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क्या मोदी ने सहारा समूह से 55 करोड़ रुपये की रिश्वत ली है?

पिछले कुछ महीनों के दौरान दिल्ली के गलियारों में एक दस्तावेज काफी चर्चित रहा है। इस पर गौर करें तो पाएंगे कि सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के नजदीकी अलग-अलग लोगों ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी और कुछ अहम राजनीतिक नेताओं को कैश के तौर पर भारी रकम दी है।

आठ नवंबर को ठीक रात 8 बजे जब पीएम नरेंद्र मोदी देश से काले धन को मिटाने के नाम पर नोटबंदी का ऐलान कर रहे थे, ठीक उसी दौरान देश की पांच केंद्रीय एजेंसियां या आयोग उन दस्तावेजों को दबाए बैठे थे, जो कह रहे थे कि उन्होंने 55 करोड़ रुपये यानी आठ मीलियन डॉलर से ज्यादा की रिश्वत खाई है। जिन दस्तावेजों को दबा कर रखा गया है उनसे यह पता नहीं चलता कि मोदी की 13 अलग-अलग ट्रांजेक्शन के जरिये 55.2 करोड़ रुपये दिए गए या 40.1 करोड़ रुपये। ये लेनदेन 30 अक्टूबर 2013 और 29 नंवबर 2013 के बीच हुए थे। ये लेनदेन दो अलग-अलग मदों में दिखाए गए हैं।

 पिछले कुछ महीनों से दिल्ली में घूम रहे इन दस्तावेजों पर गौर करें तो पाएंगे कि सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के नजदीकी अलग-अलग लोगों ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी और कुछ अहम राजनीतिक नेताओं को कैश के तौर पर भारी रकम दी है। इन दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि सहारा समूह ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की की कोषाध्यक्ष साइना एनसी और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी रिश्वत दी है। इन लोगों को भी बड़ी रकम दी गई।

17 नवंबर को द कैरावन और दि इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) ने मोदी, चौहान, रमन सिंह, साईना एनसी और शीला दीक्षित को ई-मेल किया और चिट्ठी लिखी और इन दस्तावेजों के बारे में पूछा। ये दस्तावेज आयकर विभाग ने 22 नवंबर 2014 को एनसीआर में सहारा समूह की अलग-अलग इमारतों पर छापों के दौरान बरामद किए थे। लेकिन इस लेख के प्रकाशन तक उनका कोई जवाब नहीं आया था। अगर उनका जवाब आएगा तो हम उसे प्रकाशित करेंगे।

सहारा समूह की इमारतों पर छापेमारी के दौरान जो दस्तावेज बरामद किए गए उन पर इनकम टैक्स (इनवेस्टिगेशन) की डिप्टी डायरेक्टर अंकिता पांडे के हस्ताक्षर किए हुए लगते हैं। इसके अलावा इसमें दूसरे सरकारी अधिकारियों और सहारा के एक प्रतिनिधि के भी काउंटर सिग्नेचर हैं।

जब मैंने 3 नवंबर को पांडे को फोन कर इन दस्तावेजों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह लंबी छुट्टी पर हैं। उन्हें मीडिया से बात करने का अधिकार नहीं है इसलिए न तो इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता के बारे में इनकार कर सकती हैं और न ही इसे स्वीकार कर सकती हैं। ये दस्तावेज दिल्ली के एक दर्जन पत्रकारों के पास हैं। साथ ही इतने सीनियर सरकारी अधिकारियों के पास भी ये दस्तावेज मौजूद हैं, जिन्हें इनकी प्रतियां स्कैन या फोटोकॉपी के जरिये भेजी गई हैं।

दरअसल ये दस्तावेज गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) कॉमन कॉज के उस अंतरिम आवेदन का हिस्सा हैं, जो इसकी एक लंबित याचिका में लगाया गया है। इस याचिका में देश के मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) कोसाराजू वीरैया चौधरी की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। चौधरी की नियुक्ति जून 2015 में हुई थी। कॉमन कॉज ने 15 नवंबर 2016 को यह याचिका दायर की थी। वकील प्रशांत भूषण इस संगठन का प्रतिनिधत्व करते हैं। उन्होंने अपने इस आवेदन में इन दस्तावेजों को नत्थी कर नौ लोगों को चिट्ठी भेजी थी। इन्हीं में सहारा समूह के दस्तावेज शामिल थे। भूषण ने ये चिट्ठियां अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में विस्तृत परिशिष्टों के साथ भेजी थीं।

भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर्ड जजों जस्टिस एम बी शाह और जस्टिस अरिजीत पसायत को ये चिट्ठियां भेजी थीं। ये दोनों काले धन पर गठित सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी के सदस्य हैं। इसके अलावा भूषण सीबीआई के निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक, आयकर विभाग का काम देखने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन, सीबीडीटी के ही सदस्य (जांच), इनकम टैक्स सेटलमेंट कमीशन के अध्यक्ष, सेंट्रल विजिलेंस कमीश्नर के वी चौधरी और सीवीसी के दो और आयुक्तों तेजेंद्र मोहन भसीन और श्री राजीव को चिट्ठी लिखी थी।

(यह संयोग है कि जब अक्टूबर 2013 में ए वी बिड़ला ग्रुप और नवंबर 2014 में सहारा इंडिया ग्रुप की इमारतों पर छापेमारी की गई थी तो चौधरी सीबीडीटी और डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू में अहम पदों पर थे। वह भारतीय राजस्व सेवा के पहले अधिकारी हैं, जो सीवीसी बने हैं। नहीं तो परंपरा के मुताबिक अब तक यह कमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को ही दी जाती रही है) ।

अपनी चिट्ठियों में भूषण ने पूछा है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की, जिनके नाम इन दस्तावेजों में दर्ज हैं। दस्तावेजों में उन लोगों के खिलाफ कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया, जिन्होंने अपने आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक धन इकट्ठा किया है।

भूषण का आरोप है कि सरकार के विभिन्न विभाग इन दस्तावेजों को दबाए बैठे हैं। इससे इन आरोपों को बल मिला है दस्तावेजों में जिन मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक नेताओं के नाम दर्ज हैं उन्हें रिश्वत दिए गए हैं और भ्रष्टाचार हुआ है। लेकिन दूसरी ओर आरोपियों और कंपनियों की ओर से सेटलमेंट कमीशन के जरिये टैक्स प्राधिकरणों से सुलह-समझौते की कोशिश शुरू हो गई है। (सेटलमेंट कमीशन गठित करने का मकसद एक ऐसे चैनल कायम करना है, जिससे टैक्स से जुड़े विवाद तेजी और सुलह-समझौते से निपट जाएं। यह इन विवादों को लंबा खींचने के बजाय आपसी सहमति से टैक्स विवाद को निपटाने की भावना पर काम करता है) ।

बहरहाल, सहारा के दस्तावेजों ने कुख्यात जैन हवाला डायरियों की याद दिला दी। दो दशक पहले इन डायरियों को जब्त किया गया था।1996 में जब्त इन डायरियां बिजनेस मैन सुरिंदर कुमार जैन और उनके भाई की थी। इन डायरियों में दर्ज ब्योरों के मुताबिक उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी समेत कई नेताओं को रिश्वत दी थी। इन नेताओं में आडवाणी, माधव राव सिंधिया, बलराम जाखड़, विद्याचरण शुक्ल, मदनलाल खुराना, पी शिवशंकर और आरिफ मोहम्मद खान शामिल थे।

इस मामले में निचली अदालत ने सीबीआई को इन लोगों के खिलाफ आरोप तय करने के निर्देश दिए थे लेकिन ऊपरी अदलातों ने कहा कि डायरी में दर्ज ब्योरों को सबूत नहीं माना जा सकता। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब भी कोई सरकारी एजेंसी ऐसा कोई रिकार्ड बरामद करे, जिसमें सार्वजनिक मंच पर काम करने वाले किसी व्यक्ति को गैरकानूनी भुगतान का जिक्र हो तो इस बारे में विस्तृत और स्वतंत्र जांच कराई जाए। इस तरह देखा जाए तो सहारा समूह  और एवी बिड़ला ग्रुप के दफ्तरों और इमारतों से हासिल दस्तावेजों की जांच न कर आयकर विभाग और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया है।

हालांकि कॉमन कॉज ने जांच के लिए जो आवेदन किया है उसका हश्र भी जैन हवाला कांड की तरह ही हो सकता है लेकिन जैन डायरी और सहारा से जब्त दस्तावेजों में अंतर हैं। जैन हवाला डायरियों में सिर्फ राजनीतिक नेताओं के नाम थे और उनके आगे हिंदी या अंग्रेजी में दी गई राशि का जिक्र था। लेकिन सहारा के दस्तावेजों में जिन पांचों राजनीतिक नेताओं के नाम दर्ज हैं, उनके आगे यह भी दर्ज है उन्हें किस तारीख पर कितना पैसा दिया गया और यह रकम उन्हें किसने दी।  

