अगर सरकार पिछड़े वर्ग के नेता की है, तो कानून-व्यवस्था खराब होने के आँकड़े मीडिया में आने लगते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के चुनिंदा आँकड़ों को इस तरह से पेश कर दिया जाता है कि साबित हो जाए कि उस राज्य में एकदम जंगलराज ही है। दूसरी तरफ भाजपा या कांग्रेस के शासन वाले राज्य हों, तो आँकड़ों को पेश करने का तरीका बदल जाता है।
यही हो रहा है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2015 की रिपोर्ट के साथ। इसमें फिलहाल उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार निशाने पर है, तो आंकड़ों को संख्या के लिहाज से पेश किया जा रहा है, न कि आबादी के अनुपात के हिसाब से। बीस करोड़ से ऊपर की आबादी वाले राज्य में अगर दो करोड़ की आबादी वाले राज्य के बराबर भी अपराध हुए हों तो कायदे से बड़े राज्य की कानून-व्यवस्था अच्छी कही जानी चाहिए, लेकिन ये तब हो सकता है जब अपराधों को दर और आबादी के अनुपात में पेश किया जाए, जो कि नहीं होता।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2015 की रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि बलात्कार, हत्या, महिलाओं-बच्चियों की तस्करी और अन्य अपराधों में उत्तर प्रदेश और बिहार को बदनाम करना गलत है, जबकि मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपाशासित राज्य ही सबसे आगे हैं। कमोबेश यही स्थिति 2014 और उसके पहले भी रही है।
2015 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के आंकड़ों को भी जनसंख्या से अलग हटकर केवल संख्यात्मक रूप से दिखाकर ये साबित किया जाता है कि उत्तर प्रदेश में अपराध ज्यादा हैं। इस बात की अनदेखी की जाती है कि उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से ज्यादा है, जबकि महाराष्ट्र की करीब साढ़े 11 करोड़, बिहार की साढ़े दस करोड़, मध्य प्रदेश की सवा 7 करोड़, राजस्थान की 6 करोड़ 86 लाख, गुजरात की 6 करोड़, आंध्र प्रदेश की 5 करोड़, छत्तीसगढ़-हरियाणा की ढाई-ढाई करोड़ ही है।
आगे हम ये दिखाने की कोशिश करेंगे कि समाज के सबसे कमजोर तबके के रूप में प्रचारित दलितों पर होने वाले अपराधों की राष्ट्रीय स्तर पर क्या स्थिति है, और भाजपाशासित तथा अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश और बिहार की क्या स्थिति है।
एनसीआरबी की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में दलितों पर हुए कुल अपराधों की संख्या 45,003 है। यह संख्या 2013 में 39,408 और 2014 में 47,064 थी।
आबादी के हिसाब से 2015 में प्रति एक लाख की दलित आबादी पर घटित अपराधों की राष्ट्रीय दर 22.3 रही, जबकि राजस्थान में यह दर 57.2, आंधप्रदेश में 52.3, गोवा में 51.1, बिहार में 38.9, मध्य प्रदेश में 36.9, ओडीशा में 32.1, छत्तीसगढ़ में 31.04, तेलंगाना में 30.9, गुजरात में 25.7, केरल में 24.7 रही। उत्तर प्रदेश में यह दर राष्ट्रीय औसत से भी कम यानी 20.2 रही।
इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा के शासन वाले प्रदेशों में दलित अत्याचारों में बहुत बढ़ोतरी हो रही है और यह चिंता का विषय है। गोवा जैसे शांत माने जाने वाले छोटे राज्य में भी प्रति एक लाख की दलित आबादी पर अपराधों की दर 51.1 होना वाकई आँखें खोल देने वाला तथ्य है।
अब आइए, एक नजर डालते हैं दलितों के ऊपर होने वाले अपराधों की प्रकृति के विश्लेषण पर। 2015 में देश भर में दलितों की हत्या के कुल 707 मामले हुए। हत्या के अपराधों की राष्ट्रीय औसत दर रही 0.4, लेकिन मध्य प्रदेश में यह दर 0.7, राजस्थान में 0.6, झारखंड में 0.5, बिहार में 0.5, उत्तर प्रदेश में 0.5, हरियाणा में 0.4, और गुजरात में 0.4 थी। इस मामले में भी उत्तर प्रदेश की स्थिति कई ऐसे भाजपाशासित राज्यों से बेहतर रही जिसे मीडिया अपेक्षाकृत शांत प्रचारित करता रहा है।
दलितों पर होने वाले अत्याचारों में बलात्कार की घटनाओं का भी काफी बड़ा हिस्सा है। वर्ष 2015 में दलित महिलायों के बलात्कार के राष्ट्रीय स्तर पर कुल मामले 2,326 थे। इसकी राष्ट्रीय दर 1.2 रही।
राज्यों के स्तर पर देखें तो मध्य प्रदेश में यह दर 4.1, केरल में 3.3, राजस्थान में 2.6, छत्तीसगढ़ में 2.5, हरियाणा में 2.1, तेलंगाना में 2.0, महाराष्ट्र में 1.8, ओडीशा में 1.8, गुजरात में 1.6, आंध्र प्रदेश में 1.2 और उत्तर प्रदेश में 1.1 रही। इन आंकड़ों से भी स्पष्ट है कि दलित महिलाओं पर बलात्कार के मामले में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में अपराध दर राष्ट्रीय दर से काफी अधिक रही है, जबकि उत्तर प्रदेश में इन अपराधों की दर राष्ट्रीय दर से कम रही है।
दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की कोशिशों की बात की जाए तो वर्ष 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की घटनाएँ कुल 2,800 हुईं। इस तरह से इनकी राष्ट्रीय दर 1.4 थी। जबकि यह मध्य प्रदेश में 6.9, महाराष्ट्र में 2.7, हरियाणा में 2.1, केरल में 2.2, ओडीशा में 2.2, आंधप्रदेश और तेलंगाना में 1.8 और उत्तर प्रदेश में 1.8 रही।