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कानून ताक पर रखकर की गई नोटबंदी? बता रहे हैं गोविंदाचार्य

ई दिल्ली। नोटबंदी के फैसले के खिलाफ पूर्व संघ विचारक और बीजेपी के नेता रह चुके केएन गोविंदाचार्य ने आर्थिक मामलों के वित्त सचिव शक्तिदास दास को पिछले दिनों लीगल नोटिस भेजा है। नोटबंदी के बाद से ही देश भर में लोगों को हुई परेशानी के चलते कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। इसके अलावा कई लोगों के इस फैसले से परेशान होकर आत्महत्या करने की भी खबरें सामने आई थीं।

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इसी आधार पर केएन गोविंदाचार्य ने आर्थिक मामलों के वित्त सचिव शक्तिकांत दास को लिगल नोटिस भेजकर उन लोगों के लिए मुआवजे की मांग की है जिनकी मृत्यु इस फैसले के खराब क्रियान्वयन की वजह से हुई। गोविंदाचार्य के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, वित्त सचिव शक्तिकांत दास और आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को यह नोटिस भेजा गया है जिसमें उन्होंने मुआवजे का भुगतान अगले 3 दिनों में करने की बात कही है।

इस मामले में गोविंदाचार्य ने कहा था कि, यह स्वागतयोग्य कदम है अगर इसका क्रियान्वयन ठीक से देशहित में किया जाए। लेकिन मैं इस बात से हैरान हूं कि अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय में यह कहा कि केंद्र सरकार ने आरबीआई कानून की धारा 26.2 के मुताबिक काम किया है।
 
सत्याग्रह के अनुसार, नोटबंदी की अधिसूचना जारी करने के बाद आठ नवंबर को ही सरकार ने एक दूसरी अधिसूचना भी जारी की थी। इसके जरिये लोगों को कुछ मामलों में पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट दी गई थी। यह दूसरी अधिसूचना और इसमें बार-बार किये जाने वाले संशोधन आरबीआई कानून 1934 की धारा 26.2 का उल्लंघन हैं। क्योंकि इसके लिए रिजर्व बैंक के बोर्ड से अनिवार्य मंजूरी नहीं ली गई।
 
सरकार को आरबीआई कानून 1934 की धारा 26.2 या अन्य किसी कानून के तहत यह अधिकार नहीं है कि वह बंद हुए नोटों को कुछ विशेष लेनदेन के लिए चलाने की अनुमति दे दे या इसके सीमित इस्तेमाल के लिए अधिसूचना जारी कर दे। (सरकार ने प्रतिबंधित नोटों को निश्चित स्थानों जैसे पेट्रोल पंप, रेलवे काउंटर, मेट्रो काउंटर, अस्पतालों आदि में इस्तेमाल की मंजूरी दी है।) इसलिए दूसरी अधिसूचना जारी करके उसमें बार-बार संशोधन करना गैरकानूनी है।
 
राजपत्र में आठ नवंबर की जो पहली अधिसूचना जारी हुई उसमें इस बात का जिक्र है कि आरबीआई के बोर्ड ने 500 और 1000 रुपये के सभी नोटों को बंद करने की सिफारिश की है। लेकिन ठीक इसके बाद, प्रतिबंधित नोटों के सीमित इस्तेमाल से संबंधित जो अधिसूचना आरबीआई कानून की धारा 26.2 के तहत ही जारी की गई, उसमें रिजर्व बैंक के बोर्ड की  सिफारिश का कोई जिक्र नहीं है।
 
बगैर रिजर्व बैंक के बोर्ड की सिफारिश के जारी की गई अधिसूचना न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि यह रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का भी हनन है जिसकी गारंटी आरबीआई कानून 1934 उसे देता है। यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि पिछली सरकारों ने बैंकों के कामकाज में जिस तरह से हस्तक्षेप किया उससे एनपीए की भारी समस्या खड़ी हो गई है और पूरा बैंकिंग तंत्र बर्बाद होने की कगार पर है।
 
यह स्पष्ट है कि इतने बड़े कदम को देखते हुए आम लोगों को कुछ रियायतें दी ही जानी चाहिए। लेकिन ये सभी सुविधाएं विभिन्न सरकारों और विभागों की मनमर्जी के बजाय कानून सम्मत होनी चाहिए थीं। (उत्तर प्रदेश में कोई भी बंद किए गए नोटों से स्टांप पेपर खरीद सकता है। जबकि यह सुविधा पूरे देश के लोगों को दी जानी चाहिए थी।)

सरकार के बेतुके निर्णयों की वजह से नोटबंदी की योजना पटरी से उतर गई है और आम लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इससे देश की आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित हो रही है।
 
गैरकानूनी तरीके से पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट से पैदा हुआ संकट बगैर किसी तैयारी के किए गए फैसले का नतीजा है। सरकार को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि एटीएम में बगैर तकनीकी बदलाव किए इनसे नए नोटों को जारी करना संभव नहीं है। लोगों को पहले तो बताया गया कि उनकी परेशानी केवल कुछ ही दिनों की है लेकिन फिर इस दिलासे में बार-बार बदलाव किया गया – पहले दो दिन कहा गया फिर तीन हफ्ते और अब 50 दिन। इससे ग्रामीण भारत और देश भर में कारोबार ठप पड़ गया है। इसकी वजह से न सिर्फ देश को बल्कि अर्थव्यवस्था से जुड़े हर क्षेत्र को इतना नुकसान होगा जिसकी भरपाई करना मुमकिन नहीं होगा।

Courtesy: National Dastak

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