नागरिक अधिकारों को कुचल कर रख देगा महाराष्ट्र का इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट

 
महाराष्ट्र सरकार के प्रस्तावित कानून – प्रोटेक्शन ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट (एमपीआईएसए) के प्रावधान नागरिक अधिकारों के लिहाज से बेहद खतरनाक हैं। लिहाजा आम लोगों की ओर से इसका विरोध शुरू हो चुका है।
 
 
महाराष्ट्र सरकार, अपने एक नए प्रस्तावित कानून प्रोटेक्शन ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट (एमपीआईएसए) पर घिर चुकी है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों के व्यापक विरोध के बाद सरकार ने अब यह कहा है कि 21 अगस्त को उसकी वेबसाइट पर इस कानून का मसौदा भर डाला गया है ताकि इस पर एक स्वस्थ बहस हो सके और इसे एक सही आलोचनात्मक दृष्टि से देखा जा सके। 

महाराष्ट्र सरकार के आला पुलिस अफसरों की मौजूदगी में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) केपी बख्शी ने कहा कि लोगों के सुझाव और आपत्तियों पर गौर करने के बाद ही प्रस्तावित बिल को राजनीतिक स्तर पर विचार-विमर्श के लिए आगे बढ़ाया जाएगा।

बख्शी ने कहा, हम आलोचनाओं और आपत्तियों के बिंदुओं पर गौर करेंगे और जो उचित समझेंगे उसे इस प्रस्तावित कानून के मसौदे में शामिल करेंगे। इसके बाद प्रस्तावित कानून का संशोधित मसौदा गृह मंत्रालय के सामने रखा जाएगा। फिर यह कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए जाएगा।

प्रस्तावित बिल का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि लोग इसके कुछ कठोर प्रावधानों को लेकर बेहद आशंकित हैं। उनका मानना है कि इन प्रावधानों को लागू करते ही महाराष्ट्र एक ऐसे पुलिस स्टेट में बदल जाएगा, जहां प्राइवेसी से जुड़े कानून समेत अन्य नागरिक अधिकारों पर बुरी तरह मार पड़ेगी। विरोध के अधिकार काफी हद तक छिन जाएंगे। कांग्रेस और नेशनल अलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट ने इस प्रस्तावित कानून तुरंत वापस लेने की मांग की है।

कांग्रेस नेता संजय निरूपम कहते हैं,  मसौदे के मुताबिक अगर यह कानून लागू हुआ तो पुलिस को बेहिसाब ताकत मिल जाएगी। ऐसे कानून का एक मात्र मकसद लोगों के लोकतांत्रिक असहमति के अधिकारों को बुरी तरह कुचल देना है। इस कानून का मकसद न तो आतंक पर काबू पाना है और न ही अपराध कम करना है। बल्कि यह लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर वार होगा।

नेशनल अलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट से जुड़ी एक्टिविस्ट उल्का महाजन की भी ऐसी ही राय है। उनका कहना है कि यह कानून पुलिस को इतना ज्यादा अधिकार दे देता है कि वह लोकतांत्रिक असहमति की आवाज को भी कुचल कर रख देगी। महाजन कहती हैं कि हम इस मसौदे पर अपनी कोई राय नहीं देंगे और न ही हम कोई आपत्ति या सुझाव दर्ज कराने जा रहे हैं। हम सीधे-सीधे इस इस प्रस्तावित कानून के मसौदे को वापस लेने की मांग करेंगे।
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दरअसल इस प्रस्तावित कानून का मकसद महाराष्ट्र में आतंरिक सुरक्षा के लिए ऐसे प्रावधान लाना है, जिनसे आतंकवाद, विद्रोह, सांप्रदायिकता और जाति के नाम पर की जाने वाली हिंसा और इनसे जुड़ी घटनाओं पर लगाम लगाया जा सके।
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मसौदे में कुछ व्यवस्थाओं और परिसंपत्तियों को महत्वपूर्ण परिसंपत्तियां और महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर माना गया है। इसमें राज्य के गृह मंत्री के अधीन एक उच्चस्तरीय कमेटी के गठन का प्रस्ताव किया गया है, जो इस तरह की परिसंपत्तियों और इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा के लिए कदम उठाएगी। इसके तहत राज्य के कुछ इलाकों को स्पेशल सिक्यूरिटी जोन घोषित करने का इरादा है। इन इलाकों में हथियारों, विस्फोटकों की आवाजाही पर पाबंदी होगी। साथ ही अन-अकाउंटेड फंड के ट्रांजेक्शन को रोक दिया जाएगा। प्रस्तावित बिल के मुताबिक सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के मालिकों और मैनेजरों को हर वक्त पब्लिक सेफ्टी से जुड़े कदम उठाने होंगे और उन्हें बरकरार रखना होगा। इस बारे में राज्य पुलिस प्रमुख समय-समय पर जो भी निर्देश देंगे उनका पालन करना होगा। इस तरह के कदमों में सीसीटीवी लगाना और इसके फुटेज को 30 दिन तक सुरक्षित रखने जैसे कदम शामिल हैं। ऐसे निर्देशों के पालन में नाकाम रहने पर पांच लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। 

इस प्रस्तावित कानून के तहत किए गए अपराध संज्ञेय, गैर जमानती और नॉन-कंपाउंडेबल होंगे। इसके तहत अपराधों की सजा के लिए त्वरित अदालतें होंगी। यहां तेजी से इन मामलों का निपटान होगा।
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प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के मुताबिक तोड़-फोड़ की घटनाओं के दोषियों को आजीवन कारावास और जुर्माना या दोनों सजा एक साथ हो सकती है। तोड़फोड़ या विध्वंसकारी गतिविधियों में किसी भवन, वाहन, मशीनरी, यंत्र या सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के इस्तेमाल योग्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना शामिल है।

बख्शी ने इस प्रस्तावित बिल को कारगर करार दिया और कहा कि जब 1999 में महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (एमसीओसीए- मकोका) लाया गया था, तब भी ऐसी ही हाय-तौबा मचाई जा रही थी और उसका विरोध हो रहा था। लेकिन संगठित अपराध को काबू करने में यह जिस तरह कारगर साबित हुआ, उससे हर कोई संतुष्ट है।
 
 Full text of the bill may be accessed here.      1
 
 

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