Nazre Alam, president of All Indian Muslim Bedari Karwan from Darbhanga Karwan is allegedly being harassed by local authorities for a speech he gave in the defence of Rohingya’s human rights.
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Darbhanga: The president of All Indian Muslim Bedari Karwan fro Darbhanga Karwan is allegedly being harassed by local authorities for a speech he gave in the defence of Rohingya’s human rights. Nazre Alam, also Secretary of Jamiat-Ulama-i-Hind, has reportedly had many warrants of arrests and FIR against him ever since he gave a public speech to people in support of granting Rohingya people amnesty in India.
On September 20, AIMBK took out a protest march at the Darbhanga commissioner Dharna Sthal Maidan in Bihar. The motive of the protest was to bring the ruling govt’s attention to the plight of Rohingya Muslims and grant them amnesty along with citizenship just how it was awarding it to Hindus of neighbouring countries.
Led by Nazre Alam, it protested outside the office and reportedly even presented a memorandum of their demands to the commissioner. They said that if their voices would not be heard, they would protest in Delhi.
In his speech to the gathered crowd, he spoke about the history of Myanmar, the legacy of Muslim rule in India, the humanity with which India has accepted many refugees belonging to various backgrounds throughout history and how Rohingya Muslims needed to be helped on humanitarian grounds.
Some of the words from his speech were video recorded and allegedly edited to make it look like he had made threats to Hindus and said anti-national words. A news channel called Sudarshan News made it look as if he threatened to remove all traces of Hinduism from the country. Alam alleged that the fake clip was circulated everywhere.
News channel video:
Speaking to Sabrang India, Alam said that he has been slapped with FIRs and non-bailable warrants. “Old political leaders in the area are giving my words a communal angle when my speech doesn’t have it. I apologized for causing any hurt to sentiments but that was not my intention and my speech was not defamatory either. These political bigwigs just want to silence people like me. They’re giving the whole Muslim community a bad name and damaging our reputation for the public by fabricating my words,” he said.
He added, “If India doesn’t take a strong stance against Myanmar and allows them to torture Rohingya Muslims, what message does it send? If we don’t protect the refugees, we refuse the right to be considered cultured. If we don’t have a culture, who are we? Without a peaceful culture, we won’t have a country, we won’t have the world and we won’t have any Hindus either, that’s what I meant. Why is the media silent when people like Dalai Lama, who practice Buddhism, call Rohingya Muslims terrorist?”
His speech at the protest march:
ब्यान नजरे आलम
जलाना हमें भी आता है चाहा जाए तो पूरी दुनिया को दो घंटे में जलाकर राख कर दिया जा सकता है। पर हम एसा करते नहीं क्यों कि हम मुसलमान आदम से लेकर आज तक अमन पसन्द ही रहे हैं। तुम तारीख उठाकर देखो दुनिया की कोई भी तारीख हमारे बगैर पूरी नहीं होगी। जब हमने तुम्हारे यहाँ हुकुमत की, हाकिम रहे तब देखो और आज हम जहाँ महकूम हैं वहाँ देखो, तुम्हें अमन के अलावह कुछ भी नहीं दिखेगा, दुनिया में फलने फूलने कि यही वह राज हैं जिसे हमने पा लिया है। तुम्हारे साथ साथ तमाम गैर इस्लाम का औव्वल रोज से ही यही तरीका रहा है नफरत नफरत नफरत बस इस्लाम से नफरत, शायद तुम यह भूल जाते हो कि इस्लाम आज उस मकाम पर है कि तुम उससे किनारहकश नहीं हो सकते, तुम्हें अगर दुनिया में शोहरत या बुलन्दी चाहिए तो दो ही काम करना होगा चाहो तो इस्लाम से मुहब्बत का इकरार करो या फिर नफरत आमेज कलमात कहो और जितना हो सके इस्लाम के खिलाफ काम करो, तभी तुम्हें बुलन्दी व शोहरत मिल सक्ती है।
