नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को अचानक देश से 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद देश में तूफान मचा हुआ है। सरकार ने इसे ब्लैक मनी पर सर्जिकल स्ट्राइक करार दिया था। लेकिन इंडियन इकॉनमी पर नजर रखने वाली एजेंसी 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी' यानि CMIE ने एक अनुमान लगाया है कि नोटबंदी से देश को लगभग 1.28 करोड़ रुपए की चपत लगेगी।
CMIE ने अनुमान लगाया है कि देश से ब्लैक मनी को खत्म करने के लिए सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने का जो कदम उठाया है, उसकी ट्रांजैक्शन कॉस्ट 50 दिनों में लगभग एक लाख 28 हजार करोड़ रुपए की होगी। CMIE ने कहा है कि कुल लागत इससे ज्यादा भी हो सकती है। CMIE ने एक रिपोर्ट में कहा, ''मंडियों में कामकाज घटने, मॉल्स में लोगों की आवाजाही कम होने, रेस्त्रां का कारोबार घटने और फैक्ट्रियों में कामकाज ठप होने की लगातार आ रहीं रिपोर्ट्स निराशाजनक तस्वीर बना रही हैं। ये सब बाजार से कैश को अचानक निकाल लेने के कारण हो रहा है।''
CMIE ने कहा है कि इस नोटबंदी का सबसे बड़ा खामियाजा कंपनियों और कारोबारियों को उठाना पड़ सकता है। उसने कहा है कि इस कदम का तात्कालिक प्रभाव 61,500 करोड़ रुपए का हो सकता है, जो विमुद्रीकरण की कुल लागत का 48 प्रतिशत है। उसने कहा, ''हमने इस बात का अनुमान लगाया है कि विमुद्रीकरण के बाद लोगों ने बुनियादी चीजों से इतर वस्तुओं पर जो खर्च घटाया है, उसका कंपनियों और कारोबारियों पर कितना सीधा असर होगा। 50 दिनों की अवधि में अकेले यही 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत है।''
रिपोर्ट में कहा गया है कि एंटरप्राइजेज के बाद सबसे बड़ी चपत बैंकों को लगेगी। CMIE के अनुसार बैंकिंग सेक्टर को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। बैंकरों का वेज लेवल बैंकों और एटीएम के सामने कतारों में खड़े आम लोगों से काफी ज्यादा है और एटीएम को कैलिब्रेट करने में उन्हें काफी खर्च उठाना होगा। रिपोर्ट में कहा गया, इन 50 दिनों में बैंकों का असल कामकाज काफी कम होगा। हमारा अनुमान है कि उन्हें इस दौरान 35,100 करोड़ रुपए की चपत लगेगी।
CMIE ने कहा है कि पुराने करेंसी नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए कतारों में खड़े लोगों के सिर पर इस लागत का 12 प्रतिशत हिस्सा जाएगा और इस दौरान अपना दैनिक वेतन या मजदूरी गंवाने के चलते वे कुल 15 हजार करोड़ रुपये का चोट खा सकते हैं। CMIE ने कहा है कि विमुद्रीकरण का लॉन्ग टर्म असर कहीं ज्यादा हो सकता है। उसने कहा, ''हमारे सारे अनुमान संयत हैं। सभी अनुमान 50 दिनों की अवधि को ध्यान में रखते हुए लगाए गए हैं। हालांकि लिक्विडिटी कम होने, सप्लाई चेन टूटने और ग्राहकों का हौसला पस्त होने का असर अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है।''
CMIE ने कहा है कि ये सभी अनुमान संतुलित तरीके से लगाए गए हैं, न कि बढ़-चढ़कर और ऐसा करते हुए 50 दिनों की अवधि को ध्यान में रखा गया है। उसने कहा है कि सरकार और आरबीआई को इस कदम के चलते 16,800 करोड़ रुपए की लागत उठानी पड़ सकती है। यह लागत मुख्य तौर पर नई करेंसी की छपाई, नई करेंसी को बैंकों की शाखाओं, एटीएम और डाकघरों तक पहुंचाने में लगेगी।
Courtesy: National Dastak