नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को आधी रात से नोटबंदी की अचानक घोषणा कर दी। जिसके बाद देश में पैसे की भयंकर किल्लत शुरू हो गई है। नोटबंदी के लगभग 35 दिन बाद भी पैसे की वजह से लोगों की जानें जा रही हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि लोग बैंकों की लाइन में मर रहे हैं। इसी बीच एसोचैम ने नोटबंदी से हुए नुकसान को लेकर चेताया है।
दरअसल नोटबंदी का सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। सभी छोटे और मझोले उद्योग और कारोबार कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं। व्यापार सिकुड़ता जा रहा है और अब इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय माना जा रहा है।
एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत कहते हैं कि इसका सीधा असर जीडीपी विकास दर पर पड़ेगा। रावत ने कहा, 'नोटबंदी का निश्चित तौर पर असर जीडीपी ग्रोथ रेट पर पड़ेगा। मेरा अनुमान है कि असर 1.5% तक होगा। सबसे ज़्यादा असर रोज़गार पर पड़ रहा है विशेषकर छेटो-छोटे कारखानों में, और एक्सपोर्ट सेक्टर पर।'
रावत कहते हैं कि अर्थव्यवस्था को कैश से कैशलैस बनाने में कम से कम पांच साल लगेंगे, वो भी तब जब सरकार सक्रियता से पहल करे। ये प्रक्रिया जटिल है और करोड़ों लोगों को इसके लिए ट्रेन करना पड़ेगा। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में इसके लिए ज़रूरी तकनीकी ढ़ांचा तैयार करने में लंबा वक्त लगेगा।
एसोचैम का आकलन है कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ा है। नोटबंदी की वजह से असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसर तेज़ी से घट रहे हैं। ये आकलन एसोचैम से जुड़े उद्योगों की राय के आधार पर तैयार किया गया है।
इसके पहले भी एसोचैम के अध्यक्ष सुनील कनोडिया ने कहा था कि नोटबंदी को बिना तैयारियों के क्रियान्वित किया गया है। कनोडिया ने कहा था कि इसके प्रभाव और चुनौतियों के बारे में ठीक से समझ नहीं बनाई गई।
Courtesy: National Dastak