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मुश्किल से निपटा नाइयों के बहिष्कार का मामला

गुजरात में दलितों ने मरी गायें उठाने से इन्कार करके विरोध की जो नई परंपरा डाली, उसका असर अब देश के अन्य भागों और अन्य जाति समूहों के बीच भी फैलता दिख रहा है। छत्तीसगढ़ में बालौद जिले में तीन गाँवों में नाइयों ने सामाजिक भेदभाव के विरोध में कथित सवर्ण जातियों के बाल काटने से इन्कार करने से बाकी ग्रामीणों को लेने के देने पड़ गए। हालाँकि, कई दिनों बाद प्रशासन ने दखल देकर अब विवाद सुलझा दिया है।
 
हीरापुर गाँव के नाइयों ने इस बहिष्कार की शुरुआत की थी और परसुड़ा तथा खुरथुली गाँव के नाइयों ने उनका समर्थन किया था। पहले तो इस बहिष्कार का अधिक असर नहीं पड़ा लेकिन जन्म-मरण के अवसरों पर भी जब सेन समाज अपने फैसले पर डटा रहा तो गाँवों के बाकी लोग मुश्किल में पड़ गए।

गाँवों में तनाव की स्थिति बन गई थी। पिछले माह हीरापुर के करीब तीन सौ लोगों ने जिला मुख्यालय पहुँचकर ज्ञापन दिया था और विवाद सुलझाने की माँग की थी। गाँव के लोगों का कहना था कि जन्मोत्सव और गमी के अलावा, विवाह कार्यक्रमों में भी कोई नाई काम करने तैयार नहीं है। आसपास के गाँवों के सेन समाज भी हीरापुर गाँव के सेन समाज के साथ थे, इसलिए किसी दूसरे गाँव से भी नाई को नहीं बुलाया जा पा रहा था।

दरअसल छह माह पहले किसी घटना को लेकर पहले गाँव में सेन समाज का बहिष्कार किया गया था। सेन समाज ने तो किसी तरह से अपना काम चला लिया, लेकिन अब इन लोगों ने बहिष्कार का बदला बहिष्कार से लेने का ऐलान किया तो बाकी जातियों के हाथ-पाँव फूल गए।

बहिष्कार के इस फैसले के गंभीर परिणाम देखने को मिले। गाँव में एक महिला की मृत्यु के बाद, बाल मुँडाने की रस्म के लिए जब कहीं से कोई नाई नहीं मिला तो परिजनों को आपस में ही एक दूसरे के बाल मूँड़ने पड़े। साहू समाज की एक बुजुर्ग महिला के निधन पर उस परिवार के लोगों के बहुत प्रयास करने के बाद भी कोई नाई उनके बाल मूँड़ने को तैयार नहीं हुआ था।

विवाद बढ़ता देख प्रशासन को मामले में दखल देना पड़ा तब कहीं गतिरोध दूर हो पाया। कलेक्टर राजेश सिंह राणा ने खुद पूरे मामले को देखा और संबंधित पक्षों की बात सुनी। इसके बाद एसडीएम और तहसीलदार को गाँव में जाकर दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझाने का निर्देश दिया। अधिकारियों ने दोनों पक्षों के साथ बैठकर समझौता कराया और तब सामान्य स्थिति बहाल हो सकी।
 

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