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नोटबंदी का धोखा – कैशलेस इकोनोमी सभी घोटालों की जननी है

भारत का संविधान अपने हर नागरिक को प्राण व जीवन की रक्षा का अधिकार देता है. इसके अलावा भारत का नागरिक होने के नाते देश के हर छोटे बड़े और हर अमीर गरीब देशवासी को समान भाव से कुछ मौलिक अधिकार भी प्राप्त हैं. इस स्थिति में कोई भी बदलाव बिना विशेष परिस्थितियों और बिना आपातकाल की घोषणा किये करने की इजाज़त संविधान नही देता. लेकिन बेहद अफसोसनाक स्थिति है कि पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी के अदूरदर्शी फैसले के बाद से देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिल जाने के कारण पूरे देश में अफरातफरी की स्थिति बन गयी है.देश के आम जन जीवन में यह कोहराम इसलिए मचा हुआ है कि अर्थव्यवस्था की साख मानी जाने वाली मुद्रा पर ही भारत में संकट आ पड़ा है. सरकार की मानें तो हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में लगभग 86% स्थान घेरने वाले 500 और 1000 के बड़े नोटों को वापस लेने से देश के छोटे बड़े सभी कालाबाजारियों की कमर टूट जायेगी और सारा काला धन सरकार के कब्जे में होगा. लेकिन जनता की तरफ से सोचें तो एक बड़ा सरल सा सवाल पैदा होता है कि वे नोट जो कुल कल करेंसी में 86% हिस्से में व्याप्त थे, उनको अचानक आधी रात को इस रहस्यमय ढंग से वापस ले लेने के बाद जो रिक्तता पैदा होगी, देश का आम गरीब, मजदूर, किसान और मेहनतकश, नौकरीपेशा आदमी, उसका कैसे मुकाबला करेगा. जो लोग रोज न कमाए तो उनके घरों में चूल्हा नही जलता, वे लोग अपना रोजमर्रा का खर्च कैसे चलायेंगे. फिर भी अपने जीवन की बेहतरी की उम्मीद में लोगों ने इन तमाम दिक्कतों को सहना स्वीकार किया और सोचा कि अर्थव्यवस्था में घुन की तरह लगे काले धन की बरामदगी से देश और जनता के हालात बदलेंगे. लोगों के पास अपनी कमाई के जो पैसे थे, उन्हें जमा करने के लिए और जरूरत के पैसे निकालने के लिए वे बैंकों के बाहर लाइनों में लग गए. बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किये, सरकार की इस बिना सोची समझी और अविवेकपूर्ण कार्यवाही से अचानक पूरे बैंकिंग सिस्टम और आम जन जीवन में अराजकता फ़ैल गयी, सरकारी ढांचा चरमरा उठा, लोग बेहाल हो उठे, यहाँ तक की इस अराजक हुई व्यवस्था के बोझ तले दबकर 70-80 लोगों की अकाल मृत्यु भी हो गयी. बेहद अफ़सोस की बात ये कि इतनी बड़ी कीमत चुकाकर भी जो परिणाम हासिल करने की घोषणा की गयी थी, उसका एक अंश भी हासिल नही किया जा सका.