मुझे पहली बार इन दस्तावेजों के बारे में 28 जुलाई 2016 में पता चला। यह जानकारी मुझे संसद सदस्य और जाने-माने वकील राम जेठमलानी से मिली। जेठमलानी को मई, 2013 में भाजपा से बर्खास्त कर दिया गया था। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में एक पैनल डिस्कशन के बाद जेठमलानी ने एक अनौपचारिक बातचीत में पांच-छह लोगों (इनमें बीजेपी से एक राज्य सांसद भी मौजूद थे) के के सामने मुझसे कहा कि सहारा की इमारतों से जो दस्तावेज बरामद हुए हैं, वे बेहद विस्फोटक हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक मोदी ने सहारा समूह से रिश्वत के तौर पर भारी रकम ली है। उन्हें सीधे कैश पेमेंट किया गया है। मैंने बार-बार 93 साल के जेठमलानी से उन दस्तावेजों को दिखाने को कहा। लेकिन उन्होंने हामी नहीं भरी। बाद में उन्हें मैंने कई बार फोन किए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

दो महीने बाद एक राजनीतिक नेता के नजदीकी सूत्र ने मुझे भूरे लिफाफे में फोटोकॉपी किए हुए उन दस्तावेजों को एनसीआर में मौजूद मेरे घर पर भेजा। मैंने सरकार में मौजूद अपने सूत्रों और कुछ साथी पत्रकारों से उन दस्तावेजों के बारे में जानकारी ली। मुझे पता चला कि मेरे जानने वाले कम से कम 20 लोगों के पास ये दस्तावेज मौजूद हैं। इन लोगों ने मुझे वे दस्तावेज मुहैया कराए, जो उस वक्त मेरे पास नहीं थे। मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने इन दस्तावेजों के आधार पर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी। उनमें से कुछ ने कहा कि वे इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता सुनिश्चित नहीं कर पाए थे। जब मैंने उन्हें उन दस्तावेजों की प्रामाणिकता खोजने को कहा था तो उनमें से कुछ ने कहा कि वे इसकी कोशिश करेंगे।

एक सीनियर जर्नलिस्ट ने कहा कि सरकार ने इस बारे में एक कवर-अप प्लान तैयार किया है। इसके मुताबिक सरकार यह कहेगी कि सहारा के एक नाराज कर्मचारी ने अपने बॉस सुब्रत राय को ब्लैकमेल करने लिए यह दस्तावेज तैयार किया है। राय को सेबी के साथ एक विवाद में दो साल दिल्ली के तिहाड़ जेल में बिताने पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों से धोखाधड़ी और जमानत के लिए जरूरी रकम जमा करने में नाकाम रहने के आरोप  में तिहाड़ में रहना पड़ा था। ( उन्हें मां की मौत के बाद पैरोल पर रिहा किया गया है। सेबी का कहना है कि अब भी उनकी कंपनी को 47000 करोड़ यानी 6 अरब डॉलर जमा करने हैं)। इस बीच, मेरे पास आने वाले दस्तावेजों का आकार मोटा होता जा रहा है।

बाद में मुझे पता चला कि 28 जून को जेठमलानी ने दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन को चिट्ठी लिखी थी। जेठमलानी ने सहारा की इमारतों पर मारे गए छापे के दौरान दस्तावेज और एक सरकारी चिट्ठी (जिसमें मोदी और अन्य लोगों के नाम हैं) को इस चिट्ठी के साथ नत्थी किया था। इसमें इनकम टैक्स अफसर अंकिता पांडे के भी दस्तख्त हैं। दस्तख्त दिसंबर, 2015 के हैं। इसमें यह पता करने की मांग की गई है क्या दस्तावेजों के दो सेटों में किए गए दस्तख्त एक ही व्यक्ति के हैं। 1 जुलाई दिल्ली सरकार के रीजनल फोरेंसिक साइंस लेब्रोट्ररी (डॉक्यूमेंट्स) के असिस्टेंट डायरेक्टर अनुराग शर्मा ने जैन के सेक्रेट्री जी सुधाकर को चिट्ठी लिख कर कहा कि इन दोनों सेट के दस्तावेजों पर एक ही व्यक्ति के हस्ताक्षर जान पड़ते हैं। 

 इन दस्तावेजों को इनकम टैक्स विभाग की जब्ती के बाद जांचा गया । एक अलग अफसर ने इन्हें जांच कर एक विस्तृत अप्रेजल रिपोर्ट बनाई, जिसमें आगे की कार्यवाही का खाका खींचा गया है। 16 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में रीतु सरीन और प्रज्ञा कौशिका की छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि सहारा के दस्तावेजों के संबंध में हजारों पेज की एक भारी अप्रेजल रिपोर्ट तैयार की गई है। इन्हें एक असेसमेंट अफसर देख रहा है।

