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मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा: ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खड़ी है’

मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा की चौथी बरसी पर रिहाई मंच ने किया सम्मेलन
 


Image: The Indian Express


मुजफ्फरनगर के दोषियों को बचाकर संघ परिवार का एजेंडा पूरा कर रही है सपा सरकार- रिहाई मंच मुजफ्फरनगर के पीड़ितों की स्थिति 2002 के गुजरात हिंसा पीड़ितों जैसी- हर्ष मंदर एसआइसी प्रमुख मनोज कुमार झा मुजरिमों का नाम निकलवाने के लिए डालते थे दबाव- रिजवान (पीड़ित) हर्ष मंदर, जफर इकबाल, अकरम चैधरी और राजन्या बोस लिखित ‘सिमटती जिंदगी’ रिपोर्ट हुई जारी रिहाई मंच की रिपार्ट ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खड़ी है’ ने सपा-भाजपा गठजोड़ को किया बेनकाब मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा की चैथी बरसी पर रिहाई मंच ने किया सम्मेलन
 
लखनऊ 7 सितम्बर 2016। मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा की चैथी बरसी पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच ने ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खडी़ है’विषय पर सम्मेलन किया। इस दौरान दो रिपोर्टें भी जारी हुईं।
 
इस अवसर पर पूर्व आइएएस और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कहा कि मुजफ्फरनगर की हिंसा छेड़छाड़ के झूठे अफवाह के आधार पर हिंदुत्ववादी संगठनांे ने फैलाई थी। जिसे यदि सरकार चाहती तो रोक सकती थी लेकिन उसकी आपराधिक निष्क्रियता के चलते हिंसा का विस्तार होता गया। राज्य सरकार ने दंगे के बाद लोगों को सुरक्षित अपने गाँव वापस लौटने और फिर से नई जिंदगी शुरू करने में किसी तरह की मदद नहीं की। यह चिंताजनक है कि मुजफ्फरनगर के पीड़ितों की स्थिति 2002 के गुजरात हिंसा के पीड़ितों जैसी है। दोनों जगहों पर मुसलमानों को अलग थलग बसने के लिए मजबूर किया गया, उनका सामाजिक बहिष्कार हुआ और वे अभी भी डर के माहौल में जी रहे हैं। न्याय की भी कोई उम्मीद नहीं है। इसके लिए संघ परिवारी संगठन और राज्य सरकार दोनों बराबर के दोषी हैं।


 
मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा पीड़ितों का मुकदमा लड़ रहे असद हयात ने कहा कि  इस हिंसा के बाद लगभग 15 लाशें गायब हैं जो कि ग्राम लिसाढ़, हड़ौली,बहावड़ी, ताजपुर सिंभालका के निवासी हैं। सरकार कहती है कि लाश मिलने पर इन्हें मृत घोषित किया जाएगा। जबकि चश्मदीद गवाह कहते हैं कि हमारे सामने हत्या हुई। पुलिस तो घटना स्थल पर तुरंत पहुंच गई थी फिर यह लाशें किसने गायब कीं? 18 से अधिक लोग गुमशुदा हैं जिनके परिजनों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई है। अगर वो जीवित होते तो अब तक लौट आते। लगभग 10 हत्याएं जनपद बागपत में हुई जिन्हें सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा में हुई मौत नहीं माना है।25 से अधिक मामले ऐसे भी हैं जिनकी निष्पक्ष विवेचना नहीं हुई और इन व्यक्तियों की सांप्रदायिक हत्याओं को पुलिस ने आम लूट पाट की घटनाओं में शामिल कर दिया।मुख्य साजिशकर्ता भाजपा और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं और इनसे जुड़े संगठन के नेताओं के विरुद्ध धारा 120 बी आपराधिक साजिश रचने के जुर्म में कोई जांच ही नहीं की गई। इसतरह सरकार ने दंगा क्यों हुआ, किसने कराया, कौन साजिशकर्ता था उन पर पर्दा डाल दिया।  
 