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आइये इस असफलता और अराजकता के पीछे के कारणों की पड़ताल करें. असल में यह सारी कार्यवाही और इसके घोषित उद्देश्यों के सन्दर्भ में सरकार की सवैधानिक प्रतिबद्धता पर ही बहुत गहरे प्रश्न खड़े हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एक आंकड़े के मुताबिक़ देश में मौजूद कुल काला धन का मात्र 6% हिस्सा ही करेंसी की शक्ल में है. बाकी सारा काला धन रियल स्टेट, सोना, माकन, कालोनियों और प्रतिभूतियों की शक्ल में है. एक बात तो साफ़ है कि देश को अराजकता की आग में झोंक देने वाली यह सारी कार्यवाही मात्र 6% काले धन को जब्त करने की कार्यवाही थी. वह भी असफल हो गयी. यह सवाल सरकार की मंशा पर खड़ा होता है कि शेष 94% कालाधन पर आपका क्या इरादा है. मात्र 6% कालेधन की जब्ती के नाम पर आपने गरीब मजदूर को जीने लायक नही छोड़ा और खेल ये खेला कि एक तरफ आप देश को आश्वस्त करते रहे कि यह बेहद गोपनीय कार्यवाही है, दूसरी तरफ बीजेपी के लोग तमाम प्रदेशों और जिलों में महंगी जमीने खरीदते रहे, अपने पैसे ठिकाने लगाते रहे और महंगे भड़कीले आयोजन करते रहे. कहने को आप देश से लगातार झूठ कहते रहे कि कांग्रेस ने 70 साल देश को लूटा और दूसरी तरफ नोटबंदी की इस पूरी कवायद के दौरान देखा गया कि सैकड़ों करोड़ रूपये पुराने भी और नए भी बीजेपी वालों के घर पकडे गए. यहाँ तक कि काला धन ठिकाने लगाने के काम में खुद भाजपाध्यक्ष अमित शाह तक को देखा गया. अमित शाह पर यह गंभीर आरोप किसी और ने नही, गुजरात बीजेपी के वरिष्ठ विधायक और अमित शाह के राजनीतिक गुरु रहे श्री यतीन ओझा ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में लगाए हैं.  उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि गुजरात में जिला सहकारी बैंकों की ओर से पुराने नोट बदल कर नए नोट बदलने की इजाजत इसलिए मिली कि इन सभी बैंकों का नियंत्रण गुजरात भाजपा के लोगों के पास ही है। 8 नवंबर को सुबह रात नौ बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक इन बैंकों ने 500 और 1000 के पुराने नोटों को छोटे नोटों में बदलने का काम किया। आपने 8 तारीख को आरबीआई के जरिये सभी बैकों के कैश की जानकारी ली थी। आप इस तथ्य को जांच लें कि बैंकों में ज्यादा कैश आया कि नहीं। गलत साबित होने पर मैं सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने के लिए तैयार हूं।लोगों के दिमाग में यह शक है कि नोटबंदी के इस पूरे प्रकरण में शार्क और व्हेलों (बड़े पूंजीपतियों और काला धन कारोबारियों) को छोड़ दिया गया और आपके नजदीकियों को पहले ही जानकारी दे दी गई थी। आपको इस शक को मिटाने के लिए रिजर्व बैंक की वेबसाइट के जरिये एक करोड़ रुपये से ज्यादा रकम रखने वालों के लिए डिस्कलोजर की घोषणा करनी चाहिए। मेरा पक्का दावा है कि फॉर्च्यून 300 कंपनियों का कोई भी चेयरमैन, एमडी या डायरेक्टर यह डिस्कलोजर नहीं देगा। अगर वे डिस्कलोजर नहीं देते हैं तो मेरे आरोप सही साबित होते हैं। मैंने लोगों को चार हजार रुपये के लिए लोगों को भूखे-प्यासे लाइन में खड़े होते देखा है लेकिन इस लाइन में किसी मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू, ऑडी,वोल्वो पोर्श या रैंज रोवर वाले को नहीं देखा। न तो उन्हें पैसे निकालने और न ही जमा करने के लिए लाइन में लगते देखा। हो सकता है कि आपकी राय में ब्लैक मनी सिर्फ उनके पास है जो एटीएम या बैंकों की लाइन में लगे हैं। उनके पास कोई ब्लैक मनी नहीं है जिनके पास बीएमडब्ल्यू और ऑडी जैसी बड़ी-बड़ी कारें हैं। 

