नोटबंदी पर सवाल उठाने वाले पत्रकार आरबीआई की तानाशाही के शिकार

द इकोनॉमिस्ट के पत्रकार स्टेनली पिगनल की ओर से नोटबंदी की आलोचना करने से आरबीआई तिलमिला गया है लिहाजा आरबीआई ने अपनी दैनिक ब्रीफिंग्स से उन्हें बाहर रखा

मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर ब्रिटेन से प्रकाशित मशहूर पत्रिका इकोनॉमिस्ट के तीखे लेख पर आरबीआई तिलमिला गया है। पीएम नरेंद्र मोदी के खास माने जाने वाले आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल इस रिपोर्ट से खासे खफा हैं और उन्होंने इसकी प्रतिक्रिया में किसी तानाशाह का तरीका जैसा अपनाया है। पिछले दिनों आरबीआई ने इसका बदला लेते हुए इकोनॉमिस्ट के वरिष्ठ संवाददाता स्टेनल पिगनल को आरबीआई की हर दिन होने वाली ब्रीफिंग्स से बाहर रखा।

दिल्ली में तैनात इकोनॉमिस्ट के संवाददाता पिगनल ने आरबीआई के इस कदम पर ट्वीटर पर अपना गुस्सा जाहिर किया। एक के बाद एक किए गए कई ट्वीट्स में उन्होंने मोदी सरकार की ओर से किए जा रहे पारदर्शिता के दावे को ढोंग करार दिया।

3 दिसंबर के द इकोनॉमिस्ट के अंक में लिखे लेख में पिगनल ने न सिर्फ नोटबंदी के फैसले की कड़ी आलोचना की थी बल्कि मीडिया से बात न करने पर उर्जित पटेल को भी आड़े हाथ लिया था। अपने लेख में स्टेनली पिगनल ने जो लिखा वह इस तरह है- 
 

भारत सरकार के नोटबंदी के फैसले के भयानक नतीजे दिख रहे हैं।

देश में सर्कुलेशन में मौजूद 86 फीसदी करेंसी को वापस लेने का फैसला एक खराब विचार था। साथ ही इस फैसले को लागू करने का तरीका भी बेहद खराब था।
स्टेनली ने अपने लेख में लिखा –

फर्ज कीजिये कि एक दिन दुनिया की एक बड़ी और तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था वाली सरकार को लगा कि उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता करोड़ों रुपये की ब्लैकमनी दबाए बैठे अमीरों को सबक सिखाना है। लोगों की जबरदस्ती सहमति हासिल इस सरकार ने अपने प्रिटिंग प्रेसों को धड़ाधड़ नोट छापने के आदेश दिए। ताकि महंगाई की आंधी में छिपा कर रखे गए इन नामुराद अमीरों के नोटों की वैल्यू खत्म हो जाए। साथ ही उसने लोगों से अपने पुराने नोट बैंकों में जमा करने की भी मिन्नतें कीं। (जहां कम से कम इस रकम पर ब्याज तो मिलती है) । अब सरकार नए हासिल पैसों से लोगों को टैक्स छूट दे सकती थी और लोक निर्माण स्कीमों की फंडिंग कर सकती थी।

जाहिर है आलोचकों के लिए यह सन्न करने वाला मामला था। क्योंकि महंगाई तो हर उस शख्स को परेशान करेगी जिसके पास कैश है। लेकिन ब्लैकमनी रखने वालों की संपत्ति पर इसका फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि उनका ज्यादातर काला धन कैश में नही प्रॉपर्टी, सोना या ज्वैलरी में होगा। लेकिन शायद सरकार को इस बात का अंदाजा नहीं होगा नोटबंदी जैसे कठोर कदम अहम सरकारी संस्थानों की अहमियत को चोट पहुंचा सकते हैं। डर है कि इस तरह के फैसले देश की करेंसी में लोगों के भरोसे को कम न कर दे। इस तरह के कदम कुछ और व्यापक सांस्थानिक नाकामी का रास्ता भी साफ कर सकते हैं। नतीजतन हाइपर इन्फ्लेशन यानी बहुत ज्यादा महंगाई का दौर आ सकता है। लोगों को यह विश्वास नहीं रह जाएगा कि सरकार देश के भविष्य के मद्देनजर कोई बेहतर फैसला कर सकती है।

तेज-तर्रार पत्रकारिता की नजीर के तौर पर इस लेख को यहां और विस्तार से पढ़ा सकता है।  It may be read here

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