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पर गठित विष्णु सहाय कमीशन पर सवाल उठाते हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मुलायम सिंह मुसलमानों के साथ आयोगों का खेल खेलना बंद करें। सहाय कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्वीकारा है कि 4 सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर बंद के नाम पर अराजकाता फैलाने में वर्तमान भाजपा मंत्री संजीव बालियान, उमेश मलिक,राजेश वर्मा व अन्य शामिल थे। ठीक इसी तरीके से 5सितंबर को लिसाढ़ में हुई पंचायत को स्वीकारा है कि पंचायत में गठवाला खाप मुखिया हरिकिशन सिंह और डा0 विनोद मलिक जैसे लोग शामिल थे जिसके बाद लिसाढ़ से सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई। 7 सितंबर को वर्तमान भाजपा सांसद हुकुम सिंह, महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत, अध्यक्ष नरेश टिकैत, साध्वी प्राची, भाजपा के पूर्व एमएलए अशोक कंसल, भाजपा के पूर्व सांसद सोहन वीर सिंह,सरधना के भाजपा विधायक संगीत सिंह सोम, बिजनौर के भाजपा विधायक भारतेंदु सिंह, जाट महासभा के अध्यक्ष धर्मवीर बालियान, रालोद के जिला अध्यक्ष अजीत राठी शामिल थे। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने के लिए इन सब के साथ संगीत सोम द्वारा 29 सितंबर को शाम 6 बजकर 21 मिनट पर फर्जी वीडियो इंटरनेट द्वारा प्रचारित करना भी आयोग ने माना। उन्होंने कहा कि इतना सब जब साफ था तो निष्कर्ष तक पहुचते-पहुचते आखिर सहाय कमीशन ने इन सांप्रदायिकता भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात क्यों नहीं कही?  


 
मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय ने कहा कि देश में साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को न्याय न देने की जो प्रक्रिया चल रही है वह लोकतंत्र के लिए आत्मघाती है। इस प्रक्रिया को चलाते हुए संघ गिरोह जिस हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना कर रहा है उस पर अमल करते हुए ही सपा सरकार उन्हें न्याय से वंचित किए हुए है।
 
हर्ष मंदर, जफर इकबाल, अकरम अख्तर चैधरी और राजन्या बोस लिखित ‘सिमटती जिंदगी’ रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह 2013 में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लगभग 50,000 लोग अपने गाँवों से उजड़कर कैम्प में आकर रहने लगे। इनमें से एक तिहाई से भी कम लोग वापस अपने गाँव लौट सके। कैम्प के बाद ये लोग मुसलमान आबादी वाले इलाके में जमीन खरीदकर बस गए। लगभग 30,000 लोग मुजफ्फरनगर और शामली जिले के 65 पुनर्वास कॉलोनियों में रह रहे हैं जो अब वापस कभी गाँव नहीं जाएँगे। इन कॉलोनियों में नागरिक सुविधाओं जैसे, बिजली, सड़क, पानी, सफाई,स्कूल, आँगनवाड़ी जैसी सुविधाओं की बहुत कमी है। ज्यादातर कॉलोनियाँ सरकारी रिकार्ड से बाहर हैं।
 
आरटीआई कार्यकर्ता व रिहाई मंच नेता सलीम बेग ने कहा कि उन्होंने नवंबर 2015 में सात बिंदुओं पर मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा संबन्धित सूचना प्राप्त करना चाही थी। जिसमें अनेक चैकाने वाले तथ्य सामने आए जैसे उत्तर प्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग को सांप्रदायिक हिंसा से संबन्धित एक भी शिकायती पत्र प्राप्त नहीं हुआ। इससे भी शर्मनाक कि राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने मुजफ्फरनगर का दौरा ही नहीं किया। सबसे शर्मनाक कि मुस्लिम विधायकों ने सरकार के आपराधिक रवैये पर कोई सवाल नहीं उठाया।
 