इससे एक दिन पहले यानी 15 नवंबर को द हिंदू में जोसी जोसेफ की रिपोर्ट छपी – जिसका शीर्षक था – भूषण ने राजनीतिक नेताओं को किए गए भुगतान की जांच की मांग की । लेकिन इसमें मोदी या अन्य प्रमुख नेताओं के नाम का जिक्र नहीं था। लेकिन इसके बाद केजरीवाल में दिल्ली असेंबली में बड़ा विस्फोट किया। उन्होंने 15 अक्टबूर 2013 को सहारा और एवी बिड़ला ग्रुप की इमारतों में इनकम टैक्स विभाग के छापों का जिक्र करते हुए कहा कि जो दस्तावेज मिले हैं उनमें गुजरात के सीएम (मोदी) के नाम के आगे लिखा – 25 करोड़ (12 डन, रेस्ट -?)

हालांकि बीजेपी के प्रवक्ता ने तुरंत इन दस्तावेजों के असर को देखते हुए खंडन किया। लेकिन मोदी ने इस स्टोरी को लिखे जाने तक इस बारे में अपनी ओर से कोई खंडन नहीं जारी किया था।

कॉमन कॉज की जनहित याचिका में जो परिशिष्ट लगाए गए हैं उनमें एवी बिड़ला ग्रुप के अधिकारी शुभेंदु अमिताभ के साथ पूछताछ के सेशन का हस्तलिखित ट्रांसस्क्रिप्ट भी लगा है। इसमें उन्होंने दावा किया है कि गुजरात के सीएम का रेफरेंस उन्होंने निजी टिप्पणी के तहत दिया था। यह बिड़ला समूह की कॉस्टिक सोडा बनाने वाली कंपनी गुजरात अल्कली एंड केमिकल के संदर्भ में था।

फिलहाल इस बात पर गौर किया जाए कि एक्सेल शीट के तौर पर जब्त दस्तावेज क्या इंगित करते हैं। लॉग शीट से जाहिर होता है कि इनमें जिन लोगों के नाम हैं उन्हें 2013 से 2014 के बीच दस महीनों के अंदर 115 करोड़ रुपये दिए गए। यानी चुनाव से पहले ये रकम इन नेताओं को पहुंचाई गई।

साईना एनसी को कुल पांच करोड़ रुपये दिए गए। यह रकम 10 सितंबर 2013 से 28 जनवरी 2014 के बीच दी गई। यह रकम किन्हीं ‘उदय जी’ ने उन्हें दी थी। एक अलग कागज में सांकेतिक भाषा में लिखा है-  उनसे मदद मांगी जा रही है। उनसे ‘ए जनरल’ को कहलवाया जा रहा है कि बांबे केस (बंद) को वापस ले लें।

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 23 सितंबर 2013 को किन्हीं ‘जायसवाल’ साहब ने एक करोड़ रुपये दिए।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने 29 सितंबर 2013 से 1 अक्टूबर 2013 के बीच नीरज वशिष्ट नामक शख्स से दो किस्तों में दस करोड़ रुपये हासिल किए। वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को 1 अक्टूबर को नंद जी नाम के शख्स से एकमुश्त 4 करोड़ रुपये दिए।

‘गुजरात के सीएम’ यानी मोदी को 30 अक्टूबर 2013 से 29 नवंबर 2013 के बीच चार किस्तों में जायसवाल जी ने 15.1 करोड़ रुपये दिए। इसके बाद आठ पेमेंट कथित तौर पर अहमदाबाद में किए गए। ये पेमेंट 30 अक्टूबर 2013 से 22 फरवरी 2014 के बीच हुए। इसमें ‘अहमदाबाद मोदी जी, बाई ‘जायसवाल जी’ दर्ज है। और कुल भुगतान 35.1 करोड़ रुपये दर्ज है। एक और पेमेंट अहमदाबाद मोदी जी के नाम 28 जनवरी 2014 को हुआ है। इसमें पांच करोड़ रुपये दिए गए। इस तरह सीएम गुजरात और अहमदाबाद मोदी जी के नाम कुल 55.2 करोड़ रुपये का पेमेंट हुआ।

क्या स्वतंत्र जांच एजेंसी इन भुगतानों की प्रामाणिकता जांचेगी। क्या इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से जब्त इन दस्तावेजों में भुगतानों के जो ब्योरे हैं उनकी जांच-परख होगी।

कुल मिलाकर, कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।
 
घोषणा  – लेखक कॉमन कॉज की गवर्निंग काउंसिल के मेंबर हैं।
 
ईपीडब्ल्यू में इंटर्न अद्वैत राव पलेपु  (advait.palepu@gmail.com(link sends e-mail)) ने इस लेख के लिए रिसर्च सामग्री मुहैया कराई है। 

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