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कौन दे रहा है रोहित वेमुला के दलित होने को चुनौती

गुंटुर के जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में रोहित वेमुला और उनके परिवार को साफ तौर पर दलित बताया है। तो क्या अब मोदी सरकार की ओर से गठित पैनल हमें कुछ दूसरा सच बताने वाला है।


Photo Courtesy: ndtv.com

मीडिया के वर्ग में रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में रिटायर्ड जस्टिस ए के रूपनवाल कमीशन की रिपोर्ट की छिटपुट खबर आने के साथ यह अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि इस पैनल ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के निलंबित वाइस चासंलर अप्पा राव पोडाइल को आरोप मुक्त कर दिया है।

खबरों से ऐसा जाहिर होता है कि आत्महत्या की परिस्थितियों की जांच में हमारे समाज में मौजूद पितृसत्तात्मक नजरिये का इस्तेमाल किया गया। यह भी लगता है कि रिपोर्ट में हमारे समाज में गहरे धंसे पितृसत्तात्मक नजरिये को आधार बनाया गया और रोहित को गैर दलित करार दिया गया। पैनल का गठन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश पर किया गया था। पैनल का उद्देश्य यह पता लगाना था कि रोहित वेमुला ने आखिर किन परिस्थितियों में आत्महत्या की। रिपोर्ट में कहा गया है प्रतिभाशाली रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला का परिवार अनुसूचित जाति से ताल्लुक नहीं रखता।

रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि वेमुला परिवार दलित नहीं है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से जब बात की गई तो उन्होंने इस मामले में चुप्पी साध ली। जबकि रिपोर्ट यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी यूजीसी को सौंप दी गई है।
क्या रोहित को गैर दलित बताना हमारे समाज में पितृसत्तात्मक मूल्यों से हमारी नजदीकी का नतीजा है, जो दुनिया को इस कदर जाति के नजरिये से देखता है कि सार्वजनिक विमर्श पर यह पूरी तरह हावी हो जाता है। या फिर रोहित को गैर दलित घोषित करने के पीछे कोई और कुटिल चाल है।

दो महीने पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति (एनसीएसएन) के अध्यक्ष पीएल पूनिया ने गुंटुर के जिलाधिकारी की रिपोर्ट का हवाला दिया था। रिपोर्ट में जिलाधिकारी ने वेमुला परिवार की जिंदगी और उसकी कठिन परिस्थितियों का आकलन किया था। रोहित और उसके भाई राजा के बड़े होने के दौरान दोनों को और उनकी मां राधिका वेमुला को सामाजिक भेदभाव भरी बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। जिलाधिकारी की रिपोर्ट में साफ था कि राधिका वेमुला और उनके दोनों बेटों रोहित और राजा को किस कदर वंचना और अलगाव का सामना करना पड़ा।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति की यह रिपोर्ट 22 जून, 2016 को आई थी और यह गुंटुर को कलेक्टर की रिपोर्ट पर आधारित थी।
 
यहां पर इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ा जा सकता है।
 
रिपोर्ट में गुंटुर के जिलाधिकारी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि रोहित वेमुला और उनका परिवार दलित ही है।  

एनसीएसस में जमा की गई गुंटुर जिलाधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया है कि उपलब्ध दस्तावेजी सबूत से साबित होता है कि रोहित चक्रवर्ती वेमुला हिंदू-माला जाति के थे। और इस जाति को आंध्र प्रदेश में अनुसूचित वर्ग में रखा गया है। इसके साथ ही रोहित वेमुला का परिवार गरीबी रेखा से नीचे का है।

गुंटुर के जिलाधिकारी ने इस मामले में बारीकी से छानबीन की। इसमें ज्वाइंट कलेक्टर-2 के सामने एक शपथपत्र का जिक्र किया गया है। यह शपथपत्र रोहित सी वेमुला की नानी का है। इसमें रेवेन्यू डिवीजनल ऑफिसर और एसडीएम गुंटुर की भी रिपोर्ट है, जिसमें गुंटुर के तहसीलदार की भी रिपोर्ट है जो यह बताती है कि 19.05.2004 और फिर 29.01.2005 को रोहित सी वेमुला को गुंटुर के तहसीलदार ने अनुसूचित जाति (एससी-माला जाति) के सर्टिफिकेट जारी किए। 2014 और 2015 में एक बार फिर ये सर्टिफिकेट जारी किए गए। रोहित के भाइयों और बहन को भी 2007 और 2014 में अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट दिया गया।

इसके साथ ही इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि रोहित अपनी पूरी जिंदगी अनुसूचित जाति के लोगों के इलाके में रहे। उनके पास एक प्रामाणिक जाति प्रमाणपत्र था। इसी के आधार पर उन्हें पहले कॉलेज और फिर यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला था।

