पाठकों को भरमाने वाले मीडिया हाइप के बावजूद हाल में हुए महाराष्ट्र नगरपालिका चुनावों में भाजपा को वैसी जीत नहीं मिली, जैसी उम्मीद जताई जा रही थी। इन चुनावों के असली विजेता निर्दलीय उम्मीदवार रहे हैं।
महाराष्ट्र के नगरपालिका चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। भारतीय जनता पार्टी की 851 सीटों ( कुल सीट 3,706) की तुलना में उन्होंने ज्यादा सीटें जीती हैं। कांग्रेस-एनसीपी की कुल सीटों को मिला दिया जाए तो ये बीजेपी और शिवसेना की कुल सीटों से 84 ही पीछे हैं।
पाठकों को भरमाने वाले मीडिया हाइप के बावजूद हाल में हुए महाराष्ट्र नगरपालिका चुनावों में भाजपा को वैसी जीत नहीं मिली, जैसी उम्मीद जताई जा रही थी। इन चुनावों के असली विजेता निर्दलीय उम्मीदवार रहे हैं। नगर पालिका परिषदों की 3706 सीटों पर चुनाव हुए थे। इनमें 864 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई हैं। बीजेपी की सीटों की संख्या 851 है।
भारतीय जनता पार्टी को निश्चित तौर पर सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं और उसने 851 सीटों पर जीत हासिल की है। लेकिन निर्दलियों या स्वतंत्र उम्मीदवारों की सीटें उनसे ज्यादा है। कांग्रेस 643 और एनसीपी ने 638 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस-एनसीपी भाजपा-शिवसेना की कुल सीटों से 84 सीटें ही पीछे हैं। शिव सेना ने 514 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाबी हासिल की है। राज्य की कुल नगरपालिका परिषदों में भाजपा ने 52 परिषदों में मेयर या अध्यक्ष का पद जीता है। निर्दलीयों को इन पदों पर 28 जगहों पर कामयाबी मिली है। जबकि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने क्रमशः 23, 19 और 16 अध्यक्ष या मेयर के पद जीते हैं।
चुनाव नतीजों को विस्तार से देखा जाए तो आपको पता चला जाएगा कि भाजपा को नोटबंदी से होने वाले जिस फायदे का प्रचार किया जा रहा था, वह बिल्कुल गलत साबित हुआ है। टीम मोदी, खुद मोदी और उनके मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर जो हाइप बनाया था वह बिल्कुल धड़ाम साबित हुआ।
जीत के आंकड़ों को देखेंगे तो पाएंगे कि इन चुनावों के असली विजेता निर्दलीय हैं। चुनावी भाषा में जिन्हें ‘अन्य’ कहा जाता है वैसे कई संगठनों को जीत मिली है। मसलन काकू नाना अघाड़ी, स्थानिक अघाड़ी, शाहू विकास अघाड़ी, युवा क्रांति अघाड़ी। असद्द्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमिन (एआईएमआईएम) ने शहादा नंदुरबार और बीड में कुछ सीटें जीत कर अपनी स्थिति मजबूत की है। शुरुआती रिपोर्टों के मिलने तक एआईएमआईएम ने उत्तरी महाराष्ट्र के धुले के नजदीक शाहादा में 4 सीटें जीती थीं। बीड में भी इसने 10 सीटें जीत ली थीं। एआईएमआईएम ने बुलढाणा के परिषद चुनावों में 2 सीटें जीती हैं। मलकापुर की 6 सीटों पर पार्टी को कामयाबी मिली है। हैदराबाद स्थित विवादास्पद पार्टी एआईएमआईएम इससे पहले नांदेड़ और औरंगाबाद में निगम परिषदों के चुनाव जीत चुकी है। पार्टी ने 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी जीत हासिल की है।
शहादा नगर पालिका में 27 सीटें हैं, जहां एनसीपी ने 1 सीट जीती है। इसकी तुलना में एआईएमआईएम को 4 सीटें मिली है। शहादा निगम परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में इसके पार्षदों की भूमिका अहम होगी। यहां कांग्रेस को 11 सीटें मिली हैं। बीजेपी को 10 और एनसीपी को 1 सीट जीतने में कामयाबी हासिल हुई है। ऐसे में शहादा निगम परिषद के अध्यक्ष के चुनाव में एआईएमआईएम के पार्षदों की जीत बेहद अहम हो जाती है।
निगम परिषद के चुनावों में जम कर धांधली और भ्रष्टाचार की भी खबरें हैं। अगर ठीक से जांच की जाए तो ऐसे कई मामले सामने आएंगे। महाराष्ट्र में खासी प्रसार संख्या वाले अखबार लोकसत्ता के मुताबिक स्थनीय स्तरों पर भाजपा ने लोगों को 500 और 1000 के पुराने नोटों को बदलने में वोटरों को खासी मदद दी। निगम परिषदों ने अपनी तिजोरी भी भरी और वोटरों को भी खुश रखा। पार्टियों ने गैर सरकारी संगठनों की सेवाओं का इस्तेमाल वोटरों को टैक्स अदायगी की रसीदें मुफ्त में देने में कया। एक पार्टी के एक सीनियर लीडर ने नाम न छापने की शर्त पर लोकसत्ता को बताया कि इस तरह की छूटों से राजनीतिक दलों को वोटरों का खासा समर्थन मिला।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों में नोटबंदी नहीं बल्कि पुराने नोटों की जीत हुई है।
महज दस-बारह दिन पहले यानी नोटबंदी के बाद मुंबई के बाहरी इलाके पनवेल में एपीएमसी पनवेल के चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी को 17 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। यहां पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) को 15 सीटें जीतने में कामयाबी मिली। कांग्रेस और शिवसेना को एक-एक सीट मिली। एपीएमसी में कांग्रेस को 25 साल बाद कोई सीट मिली। भाजपा पनवेल एपीएमसी चुनावों में सभी 17 सीटें हार गई। इससे इस बात को बल मिला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले से आम लोगों को हुई दिक्कतों को खासी तीखी प्रतिक्रया हुई है। लोगों ने एपीएमसी में बीजेपी को इसका मजा चखा दिया।
मीडिया के एक वर्ग ने टिप्पणी की- एपीएमसी की सभी 17 सीटों पर बीजेपी का हारना उसके लिए भारी झटका है। यहां पीडब्ल्यूपी, शिवसेना और कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ा था और गठबंधन का यह फैसला उसके पक्ष में गया। पीडब्ल्यूपी को 15 सीटें मिली जबकि शिवसेना और कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती। आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रीति शर्मा मेनन ने पीडब्ल्यूपी की इस जीत पर ट्वीट किया- पनवेल एपीएमसी चुनाव में बीजेपी सभी 17 सीटें हार गई। यही व्यापारी पहले बीजेपी का वोट बैंक हुआ करते थे। यानी अंत की शुरुआत हो गई।