गोमांस का धंधा ब्राह्मण कर रहा है, पिटाई दलित की हो रही है.
अमेरिका में रहने वाले या वहां रहकर आए लोग जानते हैं कि वहां की सबसे पॉपुलर गोमांस कंपनी मेटाडोर है. मेटाडोर के प्रोडक्ट पेप्सिको बेचती है. पेप्सिको अमेरिका को सबसे ज्यादा गोमांस खिलाती है.
Photo Credit: Economic Times, Indira Nooyi with Narendra Modi
अमेरिका में बीफ मतलब भैंसा नहीं, गाय ही है.
पेप्सिको की ग्लोबल सीईओ इंदिरा कृष्णमूर्ति नूई है. तमिल ब्राह्मण हैं. वे इस बात का ख्याल रखती हैं कि गोमांस खूब बिके. नूई भारत में मंदिर मंदिर घूमती हैं. नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाती हैं.
क्या इंदिरा नूई के जाने के बाद तिरूपति मंदिर को धोया गया? क्या नरेंद्र मोदी ने गंगा जल से स्नान किया?
या गाय का सारा जिम्मा मुसलमानों और दलितों का.
महारानी सा! यानी वसुंधरा राजे. राजस्थान अंदर ही अंदर खौल रहा है. कुर्सी बचाइए. स्मृति ईरानी और आनंदीबेन पटेल के बाद कहीं आपका नंबर न लग जाए. यहां गुजरात से बहुत ज्यादा दलित आबादी है.
डेल्टा मेघवाल केस में आपके सामंती बर्ताव से लोग नाराज हैं.
नया केस जैसलमेर के चांधन का है. यहां के 200 स्टूडेंट्स ने स्कूल छोड़ने की सामूहिक अर्जी दी है. मामला यह है कि उन्हें बोर्ड पर बाबा साहेब का नाम नहीं लिखने दिया गया.
गो – आतंकवादी भी आपके यहां बहुत गंदगी फैला रहे हैं.
है ना गलत बात? देखिये, यह तो चल नहीं पाएगा. जातिवादी गुंडों को कंट्रोल कीजिए.
RSS वाले बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे तीन सौ से ज्यादा अनुषंगी संगठन हैं और अस्सी हजार प्रकल्प यानी प्रोजेक्ट देश भर में चल रहे हैं, जो चुनावी जीत हार से परे विचारों के आधार पर चलते रहते हैं.
RSS वालों को अब एहसास हो रहा होगा कि दलित-बहुजनों के भी कई हजार संगठन देश भर में चल रहे हैं. कैडर कैंप चुपचाप चल रहे हैं. पे बैक टु सोसायटी के मिशन हैं. फुल टाइम कार्यकर्ता हैं. हजारों पत्र पत्रिकाएं हैं. लाखों की संख्या में बहुजन साहित्य छप और बिक रहा है.
किसी पार्टी की हार या जीत से परे उनका काम चल रहा है. फुले-आंबेडकरवादी विचारधारा उन्हें जोड़ती है. उनके बीच प्रतियोगिता है, पर रोहित वेमुला, डेल्टा मेघवाल या गुजरात जैसे सवाल पर वे साथ आ जाते हैं. चट्टानी एकता के साथ. बाकी वंचित समुदायों के साथ उनकी दोस्ती मजबूत हो रही है.
कोई एक नेता नहीं है, इसलिए नेताओं की खरीद बिक्री से फर्क नहीं पड़ता. आंदोलन जारी रहता है.
खूब जमेगा मुकाबला ब्राह्मणवाद और फुले-आंबेडकरवाद के बीच.
भीमा कोरेगांव की संतानें!
इस वक्त दलित पैंथर्स की धरती मुंबई में हूं. चैत्य भूमि भी पास ही है. और यह तस्वीर दिमाग से हट नहीं रही है.
ये सब लाचार दिख रहे जवानों को गौर से देखिए. सारे के सारे सिक्स पैक वाले हैं. कहीं चर्बी नहीं चढ़ी है. क्या फिटनेस है! इन्होंने अगर कभी आत्मरक्षा में हाथ उठा दिया, उस दिन की कल्पना करता हूं.
उन्हें मारने वाले चर्बीदार थुलथुल लोग तो किसी काम के नहीं रहेंगे. पुलिस की शह से, थाने में घेरकर 25 से 30 लोगों ने मारा इन्हें. वरना जो गाय की खाल उतार सकते हैं उनके लिए गौ-आतंकवादियों की खाल उतारना कितना मुश्किल काम है.
फिर याद आता है बाबा साहेब का संविधान सभा का भाषण और समझ में आता है कि लोकतंत्र है, वोट की ताकत है, तो फिर किसी और चीज की बहुजनों को जरूरत ही नहीं है. जमाना वोट से बदलेगा.
बाबा साहेब का संविधान जिंदाबाद.
मौजूदा संपादकों और एंकरों को जिंदगी भर इस बात का मलाल यानी अफसोस होना चाहिए कि अपनी जातिवादी अकड़ में वे उस आंदोलन को दर्ज नहीं कर पाए, जिसने एक मुख्यमंत्री की नौकरी ले ली. वह भी प्रधानमंत्री के गृहराज्य के मुख्यमंत्री की. Ravindra Kumar Goliya
हालांकि अब वे गुजरात की बात करेंगे. लेकिन वे लोगों की नजर में भरोसा खो चुके हैं.
बहुत खूब! अद्भुत. शेयर करने योग्य.
Hari Ram
मित्रो अभी आपने सूना हो तो IBN7 पर डिबेट में एंकर सुमित अवस्थी ने दलित चिंतक चन्द्रभान प्रसाद जी से प्रश्न किया की दलित उत्पीड़न कब खत्म होगा? चन्द्रभान जी ने कहा की आरएसएस के राकेश सिन्हा और बीजेपी के सम्बित पात्रा (दोनो डिबेट में थे) जब उनकी मृत गायमाता की लाश कंधे पर उठा के ले जाएंगे उस दिन दलित उत्पीड़न अपने आप खत्म हो जाएगा| यह सुनके सन्न रह गए सुमीत अवस्थी ने उसी क्षण डिबेट को ख़त्म कर दिया| बहुत बहुत खूब चन्द्रभान जी.
August 1, 2016. Gujarat