Categories
Gender

कृष्ण की मूर्ति से रचाया अंधी लड़की का ब्याह, बताया कलियुग की मीरा

नई दिल्ली। हैदराबाद की आराधना याद हैं ना कि भूल गए। जी हाँ वही 13 साल की आराधना जिसने अपने परिवार की सुख शान्ति के लिए 68 दिन का व्रत रखा और अंतत उसकी मौत हो गई। बात को आगे बढ़ाने से पहले आरधना के बारे में कुछ तथ्य बताते चलें, हैदराबाद में एक 13 साल की लड़की की 68 दिन का उपवास रखने के बाद मृत्यु हो गई थी।  यह लड़की जैन धर्म के पवित्र दिनों 'चौमासा' के दौरान व्रत पर थी और पिछले हफ्ते 68 दिन उपवास के बाद उसकी मौत हो गई।  

Blind girl married to Krishna
 
आठवीं में पढ़ने वाली आराधना हैदराबाद के स्कूल में पढ़ती थी।  परिवार का दावा था कि 68 दिन के उपवास खोलने के दो दिन बाद उसे अस्पताल में भर्ती कर दिया गया जहां दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हुई। 
 
आराधना के अंतिम संस्कार में कम से कम 600 लोग उपस्थित थे जो उसे 'बाल तपस्वी' के नाम से संबोधित कर रहे थे।  यही नहीं आराधना की शव यात्रा को 'शोभा यात्रा' का नाम दिया गया था। इस परिवार को जानने वालों का कहना था कि लड़की ने इससे पहले 41 दिन के उपवास भी सफलतापूर्वक रखे थे।
 
हम लगातार नए दौर की तरफ बढ़ रहे हैं, जहाँ शिक्षा , रोजगार और इंटरनेट के माध्यम, से पूरी दुनिया से जुड़ रहे हैं। लेकिन क्या इन सभी जुड़ावों के बाद भी हम अंधविश्वास को छोड़ पाए हैं? शायद नहीं!!  ताज़ा मामला टीकमगढ़ के दिगौड़ा जिले का है जहाँ एक नेत्रहीन लड़की शालिनी ने कृष्ण की मूर्ति के साथ विवाह किया।
 
ताज्जुब की बात यह है कि सोशल मीडिया से लेकर उसके परिवार तक इसे भक्ति से सराबोर कदम बता रहे हैं और शालिनी की तारीफ कर रहे हैं। यही नहीं उसके विवाह उत्सव में भारी संख्या में लोग पहुंचे।  
 
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई की तर्ज पर शालिनी ने पूरे धूमधाम से हिंदू रीति से कृष्ण की मूर्ति के साथ विवाह किया। शालिनी कहती हैं कि मेरे तो सब कुछ कृष्ण है और मैनें उन्ही से प्यार किया है । ऐसे वर को क्या वरू, जो जन्मे और मर जाय ! – वर वरिये गोपाल को जो नाम अमर कर जाये। 

सोशल मीडिया कि यह पोस्ट किसी भी तार्कि इंसान को असहज कर सकती है। तब जब हम देश में डिजीटल विकास और मंगलयान की बात कर रहे हो ! अगर मीरा की बात की जाए तो मीरा ने कृष्ण का वरण अपने आपको आपने सामंती परिवार से बचने के लिए किया था। मीरा जन्म से देखने में समर्थ थी, मीरा ने कृष्ण से ब्याह भी नहीं किया था! 
 
क्या यह तर्कसंगत नहीं कि अगर शालिनी का विवाह किसी सक्षम व्यक्ति से किया गया होता या इस तरफ सोचा गया होता तब भी क्या वह एक पत्थर की मूर्ति से विवाह को राजी हो जाती। इस विवाह के बाद सबसे बड़ा सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि क्या शालिनी को सामाजिक सुरक्षा मिलेगी? शालिनी दिव्यांग है इसलिए यह प्रश्न समसामयिक है।
 
देवदासी प्रथा के बारे में हम सभी जानते हैं कि किस तरह से उनका विवाह देव से करवाने के बहाने उन्हें मंदिरों में पंडितों की ताड़ना का शिकार होना पड़ता है। यही नहीं भगवान् को भेंट की गई ये देवदासियां वेश्यावृति के नरक में असमय ही ढकेल दी जाती हैं। 
 
इस तरह की परमपराएं न सिर्फ नारी की अस्मिता पर कुठाराघात है वर्ण सामजिक परिदृश्य की गन्दगी को भी सामने लाती है। इस तरह के प्रावधानों पर सरकार को चेतना चाहिए और कड़े कदम उठाने चाहिए।

Courtesy: National Dastak

Exit mobile version