रिहाई मंच की रिपोर्ट ‘सरकार दोषियों के साथ क्यों खड़ी है’ पर बोलते हुए रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि जब उन्होंने भाजपा विधायक संगीत सोम व सुरेश राणा पर अमीनाबाद लखनऊ में रासुका के तहत जेल में रहते हुए फेसबुक द्वारा साप्रदायिक तनाव भड़काने की तहरीर दी तो उस पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की पर इसी थाने में हाशिमपुरा के सवाल पर इंसाफ मांगने वाले रिहाई मंच नेताओं समेत अन्य लोगों पर दंगा भड़काने का मुकदमा दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए डूंगर निवासी मेहरदीन की हत्या का उनके द्वारा मुकदमा दर्ज कराने पर महीनों बाद पुलिस ने उन्हें मुजफ्फरनगर बुलाया की पोस्टमार्टम के लिए लाश निकाली जाएगी पर बयान दर्ज करने के बावजूद लाश नहीं निकाली गई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने जांच के लिए गठित एसआईसी का प्रमुख मनोज कुमार झा जैसे अधिकारी को बना दिया जिनपर खुद खालिद मुजाहिद की हिरासती हत्या का आरोप है और निमेष कमीशन की रिपोर्ट ने भी जिनके खिलाफ आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुसलमानों को फंसाने के लिए कार्रवाई की मांग की है।
 
शामली से आए अकरम अख्तर चैधरी ने सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार की घटनाओं पर कहा कि बलात्कार पीड़ितों को सरकार ने सुरक्षा नहीं मुहैया कराया जिसके चलते गवाह दबाव में आ गए। एक मुकदमें में गवाह मुकर गए जिसके कारण सभी चार आरोपी बरी हो गए, अन्य मामलों में भी मुजरिम जमानत पर बाहर है और तो और एक बलात्कार के मामले में तीन साल बीत जाने के बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। 
 
मुजफ्फरनगर-शामली सांप्रदायिक हिंसा में सबसे अधिक 13 हत्या होने वाले लिसाढ गांव निवासी रिजवान सैफी जिनके परिवार के पांच लोगों की हत्या हुई थी ने कहा कि मेरे दादा-दादी की हत्याकर उनकी लाश को गायब कर दिया गया लेकिन जांच कर रहे एसआईसी के मनोज झां आरोपियों के नाम निकलवाने के लिए हम पर दबाव बनाते रहे। वे हमें जब भी बुलाते थे उसके पहले आरोपियों को भी वहां बुलाकर हममें डर व दहशत का माहौल बनाने की कोशिश करते थे। मेरे गांव से सटा हुआ मीमला रसूलपुर जिसके ग्राम निवासियों ने थाना कांधला पुलिस को फोन करके बताया कि उनके गांव के बाहर कब्रिस्तान के पास तीन अज्ञात लाशें पड़ी हैं, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और यह कहकर चली गई कि उसे अभी वह ले नहीं जा सकती और बाद में वह लाशें गायब हो गईं। जिसको पुलिस ने आरटीआई में भी माना है।
 
कार्यक्रम का संचालन राजीव यादव ने किया। इस दौरान अमित अम्बेडकर, लखनऊ रिहाई मंच महासचिव शकील कुरैशी, रफत फातिमा, अनिल यादव, अजय सिंह, अरुंधती धुरू, आली से आंचल, जनचेतना से रामबाबू, सत्यम वर्मा, पुनीत गोयल, बीएम प्रसाद,आरके सिंह, पीसी कुरील, प्रबुद्ध गौतम, साहिरा नईम,अजरा, सृजनयोगी आदियोग, वीरेंद्र गुप्ता, कल्पना पांडेय, डाॅ दाउद खान, इनायतुल्ला खान, यावर अब्बास,मोहम्मद अली, अब्दुल्लाह, केके वत्स, डाॅ0 इमरान,यावर अब्बास, प्रतीक सरकार, शशांक लाल, एसपी सिंह, निखिलेश, संजय नायक, सुधा सिंह, माहिर खान,आबिद जैदी, सबीहा मोहानी, शाहनवाज आलम आदि मौजूद रहे। 
 
द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम
प्रवक्ता रिहाई मंच

A report on muzaffarnagar ‘why the government is siding with the guilty’

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