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मनरेगा आवंटन में बढ़ोतरी का दावा झूठा, सिर्फ एक फीसदी का इजाफा

मोदी सरकार के 2017-18 के बजट में मनरेगा के प्रावधान में वास्तविक बजट आवंटन सिर्फ एक फीसदी बढ़ा है। सिर्फ 500 करोड़ रुपये। यह आवंटन भी दो पूरक आवंटनों के तौर पर हुआ है। इस तरह 2016-17 में मनरेगा का कुल बजट प्रावधान 47,500 करोड़ रुपये का है।

NREGA
 
वित्त मंत्री ने बजट में मनरेगा को लेकर जो दावा किया है उसका इस पर निगरानी रखने वाले एक नागरिक समूह-पीपुल्स एक्शन फॉर एम्पलॉयलमेंट गारंटी (पीएईजी)ने विरोध किया है। उसका कहना है कि पहली नजर में तो लगता है वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में मनरेगा के लिए 48000 करोड़ रुपये का जो प्रावधान किया है वह काफी ज्यादा है। पिछले साल के 38500 करोड़ रुपये के प्रावधान के हिसाब से 25 फीसदी से भी ज्यादा है। लेकिन पिछले दो साल के दौरान इसमें इतनी खामियां सुनिश्चित कर दी गईं कि यह स्कीम ही ठीक तरह से काम न कर सके।
 
इसके अलावा, स्वराज अभियान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मनरेगा पर जो कड़े मानक जारी किए थे उसका भी सरकार ने समुचित जवाब नहीं दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया था कि राज्यों को केंद्र की ओर से समय पर आवंटन किया जाए ताकि मनरेगा के तहत काम करने वालों को भी वक्त पर पैसा मिल सके। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि दैनिक मजदूरी के भुगतान में देरी स्वीकार्य नहीं है और यह मजदूरों के अधिकारों का हनन है। लेकिन अब भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है। 
 
पीपुल्स एक्शन फॉर एम्पलॉयलमेंट गारंटी (पीएईजी) ने दिखाया है मनरेगा के लिए बजट आवंटन के अलावा जो सबसे जरूरी चीज है वह यह कि मनरेगा का काम संसद की ओर पारित किए गए कानून के मुताबिक हो। इसके लिए इतने संसाधन उपलब्ध हों मांग पर काम उपलब्ध हो।
 
आज की तारीख में 34 राज्यों में से 22 का इस मद में केंद्र के ऊपर बकाया है। मंत्रालय के अपने आंकड़ों के मुताबिक यह बकाया बढ़ कर 3469 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इस मद में सालाना बजट आवंटन का 93 फीसदी खर्च हो चुका है। अगले दो महीने में यह बकाया और बढ़ जाएगा क्योंकि इस सीजन में काम की मांग दोगुना हो जाएगी।
 
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वराज अभियान की जनहित याचिकाओं पर एक के बाद एक कई कड़े निर्देश जारी किए थे। इनमें से एक में कहा गया है कि भारत सरकार मनरेगा स्कीम के तहत राज्य सरकारों को पर्याप्त फंड मुहैया कराए ताकि मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को समय पर पारिश्रमिक दिया जा सके। केंद्र सरकार को इस स्कीम को चुस्त-दुरुस्त करना होगा। 
 
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश के बावजूद मंत्रालय के अपने ही हिसाब के मुताबिक फरवरी 2017 और मार्च 2017 में ही मजदूरी के भुगतान के लिए 10,013 करोड़ रुपये के भुगतान की जरूरत पड़ेगी। ( यह हिसाब प्रति व्यक्ति 228 रुपये के भुगतान के मुताबिक है)। 
 
इसका मतलब है साल के अंत में मनरेगा के मद में 13,482 करोड़ रुपये का बकाया होगा। लिहाजा बजट में जो 8000 करोड़ की जो आवंटन वृद्धि दिखाई जा रही है वह इसे पाटने में नाकाम रहेगी। बजट आवंटन से साफ है कि यह पिछले साल के आवंटन की गति नहीं पकड़  सकी है।
 
साफ है कि फंड आवंटन की इस खामी का असर मनरेगा को सही ढंग से लागू करने पर पड़ रहा है।
 
इस समय कुल मजदूरी भुगतान का 54 फीसदी देर से हो रहा है। ऐसे में मजदूरों के 231 करोड़ रुपये की मजदूरी का बकाया है। नोटबंदी से दिहाड़ी मजदूर पहले ही बेहाल हैं। मनरेगा का यही उद्देश्य था कि ऐसे संकट के वक्त यह मजदूरों के काम आए।लेकिन मजदूरी बकाया होने की वजह से यह उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। इससेअगले दो महीनों में मजदूरों की स्थिति और खराब होगी। क्योंकि मनरेगा के लिए आवंटन अब अप्रैल में ही हो सकेगा।
 
इसके अलावा सरकार ने अगले वित्त वर्ष से मनरेगा के तहत आधार कार्ड होना जरूरी कर दिया है। यह भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। केंद्र सरकार की  इस नीति से समावेशी सिद्धांतों को गंभीर झटका लगेगा।
 
पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी ने मनरेगा के तहत पर्याप्त फंड मुहैया कराने और आधार कार्ड की अनिवार्यता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो। काम पाने के  लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म की जाए। और इतना पर्याप्त फंड उपलब्ध हो कि मनरेगा मांग पर आधारित रोजगार स्कीम के तौर पर ठीक से काम कर सके।
 
(इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों  मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरुणा राय, निखिल डे,शंकर सिंह, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन की एनी राजा और जनजागरण शक्ति संगठन की कामायानी स्वामी और आशीष रंजन शामिल हैं।)

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