ही इसमें बड़ी खामियां दिखनी शुरू हो गई थीं। प्लानिंग बेहद खराब थी और उन्हें लागू भी अच्छे तरह से नहीं किया गया था। हमने अपने पाठकों को चेताया था कि नोटबंदी कोई जादू की छड़ी नहीं है, जैसा कि मोदी जी दावा कर रहे हैं।
 
ब्लूमबर्ग की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने हमारे इस शक को पुख्ता कर दिया है-
 
8 नवंबर को नोटंबदी की वजह से 15.4 लाख करोड़ रुपये के नोट बेकार हो गए। पीएम मोदी को उम्मीद थी कि इसमें 5 लाख करोड़ अघोषित रहेंगे क्योंकि ये पैसे टैक्स न चुका कर जमा किए गए होंगे।

लेकिन ब्लूमबर्ग ने इस नोटबंदी की प्रक्रिया से जुड़े बड़े अधिकारियों के हवाले से बताया कि 30 दिसंबर 2016 तक नोट बदलने की आखिरी तारीख तक 14.79 लाख करोड़ रुपये आ चुके थे। इसका मतलब 500 और 1000 रुपये के तौर पर सर्कुलेशन में मौजूद 97 फीसदी रकम बैंकों में वापस लौट चुकी थी। 
 
टिप्पणीकारों और विशेषज्ञों का कहना है कि काले धन के खिलाफ मोदी के अभियान के लिए यह बड़ा झटका है।
 
हमारा सवाल है – क्या मोदी का यह अभियान वास्तव में काले धन के खिलाफ लड़ाई है?

सड़क चलते किसी भी शख्स से पूछिये कि इस सिस्टम में सबसे ज्यादा काला धन किसके पास है। छूटते ही वे पूछेंगे कि राजनीतिक नेताओं और राजनीतिक दलों के पास।
 
यह आश्चर्य है कि सड़क चलते शख्स को जो समझ में आ रहा है वह पीएम के दिमाग में क्यों नहीं आया।
 
प्रधानमंत्री अगर वास्तव में ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार से लड़ने के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें इसकी जड़, चुनावी भ्रष्टाचार को निशाना बनाना चाहिए था।
 
बिजनेस टुडे में छपे इस लेख में काले धन की समस्या पर चोट की गई है-
 
चुनाव में पैसे की भूमिका ने भ्रष्टाचार का दुश्चक्र पैदा किया है। चुनाव पर भारी रकम खर्च करने वाला जब जीतता है तो हर तरीके की धांधली से अपने पैसे की वसूली करना चाहता है। और इस तरह पैसा कमाने के लिए नेताओं और नौकरशाहों का एक गठजोड़ तैयार हो जाता है। ये दोनों ताकतवर गुट भ्रष्टाचार रोकना मुश्किल बना देते हैं।

लेकिन राजनीतिक पार्टियों के पास जमा काले धन को निकालने की जगह मोदी जी ने उल्टा किया। काले धन के खिलाफ इस कथित लड़ाई में बड़े ही सुविधाजनक तरीके से देश की 1866 पार्टियों के पास जमा धन की अनदेखी कर दी गई।

एक पुराना कानून राजनीतिक पार्टियां को सैकड़ों करोड़ रुपये अनाम लोगों से चंदे के तौर पर लेने की इजाजत दे देता है। इनमें से ज्यादातर कैश होता जिसे राजनीतिक दल बगैर किसी जांच का सामना किए अपने बैंक अकाउंट में जमा करा सकते हैं। 

जबकि हम और आप जैसे लोगों को अपनी जमा रकम की एक-एक पाई का हिसाब देना होता है। या फिर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की पूछताछ का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि सब कुछ ठीक नहीं है। जो गड़बड़ी है वह निराश करने वाली है।

हमारे एक्सपर्ट विवेक कौल नोटबंदी के दिन से ही इस मामले में इसके पीछे की सचाई बयां करते रहे हैं। वह आम लोगों और राजनीतिक नेताओं के बीच बराबरी लाना चाहते हैं। लेकिन उनके इस काम की सफलता आप पर निर्भर करती है। विवेक ने आपको एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा है।  वह इसे राष्ट्रपति को भेजने का वादा कर रहे हैं, जिसमें उनसे इनकम टैक्स की धारा 13ए को खत्म करने की अपील की जाएगी।

आपका हस्ताक्षर 25000 के हस्ताक्षर के उनके लक्ष्य को पूरा करेगा। 6 जनवरी 2017 तक यह संख्या 21,486 लोगों को पार कर चुका है।
 
विवेक के इस मिशन में उनका साथ दें। आज ही इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करें।

अगर आप इककम टैक्स की धारा 13ए का अध्ययन करते हैं तो पाएंगे कि राजनीतिक दलों को इस देश में खास तवज्जो दी जा रही है। आम और हम ऐसी सुविधा की उम्मीद भी नहीं कर सकते।
 
उदाहरण के लिए नोटबंदी अभियान के दौरान राजनीतिक दलों को 500 और 1000 के नोट अपने बैंक अकाउंट में जमा करने की छूट थी)। उनसे कोई सवाल नहीं पूछा गया ( जब तक कि यह रकम 20,000 रुपये से ज्यादा न हो) । लेकिन आम लोगों से उनकी गाढ़ी कमाई की रकम जमा करने के लिए पहचान पत्र मांगा गया।
 
साफ है कि हम बराबरी की लड़ाई हार रहे हैं। लेकिन अब भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।

इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले 21000 लोगों में शामिल होइए और हमारे साथ बराबरी की इस लड़ाई में हिस्सेदार बनिए।
 
इस ज्ञापन को यहां पढ़ कर इस पर हस्ताक्षर कर सकते हैं ( आज इस पर हस्ताक्षर की आखिरी तारीख है। )
 Read and sign the petition today…
 
अंकित शाह इक्विटी मास्टर में रिसर्च एनालिस्ट हैं ।
 
सौजन्य – इक्विटी मास्टर Equity Master
 
 

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