लातेहर हत्याकांडः भीड़-तंत्र के साथ पुलिसिया तालमेल

झारखंड में लातेहर जिले के बालूमाथ गांव में 18-19 मार्च को दो युवकों की हत्या करके पेड़ पर लटका दिया गया था। इस मामले में एनसीएम यानी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की जांच और रिपोर्ट में जो संकेत सामने आए हैं, वह राज्य की पुलिस और वहां के राजनीतिकों को कठघरे में खड़ा करते हैं। आखिर किन वजहों से गौरक्षा समिति जैसे संगठनों ने कानून को अपने हाथ में लिया और पुलिस और राजनीतिक पार्टियां उन्हें रोकने में नाकाम रहीं…!

उस बर्बर हत्याकांड के बाद लातेहर गई एनसीएम की टीम रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड पुलिस के कई हिस्सों के व्यापक सांप्रदायीकरण और मुसलमानों के खिलाफ स्थानीय पुलिस का आमतौर पर 'पाकिस्तान जाओ' जैसी बातों के साथ पेश आना बताता है कि राज्य की पुलिस का व्यापक पैमाने पर सांप्रदायीकरण हुआ है।

टीम की एक सदस्य फरीदा अब्दुल्ला खान ने सबरंग इंडिया को बताया कि कुछ पुलिस वाले लोगों को फंसा रहे हैं और स्थानीय मुसलमानों के बीच उनके खिलाफ काफी गुस्सा है। लेकिन ज्यादा जरूरी बात यह है कि यह एक सांप्रदायिक मुद्दा है, जिसे सुनियोजित तौर पर अंजाम दिया जा रहा है। गौरक्षा समितियों की ओर से लगातार राजनीतिकों को यह संदेश दिया जा रहा था कि इस तरह की हिंसा रुकने नहीं जा रही है।

गौरतलब है कि बालूमाथ की घटना में जिस तरह बारह साल के इम्तियाज खान और बत्तीस वर्षीय मजलूम अंसारी को सिर्फ इसलिए कथित तौर पर पशुओं की सुरक्षा करने वाले गिरोहों ने पीट-पीट कर मार डाला, फिर पेड़ पर फांसी की तरह लटका दिया कि वे आठ भैंस को लेकर बेचने बाजार में जा रहे थे। जिस बर्बरता से उन्हें मारा गया, उसने दादरी में अख़लाक के घर पर हमला और उसकी हत्या की घटना की याद ताजा कर दी।

यों भी, जब से एनडीए-2 सत्ता में आई है, भीड़-तंत्र के राज का खेल चल रहा है। देश के कई इलाकों से इस तरह गाय बचाने के नाम पर भीड़ के हाथों मार डाले जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं।

लातेहर में दो युवकों की बर्बर हत्या की घटना के दो महीने के बाद एनसीएम ने अपनी जांच रिपोर्ट में पुलिस के सांप्रदायीकरण से संबंधित जो तथ्य सामने रखे हैं, वे बेहद चिंताजनक हैं। एनसीएम ने इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलने के लिए राज्य पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। टीम के जांच दल के सदस्यों फरीदा अब्दुल्ला खान और प्रवीण दावर के मुताबिक इस घटना के पहले भी उस इलाके में गाय की रक्षा का दावा करने वाले गिरोहों के खिलाफ शिकायत के बावजूद स्थानीय पुलिस ने इस मामले में अनदेखी की। हालांकि बाद में गौरक्षा समिति से जुड़े पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया।

वहां एक हिंदू भविष्यद्रष्टा के तौर पर प्रचारित व्यक्ति भी गऊ रक्षा समूह से जुड़ा हुआ है और उस पर मुसलिम पशु व्यापारियों के खिलाफ नफरत फैलाने और अपने शिष्यों को उन्हें मार डालने तक का निर्देश देने के आरोप हैं। इसी क्रम में दो की हत्या कर दी गई। मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं ने उसके और बजरंग दल के साथ मिलीभगत होने की भी जानकारी होने की बात कही है।

एनसीएम की रिपोर्ट के मुताबिक उस हत्या के बाद विरोध जताने वालों ने जब पुलिस केस दर्ज कराना चाहा तो पुलिस उनके साथ शर्मनाक और सांप्रदायिक तरीके से पेश आई। रिपोर्ट यह भी कहती है कि उस इलाके में गौरक्षा समिति का उभार एक नई घटना है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि देश भर में गऊ रक्षा समितियों का संरक्षण दरअसल हिंदुत्व समूह करते हैं और खासतौर पर भाजपा शासित राज्यों में उन्हें अपनी मनमानी करने की पूरी छूट है। रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए, ताकि पीड़ित के परिवारों को जल्दी इंसाफ मिल सके, उन्हें साढ़े तीन-तीन लाख रुपए का मुआवजा भी दिया जाए।

दरअसल, जब से भाजपा सत्ता में आई है, तब से हिंदू समूहों का मनोबल बढ़ गया है। जबकि इसके पहले की सरकारों में उसके लिए स्थितियां इतनी सहज नहीं रही है। पिछले दो सालों के दौरान भाजपा शासित राज्यों में लगातार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि भाजपा के कुछ खास सांसदों ने बेहिचक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत से भरे बयान दिए…!

लातेहर हत्याकांड के संबंध में सिफारिशें
1- पीड़ित के परिवारों को तुरंत पर्याप्त मुआवजा।
2- दोषियों को सजा दिलाने के लिए हर संभव कोशिश करें।
3- गौ रक्षक समितियों पर निगरानी रखने के लिए तुरंत कदम उठाया जाए और जो लोग सांप्रदायिक तनाव पैदा करते हैं और हिंसक समूहों को बढ़ावा देते हैं या कानून अपने हाथ में लेते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
4- मुसलिम समुदाय से जुड़े लोगों को शारीरिक सुरक्षा और जीवन की जरूरतों के मद्देनजर सुनिश्चित की जाए।
5- अठारह मार्च की घटना की गहराई से जांच कराई जाए।
6- चंदवा थाना के दारोगा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
 

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