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Lawlessness Rules, Chhattisgarh: Bela Bhatia’s Account

Bela Bhatia, researcher and human rights defender is not the first to have been threatened by a mob, clearly enjoying the protection and patronage of the powers that be, and probably will not be the last.

bela Bhatia
 
Yesterday, Sabrangindia reported that Ms Bhatia was threatened by the mob who directly intimidated her with violence.
 
Today, Ms Bhatia has shared this account of what actually happened,
 
“ I have been attacked by a mob of 30 or so men who came in a white bolero-type vehicle and mobikes. This was the beginning. Later it became big and ugly. They threatened their way inside the house.
 
“They said I would have to leave the house immediately or they would burn the place. Somehow I persuaded them to allow me to change and that I would leave the house right then. I managed to call the collector and alert him to what was happening. I locked the house and came out. They had got the landlady to come out and were threatening her that she must see to it that I move out immediately.
 
“I kept reassuring them that I would asap. That my landlord and his sons had been called to the thana yesterday. And that they have already communicated to me that I must leave. They were very belligerent and kept threatening to break the lock and burn. The sarpanch had come by then and was watching.
 
“After about half hour police arrived from Parpa than a including the thanedar. The belligerence of the mob continued.”
 
Bhatia has been in the crosshairs of the Chhattisgarh administration ever since she helped tribal women register an FIR against security personnel for gang rape and grievous sexual assault last November, had reported The Hindu.

बेला का बेघर होना हमारे गणतंत्र में गण के सर पर छत का ना रहना  है

आज खबर मिली कि बेला भाटिया को छत्तीसगढ़ के गाँव से धमका कर घर छोड़ने का अल्टीमेटम दिया गया है। मैं बेला को पिछले कोई बीस साल से जानता रहा हूँ। हम देश के सार्वजनिक जीवन में जिस सादगी, समर्पण, साहस और संकल्प की कल्पना करते हैं, उसकी जीती जागती मिसाल है बेला भाटिया। देखने में नाजुक, लेकिन स्टील सी मजबूत। नम्र, संकोची और शर्मीली लेकिन धुन की पक्की, जिसे दुनिया का कोई लोभ या भय हिला न सके। एक तरफ हम अफ़सोस करते रहते हैं कि ऐसे लोग हमारे देश में कितने कम हैं, दूसरी तरफ ऐसे लोगों का जीना दुश्वार करते रहते हैं। कितना पाखंडी है हमारा समाज!

बेला के बारे में सोचते हुए कई तस्वीर तैरती हैं …

नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ काम करने के बाद धीरूभाई शेठ को मिलने CSDS आई बेला… "कुछ सीखना चाहती हूँ" 

इंग्लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में नक्सली आंदोलन पर रिसर्च कर रही बेला … "सिर्फ रिसर्च से क्या फायदा?"

हमारे आग्रह पर CSDS में फैकल्टी में शामिल हुई बेला … "आपको निराशा होगी, मैं सिर्फ अकादमिक नहीं हूँ"

उन दिनों 'संजय कॉलोनी' नामक झुग्गी-झोंपड़ी कॉलोनी में एक झुग्गी में रहने वाली बेला … "नहीं, कोई ख़ास तकलीफ नहीं होती, जैसे सब लोग रह लेते हैं, वैसे ही हम भी"
नक्सली आंदोलन पर अपनी नम्र शैली में बहस करती बेला … "मैं हिंसा का समर्थन कैसे कर सकती हूँ? लेकिन आप जानते हैं…" 

CSDS छोड़ती हुई बेला … "मेरा मन नहीं लगता ऐसी जगह पर, फील्ड में रहना चाहती हूँ"

मैं यहाँ बैठा उसके बारे में फेसबुक पर लिख रहा हूँ। बेला एक बार फिर अपना घर छोड़ने पर मजबूर आज रात सोच रही होगी कि कल कहाँ जाऊं। लेकिन मैं जानता हूँ  हिम्मत नहीं हारेगी बेला … "मेरे साथ जो हुआ वो बड़ी बात नहीं है, लेकिन आप सोचिये वहां आदिवासी महिलाओं के साथ क्या बीती है"
आपके इस जज्बे को सलाम, बेला! ज़िंदाबाद!  ::: योगेन्द्र यादव

(योगेन्द्र यादव के फेसबुक पेज से साभार)

 

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