नोटबंदी से कालाधन खत्म करने का दावा कर मोदी सरकार आमलोगों की आंख धुल छोंक रहे है| समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय सचिव अनुराग मोदी ने कहा कि पहला, ‘ग्लोबल फाइनेंसियल इंटीग्रिटी’ की 2010 की रिपोर्ट पर नजर डालें, तो उसके आंकड़े से समझ आ जाता कि भारत में पैदा होने वाले काले धन में से मात्र 28% ही देश में है और 72% विदेशों में जाकर जमा हो गया है- मात्र 2003 से 2012 तक 27 लाख करोड़ विदेश गया|| नोटबंदी की इस मुहीम से कुछ छोटे-बड़े व्यापारी, जो अपना धन में देश में ही रखते है, ऊनका 20-30 हजार करोड़ रुपयों का कालाधन सरकार की नजर में आ भी गया, तो उससे क्या होगा| और जो बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने है, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| ललित मोदी और माल्या जैसे लोग तो विदेश जाकर अपने विदेश में जमा पैसों से राजशाही जिन्दगी जीते रहेंगे| अगर सरकार को नकली नोट पर रोक लगाना और नोटों को सफ़ेद धन के रूप में बैंक लाना था, तो सरकार पहले एक हजार के नोट बंद करती और लोगों को बैंक मने जमा करने को कहती तो भी यह काम हो जाता| आज के समय में आम-आदमी के पास कम से कम 500 के नोट है, और वो इस निर्णय से ज़रूर सकते में है|
श्रमिक आदिवासी संगठन के राजेंद्र गढ़वाल ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में लोगों को भारी परेशानी झेलना पद रही है; आदिवासी ईलाकों में तो बैंक 25 से 50 किलोमीटर दूर है| दूसरा लोग बोनी में लगे है|
सजप ने आगे कहा कि इस ‘ग्लोबल फाइनेंसियल इंटीग्रिटी’ रिपोर्ट के अनुसार यह सरकार की नीतियों के चलते 75% कालाधन सीधे विदेशों में जाकर जमा हो जाता है, इसलिए सजप ने सरकार से मांग की कि अगर सरकार को कालेधन पर रोक लगाना है, तो उन नीतियों और नियमों को बदले जिनके चलते कालाधन पैदा होता है- सिर्फ नोट बंद करने से कालेधन का निर्माण नहीं रुकेगा| मोदी सरकार ने चुनाव में इसी कालेधन को वापस लाने का दावा किया था| सजप का सरकार से कहना है: ‘तू इध-उधर का बात ना कर- यह बता कारवां लुटा कैसे” के तर्ज पर सरकार नोटबंदी से कालाधन खत्म करने की ढोंग बंद करे और विदेश में जमा कालेधन के बारें में क्या रह रही है, वो जनता को बताए|
‘ग्लोबल फाइनेंसियल इंटीग्रिटी’ रिपोर्ट के अनुसार 2008 में ही कुल काला धन 42 लाख करोड़ से उपर थी , जब्कि 500 और 1000 के चलन में कुल नोट ही 15 लाख करोड़ के है| इसमें से 75% सफ़ेद चलन में ही है और बाकी 25% में से भी बहुतांश: सरकारी बैंकों तक पहुँच ही जाएगा| इसलिए इस निर्णय से कुछ ख़ास कालाधन कम होने वाला नहीं है|
ग्रामीण इलाकों में नोटबंदी का कहर
समाजवादी जन परिषद (सजप) के अनुराग मोदी ने कहा कि सरकार के इस निर्णय से ग्रामीण ईलाकों में खासी दिक्कते आ रही है| म. प्र. के ग्रामीण इलाकों में बैंक बहुत कम है, उपर से पिछले दो सालों से क्योस्क के जरिए ही सारा लेनदेन हो रहा था, लेकिन सरकार ने 500 और 1000 के नोट जमा करने के मामले में क्योस्क को यह अधिकार नहीं दिए है| श्रमिक आदिवासी संगठन से संजय आर्य ने बताया की इसके चलते मजबूरी में गरीब ग्रामीण और आदिवासी व्यापरी को 500 रुपए देकर उसके बदले 300 रुपए का सामान ले रहे है; व्यापारियों की भी मजबूरी है| सजप से सदाराम ने बताया कि क्योस्क में गए थे, लेकिन उनके पैसे जमा नहीं हुए| उनके आसपास खंडवा के रोशनी और हरदा जिले के मोरगढ़ी के ईलाके में बैंक 25 किलो मीटर दूर है| इस समय खेतों में बोनी के लिए पैसा चाहिए, अब ऐसे में कम छोड़कर इतनी दूर नोट बदलने जाना संभव नहीं है| इसके आलावा ग्रामीण बैंकों में तो अभी सही तरीके से नोट भी नहीं पहुंचे है| राजेंद्र गढवाल ने बताया कि चीरापाटला के आसपास हरदा और बैतूल जिले के ईलाके में आदिवासीयों को बैंक के लिए 25 से 50 किलोमीटर चलकर आना होगा| जैसे हरदा जिले के कायदा ईलाके में और बैतूल जिले के डोढरामौउ, दामजीपुरा, चोपना ईलाके में| और हालात ना सिर्फ बैतूल, हरदा और खंडवा जिले के इन ग्रामीण ईलाकों में है, बल्कि पूरे म. प्र. है|
सजप ने मांग की सरकार तुरंत ग्रामीण ईलाकों में क्योस्क और सहकारी समितियों और सहकारी बैंकों में नोट बदलने की सुविधा दे| ऐसा ना होने पर ग्रामीण ईलाके में ना सिर्फ शादी-ब्याह पर बुरा असर होगा, बल्कि फसलों की बोनी पर भी|
अनुराग मोदी
समाजवादी जन परिषद , म. प्र.
श्रमिक आदिवासी संगठन