तारीख में कौन जानता था बर्मा को, अराकान सूबा पर जब खलीफा हारूण रशीद के वक्त मुसलमान ताजिर वहाँ बसे और वहाँ के मकामी लोगों ने उन ताजिरों से मोतास्सिर होकर इस्लाम कबूल कर लिया, यहाँ तक कि अराकान के बादशाह ने भी 1430 ई0 को इस्लाम कबूल कर वहाँ मुसलमानों की हुकुमत बाजाब्तह कायम कर दी, सही मानों में तब जाकर बर्मा आलमी पैमाने पर पहचाना जाने लगा। जैसा कि मशहूर इतिहासकार दीना नाथ लिखता हैः-
‘‘बर्मा का इतिहास बहुत व्यवस्थित और स्पष्ट नहीं है। दसवी सदी के पूर्व तक के इतिहास पर तो एक प्रकार से पर्दा पड़ा हुआ है।’’
(एशिया का इतिहास)
वक्त करवट लेता रहा और साढ़े तीन सौ साल हुकुमत करने के बाद अराकान समेेत पूरे बर्मा पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का कब्जा 1826 ई0 को हो गया। अंग्रेज अपनी बुनियादी पालिसी क्मअपकम – त्नसम के तहत मुसलमानों और राखिने नस्ल के बौद्धों को आपस में लड़ा दिया और फसादात का सिलसिला वहीं से चल पड़ा जो अबतक थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पन्द्रह लाख रोहिंग्या मुसलमानों पर जो वहाँ बहुसंख्यक में हैं उनपर जुल्म का सिलसिला बर्मा के 1937 ई0 में आजाद होने के साथ ही लगातार चल रहा है। फिर भी पूरी दुनिया चुप्पी साधे हुई है। एक मुसलमान अपने हक के लिए अगर सिस्टम से तंग आकर आवाज बुलन्द कर ले तो पूरी दुनिया बेचैन हो जाती है पर बर्मा के मुसलमानों पर अबतक ना खत्म होने वाले मजालिम उन्हें नहीं दिखते।
निम्नलिखित में हम आँकड़ा देते हैं कि बर्मा ने मुसलमनों के खिलाफ किस तरह से राखिने नस्ल के बौद्धों और फौजी आपरेशन के तहत मुसलमानों की नस्लकशी की जा रही है, उन्हें बर्मा छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा हैः-
1- 1942 को पहला फसाद हुआ और मुसलमानों के कत्लेआम का आगाज कर दिया गया, लग-भग 1,50,000 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया।
2- 1947 में लगातार कई जगहों पर फसाद रूनमा हुए।
3- 1949 से अबतब मुसलमानों के खिलाफ 14 फौजी आपरेशन हुए हैं जिनमें मार्च 1978 का आपरेशन सबसे बदतरीन था। दर्जनों बस्तियाँ जलाकर खाक कर दी गईं। मसाजिद, मदारिस को ढ़ा दिए गए और सितम तो यह है कि इस आपरेशन के बाद अराकान का नाम बदल कर त्ंाीपदम ैजंजम कर दिया गया, 3,00,000 मुसलमान बंगलादेश में पनाहगुंजी हुए।
4- 1982 में रोहिंग्या मुसलमानों को बर्मी नागरिक्ता से महरूम कर दिया गया।
5- 2012 के फसादात में मजीद 3,50,000 रोहिंग्या मुसलमान हिजरत को मजबूर हुए।
6- हालिया फसादात में अबतक हजारों मुसलमान को शहीद कर दिया गया। 80,000 के आस पास हिजरत कर चुके हैं।
इतना कुछ हो जाने के बावजूद आलमी मिडिया खामोश है। कहाँ गई तुम्हारी इंसानियत, तुम्हारा इंसानों के खून का दर्द, शायद यह लोग इसलिए खामोश है कि अहले इस्लाम को यह हजरात इंसान नहीं मानते।
हुकूमत-ए-हिन्द का नजरिया भी साफ है वह रोहिंग्या में हो रहे मजालिम के खिलाफ ना ही बोलता है और न ही रिफूयजी को पनाह देने के हक में है। बल्कि उसकी जेहनियत देखिए बर्मा के साथ खड़ा है।
हम हिन्दु भाईयों को आगाह कर देना चाहते है कि अगर तुम वक्त से बेदार नहीं हुए तो पूरी दुनिया में हम तो रहेंगे तुम इतिहास बनकर रह जाओगे।
संयुक्त राष्ट्र (अकवाम-ए-मुत्तहदह) के असूल के मोताबिक अगर कोई मजलूम किसी मुल्क में पनाह लेता है तो उसे वह मुल्क अपनी नागरिक्ता देगा। आज हुकूमत-ए-हिन्द इसकी भी खिलाफवर्जी करती हुई दिख रही है। हम हुकूमत को बता देना चाहते हैं कि जैसा कि मैंने शुरू में कहा है कि हुकूमत होश में आए और जिस तरह से हिन्दु रिफूयजी को Accept करती है वैसे ही मुस्लिम रिफूयजी को कबूल करे।
संयुक्त राष्ट्र (अकवाम-ए-मुत्तहदह) के साथ तमाम इंसाफ पसन्द मुल्क भी बर्मा के खिलाफ होता चला जा रहा है तो किया वजह है हिन्दी हुकूमत अपने आपको उनके खिलाफ जाकर अपना नाम सिर्फ तारीख में दर्ज करवाना चाहती है जिसका कोई भविष्य नहीं है।
बौद्धों के सब से बड़े ओस्ताद (दलाई लामा) ने भी बर्मा में हो रहे मजालिम के खिलाफ खुल कर कहा है उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि राखिने नस्ल के बौद्ध, बौद्ध नहीं आतंकवादी हैं, पर अब भी आलमी मिडिया खामोश है।
हम तुर्की और ईरान का खैर मकदम करते हैं और दुआ करते हैं कि इसी तरह वह मुसलमानों के हक में बोलते रहें और उनके लिए खिदमात अंजाम देते रहें।
नजरे आलम
सचिव
दरभंगा जमीअत उलेमा हिन्द
सह-राष्ट्रीय अध्यक्ष
आॅल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवाँ
We received the speech transcript and news channel video from Nazre Alam.