नोटबंदी की योजना को असफल होते देखकर सरकार कैशलेस ट्रांजैकशन का नया जुमला लेकर आई. सरकार के लोगों ने कहना शुरू किया कि सारा झमेला ही कैश का है इसलिए पूरा लेनदेन ही कैशलेस करने के उद्देश्य से नोट वापस लेने का फैसला किया गया. इस बारे में विशेषज्ञों की राय सरकार से अलग है. कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि भारत मूलत: एक नकदी आधारित अर्थव्यवस्थाहै.उन्होंने कार्ड से भुगतान सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी मास्टरकार्ड के साथ कैट के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारत में अभी केवल 10 प्रतिशत जनसंख्या ही नकदी रहित भुगतान करती है। जबकि स्वीडन में यह आंकड़ा 97 प्रतिशत, बेल्जियम में 93 प्रतिशत, फ्रांस में 92 प्रतिशत, कनाडा में 90 प्रतिशत और इंग्लैंड में 89 प्रतिशत है।कैट की एक विज्ञप्ति के अुनसार ने व्यापारियों को डिजिटल भुगतान के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए दो साल से एक बड़ा अभियान चलाया हुआ है और इसके लिए उन्होंने मास्टरकार्ड और एचडीएफसी बैंक से साझेदारी की है।कैशलेस इकोनोमी सभी घोटालों में बड़ा घोटाला कैसे है, इसे समझने के लिए एक छोटा सा उदाहरण पर्याप्त है. मान लीजिये 100 रूपये के एक नोट के 100000 सर्कुलेशन होते हैं. हर हाल में इसका मूल्य 100 रूपया ही रहेगा. जिसको भी मिलेगा 100 रूपया ही मिलेगा, न एक पैसा कम, न ज्यादा. लेकिन जब 100 रूपये का सर्कुलेशन कैशलेस कंडीशन में होता है तो प्रत्येक ट्रांजैकशन पर 2.5% कमीशन देना पड़ता है. अर्थात 2.5% 100000 बार यानि 2500% यानि 2,50,000 रूपये का ऑनलाइन पेमेंट देना पड़ता है. इस प्रकार यह व्यवस्था सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हुई. और इसीलिए यह सभी घोटालों की जननी भी हुई.

यह बात कोई काले धन वाला अमीर समझे न समझे, आमजन को समझना ही पड़ेगा. लोग लाइनों मे लगे लगे दम तोड़ गए। शादियों के लिए ढाई ढाई लाख देने को कहा था। किनको मिले ? पूछिए उनके जी से कैसे इज्जत बचाई होगी, कैसे बेटियों को विदा किया होगा। दूध मंडी मे चलिये, धंधा ठप है। लोहा मंडी मे आइये, सियापा छाया हुआ है। बिसाता बाजार मे आइए, निर्जन पड़ा है। गल्ला मंडी तक चलिये, शटर गिरे हुए हैं। रिक्शे, ऑटो और ठेले वालों पर एक नजर डालिए, लोगों की आँखों मे सूखा है। मजदूर मंडी चलिये, घुटनों मे सिर गोंते पसली की हड्डियाँ गिनते मजदूर खून रो रहे हैं। गांवों के चट्टी चौराहों पर चलिये, ग्रामीण और सहकारी बैंक बुरी तरह कैशलेस हैं, लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। कह दीजिये कि ये सारा कुछ देश की इकोनोमी से बाहर की बातें हैं। कह दीजिये कि ये लोग देश मे नही रहते। कह दीजिये ये लोग भाइयों बहनों मे नही आते। इन लोगों ने वोट नही दिये आपको, अपनी बेहतरी की उम्मीद नही पाली थी आपसे…..। 15 नवंबर से 15 दिसंबर तक का समय गेहूं की बुआई का निर्धारित समय होता है। उसमे भी 30 नवंबर तक हो गयी तो अगैती वरना पिछैती हो जाती है फसल। 15 दिसंबर बीत गया और खाद बीज सहकारी समितियों से नदारद है, बाज़ार रो ही रहा है। हजारों हजार एकड़ खेत आसमान ताक रहे हैं। इन हालात में सरकार की जुम्लेबाजियों की अस्स्लियत समझने की जरूरत है. दरअसल यह सबकुछ देश के आम आदमी के हित के लिए नही, कुछ बड़े अमीर घरानों के हित के लिए खेला गया बड़ा खेल है. इसलिए सावधान रहें. हर हाल में अपनी जमापूंजी पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए हर जरूरी संघर्ष में उतरें. कैशलेस ट्रांजैकशन मात्र एक प्रलाप है, अमेरिका, फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे अमीर और विकसित देशों में भी पूरी तरह लागू नही किया जा सका है. भारत के सन्दर्भ में तो यह पूरी तरह एक धोखा है. इस स्थिति को समझने और इससे सावधान रहने की जरूरत है. सरकारी जुम्लेबाजियों के कुप्रभाव से आप अनजान नही हैं. इसलिए अपना धन अपने प्रयासों से सुरक्षित रखें, क्योंकि गण की जमापूंजी पर तंत्र की कुदृष्टि पड़ रही है. 

(The author is a writer based in Varanasi)

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