इसलिए रोहित के नजरिये और फिर समाज के नजरिये से देखें तो वो अनुसूचित जाति के व्यक्ति के रूप में रहे और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों प्रति समाज में चले आ रहे बरसों पुराने भेदभाव को महसूस भी किया और फिर बाद में इसके खिलाफ आवाज भी उठाई। खास कर अपने विश्वविद्यालय में उन्होंने इस भेदभाव से लोहा लिया। ये ऐसे तथ्य हैं, जिनसे कोई इनकार नहीं कर सकता है। इनके दस्तावेजी सबूत हैं।  

यह एक साफ मामला है कि एक बच्चा एक समाज में बड़ा होता है। उसका इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि उसके मां या बाप में से कोई अनुसूचित जाति का है या नहीं। उसका पालन-पोषण दलित समुदाय करता है। ऐसे में उसे दलित समुदाय का ही व्यक्ति मानना होगा। इसलिए वह इस समुदाय के लिए सरकार की तरफ से दी जाने वाली सहूलियतों का भी हकदार होगा।

रोहित वेमुला के मामले में यह भी तथ्य है जब तक वह जीवित रहे उन्हें अनुसूचित जाति के व्यक्ति के तौर पर ही स्वीकार किया गया। यूनिवर्सिटी में उनके छात्र दोस्त, यूनवर्सिटी के पदाधिकारी, उनके दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी उन्हें इस समुदाय के व्यक्ति के तौर पर ही देखते थे।

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है आज भी लोगों के साथ व्यवहार जाति की सदियों से चली आ रही परंपरा के आधार पर होता है। रोहित को जाति के जहर का शिकार होना पड़ा। यही वजह है कि पहले उन्हें यूनिवर्सिटी और फिर हॉस्टल से निकाला गया। उनकी स्कॉलरशिप रोक दी गई और इसी दुख में आखिरकार उन्हें मौत को गले लगाना पड़ा । उन्होंने 18-12-2015 को वाइस चासंलर को जो चिट्ठी लिखी, उसमें उनका दर्द साफ छलक रहा था। इसमें उन्होंने कहा था कि दलित छात्रों के साथ यूनवर्सिटी में अलग व्यवहार होता है। वह सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति झेलते  हैं। उन्होंने लिखा था यह भेदभाव इतना ज्यादा है कि यूनिवर्सिटी को उनके एडमिशन के समय ही 10 एमजी सोडियम असाइड दे देना चाहिए ताकि अंबेडकर को पढ़ते हुए आने वाले भावों से निपटने का लिए इस्तेमाल कर सकें। या फिर यूनिवर्सिटी को दलित छात्र-छात्राओं के कमरे में बेहतर रस्सी सप्लाई की जाए।
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अपनी चिट्ठी में वह आगे लिखते हैं- यूनवर्सिटी के स्कॉलर,पीएचडी स्टूडेंट्स दलितों के आत्मसम्मान की लड़ाई में इस चरण पर पहुंच चुके हैं, जहां से बाहर निकालने कोई रास्ता नजर नहीं आता। इसलिए महामहिम से मेरी अपील है कि मेरे जैसे छात्रों के लिए दया मृत्यु का इंतजाम कर दिया जाए। यही भावनाएं उन्होंने अपने सुसाइड नोट में जाहिर की थीं। इसमें उन्होंने अपने जन्म को एक भयानक दुर्घटना बताया।
एनसीएससी की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि आयोग के चेयरपर्सन के हैदराबाद दौरे के दौरान जो विचार-विमर्श हुआ, उसमें गुंटुर के जिलाधिकारी ने विस्तार से बताया कि पिछले दस साल में रोहित वेमुला उनके भाई राजा वेमुला और उनकी बहन को जाति प्रमाणपत्र कई बार दिए गए और इस बीच किसी ने उन्हें यह सर्टिफिकेट दिए जाने का विरोध नहीं किया।
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रोहित की मां अनूसूचित जाति की हैं। मां राधिका वेमुला ने ही एक ऐसे दलित इलाके में इन बच्चों की परिवरिश की , जहां उनके लिए वंचना और भेदभाव का माहौल था। गुंटुर के जिलाधिकारी का यह पक्का नजरिया है कि रोहित अनुसूचित जाति के व्यक्ति थे और इस पर शक का कोई कारण नहीं है।

अब यह देखना है कि जब यह मामला एक बार फिर पार्लियामेंट में उठेगा (और निश्चित रूप से उठेगा) तो मोदी सरकार क्या रुख अपनाती है। आने वाले दिनों में हम यह भी देख पाएंगे कि जिस जस्टिस रूपनवाल पैनल ने रोहित को गैर दलित बताया है, उसका इस निष्कर्ष के पीछे क्या तर्क रहा है।

 बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं है कि अपनी मृत्यु में भी आइकन बन गए रोहित की जिंदगी और कहानी एक दलित से किया जाने वाला भेदभाव और वंचना का ब्योरा है।
    

Home Page Photo Courtesy: PTI News

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